अनूठी पहल

अंग्रेजों के आने के पहले सभी भारतीय गांव स्वावलंबी थे। गांव की, जलस्रोतों की स्वच्छता रखना वे अपना कर्तव्य समझते थे। ग्रामीण समाज शारीरिक मेहनत करने के कारण स्वस्थ तथा बलवान हुआ करता था। अंग्रजों ने सोचा अगर गावों की इस स्वावलंबन रूपी रीढ़ की हड्डी को तोड़ दिया जाए तो उन्हें गुलाम बनाना आसान होगा। उन्होंने बड़ी चालाकी से गांवों के छोटे परंतु महत्वपूर्ण ऐसे कार्यों को अपने हाथों में लेना शुरू किया जिससे गांव के लोग उन पर निर्भर हो जाएं।

समाज के प्रति अपना कर्तव्य जानना और कर्तव्य पूर्ति के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहना कुछ ही लोगों को सम्भव हो पाता है। मुंबई के उपनगर ठाणे की निवासी श्रीमती वासंती वड़के ने अपने सामाजिक कर्तव्य को जाना और उसे पूरा करने का कार्य भी किया। उन्होंने अपनी बेटी के विवाह के निमित्त महाराष्ट्र के दो सूखा पीड़ित गांवों को छ: लाख रुपये दान किए हैं।
भारत के कई इलाकों में जहां बेटी के विवाह और उसमें होने वाले खर्च को सोचकर ही माता-पिता के माथे पर बल पड़ जाते हैं, वहीं वड़के दम्पति की पहल मिसाल कायम करती है।

श्रीमती वासंती कहती हैं, इसके पीछे उनके पति की प्रेरणा है। दरअसल उनके पति डॉ. विवेक वड़के जी का नियम है कि वे जो भी खर्च करते हैं उसका एक नियत हिस्सा समाज के लिए होता है। यह नियम तब से बना हुआ है जब से उन्हें छात्रवृत्ति मिलनी प्रारंभ हुई। तब से लेकर आज तक यह नियम कायम है। उन्होंने अपनी बड़ी बेटी के विवाह के निमित्त भी एक निश्चित रकम दान स्वरूप दी थी। वडके दम्पति के द्वारा दान में दी गई रकम जितनी बड़ी है उससे भी बड़ा है उनके दान का उद्देश्य।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ग्राम विकास योजना के अंतर्गत संघ नेकुछ गांवों को दत्तक लिया है। इन गावों का आर्थिक विकास कर उन्हें स्वावलंबी बनाने की प्रक्रिया में बहुत धन की आवश्यकता होती है। इसी योजना के अंतर्गत डॉक्टर दम्पति ने अपने दान की राशि प्रदान की है।

ग्राम विकास योजना के बारे में विस्तार से बताते हुए वे कहते हैं कि संघ के द्वारा जिन गांवों को दत्तक लिया गया है, वे निश्चित रूप से स्वावलंबी हो सकते हैं; बस उन्हें आवश्यकता है थोड़ी सी आर्थिक सहायता और उचित मार्गदर्शन की। गांव का एक उदाहरण देते हुए वे कहते हैं कि भारत के प्रत्येक गांव का अपना एक जलस्रोत है, परंतु किसी कारणवश वह या तो सूख गया है या उसका जलस्तर बहुत कम हो गया है। इसका कारण यह है कि उसमें जमा होने वाली मिट्टी कई वर्षों से साफ नहीं की गई है। अगर यह कचरा साफ कर दिया गया तो जलस्तर बढ़ जाएगा। गांव के स्वावलम्बन की ओर यह पहला कदम होगा; क्योंकि किसी भी कार्य के लिए पानी पहली आवश्यकता होती है।

अंग्रेजों के आने के पहले सभी भारतीय गांव स्वावलंबी थे। गांव की, जलस्रोतों की स्वच्छता रखना वे अपना कर्तव्य समझते थे। ग्रामीण समाज शारीरिक मेहनत करने के कारण स्वस्थ तथा बलवान हुआ करता था। अंग्रजों ने सोचा अगर गावों की इस स्वावलंबन रूपी रीढ़ की हड्डी को तोड़ दिया जाए तो उन्हें गुलाम बनाना आसान होगा। उन्होंने बड़ी चालाकी से गांवों के छोटे परंतु महत्वपूर्ण ऐसे कार्यों को अपने हाथों में लेना शुरू किया जिससे गांव के लोग उन पर निर्भर हो जाएं। गावों की स्वच्छता, जलस्रोतों की स्वच्छता ऐसे ही कुछ कार्य थे।

धीरे-धीरे गांव इस बात के आदी हो गए कि वे चाहे कितनी गंदगी फैलाएं अंग्रेज उसकी सफाई करेंगे। आज स्वतंत्रता प्रप्ति के पश्चात अंग्रेजों का शासन तो नहीं रहा परंतु मानसिकता वही है कि सफाई सरकार या प्रशासन करेगा। अब अगर गावों को स्वावलंबी बनाना है तो पहले उनकी इस मानसिकता को बदलना होगा। इसी उद्देश्य संघ की ग्राम विकास योजना कार्यरत है।
कार्यकर्ता गांववासियों की मदद से नदी की सफाई करते हैं। उससे कचरा साफ करते हैं तथा नदी का जलस्तर बढ़े इस उद्देश्य से उसकी मिट्टी भी साफ करते हैं। इस मिट्टी का उपयोग खेतों के लिए किया जाता है। क्योंकि खेतों के लिए यह अत्यंत उपजाऊ होती है। जलस्तर बढ़ने के कारण गांवों के कुंओं में भी पानी भरने लगता है जिससे पीने के पानी की समस्या भी हल हो जाती है।

नदी की सफाई का एक और लाभ यह है कि बारिश का पानी भी नदी में ही समा जाता है। गांव में बारिश नहीं हुई ऐसा नहीं होता। कभी कम होती है या अनियमित होती है; परंतु होती ही नहीं ऐसा नहीं है। इस बारिश का पानी भी जब नदी में जाता है तो नदी का स्तर बढ़ जाता है।

वड़के दम्पति ने महाराष्ट्र के जिन दो गावों जालना जिले के पाडली तथा नांदेड जिले के दापशेड के लिए दानराशि दी है, वहां इस तरह कार्य शुरू हो गया है। वे समाज के अन्य लोगों से भी यह आवाहन करते हैं कि वे अपने व्यय का कुछ हिस्सा समाजोपयोगी कार्य में लगाएं। इनसे भी अधिक उनकी ग्रामवासियों से अपेक्षा है कि वे अपने गावों को स्वावलंबी बनाने के लिए संकल्पबद्ध तथा क्रियाशील हो

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