पनवेल में संघ कार्य की प्रगति

अपनी स्थापना के बाद से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने देश के अन्य भागों की भांति पनवेल में भी संघ कार्यों का बीजारोपण कर दिया था, जो वर्तमान में वटवृक्ष का रूप ग्रहण कर चुका है। आपातकाल के दौरान पनवेल के स्वयंसेवकों ने संघ पर लगे प्रतिबंध के विरुद्ध सत्याग्रह भी किया था।

नागपुर में सन 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई। उसके बाद धीरे-धीरे ध्येयनिष्ठ कार्यकर्ताओं के आधार पर सम्पूर्ण देश में संघ कार्य का विस्तार होता गया। सन 1940 के आसपास पनवेल में संघ कार्य का प्रारम्भ हुआ। उसके बाद तीन-चार वर्षों में ही उरण सहित अगल-बगल के क्षेत्रों में संघ कार्य का प्रारम्भ हुआ। सन 1948 में संघ पर अखिल भारतीय प्रतिबंध लगाया गया। उसके विरोध में संघ स्वयंसेवकों ने शाखा लगाकर विरोध प्रदर्शित किया एवं गिरफ्तारी दी। पनवेल में हुए सत्याग्रह में राजाभाऊ वैशम्पायन, सदानंद ओझे, दत्ता पेंडसे, यतीश लोंढे, जगनाडे, खड़ांगले, केशव राव डांगरे, शामिल थे। सन 1949 में संघ पर से प्रतिबंध हटाया गया। संघकार्य पुन: नए उत्साह से शुरू हुआ। महात्मा गांधी की हत्या की पार्श्वभूमि पर तथा अन्य अनेक कारणों से संघ कार्यकर्ताओं को बहुत तकलीफें उठानी पड़ी। 1955 से 1965 के दौरान पनवेल शहर में चार से पांच जगह संघ शाखाएं लगती थी। ग्रामीण भाग में पार गांव, पलस्पे, गुलसुंदे, अजिवली, छोटी जुई, नांदगांव में शाखाएं लगती थी। ऐसी ही एक शाखा पर तत्कालीन सरसंघचालक परम पूजनीय श्री गुरुजी( गोलवलकर) आए थे, ऐसी याद सदानंद जी ओझेे बताते हैं। उस समय बरसते पानी में श्री गुरुजी स्वयंसेवकों के साथ शाखा में खेल खेले थे। तत्कालीन  प्रांत प्रचारक स्वर्गीय नाना राव पालकर तथा मोरोपंत पिंगले भी पनवेल की शाखा में आए थे। 1975 के पूर्व दामू अण्णा टोकेकर, दादा चोलकर, तात्या पुरोहित, अरविंद राव हर्षे, सुमंतराव घायाल प्रचारक थे। उनकी हृदयस्पर्शी यादें आज भी कई स्वयंसेवक बताते हैं। इसी काल में स्वर्गीय चिंतामन राव देवधर, राजाभाऊ भावे, डॉक्टर नरेंद्र दिघे, ने संघचालक का पद भूषित किया। 1980 के बाद अनेक वर्षों तक पनवेल के प्रसिद्ध उद्योगपति दादा जोशी संघचालक थे। राजाभाऊ वैशम्पायन का निजी मकान उस समय प्रचारकों का स्वत: का घर माना जाता था। भाऊ पवार, नरु भाव काले, दादा लोंढे ऊर्फ कवि यतिश, माधवराव गांगल, तात्या पटवर्धन उस समय के अग्रणी स्वयंसेवक थे। संघ का घोष उस समय भी आकर्षण का केंद्र था, आज है और आगे भी रहेगा। पनवेल में घोष पथक सन 1965 से अस्तित्व में है। उस समय के प्रचारक तात्या पुरोहित ने घोष पथक बनाने में बहुत मेहनत की थी।

इसी समय पनवेल में प्रवासी सांस्कृतिक मंडल नामक एक संघपूरक संस्था का प्रारम्भ हुआ। अनेक कारणों से सरकारी नौकरी करने वाले स्वयंसेवकों को प्रकट रूप से शाखा में जाना सम्भव नहीं था। वैसे ही कुछ स्वयंसेवक नौकरी के लिए सुबह 7:00 से रात्रि के 9:00 बजे तक दूसरे शहर में जाते थे। ऐसे अनेक स्वयंसेवक इस संस्था से जुड़े। वे संघ के कार्यक्रम थोड़ी अलग पद्धति से मनाते थे। बाला साहब भारद्वाज, बापूसाहेब पाटणकर, बाबा खाड़े सरीखे अनेक लोगों का योगदान इस काम में था।

