गुजरात सरकार ने मोदी के मुख्य मंत्री बनने के बाद 2002 से कृषि विभाग को सभी किसानों के खेतों की मिट्टी का नमूना इकठ्ठा करना और उसका विश्लेषण करके इसमें से Nitrogen (N), Phosphorous (P), Potassium(K) की मात्रा निकालने की सूचनाएं दीं थीं। भूपेंद्र सिंह चूडासमा, कृषि मंत्री और डॉ. किरीट शेलट, मुख्य सचिव (कृषि) ने इस काम में पूरे कृषि विभाग को लगा दिया। बड़े उत्साह के साथ किसानों के खेतों की मिट्टी के नमूने लिए गए और राज्य सरकार की सभी प्रयोशालाओं में उन नमूनों का विश्लेषण करके N, P, K, pH, EC और आर्गेनिक कार्बन की गणनाएं की गई। इस योजना के लिए गुजरात सरकार ने दो गाडियां भी खरीदी। एक गाड़ी कृषि विभाग के पास रखी गई और एक गाड़ी आणंद कृषि विद्यापीठ को दी गई। पूरी गति से राज्य सरकार मिट्टी के नमूने इकठ्ठा करवा रही थी और उनका विश्लेषण करके उसमें उपलब्ध प्रमुख पोषक तत्वों (Major Nutrients), जैविक कार्बन (Organic carbon) , NPK, EC और pH का विवरण तैयार करवा रही थी।
सन 2004 में आणंद कृषि विद्यापीठ, आणंद का कुलपति बनकर मैंने काम की शुरुआत कर दी थी। मैं सभी संशोधन केंद्रों पर भेंट दे चुका था और संशोधन केंद्रों पर चल रहे प्रयोगों और संशोधनों की जानकारी ले चुका था। एक दिन शेलट साहब ने मुझे गांधी नगर बुलाया। कृषि विभाग के सभी अधिकारी भी उपस्थित थे। उन सभी से परिचय करवाया और योजना में क्या-क्या काम चल रहा है, उसकी जानकारी भी दी।
लगभग 12.5 लाख आकड़ा बिंदु (Data Points) इकत्रित हो चुके थे। शेलट साहब ने कहा कि इन सबका उपयोग करके हम कोई प्रोग्राम बना सकें तो अच्छा होगा।
मैंने आणंद में चारों कृषि विद्यापीठों के कुलपतियों और संशोधन संचालकों की एक बैठक की और उनके सामने यह विषय रखा। मेरे अलावा तीनों कुलपतियों और उनके संशोधन संचालकों का मत था कि वातावरण, मिट्टी, फसल और फसलों को उगाने की पध्दति हर गांव में बदल जाती है। गांव ही नही तो हर खेत में बदल जाती है। इसलिये इसके लिए कोई भी प्रोग्राम नही बन सकता है।
इसके पश्चात मैंने अपने ही विद्यापीठ के वैज्ञानिकों का एक गुट बनाया, जिसमें डॉ. पाठक, संशोधन संचालक, डॉ. शेख, अध्यक्ष (कृषि), डॉ. रतिभाई पटेल – सहयोगी संशोधन संचालक, डॉ. अरुण पटेल, संचालक, विस्तार शिक्षण, डॉ. व्यास पांडे, विभाग प्रमुख, कृषि हवामान शास्त्र, डॉ. कल्याण सुंदरम, विभाग प्रमुख, मृदा विज्ञान, डॉ. जोरावर सिंह सरवैय्या, पशु चिकित्सा औषध विज्ञान (Veterinary Pharmacology), डॉ. आर. एस. परमार, सहायक प्राध्यापक, कृषि हवामान शास्त्र और वी. पी. मॅकवान, कुलसचिव को सम्मिलित किया। मैंने डॉ. व्यासपांडे को कहा कि हम जो बरसात होने के बाद मिट्टी का नमी उपलब्धता सूचकांक (Moisture Availability Index) निकालते हैं, वह इस विवरण की सहायता से निकालिए। उन्होंने बताया कि उसके लिए तो हमें मिट्टी के खेत की पानी धारण क्षमता (Field Capacity), पौधा सूखने का स्थायी बिंदु (Permanent Wilting Point) और थोक घनत्व (Bulk Density) चाहिए। डॉ. कल्याण सुंदरम ने बताया कि कृषि विभाग के पास मृदा भौतिक विश्लेषण (Soil Physical Analysis) का विवरण होगा, इससे हम यह निकाल सकते हैं । हमने गुजरात सरकार की स्वीकृति लेकर सॉफ्टवेयर बनाने के लिए निविदा आमंत्रित की। इस काम के लिए गुजरात सरकार ने हमें 3 करोड़ की राशि स्वीकार की। साथ ही कम्प्यूटर, प्रिंटर