तलाक

लखनऊ शहर में सेवक का परिवार रहता था। समाज में उनकी मान मर्यादा थी। धर्म कर्म में पूर्ण विश्वास रखने वाले सेवक के परिवार में कुल छह सदस्य थे। सेवक, उसकी मां, पत्नी, दो बेटे एवं एक सुंदर कन्या रश्मि। रश्मि सबसे छोटी एवं परिवार की लाडली थी। सेवक को उस पर बड़ा नाज था। वे दूसरों के सामने बेटों की कम, बेटी की तारीफ ज्यादा करते थे। वे अक्सर कहा करते कि मेरी बेटी एक दिन अफसर बनेगी, खानदान का नाम रोशन करेगी।

समय बीतने के साथ रश्मि बड़ी होने लगी। स्कूली शिक्षा पूरी करके उसने कॉलेज में एडमिशन लिया। कॉलेज का वातावरण स्कूल से अलग होता है। कॉलेज में आते-आते बच्चे किशोरावस्था में पदार्पण कर चुके होते हैं। उनमें शारीरिक और मानसिक परिवर्तन होने लगता है। उनके मस्तिष्क में विचारों की लहरें उठने लगती हैं। वे कल्पना के सागर में उठने वाली लहरों में हमेशा खोए रहना चाहते हैं। यह प्रक्रिया अधिकतर हर मनुष्य के जीवन में आती है। रश्मि भी कैसे अछूती रह सकती है। वह जीवन के सत्रह वसंत देखकर अठारहवें में कदम रख चुकी थी। सुंदरता उसे मां से विरासत में मिली थी। मां सुंदरता के कटु अनुभव से दो चार हो चुकी थी। वह बखूबी जानती थी कि सुंदर लड़कियों से दोस्ती करने वालों की समाज में कमी नहीं है। लोग रास्ता चलते जान-पहचान करना चाहते हैं। वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रश्मि को अपने अनुभव बताकर समाज में छुपे भेड़ियों से दूर रहने की हिदायत देती रहती। आखिर रश्मि उसकी बेटी ही नहीं बल्कि खानदान की इज्जत भी थी।

रश्मि को मां की बातों में कोई रुचि नहीं थी। वह मां की बातों को एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देती। कभी कभी तो झल्लाकर कहती- मां, आप किस जमाने की बात कर रही हैं? घर परिवार की देख-रेख में आपको पता भी नहीं चला कि समय बदल चुका है। अब लड़के-लड़कियों में कोई अंतर नहीं है। आपके समय में लड़कियों की सखियां हुआ करती थी। आज उनके गर्ल फ्रेंड ब्वाय फ्रेंड होते हैं। जाति-पाति, छुआछूत का कोई अर्थ नहीं है। आज की पीढी इन सबको पीछे छोड़कर बहुत आगे निकल चुकी है।

रश्मि की बातें सुनकर मां मुस्करा देती थी। इस मुस्कान में उसका डर छुपा रहता था। वह जानती थी कि इस उम्र में जज्बात दिमाग पर हावी हो जाते हैं। अभी नादान है, समाज का ज्ञान नहीं है, बड़ी होगी सब समझ जाएगी, यही सोचकर वह अपने मन को समझा लेती।

रश्मि के दोस्तों की सूची लम्बी थी। उन्हीं दोस्तों में एक रहमान भी था। रश्मि कभी-कभी अपने दोस्तों को घर भी बुलाती थी, लेकिन रहमान को उसने कभी नहीं बुलाया। लड़कों का घर आना परिवार को अच्छा नहीं लगता था। कई बार मां ने रश्मि को समझाया भी कि घर पर लड़कों का आना ठीक नहीं है।

रश्मि परिवार को रहमान के विषय में बताना ठीक नहीं समझती थी। वह जानती थी कि जब परिवार को रहमान के विषय में पता चलेगा तो मुश्किल हो जाएगी। हिंदू लड़की मुस्लिम लड़के से दोस्ती करे, ऐसा वे सपने में भी नहीं सोच सकते।  मुसलमान के आते ही दादी पूरा घर सिर पर उठा लेंगी। इसी डर से उसने रहमान को घर कभी नहीं बुलाया। रहमान ने कभी शिकायत भी नहीं की। वह तो रश्मि को एक दोस्त से अधिक मानता था। उसकी निगाहें रश्मि की सुंदरता से चकाचौंध थी। वह रश्मि को अपना बनाने के सपने बुनने लगा था लेकिन अभी तक दिल की बात रश्मि को नहीं बतायी थी। वह एक मंजे शिकारी की तरह शिकार के जाल में फंसने का इंतजार कर रहा था। रहमान के इरादे से अनजान रश्मि अन्य दोस्तों की तरह उसे भी मात्र एक दोस्त मानती थी।

एक दिन रश्मि कॉलेज से घर आने के लिए बस स्टॉप पर खड़ी बस का इंतजार कर रही थी। रश्मि को देखकर रहमान वहां आ गया। उसने कहा- हाय, कैसी हो?