1975-77 देश में आपातकाल लगा था। इस काल में पुनः एक बार संघ पर प्रतिबंध लगाया गया। संघ तथा सहयोगी संस्थाओं के हजारों कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया गया। संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता तब गुप्त रीति से आकर कार्यकर्ताओं से मिलते थे। अलग स्वरूप में संघ कार्य तब भी जारी ही था। आपातकाल हटाने के लिए संघ के 7 स्वयंसेवकों ने सत्याग्रह किया। उनमें मैं स्वत:, दामू देवधर, शरद उपाध्ये, सदानंद करनेकर, अनिल आचार्य, नाथुराम गायकर, तथा अनिल म्हात्रे शामिल थे। हम सबको डेढ़ महीने के लिए ठाणे कारागृह में रखा गया था। राजाभाऊ वैशम्पायन, व्यंकटेश जोशी, शंकरराव चोरगे, डॉक्टर दिघे तथा जयंत भाटे वहां मीसा के अंतर्गत बंद थे। 1977 के आम चुनाव में स्वयंसेवकों ने जी जान से, मन लगाकर जनता पार्टी के लिए काम किया तथा लोकतंत्रीय सरकार की स्थापना हुई। संघ पर से प्रतिबंध समाप्त हो गया। सभी स्वयंसेवक छोड़ दिए गए। पनवेल में उनके स्वागत में एक बहुत बड़ा स्वागत जुलूस निकाला गया। इन 2 वर्षों में नाथू भाऊ काले एवं केशव राव केलकर ने गुप्त रूप से निधि संकलन किया था तथा मीसा के अंतर्गत बंदी कार्यकर्ताओं के घर यह मदद पहुंचाई जाती थी। आपातकाल के बाद तत्कालीन सरसंघचालक श्री बाला साहब देवरस पनवेल आए थे। तब वे तत्कालीन सांसद डी बी पाटील से मिलने उनके घर गए थे।

आपातकाल के पहले दो अभियान सम्पूर्ण देश में स्वयंसेवकों ने चलाए। 1967 में विवेकानंद शिला स्मारक के लिए घर-घर जाकर निधि संकलन का कार्य किया तथा 1973 में शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक को 300 वर्ष पूर्ण हुए उस निमित्त महाराष्ट्र के प्रत्येक घर में शिवसंदेश पत्रिका वितरित की गई। पनवेल तहसील में भी प्रत्येक गांव के प्रत्येक घर में पत्रिका दी गई। 1983 में पुणे के

तलजाई में एक बहुत बड़ा प्रांत स्तरीय शिविर आयोजित किया गया। यहां सम्पूर्ण महाराष्ट्र से 3500 स्वयं सेवकों ने पूर्ण गणवेश में शिविर में भाग लिया। इस तीन दिवसीय शिविर में पनवेल से 100 स्वयंसेवकों ने भाग लिया। 2007 में पनवेल के करनाला स्पोर्ट्स क्लब के मैदान पर कोंकण प्रांत के घोष वादकोें का शिविर आयोजित किया गया था। उसमें 770 घोष वादक उपस्थित थे। प्रसिद्ध संगीतकार श्रीधर फड़के उस वर्ग के वर्ग अधिकारी थे। शिविर का समापन समारोह बहुत ही भव्य था।

पनवेल में जैसे-जैसे संघ कार्य बढ़ता गया वैसे वैसे सहयोगी संस्थाओं का कार्य भी विस्तारित होता गया। 1954 में पनवेल में भारतीय जनसंघ की शाखा की  स्थापना हुई। 30 से 40 लोगों की उपस्थिति में महाजन वाडी में यह उद्घाटन कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। इस कार्यक्रम में स्वर्गीय अटलबिहारी वाजपेयी भी उपस्थित थे। नाना थोरात को पहला नगर अध्यक्ष चुना गया। इसके आगे के समय में मोरू भाऊ पटवर्धन, बिहारी भाई शाह, रवि शर्मा, शशिकांत बांदोडकर, डॉक्टर प्रभाकर पटवर्धन इत्यादि लोगों ने इस कार्य को पूरे उत्साह से आगे बढ़ाया। 1958-59 में नेरे स्थित धूतपापेश्वर कारखाने में बापूराव मोकाशी ने भारतीय मजदूर संघ का कार्य प्रारम्भ किया। 1964 के आसपास बिजली विभाग, पोस्ट ऑफिस मे भारतीय मजदूर संघ का काम शुरू हुआ। पनवेल के 2 सिनेमा गृहों में भी भारतीय मजदूर संघ की शाखाएं स्थापित हुई। कुछ बैंकों तथा एलआईसी में भी भारतीय मजदूर संघ का कार्य प्रारंभ हुआ।

