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पठानकोट हमलामानसिकता तथा यथार्थता

पठानकोट हमलामानसिकता तथा यथार्थता

by डॉ. दत्तात्रय शेकटकर
in फरवरी २०१६, सामाजिक
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भारत में आतंकवादी, अलगाववादी, राष्ट्रद्रोही युद्ध १९५६ से चल रहा है। पूर्वोत्तर भारत का गृहयुद्ध, नक्सलवाद, पंजाब का आतंकवाद, कश्मीर का आतंकवाद इसके उदाहरण हैं। पाकिस्तान तथा चीन समर्थित, प्रोत्साहित, निर्देशित तथा संरक्षित तत्वों को जब सफलता नहीं मिली तो भारत के विरुद्ध एक नया युद्ध शुरू कर दिया है। इस युद्ध को आतंकवादी युद्ध, अप्रत्यक्ष युद्ध, सीमा पार से निर्देशित अप्रत्यक्ष युद्ध आदि नामों से जाना जाता है। पठानकोट हमले के पीछे पाकिस्तान की यही मानसिकता है।

राष्ट्रनीति का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। प्रत्येक शासक अपने हितों के संरक्षण के लिए राजनीति करता है। राजनीति की सफलता के लिए कूटनीति अपनाता है। परंतु जब राजनीति तथा कूटनीति दोनों ही विफल हो जाती है तब रणनीति अपनाता है। इसे हम सामान्य भाषा में ‘साम दाम दंड भेद’ कहते हैं। इसी को मनुस्मृति में उपायोर्सामो प्रदान भेद दंड:(दंड) कहा गया है। आज २१वीं सदी में दंड: (युद्ध) यह पहला विकल्प बन गया है। इस विश्व में राष्ट्रनीतिज्ञों का अभाव है। कूटनीतिज्ञों (चाणक्यों) का अभाव है। राजनीतिज्ञ (अवसरवादी) तथा रणनीति में विश्वास रखने वालों का बाहुल्य बढ़ रहा है। व्यक्ति समुदाय, राजनीतिक दल, राष्ट्र रणनीति की बात पहले करता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण परंतु एक कटु सत्य है, वास्तविकता है। ग्राम पंचायत के चुनाव से लेकर संसद के चुनावों तक सब रणनीति की बात पहले करते हैं। सत्ता पक्ष को राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने में असमर्थ दिखाने के लिए विपक्ष हमेशा रणनीति की बात करता है। इसी रणनीति की मानसिकता ने आतंकवादी प्रवृत्ति तथा आतंकवाद को जन्म दिया है।

राष्ट्रीय संरक्षण तथा राष्ट्रीय सुरक्षा ये दोनों अलग-अलग बातें हैं। एक दूसरे के अनुपूरक हैं। परंतु दोनों में भिन्नता है। दुर्भाग्य से भारत में इस वास्तविकता को स्वीकार नहीं किया जाता है। यदि कोई राष्ट्र, राज्य, समुदाय या व्यक्ति अपने आपको सैन्य शक्ति, युद्ध सामर्थ्य के आधार पर संरक्षित मानता है तो, इसका अर्थ यह नहीं कि वह व्यक्ति या राष्ट्र सुरक्षित है। अमेरिका पर ९/११ का आतंकवादी हमला इसका जीता-जागता उदाहरण है। विश्व में कोई एैसा राष्ट्र नहीं है जो अमेरिका से प्रत्यक्ष युद्ध करने की सोच रखता है। अमेरिका सैनिक रूप से एक सक्षम तथा संरक्षित राष्ट्र है। परंतु यह मानना उचित नहीं होगा कि अमेरिका एक सुरक्षित राष्ट्र है। अमेरिका की सुरक्षा व्यवस्था का अध्ययन करके, उस सुरक्षा व्यवस्था में कमियों का फायदा उठाकर किया गया आतंकवादी आक्रमण सफल हुआ। अमेरिका ने उसे आंतकवादी आक्रमण न मान कर अमेरिका की सार्वभौमिकता पर आक्रमण माना तथा प्रत्युत्तर में अफगानिस्तान पर सैन्य आक्रमण किया। अफगानिस्तान में तालिबान तथा अलकायदा को परास्त करने के बहाने से पूरे राष्ट्र को दंडित दिया, तबाह कर दिया। ये २१वीं सदी की वास्तविकता है। अमेरिका ने पूरे विश्व में आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की व अब तक वह युद्ध (२००१ से २०१६ तक) चल रहा है। लाखों लोग मारे गए हैं। इराक, लीबिया, सीरिया, यमन, सरीखे राष्ट्र तबाह हो गए हैं।

