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मेवात: आतंक का गढ़

मेवात: आतंक का गढ़

by आशीष अंशू
in देश-विदेश, राजनीति, सामाजिक, सितम्बर २०२३
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भारत में अन्य बातों की तरह ही दंगों का भी ‘अपग्रेडेशन’ हो रहा है। मेवात में हुए साइबर दंगे इसकी बानगी कहे जा सकते हैं। जिस तरह से इसकी तैयारी की गई थी, जिस तरह से इसके लिए मोबाइल और सोशल मीडिया का प्रयोग किया गया था, उससे यह सिद्ध होता है कि धीरे-धीरे दंगे भड़काना उंगलियों पर खेलने जैसा हो जाएगा। इसकी भयावहता को समझकर आवश्यक कदम उठाना अत्यंत आवश्यक है।

मेवात के मामले में देश ने देखा कि कैसे जिन लोगों ने नूह में हिंसा की, उसी पक्ष को मीडिया का इस्लामिक कट्टरपंथियों से सहानुभूति रखने वाला ईकोसिस्टम पीड़ित दिखाता रहा। 31 जुलाई को नूंह में जो हुआ, उसने इलाके के लोगों को भी हैरान कर दिया है। बीते तीस सालों में ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला। ऐसी कोई तैयारी कट्टरपंथी कर रहे हैं, इसकी भनक भी पड़ोसी हिन्दूओं को नहीं लगी।

उनकी कोशिश तो यह भी थी कि नूह हिंसा के बाद जाट, राजपूत, यादवों को हिन्दू समाज के बरक्स ही खड़ा कर दिया जाए। मतलब नैरेटिव कुछ ऐसा सेट करने का प्रयास चल रहा था कि मेवात में राजपूत, जाट और यादव समाज के लोग कट्टरपंथी मुसलमानों के साथ हैं। उनकी पहचान बाकि हिन्दू समाज से अलग है। जैसा कि अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्ग के हिन्दूओं को अक्सर हिन्दूओं से अलग दिखाने की कोशिश की जाती है। उन्हें कभी अस्पृश्यता के नाम पर तो कभी आरक्षण में भेदभाव के नाम पर आपस में ही लड़वाने का लगातार प्रयास किया जाता है। इसी प्रकार किसान आंदोलन के दौरान जाट सिख एकता की कहानियां सुनियोजित तरीके से सोशल मीडिया और वाट्सएप पर चलाई गईं। याद कीजिए जब सीएए के खिलाफ आंदोलन चल रहा था, वहां एक सिख परिवार ने आंदोलन में शामिल मुसलमानों के लिए रोटी की व्यवस्था कराई। एजेन्डा चलाने वालों ने खबर बनाई कि सीएए आंदोलन के दौरान प्रतिदिन गुरु साहब का लंगर लग रहा है। गुरु को चढ़ाया गया प्रसाद खाना कोई भी कट्टरपंथी मुसलमान कैसे स्वीकार कर सकता है? गुरु का लंगर शब्द चलाया तो गया था भारतीय समाज की भावनाओं के दोहन के लिए लेकिन गुरु के प्रसाद का जिक्र आते ही कट्टरपंथियों की बात खराब हो गई। उन्हें बताया गया है कि प्रसाद खा लेने से उनका मजहब खतरे में आ जाएगा। सीएए का विरोध कर रहे मुस्लिम परिवारों को एक सिख परिवार रोटी खिला रहा था, यह बात सच्ची थी लेकिन वहां बंट रहे खाने को लंगर नहीं कह सकते, जैसा कि मीडिया के माध्यम से प्रचारित कराया गया था।

यही कट्टरपंथी ईकोसिस्टम मेवात में निकली ब्रज मंडल यात्रा को भगवा यात्रा लिखकर रिपोर्ट कर रहा था। उनका उद्देश्य सिर्फ इतना था कि हिन्दूओं की धार्मिक यात्रा को राजनीतिक यात्रा का रंग दे दिया जाए। धीरे धीरे झूठ की परतें उतरीं। लेकिन जब तक सच जूते पहन कर समाज के सामने आया, उतने ही दिनों में झूठ ने दुनिया के सात चक्कर लगा लिए थे।

दीपक नाम के एक चश्मदीद का बयान इस बीच सुनने को मिला। वे इस शोभा यात्रा काहिस्सा थे। दीपक के अनुसार जब वे नूह से मेवात की तरफ अपनी गाड़ी से यात्रा के साथ आगे बढ़े तो वहां एक गांव आया। जहां लगातार तीन-चार मस्जिदें आती हैं। वहां बड़ी संख्या में भीड़ इकट्ठी थी। दीपक को लगा कि ये लोग फूलों की वर्षा के लिए या यात्रा की सेवा के लिए वहां इकट्ठे हुए होंगे। उन्हें डरने जैसी कोई बात नहीं लगी। समाचार पत्रों में अक्सर ऐसी खबरें छपती रहती हैं कि मुसलमानों के समूह ने किस तरह कांवड़ियों पर फूलों की वर्षा की। उनके शर्बत का इंतजाम किया। दीपक को अंदाजा नहीं था कि दस मिनट के अंदर वे एक बड़ी मुसीबत में फंसने वाले हैं। उन्हें अंदाजा तब लगा, जब उनके पास यात्रा से जुड़े एक व्यक्ति का फोन आया कि आप ना आगे बढ़िए और ना ही पीछे की तरफ वापस लौटिए। जहां हैं वहीं ठहर जाइए, क्योंकि आगे और पीछे दोनों तरफ खतरा है। दीपक ने फिर वापस लौटकर देखना बेहतर समझा। वे जब वापस लौटे तो मस्जिद तक आते-आते पांच सौ मीटर की दूरी रही होगी, उन्होंने देखा कि औरतें, बच्चे, बुजुर्ग सब मिलकर मस्जिद की छत से और अपने घरों की छत से पत्थर फेंक रहे हैं। पत्थर भी एकाध नहीं लगातार फेंके जा रहे हैं, जैसे इसकी तैयारी पहले से करके रखी गई हो। उन्होंने आम लोगों और यात्रा के साथ चल रहे पुलिस वालों पर भी पत्थर फेंके। दीपक के अनुसार महिलाओं और बच्चों की भगदड़ के दृश्य शब्दों में बयान नहीं किए जा सकते।