पनवेल में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का कार्य सन 1973 में प्रारम्भ हुआ। प्रारम्भ में रमेश जोशी, गजानन जुईकर तथा बाद में अविनाश कोली तथा गणेश कोली ने इस कार्य को आगे बढ़ाया। सन 1980 में पनवेल में वनवासी कल्याण आश्रम का कार्य प्रारम्भ हुआ। पहले माधवराव फड़के तथा बाद में अप्पा अग्रेसर ने पूरा समय देकर यह कार्य किया। बाद में श्री एवं श्रीमती खानदार ने आश्रम का काम किया। नरु भाऊ काले, श्रीराम सहस्त्रबुद्धे, उदय तिलक, सुदाम पवार ने धीरे-धीरे कार्यकर्ताओं का समूह तैयार किया। वी जी जोशी का यहां उल्लेख करना भी आवश्यक है। सर्वप्रथम शिरढोण में वनवासी विद्यार्थियों के लिए छात्रावास था। बाद में उसे मोरने स्थानांतरित कर दिया गया। वर्तमान में यह छात्रावास  चिंचवली में कार्य कर रहा है। 30 विद्यार्थी वहां रहकर शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। सुमन ताई फड़नीस ने 15-20 महिलाओं को एकत्रित कर आश्रम का काम करने हेतु प्रोत्साहित किया। इन महिलाओं ने वनवासी गावों में जाकर वहां महिलाओं के हल्दी कुमकुम के कार्यक्रम सम्पन्न किए। वे वहां स्वास्थ्य शिविर भी आयोजित करती थी।

1970 में पनवेल में राष्ट्र सेविका समिति का काम प्रारम्भ हुआ। स्वर्गीय सुमति सहस्त्रबुद्धे तथा स्वर्गीय मालती मुजूमदार ने यह काम शुरू किया। 2005 तक यह काम चल रहा था परंतु उसके बाद 2015 तक यह सुप्तावस्था में रहा। 2015 के बाद काम पुन: प्रारम्भ हुआ तथा आज पनवेल में समिति की 5 शाखाएं कार्यरत हैं।

एक बहुआयामी व्यक्तित्व डॉक्टर प्रभाकर पटवर्धन पनवेल निवासी थे। निष्णात सर्जन डॉ पटवर्धन 1964 के आसपास पनवेल आए। 1967 में उन्होंने स्वत: का हॉस्पिटल प्रारम्भ किया। भारतीय जनसंघ तथा वनवासी कल्याण आश्रम के वे मार्गदर्शक थे। 1996 में उन्हें जिला संघचालक नियुक्त किया गया। परंतु 1997 में उनका अचानक निधन हो गया। उनकी सुविद्य पत्नी स्वर्गीय नीला ताई पटवर्धन ने हॉस्पिटल का भवन तथा अपना आवासीय भवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जन कल्याण समिति को दान कर दिया। हॉस्पिटल का नवीनीकरण 2005 में पूर्ण हुआ और आज वहां 4 मंजिला इमारत शान से खड़ी है। पटवर्धन हॉस्पिटल में अन्य सेवाओं के साथ डायलिसिस सेंटर भी चलाया जाता है। बहुत कम खर्च में बीमार व्यक्तियों का डायलिसिस किया जाता है। वहां प्रतिमाह करीब 250 डायलिसिस किए जाते हैं।