ठीक हूं, तुम बताओ।

मैं भी ठीक हूं। तुम्हारा जन्मदिन कब है?

दो दिन बाद, रविवार को।

तुम तो मुझे बुलाओगी नहीं।

कुछ क्षण चुप रहने के बाद रश्मि ने कहा- ऐसा क्यों कह रहे हो?

क्योंकि मैं एक मुसलमान हूं। इसलिए तुम मुझसे दूर रहना चाहती हो।

मैं इन सब को नहीं मानती।

कितनी अच्छी हो तुम। सुंदरता के साथ अल्लाह ने आपको तमीज भी दी है।

रहमान की बातें सुनकर रश्मि मुस्कराने लगी।

यही अदा आपको अन्य लड़कियों से अलग करती है। बस आने में अभी समय है। यदि बुरा न मानो तो एक एक कप कॉफी हो जाए।

आज नहीं, फिर कभी।

मुझे पता था कि तुम ऐसा ही कहोगी। एक मुस्लिम के साथ बैठकर कॉफी नहीं पीना चाहती।

अच्छा चलो।

रहमान का निशाना सही लगा था। बहुत दिनों से वह ऐसे अवसर की तलाश में था। आज वह अपने प्यार का इजहार कर देना चाहता था। कॉफी का आनंद लेते हुए रहमान ने कहा- मैं आपको जन्मदिन पर एक तोहफा देना चाहता हूं। आशा है कि आप स्वीकार करेंगी।

उसकी जरूरत नहीं है। कॉफी पिला दिया हो गया।

यह भला कोई तोहफा है? मैं तो आपको अपनी पसंद का एक मोबाइल देना चाहता हूं।

मेरे पास तो मोबाइल है।

क्या नहीं है आप के पास?

जैसे तुम्हारी मर्जी। पर किसी को पता नहीं चलना चाहिए।

उसकी चिंता मत करो। किसी को खबर नहीं होगी। कल हम यहीं मिलेंगे।

ओके! बाय। कहते हुए रश्मि ने बस पकड़ ली।

तय समय पर दोनों कॉफी हाउस पहुंचे। रश्मि को देखकर रहमान ने कहा- ‘आज तुम बहुत सुंदर लग रही हो। खुदा की मेहरबानी है कि तुम मुझे मिली। मैं बहुत खुशनसीब हूं। यह मेरी जिंदगी की खूबसूरत शाम है। आज अल्लाह ने मेरे सामने जन्नत की हूर पेश कर दी है।’

प्रशंसा के लिए शुक्रिया।

यह रहा तुम्हारा तोहफा।

धन्यवाद। रश्मि ने मोबाइल लेते हुए कहा।

क्या मैं तुमसे मोबाइल पर बातें कर सकता हूं।

आफकोर्स, क्यों नहीं। बहुत देर हो गयी। अब हमें चलना चाहिए।

थोड़ी देर और रुक जाओ। जुदा होने का मन नहीं करता। दिल करता है तुम ऐसे ही सामने बैठी रहो और मैं तुम्हें देखता रहूं।

बस छूट जायेगी, अगली बस आधे घंटे बाद है। देर से पहुंचने पर मां पचास सवाल करेगी।

तुम चिंता मत करो बाइक से छोड़ दूंगा।

किसी ने देख लिया तो मुसीबत हो जायेगी।

कोई नहीं देखेगा। अपना चेहरा ढक लेना। घर से थोड़ी दूरी पर ही छोड़ दूंगा।

मुझे डर लग रहा है।

मेरा विश्वास करो, कुछ नहीं होगा।

रश्मि रहमान के जाल में फंस चुकी थी। कॉलेज छूटने के बाद प्रतिदिन किसी रेस्टोरेंट में बैठकर वे अपने प्रेम वृक्ष को सींचने लगे थे। धीरे-धीरे वह वृक्ष बड़ा होने लगा। एक दिन रहमान ने रश्मि के सामने शादी का प्रस्ताव रखा।

रहमान की बातें सुनकर रश्मि ने कहा -हम लोग रहेंगे कहां?