भारत में आतंकवादी, अलगाववादी, राष्ट्रद्रोही युद्ध १९५६ से चल रहा है। पूर्वोत्तर भारत का गृहयुद्ध, नक्सलवाद, पंजाब का आतंकवाद, कश्मीर का आतंकवाद इसके उदाहरण हैं। पाकिस्तान तथा चीन समर्थित, प्रोत्साहित, निर्देशित तथा संरक्षित तत्वों को जब सफलता नहीं मिली तो भारत के विरुद्ध एक नया युद्ध शुरु कर दिया है। आतंकवादी युद्ध, अप्रत्यक्ष युद्ध, सीमा पार से निर्देशित अप्रत्यक्ष युद्ध आदि नामों से इस युद्ध को किया जाता है। पाश्चात्य देशों में इसे चौथी पीढ़ी का युध्द कहते हैं। कुछ लोग इसे असामान्यता का युद्ध भी कहते हैं।

पाकिस्तान की भारत से शत्रुता, पाकिस्तान के एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में जन्म से ही रही है। पाकिस्तान के नागरिक नहीं परंतु पाकिस्तान की शासन पद्धति भारत से शत्रुता रखती है और भविष्य में भी रखेगी यह निश्चित है। दुर्भाग्य से शासकों ने भारत के प्रति शासकीय शत्रुता को धर्म के साथ जोड़ दिया है। पाकिस्तानी सेना में तथा युवा वर्ग में मानसिक कट्टरता पाकिस्तान के सौम्य शासक जनरल जिया उल हक की देन है। मानसिक, धार्मिक कट्टरता के कारण आतंकवादी युद्ध पद्धति को जन्म तथा प्रोत्साहन मिला। पंजाब का आतंकवाद जिया उल हक की देन है। ‘भारत को रक्तरंजित करके भारत का खून बहायें’ यह भारत के विरुध्द पाकिस्तान की शत्रुता तथा रणनीति का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत बन गया है। १९४७ से २०१६ तक पाकिस्तान का प्रत्येक शासकीय वर्ग (पाकिस्तान के राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, सेना प्रमुख, आईएसआई प्रमुख, विदेश मंत्री) हमेशा भारत को अपना एकमात्र शत्रु, प्रथम शत्रु मानते हैं। पाकिस्तान की संसद में दिए जाने वाले भाषण, बयान, राष्ट्र के नाम संदेश इस वास्तविकता का जीता-जागता सबूत है। पाकिस्तान के तमाम शासकों ने शासकीय माध्यम से शासकीय रूप में यह स्पष्ट किया है कि पाकिस्तान का परमाणु बम भारत के विरुद्ध प्रयोग में लाया जाएगा। भारत पाकिस्तान का एकमात्र शत्रु है।
१९६५ में युद्ध में भारत से पराजित होने पर तथा १९७१ के युद्ध के बाद पाकिस्तान के विघटन के बाद पाकिस्तान सुरक्षा व्यवस्था, संरक्षण व्यवस्था में प्रवीण हुआ है तथा पाकिस्तान की सेना ने एक नई विचारधारा रणणीति बनाई है।
र्धेी (झरज्ञळीींरप) लरप पेीं षळसहीं ींहशा (खपवळर) इशलर्रीीश र्धेी लरप ींशीीेीरळीश ींहशा लू डशश्रशलींर्ळींश घळश्रश्रळपस.

(अर्थात, आप (पाकिस्तान) भारत से युद्ध नहीं कर सकते। क्योंकि भारत एक बड़ा राष्ट्र है, उनकी सेना बड़ी है। परंतु आप (पाकिस्तान) भारत के (भारतीयों को) चुनिंदा लोगों को माकर आतंकित अवश्य कर सकते है!)