1980 के आसपास विश्व हिंदू परिषद तथा बजरंग दल के काम की शुरुआत हुई। दादा वेदक तथा शशिकांत करंदीकर बार-बार पनवेल आते थे। राम जन्मभूमि आंदोलन में अलग-अलग कार्यक्रम सम्पन्न हुए। अयोध्या में सम्पन्न पहली कारसेवा में 80 लोगों ने तथा दूसरी कार सेवा में 45 लोगों ने भाग लिया। करीब 50 गांवों में शिला पूजन के कार्यक्रम सम्पन्न हुए। दोनों कारसेवाओं में कुम्भरवाड़ा तथा कोलीवाड़ा के कुछ युवा भी शामिल थे। जन कल्याण समिति द्वारा कोलीवाड़ा में 2007 में एक अभ्यासिका( शिक्षा वर्ग) प्रारम्भ किया गया। विद्यार्थियों में शिक्षा के प्रति जागृति निर्माण होने के साथ-साथ कोली बांधवों में जनजागृति निर्माण हेतु विविध कार्यक्रम किए जाते रहे। व्यसन मुक्ति, स्वच्छता, छोटे बच्चों के लिए आरोग्य शिविर, विविध विषयों पर व्याख्यान इत्यादि कार्यक्रम गत 10 वर्षों से आयोजित किए जा रहे हैं।

1998 में पनवेल में संस्कार भारती का कार्य अजय भाटवडेकर तथा मानसी कान्हेरे ने प्रारम्भ किया। 1999 में सहकार भारती का कार्य विजय भिड़े और अमित ओझे ने प्रारम्भ किया। पिछले 5 वर्षों में भारत विकास परिषद तथा संस्कृत भारती का कार्य भी प्रारम्भ हो गया है। करीब 25 वर्षों से देहरंग में सत्कर्म श्रद्धाश्रय छात्रावास चल रहा है। यह कार्य क्षेत्र के वनवासी समाज का विकास ध्येय आंखों के सामने रखकर चल रहा है। 10 वर्षों से कुरूलकर बहुउद्देशीय छात्रावास कार्य कर रहा है, जो मतिमंद तथा कर्णबधिर लड़के लड़कियों के लिए यह छात्रावास है।

किसी भी संस्था के विकास एवं स्थिरता के लिए कार्यालय की आवश्यकता होती है। 1950 में राजाभाऊ वैशम्पायन के घर में संघ कार्यालय था। प्रचारकों का निवास वहीं पर था। 1984 तक कार्यालय इसी किराए की जगह में था। 1990 में यशोमंगल बिल्डिंग स्थित जनहित संवर्धक मंडल की जगह में संघ का कार्यालय प्रारम्भ हुआ। पनवेल का भौगोलिक विस्तार जैसे-जैसे बढ़ता गया वैसे वैसे यह जगह भी संघ कार्यालय के लिए छोटी पड़ने लगी। कोंकण प्रांत की दृष्टि से महत्वपूर्ण पनवेल का स्थान ध्यान में रखते हुए एक बड़े भवन की आवश्यकता महसूस होने लगी। जनहित संवर्धन मंडल ने नवीन पनवेल में डॉक्टर जोगलेकर से एक बड़ी जगह खरीद कर विकसित की एवं तीन मंजिली इमारत का निर्माण किया। इसी कार्यालय में अब प्रचारकों का निवास है। विविध बैठकें होती हैं तथा सेवा कार्य भी होते हैं।

1980 के बाद पनवेल का भौगोलिक विस्तार बड़ी तेजी से हुआ है। नवीन पनवेल, करंजाडे, खांदेश्वर, कलंबोली, कामोठे व खारघर में आधुनिक नगर विकसित हुए हैं। पनवेल महानगर पालिका क्षेत्र के हिंदू समाज को संगठित करना एक बड़ा आव्हान है। वर्तमान में  इस क्षेत्र में तरुण, बाल, व  प्रौढ़ लोगों की 29 शाखाएं नियमित रूप से लगती हैं और उतने ही साप्ताहिक मिलन भी लगते हैं। वर्तमान के गतिमान जीवन में संघ कार्य करना और उसे बढ़ाना एक चुनौती है। पर्यावरण, सामाजिक समरसता, हिंदू जागरण, परिवार प्रबोधन, पूर्वांचल विकास जैसे विविध मोर्चों पर कार्य होना अपेक्षित है। संघ की कार्य पद्धति से तैयार होने वाले ध्येयवादी कार्यकर्ताओं के माध्यम से इन सब कामों को गति मिलेगी, यही अपेक्षा है।

                                                                                                                                                                                          सुहास सहस्त्रबुद्धे 

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