इत्यादि खरीदने के लिए भी राशि स्वीकार की। सबसे पहले हमने जो 125 लाख data points उपलब्ध थे, उनकी सत्यता और उपयोगिता को देखा। इस काम के लिए जो छोटा सा प्रोग्राम बनाया गया, उस प्रोग्राम के लिए आवश्यक सभी जानकारी डॉ. कल्यान सुन्दरम ने दी। प्रोग्राम बनने के बाद हमने 12.5 लाख data points को परखा। उसमें से केवल 8.5 लाख data points ही उपयोगी थे। इन सभी data points का उपयोग करके सॉफ्टवेयर बनाने की शुरुआत कर दी। बाद में कृषि विभाग ने और अधिक data points भेजे। धीमे-धीमे data points की संख्या 45 लाख तक हो गई। सॉफ्टवेयर बनाने के लिए data points की यह संख्या योग्य थी।हम मोदी जी को काम में हो रही प्रगति की जानकारी देते जाते थे और वे आवश्यक धन राशि स्वीकृत करते जाते थे। हमारे यहां कुलसचिव और नियंत्रक हंसी-हंसी में कहते थे कि हमारे कुलपतिश्री की पेन की स्याही सूखने से पहले ही मोदी जी राशि स्वीकृत कर देते हैं। सचमुच में यह मोदी के मन में किसानों के प्रति सदभावना थी कि यदि कोई काम किसानों के हित में हो रहा है तो उसके लिए धन की कोई कमी नही होने दी जाएगी। मोदी की सरकार किसानों के हित में धन राशि मिनटों में स्वीकृत कर देती थी।
आणंद कृषि विद्यापीठ ने लगभग पौने तीन करोड़ खर्च करके ‘सॉइल हेल्थ कार्ड’ का सॉफ्टवेयर तैयार किया। किसानों ने केवल अपना नाम, अपने गांव का नाम और अपने खेत का सर्वे क्र. बताया कि कम्प्युटर पर सॉईल हेल्थ कार्ड खुल जाता था। केवल ₹ 1/- में वह कार्ड किसान को दे दिया जाता था। उस कार्ड पर किसान को अपने खेत की मिट्टी में उपलब्ध प्रमुख पोषक तत्वों (Major Nutrients), जैविक कार्बन (Organic carbon), N, P, K, EC और pH का विवरण मिल जाता था। साथ ही उसने अपने खेत में कौन सी फसल उगाई तो फायदे में रहेगा, यह भी बताया जाता था। अभी जो फसल खेत में लगी हुई है, उस पर यदि रोग या कीड़ा लगा है तो कौन सी दवा छिडकनी चाहिए, यह भी बताया जाता था। किसान को ₹ 1 /- में पूरा पॅकेज मिल जाता था। यह पूरा सॉफ्टवेयर कृषि विभाग को सौंप दिया गया। उन्होंने कहा कि हमारी तरफ से आप इसे आणंद कृषि विश्वविद्यालय में ही रखें, क्योंकि हम तो उसे चला ही नही पाएंगे। कृषि विश्वविद्यालय हमारे कर्मचारियों को सॉईल हेल्थ कार्ड बनाने में प्रशिक्षित भी करे। भरुच में मोदी जी ने गुजरात का चिंतन शिविर रखा। गुजरात का पूरा मंत्रिमंडल, सभी जिलाधीश व आहरण एवं संवितरण अधिकारी (DDO) उस चिंतन शिविर में बुलाए गए थे। उनके सामने यह सॉईल हेल्थ कार्ड प्रस्तुत किया गया। यह गुजरात सरकार की एक बड़ी उपलब्धि थी। इस सॉफ्टवेयर का नाम रखा गया ‘e- कृषि किरण’। केंद्र सरकार ने इसे राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्रदान किया। इसको समझने के लिए इसकी एक अनुदेश पुस्तिका भी बनाई गई तथा साथ में एक पुस्तक भी लिखी गई, जिसका शीर्षक था ‘माटी मां थी मोती’। इसे पढ़कर नए वैज्ञानिक सॉफ्टवेयर का उपयोग कर सकते थे। 2014 के पश्चात मोदी ने इस योजना के अखिल भारतीय उपयोग के लिए ₹100/- करोड़ की राशि आवंटित की। यह योजना भारत भर में फैले इसके लिए उन्होंने भरपूर प्रयत्न किए। किसानों के हित में कोइ भी योजना हो मोदीजी उसे पूरे मन से लागू करते थे।
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लेखक: प्रा. डॉ. मदनगोपाल वार्ष्णेय, लेखन सहायक: तन्मय वार्ष्णेय