यह सब तुम मेरे ऊपर छोड़ दो। सब व्यवस्था हो गयी है। केवल तुम्हारे हां कहने का इंतजार है। मुंबई में मेरे मामुजान रहते हैं, उनसे बात हो गयी है। वहां जाकर हम कोर्ट मैरिज कर लेंगे।

कोई गड़बड़ तो नहीं होगी?

कुछ नहीं होगा। मामू सब संभाल लेंगे। हमारे वहां पहुंचने भर की देर है। फिर आनंद से जीवन जीएंगे। कोई रोकटोक नहीं, किसी का डर नहीं। मजा ही मजा। कल ही हमें मुंबई के लिए ट्रेन पकड़नी है। स्टेशन पर मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा।

तय समय पर रश्मि स्टेशन पहुंच गयी। वहां रहमान बेसब्री से इंतजार कर रहा था। थोड़ी देर में ट्रेन आयी। रहमान ने रश्मि का हाथ पकड़ रखा था। ट्रेन में रश्मि को उदास देखकर रहमान ने कहा- ‘क्या सोच रही हो?’

घर की याद आ रही है। शाम को जब घर नहीं पहुंचूंगी तो परिवार पर क्या गुजरेगी? मां, दादी का तो रो-रोकर बुरा हाल हो जायेगा। हमें इस तरह नहीं भागना चाहिए था। कहते-कहते रश्मि की आंखों में आंसू भर आए।

दिल छोटा मत करो। एक दिन तो हमें ऐसा करना ही था। मुझ पर विश्वास रखो। मैं तुम्हारा बहुत ख्याल रखूंगा। कोर्ट मैरिज के बाद तुम्हारे परिवार से बात करा दूंगा। दो तीन दिन धैर्य रखो। अपनी भावनाओं को काबू में रखो।

मां घर पर रश्मि की पसंद का नाश्ता बनाकर इंतजार कर रही थी। उसके आने का समय हो गया था। घड़ी की टिक-टिक आवाज के साथ मां की धड़कनें बढ़ती जा रही थी। सयानी बेटी के समय पर घर न पहुंचने की वेदना एक मां से अधिक कौन जान सकता है। सूर्य अस्ताचल में जा चुके थे। पक्षी भी दिनभर की थकान मिटाने के लिए अपने घोंसले में लौट चुके थे। मां की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। वह बार-बार दरवाजे पर आकर रश्मि को देखती, लेकिन हर बार वह निराश हो जाती।

रात के आठ बज रहे थे। अभी-अभी सेवक आफिस से आया था। घर में सबका मुरझाया चेहरा देखकर पूछा- क्या बात है? सबका चेहरा उतरा क्यों है?

इतना सुनते ही रश्मि की मां रोने लगी।

कुछ बताओगी भी, क्या हुआ? सेवक ने पूछा।

रात हो गयी लेकिन अभी तक रश्मि नहीं आयी। उसका मोबाइल भी बन्द है। रश्मि की मां ने रोते हुए कहा।

उसकी सहेलियों से पूछा?

सबसे पूछ चुकी हूं। सबने कहा कि आज वह कालेज नहीं आयी थी जबकि वह समय पर कालेज के लिए निकली थी। कोई अनहोनी तो नहीं हो गयी। पुलिस स्टेशन चलो, मुझे तो बहुत डर लग रहा है। दिल बैठा जा रहा है। बुरे-बुरे ख्याल आ रहे हैं।

पुलिस स्टेशन पहुंचकर सेवक ने सारी घटना बतायी और गुमशुदी की रिपोर्ट लिखने के लिए दारोगा से अनुरोध किया। सेवक की बातें सुनकर दारोगा ने कहा- बेटी बड़ी हो गयी है। भाग गयी होगी किसी के साथ। आजकल ऐसी घटनाएं रोज होती हैं। किसकी-किसकी रिपोर्ट लिखूं। जाओ एक दो दिन ढूंढो, नहीं मिलेगी तो फिर आना।

रात गहरी हो चुकी थी। मां और दादी का रो-रो कर बुरा हाल था। सुबह होते ही मुहल्ले में रश्मि के घर न लौटने की खबर आग की तरह फैल जाएगी। लोग तरह-तरह की बातें करने लगेंगे, सोचकर सब परेशान थे।

