भारत से इंडिया तक

शर्माजी कल बहुत दिनों बाद मिले। चेहरे का उत्साह ऐसा था मानो पूर्णिमा का चांद। मन बल्लियों से भी अधिक उछल रहा था। जैसे सावन की फुहार से सूखे ठूंठ में भी जान पड़ जाती है, ऐसे ही उनकी आवाज भी हरी-भरी लग रही थी। हाथ में पकड़ा ताजा अखबार हिलाते हुए बोले, “वर्मा, बहुत बड़ा काम हो गया। बस अब आर-पार हुआ ही समझो।”

“मैं समझा नहीं शर्मा जी, आर-पार से आपका क्या मतलब है। क्या कोई गड़ा खजाना या कोल्ड स्टोरेज में रखे टमाटरों की नयी खेप आपको मिल गयी है?”

“बेकार की बात मत करो। अब मोदी और शाह के दिन पूरे हुए ही समझो। बहुत दिन राज कर लिया। अब राजयोग की बजाय उनके वनयोग के दिन शुरू होने वाले हैं।”

“लगता है आपके पास ऊपर से कोई खास संदेश आया है। आजकल तो मोबाइल, व्हाट्सएप, ट्विटर और इंस्टाग्राम का जमाना है; पर आप ठहरे पुरानी पीढ़ी के आदमी। जरूर आपके पास पोस्टकार्ड या अंतरदेशीय पत्र आया होगा। जरा हमें भी तो दिखाओ। बच्चों को तो पता ही नहीं कि ये क्या होता है। वे इसे देखकर बहुत खुश होंगे ?”

“तुम फिर अंट-संट बकने लगे वर्मा। अखबार में साफ लिखा है कि मोदी के खिलाफ बाकी सारे दलों ने मिलकर ‘इंडिया’ बना लिया है। इस इंडिया की ही हमें तलाश थी।”

“जी हां, और ये भी लिखा है कि इसकी खोज पटना से शुरू हुई थी, जो बंगलुरू में जाकर पूरी हुई। पर शर्मा जी, ये बताइये कि इस इंडिया का लीडर कौन है। नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल या आपके राहुल बाबा ?”

“हमें इससे क्या लेना। हमें तो बारात में जाने से मतलब है।”

“पर बारात में दूल्हा कौन है, ये तो पता होना ही चाहिए।”

“ये भी कोई पूछने की बात है। सबको पता है कि ये सीट राहुल बाबा के लिए आरक्षित है।”

“क्या बंगलुरू में इसकी घोषणा हुई है ?”

“इसकी कोई जरूरत नहीं है। दूल्हा तो चेहरे से ही पहचान लिया जाता है।”

“पर नीतीश बाबू चाहते हैं कि इंडिया से पहले एक ‘एन’ सबसे बड़े अक्षरों में लिखा जाए।”

“तब तो ये इंडिया नहीं, निंदिया हो जाएगा।”

“तो क्या हुआ; एक दूसरे की निंदा करते हुए एक नाव में सफर करना ‘निंदिया’ ही तो हुआ?

“नहीं, ये असंभव है। नाम तो इंडिया ही रहेगा।”

“हां, आपातकाल के दौरान भी ऐसा हो चुका है। तब कि कांग्रेस अध्यक्ष देवकांत बरुआ ने नारा दिया था, ‘इंडिया इज इंदिरा एवं इंदिरा इज इंडिया’। वे कहते थे, ‘इंदिरा तेरी सुबह की जय, इंदिरा तेरी शाम की जय, इंदिरा तेरे नाम की जय, इंदिरा तेरे काम की जय।’ पर जानते हैं फिर क्या हुआ? 1977 के चुनाव में इंदिरा गांधी और उनके अति महान सपूत संजय गांधी सहित सब बड़े नेता धराशायी हो गये। दक्षिण भारत ने उनकी इज्जत बचा ली, वरना..।”

“ये पुरानी बात है। उसके बाद गंगा-जमुना में न जाने कितना पानी बह चुका है वर्मा जी।”

“पुराना तो देश का संविधान भी है, जिसमें इंडिया दैट इज भारत लिखा है। उसे बदलकर क्या अब आप इंडिया दैट इज राहुल लिखवाएंगे ?”

“हम क्या करेंगे, इससे तुम्हें क्या लेना। हमें तो हमारा इंडिया मिल गया। अब तो तुम तो ये सोचो कि 2024 के चुनाव के बाद मोदी और शाह कहां जाएंगे ?

“शर्मा जी, हम तो भारत में जन्मे हैं और यहीं मिट्टी में मिल जाएंगे। जिन्हें इस नाम से तकलीफ है, वे सोचें। नेहरू जी जिस इंडिया की डिस्कवरी में लगे थे, वह उनकी चौथी पीढ़ी वालों को आखिर मिल ही गयी। बहुत-बहुत बधाई।”

शर्मा जी का मुंह देखते ही बनता था।

 

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