भारत के विरुद्ध अघोषित युद्ध सीमा पार से प्रोत्साहित, नियंत्रित तथा निर्देशित आतंकवाद एक नवीन युद्ध पद्धति का मुख्य अंग बन गया है। इस युद्ध पद्धति को पाकिस्तान के कुछ राजनीतिज्ञों का शासकीय अनुमोदन न भी हो, परंतु मानसिक अनुमोदन अवश्य ही है। अमेरिका, जो प्रारंभ से ही विशेषत: शीतयुद्ध के दौरान पाकिस्तान का शुभचिंतक, हितचिंतक, तथा संरक्षक रहा है। शीत युद्ध में अमेरिका ने पाकिस्तान का हर प्रकार से समर्थन तथा संरक्षण किया, आर्थिक सहाय्यता दी। इसलिए पाकिस्तान की सैन्य शक्ति बढ़ी तथा दुस्साहस बढ़ा। पिछले कुछ वर्षों से तथा विशेषत: १९१५ के बाद अमेरिका का हृदय परिवर्तन हो रहा है। पाकिस्तान के प्रति विश्वास तथा आस्था दोनों ही खत्म हो रही है। अमेरिका हमेशा पाकिस्तान को यही सलाह देता है कि भारत से प्रत्यक्ष घोषित युद्ध न करें। यदि प्रत्यक्ष युद्ध किया तो पाकिस्तान का राजनीतिक नक्शा बदल जाएगा व संभवता पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) तथा सिंध एवं बलुचिस्तान पाकिस्तान से बांग्लादेश की तरह अलग हो जाएंगे। हालांकि भारत की किसी भी सरकार ने इस प्रकार की विचारधारा को न तो प्रोत्साहन दिया, न इसे कभी भी स्वीकारा। भारत का वर्तमान शासन पाकिस्तान का हितैषी है। पाकिस्तान की जनता, विशेषकर युवा पीढ़ी का शुभचिंतक है तथा पाकिस्तान का विघटन कभी भी नहीं चाहेगा। वर्तमान भारतीय शासन पाकिस्तान की आर्थिक, सामाजिक, औद्योगिक तथा शैक्षणिक उन्नत्ति का शुभचिंतक है। परंतु पाकिस्तान में शासन राजनीतिज्ञ नहीं करते हैं। वास्तव में शासन सेना तथा आईएसआई के हाथों में होता है। निर्वाचित राजनीतिज्ञ पाकिस्तानी सेना की कृपा दृष्टि पर ही, दया पर ही सत्ता में बने रहते हैं। सब प्रकार का नियंत्रण पूर्ण रूप से सेना के हाथ में है। पाकिस्तान की संरक्षण नीति तथा विदेश नीति राजनीतिज्ञ तथा कूटनीतिज्ञ नहीं बल्कि सेना प्रमुख निर्धारित तथा नियंत्रित करते हैं। भारत को आतंकवादी युद्ध पद्धति से रक्तरंचित रखना पाकिस्तान की सोची-समझी सैन्य नियंत्रित रणनीति है। आतंकवाद तथा आतंकवादी पाकिस्तान की सेना का अघोषित नीति तथा अंग है। यह एक कटु सत्य है, वास्तविकता है, यथार्थ है।