रहमान और रश्मि मुंबई पहुंच चुके थे। रेलवे स्टेशन पर रहमान का मामू इंतजार कर रहा था। रहमान के मामू ने कहा- मैंने सब व्यवस्था कर दी है। कल तुम दोनों की शादी हो जाएगी। तुम्हारे रहने की व्यवस्था भी कर दी है। खाना खाकर वहीं आराम करो। मैं सुबह आऊंगा।

अगले दिन दोनों की शादी हो गयी। शादी के एक दिन बाद रश्मि ने कहा- मेरे घर वाले बहुत परेशान होंगे। अब मुझे सूचना दे देनी चाहिए।

ठीक है, फोन कर दो लेकिन अभी हम कहां हैं, मत बताओ।

फोन सेवक ने उठाया। रश्मि की आवाज सुनते ही उन्होंने कहा- ‘तुम कहां हो? तुम्हारा मोबाइल बन्द क्यों था?’

‘पिताजी, मुझे माफ कर दीजिए। मुझे इस तरह घर से नहीं भागना चाहिए था।’

किसके साथ भागी हो? तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं है। तुम कहना क्या चाहती हो?

मैंने रहमान से शादी कर ली है।

क्या कहा? रहमान से शादी! एक मुसलमान से! गाय खाने वाले से! अरे कलमुंही, तुमने तो हमें जीते जी मार डाला। समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा। आज से तुम हमारे लिए मर चुकी हो। कहते हुए सेवक ने फोन काट दिया। पलभर के लिए लगा जैसे हृदय की गति रुक जायेगी। दिल पकड़कर वहीं बैठ गए। आंखों के सामने अंधेरा छा गया।

रहमान जानता था कि रश्मि का परिवार शाकाहारी है, इसलिए  न चाहते हुए भी उसने कुछ दिन होटल में शाकाहारी भोजन किया। एक दिन उसने रश्मि से कहा- ‘रोज-रोज होटल में खाना मंहगा पड़ रहा है। कल से तुम घर पर खाना बनाया करो।’

मैं भी यही सोच रही थी। आज हम सब सामान खरीद लेते हैं। कल से अपने हाथों बनाकर तुम्हें खिलाऊंगी।

समय बीतने लगा। एक दिन रहमान ने रश्मि को एक थैला देते हुए कहा- ‘लो आज इसे बनाओ।’

थैला पकड़ते हुए रश्मि ने कहा- ‘क्या है?’

गोश्त।

गोश्त? मैं इसे हाथ नहीं लगाउंगी। इस घर में गोश्त नहीं पकेगा, लो पकड़ो। रश्मि ने झल्लाते हुए कहा।

हाथ नहीं लगाओगी! क्या मतलब? एक मुसलमान जो गोश्त खाता है, उसके साथ सो सकती हो, लेकिन गोश्त नहीं बना सकती। रहमान ने ऊंची आवाज में कहा।

इसे देखकर मुझे उल्टी हो जायेगी।

तुम्हें पकाना होगा। धीरे-धीरे इन सबकी आदत डालनी होगी। मुसलमान से शादी की है तो मुसलमान बनना पड़ेगा। रहमान ने क्रोध में कहा।

तुमसे शादी करने का यह मतलब नहीं कि मैं तुम्हारी हर नाजायज बात मानती रहूं।

तुम्हें मानना ही होगा। इतने दिनों तक मैं केवल इसलिए चुप था कि तुम बदल जाओगी। धीरे-धीरे हिंदू रीति-रिवाज छोड़कर इस्लाम स्वीकार लोगी, लेकिन तुम नहीं बदली, इसलिए मुझे बोलना पड़ा। और सुनो मैं तुम्हारे लिए बुरका भी लाया हूं। उसे पहना करो।

इसका मतलब तुम मेरा धर्म बदलना चाहते हो। तुम मुझे गुलाम बनाकर रखना चाहते हो।

तुम चाहे जो समझो। बुरका पहने से गुलाम नहीं हो जाओगी।

कान खोलकर सुन लो। न मैं अपना धर्म बदलूंगी न ही बुरका पहनूंगी।

मैं तुम्हारी बकवास सुनना नहीं चाहता।

तुम्हारे कहने का मतलब मैं आंखों पर पट्टी बांधकर तुम्हारे पीछे पीछे चलूं?