पुलिस वाले भी वहां एक्शन की जगह, अपनी जान बचाने की फिक्र में लगे थे। दीपक के अनुसार उस दिन अपनी गाड़ी से मेवात से जान बचाकर निकलने हेतु 100 किमी की यात्रा पूरी करने में छह घंटे का समय लग गया।

आतंकियों का ठिकाना और सायबर क्राइम का हब मेवात का एक परिचय और है। यह हरियाणा सायबर क्राइम का सबसे बड़ा गढ़ है। रिपोर्ट से यह बात स्पष्ट हो गई है कि इन दंगों में भी सायबर का इस्तेमाल हुआ है। तकनीक के इस्तेमाल से पूरी योजना के साथ किए गए इस दंगे को कुछ लोग देश का पहला सायबर दंगा भी कह रहे हैं। अक्टूबर 2022 से मार्च 2023 तक में मेवात से किए गए करीब एक करोड़ से अधिक काल डिटेल्स को खंगाला जा चुका है। इन नंबरों में दो लाख से अधिक सिम ऐसे थे जो कि बंगाल व असम के पते पर पंजीकृत थे, लेकिन एक्टिवेट मेवात क्षेत्र में थे। मेवात के कामां, पहाड़ी, जुरहरा, कैथवाड़ा, खोह, गोपालगढ़, सीकरी जैसे गांवों की पहचान सायबर अपराधियों के गांव के रूप में हो गई है। इससे पहले पूरे देश में झारखंड की खूब बदनामी हुई सायबर क्राइम के लिए।  छह-सात साल पहले मेवात से अलकायदा से जुड़ा झारखंड का आतंकी अब्दुल समी पकड़ा गया था। अब्दुल तबलीगी जमात का चोला पहनकर मेवात में दाखिल हुआ। जमात का मतलब इस्लाम की शिक्षाओं के प्रचार के लिए काम कर रहा संगठन लेकिन अब्दुल समी जमात के नाम पर आतंकी गतिविधियों को अंजाम तक पहुंचाने में लगा हुआ था।

अलकायदा के अलावा लश्कर की गतिविधियां भी यहां किसी से छुपी हुई नहीं है। लश्कर का मेवात मॉडयूल यहां अपने लिए जगह तलाश रहा है। यही से पकड़े गए पाक नागरिक अरशद खान समेत पांच आतंकियों के खिलाफ कोर्ट ने कार्रवाई के निर्देश दिए थे।

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के करीब और मुस्लिम बहुल इलाका होने की वजह से मेवात आतंकियों का प्रिय ठिकाना बन गया है। आतंकी संगठनों की खास नजर इस क्षेत्र पर रहने लगी। आतंकियों के लिए यह जगह इसलिए भी सही बैठती है क्योंकि यहां 80 फीसदी जनसंख्या मुस्लिमों की है। पर्याप्त गरीबी और बेरोजगारी है। एक-एक मुस्लिम परिवार में यहां पांच छह, बच्चे आम हैं। 10 साल पहले इस क्षेत्र में आने पर कई ऐसे मुस्लिम परिवार मिले, जिनके आठ, दस, बारह बच्चे थे। इस्लाम के नाम पर गरीबी और अशिक्षा से जूझ रहे परिवार आसानी से झांसे में आ जाते है। थोड़े से पैसों के लिए वे बड़ी मदद के लिए भी तैयार हो जाते हैं। जब लश्कर और अलकायदा जैसे आतंकी संगठनों से जुड़े कट्टरपंथी और आतंकी जमात का लबादा ओढ़कर इस्लाम के नाम पर आतंक का अलिफ मेवात के बच्चों को पढ़ा रहे हों तो प्रशासन को सतर्क हो जाना चाहिए, क्योंकि इन सारी घटनाओं से मिल रहा संकेत यही है कि आतंकी मुस्लिम लोगों को जेहाद के नाम पर बरगलाकर अपने मिशन के साथ जोड़ना चाहते हैं।

पाठकों के लिए यह सूचना महत्वपूर्ण होगी कि 13 अगस्त को पलवल व नूंह सीमा पर स्थित गांव पौंडरी-नौरंगाबाद में हिंदू महापंचायत का आयोजन किया गया। चौधरी अरुण जेलदार की अध्यक्षता में यह तय हुआ कि 28 अगस्त को दुबारा बृजमंडल यात्रा निकाली जाएगी। यह एक अवसर होगा उन मुसलमानों के लिए जो कट्टरपंथियों के साथ खड़े नहीं है। वे आगे बढ़कर इस यात्रा का स्वागत करें। मेवात के मुस्लिम समाज के पास 28 अगस्त एक अवसर की तरह है, जब वह 31 जुलाई की कड़वी यादों को भुलाकर प्रेम और भाईचारे की एक नई मिसाल कायम करे।

 

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