पठानकोट पर हमला क्यों हुआ?
पाकिस्तानी सेना द्वारा आतंकवादियों के माध्यम से पठानकोट के वायु सैनिक अड्डे पर आक्रमण के कुछ महत्वपूर्ण व विशेष कारण हैं। पठानकोट हवाई सैनिक अड्डा भारतीय संरक्षण व्यवस्था का महत्वपूर्ण केन्द्र है। इसकी ऐतिहासिक भूमिका रही है। १९६५ तथा १९७१ में युद्ध के प्रारंभ में ही पठानकोट को पाकिस्तानी वायु सेना ने निशाना बनाया था। १९६५ के युद्ध में भारतीय सेना को जब लाहोर सियालकोट क्षेत्र में आक्रमण करने को बाध्य होना पड़ा तब पठानकोट वायु अड्डे ने तथा यंत्र निर्देशित हवाई जहाजों तथा नियंत्रित विमानों ने अहम भूमिका निभाई। १९७१ के युद्ध में ३ दिसम्बर को पहला हवाई हमला पाकिस्तानी वायुसेना ने पठानकोट हवाई अड्डे पर ही किया था। दूसरा कारण यह कि अमृतसर तथा जम्मू व कश्मीर में हवाई आवागमन में पठानकोट की बहुत बड़ी भूमिका है। तीसरा कारण यह कि कश्मीर, लेह लद्दाख क्षेत्रों की सुरक्षा की दृष्टि से पठानकोट महत्वपूर्ण है। पठानकोट के आसपास थल सेना के अड्डे हैं, छावनी है। कुछ और भी महत्वपूर्ण कारण हैं जिनका वर्णन करना भारतीय सुरक्षा तथा युद्ध क्षमता की दृष्टि से उचित नहीं होगा। भारतीय तथा सड़क यातायात जम्मू-कश्मीर से पठानकोट के माध्यम से ही होता है। पठानकोट, गुरुदासपुर, दीनानगर आदि शहर पंजाब तथा जम्मू- कश्मीर की सीमा पर होने के कारण दोनों राज्यों के राज्य शासन इस क्षेत्र पर आवश्यक ध्यान नहीं देते, यह एक कटु सत्य है। पठानकोट के सामने सीमा पार पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के अनेक सम्पन्न शहर हैं। बहालपुर, नारोवाल, शहरगढ़ आदि शहर पाकिस्तान नियंत्रित आतंकवादियों के गढ़ हैं। यह क्षेत्र पाकिस्तानी आतंकवादियों का सरगना हाफिस सईद के प्रभाव व नियंत्रण में है। रावी नदी के कारण यहां सीमा पार करना आसान होता है। यहां जंगल तथा नदी किनारों पर ‘सरकंडे’ होने के कारण भारतीय सीमा में घुसना आसान होता है। पंजाब तथा पाकिस्तान के पंजाब सीमा क्षेत्रों में बहुत से धार्मिक संतों, जिन्हें ‘पीर’ कहते हैं, की मजारें हैं। धार्मिक भावना से प्रेरित लोग यहा पूजन करते हैं, मन्नत मांगते हैं। पिछले ३० वर्षों से ये धार्मिक स्थान मादक पदार्थों की तस्करी करने वालों, आतंकवादियों, जासूसी करने वालों के मिलने के स्थान बन गए हैं। सूचना, निर्देश, मादक पदार्थ, पैसा, अनधिकृत शस्त्रों का यहंा आदान-प्रदान होता है। इन्हीं सब कारणों से यह क्षेत्र आतंकवादी युद्ध की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण व संवेदनशील है।

पठानकोट के वायुअड्डे पर आतंकवादी क्या करना चाहते थे?

जिन लोगों ने, नियंत्रकों ने हमले की योजना बनाई, उनका उद्देश्य, पठानकोट के हवाई अड्डे पर रखे गए अत्यंत आधुनिक युद्ध वायुयानों, हेलिकाप्टरों, मिसाइलों, बमों आदि को कब्जा करना था। यदि आतंकवादी सफल होते तो भारतीय वायुसेना की दूरगामी युद्धक्षमता पर विपरीत असर पड़ता। इस वायु अड्डे पर बड़ी संख्या में हवाई सैनिक तथा उनके परिवार रहते हैं। वे भी आतंकवादियों का निशाना बन जाते। यदि कुछ विशेष उपकरण, मारक शस्त्र भंडार तक आतंकवादी पहुंच जाते तो स्थिति अत्यंत गंभीर हो जाती। आतंकवादी आक्रमण से अन्य नुकसान भी हो जाता। इन तमाम बातों को ध्यान में रख कर ही पठानकोट पर आतंकवादी हमला किया गया।

क्या आक्रमण की यह योजना केवल आतंकवादियों ने ही बनाई होगी?