अचानक रहमान के व्यवहार में आए परिवर्तन ने रश्मि को परेशान कर दिया। उसे अपने गलती का अहसास होने लगा। समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे? अब इस घर में उसका दम घुटने लगा था। आज उसको मां की बहुत याद आ रही थी। परेशान होकर उसने मां को फोन लगाया। उसने कहा- मां! फोन मत काटना, मेरी बात सुनो। मुझे अपने किए पर बहुत ग्लानि हो रही है। अब समझ में आ रहा है कि रहमान की चिकनी चुपड़ी बातों में आकर मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी। मैं आप से मिलना चाहती हूं। प्लीज मना मत करना।

रश्मि की बातें सुनकर मां ने कहा- किससे मिलना चाहती हो? यहां तुम्हारा कौन है? तुमने हमें कहीं का नहीं छोड़ा। परिवार की इज्जत मिट्टी में मिला दी, मुझे जिंदा लाश बना दिया। आज भी समाज के लोग हमें देखकर तरह-तरह की बातें करते हैं। घर में दो-दो लड़के शादी योग्य पड़े हैं, लेकिन कोई लड़की का बाप भूलकर भी हमारे दरवाजे की ओर नहीं देखता। तुम हमारे लिए मर चुकी हो। अब तुम वहां कटो मरो, लेकिन दुबारा फिर हमें फोन मत करना। कहते हुए मां ने फोन पटक दिया।

मां की बातें सुनकर रश्मि खूब रोई। रोने के सिवा उसके जीवन में कुछ नहीं बचा था। आए दिन रहमान धर्म बदलने के लिए उसे प्रताड़ित करने लगा। उसके रिश्तेदार भी उस पर धर्म बदलने के लिए दबाव बनाने लगे। उनकी तमाम कोशिशों के बाद भी रश्मि इस्लाम कबूलने के लिए तैयार नहीं हुई।

धर्म को लेकर दोनों में दूरी बढ़ती जा रही थी। रश्मि को जलाने के लिए वह पड़ोस में रहने वाली रुकईया से खूब बातें करने लगा था। यह बातचीत धीरे-धीरे प्यार में बदल गयी। रश्मि सब समझती थी। एक दिन उसने रहमान से कहा- रुकईया से बातें करना बन्द करो। रहमान मानने वाला तो था नहीं। उसने कहा- तुम जलती हो तो जलती रहो लेकिन मैं उससे बात करना बन्द नहीं करूंगा। आए दिन रुकईया को लेकर दोनों झगड़ने लगे। कभी-कभी रहमान हाथ भी उठा देता था।

रहमान तो रुकईया के नजरों से घायल हो चुका था। रुकईया के नशे में रश्मि उसे बोझ लगने लगी। वह उससे छुटकारा पाने के तरीके ढूंढने लगा। एक दिन रहमान ने रुकईया को बताया कि जल्दी ही अवसर देखकर वह रश्मि को ठिकाने लगा देगा।

रहमान की बातें सुनकर रुकईया ने कहा- मार देने से समस्या खत्म नहीं हो जायेगी बल्कि एक नयी मुसीबत आ जायेगी। हत्या के जुर्म में तुम्हें जेल भी हो सकती है। इससे अच्छा है उसे तलाक़ दे दो।

तुम ठीक कह रही हो। कई दिनों से उसे मारने का विचार मन में आ रहा था लेकिन अब तुम जैसा कह रही हो वैसा ही करूंगा।

एक दिन रहमान ने रश्मि को बताया कि वह रुकईया से निकाह करने वाला है। उसकी बातें सुनकर रश्मि सन्न रह गयी। उसने कहा- तुम ऐसा नहीं कर सकते। मेरे साथ छल करने का परिणाम तुम्हें भुगतना होगा। मैं तुम्हें आसानी से छोड़ने वाली नहीं हूं। पुलिस स्टेशन में तुम्हारे खिलाफ शिकायत दर्ज करवाउंगी।

तुम पुलिस, कचहरी कहीं भी जाओ, मैं डरने वाला नहीं हूं। तुम मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती। शुक्र मनाओ कि रुकईया के कहने पर मैं तुम्हें जिंदा छोड़ दे रहा हूं, नहीं तो अब तक तुम्हारी लाश किसी नदी-नाले में सड़ रही होती। अब मैं तुम्हारे साथ एक पल नहीं रह सकता। मैं तुम्हें अभी तलाक़ देता हूं। इतना कहकर रहमान ने कहा- तलाक़ तलाक़ तलाक़।

                                                                                                                                                                                                  प्रभाकर मिश्र

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