इस प्रकार के आक्रमण की योजना २०-२२ वर्ष के तरुण, अशिक्षित आतंकवादी नहीं बना सकते हैं। इस आक्रमण की योजना बनाने में पाकिस्तान के सेना मुख्यालय, वायुसेना मुख्यालय, आईएसआई की अहम भूमिका है, यह निश्चित है। हालांकि पाकिस्तानी शासन इस वास्तविकता को कभी भी स्वीकार नहीं करेगा। तकनीकी जानकारी जैसे कि वायुयान कहां पर हैं, हेलिकाप्टर कहां पर है, नियंत्रण केन्द्र कहां पर है, आदि सूचनाएं अंतरिक्ष के माध्यम से प्राप्त किए गए, वायुयानों के माध्यम से प्राप्त किए छायाचित्रों से मिली होगी। हो सकता है हवाई अड्डे के ब्ल्यू प्रिंट तथा त्ब् दल्ू स्ज जासूसों के द्वारा के द्वारा प्राप्त किए गए हो, स्थानीय पुलिस तथा कुछ सिविल कर्मचारियों के माध्यम से जानकारी प्राप्त की होगी। मेरी यह मान्यता है कि पाकिस्तान के किसी न किसी हवाई अड्डे पर इस हमले का पूर्वाभ्यास तथा प्रशिक्षण किया गया होगा। यह भी संभव है कि आतंकवादी पाकिस्तान की सीमा तक खाली हाथ बैगर शस्त्र सामग्री के आए हो तथा भारतीय सीमा में आने के बाद उन्हें पूर्व नियोजित तरीके से सभी आवश्यक उपकरण, शस्त्र आदि दिए गए हो। यह सब स्थानीय लोगों की सहायता के बगैर संभव नहीं होता। जिस प्रकार मुंबई हमले २६/११ की योजना व नियंत्रण, निर्देशन, पाकिस्तान से ही था, उसी प्रकार या उससे भी बेहतर रूप से यह आक्रमण किया गया है। यह पाकिस्तान के शासकीय तथा सैन्य सहायता के बिना संभव नहीं हो सकता है।
पाकिस्तान ने भारत के विरूध्द इस आतंकी युध्द को कम से कम लागत में ज्यादा से ज्यादा लाभ उठाने की युध्द पध्दति का नाम दिया है। केवल दस आतंकवादियों को भेज कर एक करोड़ बीस लाख की आबादी वाली मुंबई को और फलस्वरूप पूरे भारत को पांच दिन चैन से बैढने नहीं दिया। पठानकोट के वायु अड्डे को ध्वस्त करने के लिए केवल आठ या दस आतंकवादी, जिनके जीवन का मूल्य पाकिस्तान में दो कौड़ी का भी नहीं है, भेज कर पूरे भारत को, भारतीय शासन, संरक्षण तंत्र, संरक्षण व्यवस्था, सुरक्षातंत्र को हिला कर रख दिया। भारतीय शासन की क्षमता, कार्यशीलता, कार्यकुशलता, संवेदनशीलता, विदेश नीति सब पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। जनता की अदालत में प्रधान मंत्री की व्यक्तिगत योग्यता, कार्यकुशलता, कार्यदक्षता, ईमानदारी तथा दूरदृष्टि पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। इस तरह एक हमले से पाकिस्तान का कितना बड़ा फायदा हुआ!

क्या यह सामान्य आतंकवादी हमला या भारत की सार्वभौमिकता पर हमला है?

पठानकोट के वायुसैनिक अड्डे पर आक्रमण वास्तव में भारत की जमीन पर, भारत की सार्वभौमिकता पर आक्रमण है। इस हमले को एक सामान्य आतंकवादी आक्रमण मानना बुध्दिमत्ता नहीं होगी। १९७१ के युध्द के प्रथम दिन पठानकोट वायुअड्डे पर पाकिस्तान की वायुसेना ने आक्रमण किया था। उस आक्रमण के समय मैं पठानकोट के पास सांबा नामक कस्बे में मेजर के पद पर था। वहीं से हम लोगों ने पाकिस्तान पर जवाबी थल हमला उसी दिन रात ९ बजे प्रांरभ किया था। जितना नुकसान पठानकोट के हवाई अड्डे पर १९७१ के युध्द में हवाई आक्रमण के कारण हुआ, उससे कई गुना ज्यादा नुकसान ६ आतंकवादियों के माध्यम से किया गया। हमारे सैन्य अधिकारी, जवान भारतीय वायुसैनिक मारे गए हैं। मकान व इतर सम्पति को नुकसान हुआ है। भाग्यवश कोई वायुयान या हेलिकाप्टर तबाह नहीं हुआ। मेरी मान्यता है कि इस आक्रमण को भारत की सार्वभौमिकता पर आक्रमण माना जाना चाहिए।

दिल्ली स्थित लाल किले पर, जम्मू-कश्मीर राज्य के सेके्रटेरियट पर, भारत की संसद पर, भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई पर हमले को हमने आतंकवादी हमला स्वीकार करके बुध्दिमत्ता का परिचय नहीं दिया है। अक्षरधाम पर हमला भारतीयता पर आक्रमण था। दिल्ली के लाल किले से हर वर्ष १५ अगस्त को भारत के प्रधान मंत्री राष्ट्र को सम्बोधित करते हैं। लाल किला एक इमारत न होकर भारतीय स्वंतत्रता की धरोहर है। भारतीय संसद भवन, केवल एक इमारत नहीं है, भारतीय राष्ट्र, जनतंत्र, संविधान, शासकीय व्यवस्था का प्रतीक है। हमारी राष्ट्रीय धरोहर है। संसद पर हमला भारत की सार्वभौमिकता पर हमला था। इसे केवल एक आतंकवादी हमला मानने के पहले हमें विचार करना था। पूर्ण भारतीय गणतंत्र का संचालन इसी संसद भवन से ही होता है। भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई पर आतंकवादी हमला महज ताजमहल हाटेल पर हमला नहीं था, वह पाकिस्तान द्वारा भारतीय सार्वभौमिकता तथा भारतीय अर्थतंत्र पर आक्रमण था। ९/११ के आतंकवादी अमले को अमेरिका ने वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की इमारत पर हमला नहीं माना। अमेरिका के राष्ट्रपति ने पूर्ण अमेरिका तथा विश्व को सम्बोधित करते हुए स्पष्ट कहा कि यह आक्रमण अमेरिका पर आक्रमण है। अमेरिका ने उस आक्रमण उत्तर उसी तरह दिया जैसा कि एक समर्थ शक्तिशाली, स्वाभिमानी राष्ट्र देता है। केवल दो माह पहले फ्रांस की राजधानी पेरिस पर आतंकवादी हमले के कुछ ही घंटों में फ्रांस के राष्ट्रपति ने राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि फ्रांस युध्दात्मक स्थिति में है। क्या हम इन तमाम राष्ट्रों की घटनाओं से कुछ भी नहीं सीखना चाहते? कितने और हमले हमें सहन करने पडेंगे? कब तक हम हमारी जमीन, हमारे राष्ट्र में आतंकवादी वृत्ति को निमंत्रित करते रहेंगे? जिस दिन पाकिस्तानी सेना, शासन व शासन द्वारा संचालित आतंकवादियों को यह विश्वास हो जाएगा कि अब भारत के विरूध्द आतंकवाद विकल्प नहीं है, पाकिस्तान को आतंकवाद बंद करना ही पड़ेगा, अन्यथा पाकिस्तान विघटित तो होगा ही परंतु पाकिस्तान की युवा पीढ़ी तथा आने वाली पीढ़ियों का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा।

आतंकवाद खत्म करने के लिए भारत को क्या करना चाहिए?

सर्व प्रथम अंतरराष्ट्रीय समुदाय के माध्यम से तथा सीधी स्पष्ट वार्ता (चर्चा नहीं) के द्वारा पाकिस्तान की जनता, युवा वर्ग, शासन व सेना को यह समझना होगा कि भारत के प्रति शत्रुता पाकिस्तान के दूरग्रामी हितों के लिए घातक हो सकती है। भारतीय शासन तथा राजनैतिज्ञों को यह समझ लेना चाहिए कि अघोषित युध्द, आतंकवाद का उत्तर व हल घोषित युध्द नहीं है। अघोषित युध्द उसी विचारधारा व माध्यम से जीता जा सकता है। युध्द विकल्प नहीं है। पाकिस्तान की युवा पीढ़ी को यह समझाया जाए कि आपके शासकों ने, आपके हुक्मरानों ने, आईएसआई ने आपके पिछले ६० साल बर्बाद कर दिए। पाकिस्तान को आर्थिक व सामाजिक रूप से तबाह कर दिया है। पाकिस्तान पूरे विश्व में आतंकवादी देश माना जाता है। ऐसे राष्ट्र की युवा पीढ़ी का भविष्य क्या होगा? क्या पाकिस्तान की सेना, कट्टरपंथी, आतंकवादी भारत से १६० वर्ष तक शत्रुता रखना चाहते हैं? क्या पाकिस्तान का अस्तित्व ही खतरे में डालना चाहते हैं? पाश्चात्य देशों में पाकिस्तान के एक और विघटन, बंटवारे की योजना बन चुकी है। नक्शे तयार हो चुके हैं। भारत इस प्रकार की विचारधारा का कभी भी समर्थन नहीं करता है और न ही करेगा। परंतु यदि इस प्रकार की विघटन की स्थिति बन जाती है तो भारत को सर्तक रहना पड़ेगा तथा पाकिस्तान को खंडित नहीं होने देने के लिए पाकिस्तान की हर प्रकार से सहायता करने के लिए तैयार रहना पड़ेेगा। पाकिस्तान का एक और विभाजन भारत के दूरग्रामी हितों की दृष्टि से उचित नहीं होगा। मर्ज यदि बढ़ता जाता है तो कभी न कभी कड़वी दवा देना भी एक विकल्प होता है, मरीज को बचाने के लिए। हमें ऐसा कुछ करना होगा कि शत्रु नहीं बल्कि शत्रुता समाप्त हो जाए। श्री। नरेंद्र मोदी शायद इसी विचारधारा को सफल बनाने के पहले कदम में लाहौर गए थे। परंतु हमें बदले में क्या मिला? हमें ध्यान में रखना होगा कि जिस मुशर्रफ ने श्री वाजपेयी के शांति प्रसासों को विफल करने के लिए कारगिल युध्द छेड़ा था। जिसने यह पाकिस्तान में तथा दिल्ली में आकर भारत की जमीन पर यह घोषणा की कि ये तो एक ही कारगिल था, अभी दस और कारगिल होंगे। कारगिल युध्द के समय पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री सरताज अजीज ने बीबीसी लंदन को दिए गए साक्षात्कार में बार बार यह दोहराया था कि अभी दस कारगिल और होंगे। वही सरताज अजीज पाकिस्तान के सुरक्षा सलाहाकार थे और अब वही पाकिस्तान की विदेश नीति निर्धारित करते हैं। भारत उनसे क्या अपेक्षा कर सकता है? कारगिल अब कारगिल में नहीं होगा। भारतीय संसद पर आक्रमण पहला कारगिल था। पठानकोट पर आक्रमण तीसरा कारगिल माना गाना चाहिए। अभी सात और कारगिल होना बाकी है। अगला कारगिल कहां होगा? कब होगा व कैसे होगा ?
राष्ट्रनीति का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है : ‘‘यदि आप अपने प्रतिद्वंद्वी या शत्रु को जानते हैं, यदि आप उसे डराकर रख सकते हैं, उसे रोक सकते हैं, तो आप १०० वर्ष शांति से रह सकते हैं!

हमें पाकिस्तान तथा संभावित प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ यह सिद्धांत अवश्य ही ध्यान में रखना चाहिए। अन्यथा वो आपको शांति से नहीं जीने देंगे। एक और सिद्धांत ध्यान में रखना पड़ेगा व इस पर कार्य योजना बनानी पड़ेगी- अपने शत्रु तथा प्रतिद्वंद्वियों की कमजोरियों को जानें व समझें और यदि आवश्यक हुआ तो अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए उन कमजोरियों पर आघात करें, तभी आप शांति से रह सकेंगे।

पाश्चात्य देशों मे पाकिस्तान के विघटन, विभाजन की जो योजना बनाई है, उससे पाकिस्तान के राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा अस्तित्व के रक्षणार्थ पाकिस्तान भारत से आवश्यक सहायता मांगेगा यह निश्चित है। तब तक भारत को अपनी शक्ति बढ़ानी पड़ेगी। सामर्थ्य बढ़ाना पड़ेगा। भारतीय राजनैतिक व शासन तंत्र को यथार्थ तथ्य तथा इतिहास को भूलने की आदत है। भूलना, विस्मरण एक घातक बीमारी है। इसके विपरीत क्षमादान बडप्पन की निशानी है। ढे ऋेीसशीं ळी र वळीशरीश र्लीीं ींे ऋेीसर्ळींश ळी र ीळसह ेष सीशरींपशीी परन्तु यह बडप्पन दिखाते समय हमारे इतिहास को नहीं भूलना चाहिए। हमारे शासकों ने, योध्दाओं ने शत्रु को अनेक बार परास्त करने के बाद क्षमा कर दिया। परंतु शत्रु ने हमारे प्रति एक बार भी कृतज्ञता नहीं दिखाई। इसे अवश्य ध्यान में रखा जाना चाहिए और पाकिस्तान को यह बता देना चाहिए कि वह भारत की परीक्षा न लें, अन्यथा इसके बुरे परिणाम होंगे।
मो. ः ०२०-२६१५३५८१

डॉ. दत्तात्रय शेकटकर

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