मोदी सरकार : कृषि नीति और बीज उद्योग

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खेती के तकनीक में एक और बड़ा परिवर्तन आया और वैज्ञानिकों ने बीज के बजाय पौधे के पत्ते या तनों के छोटे से टुकड़े के ऊतक (Tissue) का उपयोग करके पूरा पेड़ बना दिया, जिसमें मातृ पेड़ के सभी गुण मौजूद थे। यह तकनीक ऊतक संवर्धन (Tissue culture) कहलाती है। इसके बाद ऊतक संवर्धन के माध्यम से फलों और फूलों के नए-नए पौधे तैयार किए गए और किसानों को उगाने के लिए दिए गए। यह ऊतक संवर्धन के पेड़ धनवान किसानों में काफी पसंद किए जाते हैं। वातावरण नियंत्रित खेती (Controlled Condition Cultivation), Polly House, Green House, Net House में ऊतक संवर्धन के पेड़ का उपयोग करके नई तकनीक की खेती काफी बढ़ी। वातावरण नियंत्रित खेती में पैदा किए गए फूलों और सब्जियों का निर्यात किया गया। जिससे भारत का कृषि निर्यात बहुत बढ़ गया। बीजों का उत्पादन (2016-17) में इस प्रकार था ; भुसार माल 229.8, दालें 29.47, तेलिबिया 49.97, सूत की फसलें 2.17, आलू 0.38, अन्य 0.33, कुल बीज 311.43 लाख क्विन्टल। यह बाजार 2022-23 में कुल 6.3 अब्ज डालर का हो गया है। और अनुमान है कि यह 2028 तक बढ़कर 12.27 अब्ज डालर का हो जाएगा। यानी यह 12.45% के (Compound Annual Growth Rate - CAGR) रेट से बढ़ेगा। अर्थात बीज में केवल नया पौधा पैदा करने की क्षमता ही नहीं, तो देश की अर्थव्यवस्था बदलने की क्षमता भी  होती है। 

कृषि नीति : सॉइल हेल्थ कार्ड -‘e- कृषि किरण’

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आणंद कृषि विद्यापीठ ने लगभग पौने तीन करोड़ खर्च करके ‘सॉइल हेल्थ कार्ड’ का सॉफ्टवेयर तैयार किया। किसानों ने केवल अपना नाम, अपने गांव का नाम और अपने खेत का सर्वे क्र. बताया कि कम्प्युटर पर सॉईल हेल्थ कार्ड खुल जाता था। केवल ₹ 1/- में वह कार्ड किसान को दे दिया जाता था। उस कार्ड पर किसान को अपने खेत की मिट्टी में उपलब्ध प्रमुख पोषक तत्वों (Major Nutrients), जैविक कार्बन (Organic carbon), N, P, K, EC और pH का विवरण मिल जाता था। साथ ही उसने अपने खेत में कौन सी फसल उगाई तो फायदे में रहेगा, यह भी बताया जाता था। अभी जो फसल खेत में लगी हुई है, उस पर यदि रोग या कीड़ा लगा है तो कौन सी दवा छिडकनी चाहिए, यह भी बताया जाता था। किसान को ₹ 1 /- में पूरा पॅकेज मिल जाता था।

कृषिनीति: ज्योतिष से वर्षा का पुर्वानुमान और टपक सिंचाई

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मोदी जी सभी से आग्रह करते थे कि किसान अपने खेतों में टपक सिंचाई (Drip Irrigation) के माध्यम से सिंचाई करें, जिससे पौधों को जरुरत के मुताबिक पानी भी मिल जाएगा और पानी का अपव्यय भी नहीं  होगा।वे हमेशा ही किसानों से कहते थे कि यदि एक छोटा बच्चा प्यासा है तो उसकी माँ कटोरी में थोडा पानी लेकर, कपास की बाती बनाकर उसे कटोरे में डुबाती है और बाती का दूसरा सिरा बच्चे के मुँह में दे देती है। बच्चा चूस-चूस कर अपनी प्यास के अनुरुप पानी पी लेता है। माँ अपने बच्चे को पानी भरे ड्रम में नही डालती है कि बच्चा चाहे जितना पानी पीये । उलटे पानी में डुबने के कारण बच्चे की साँस रुक जाएगी और वह मर जाएगा। इसी प्रकार छोटे पौधों का है। यदि आपने पौधे की जडों के पास ड्रिपर से पानी दिया तो मिट्टी गिली हो जायगी और पौधे कि जडें उसमें से आवश्यकता के अनुरुप पानी सोख लेंगी, जो पौधे की बढवार में सहायक होगी। वहीं किसान अगर पुरानी पद्धिती (Flood Irrigation) से सिंचाई करे और सारे खेत को पानी से भर दे तो पौधे की जडें साँस नही ले पाएंगी और गल जाएंगी, जिससे पौधा सूख जाएगा। अतः पौधे की अच्छी बढवार के लिए टपक सिंचाई की पद्धिती से सिंचाई करनी चाहिए। बाढ सिंचाई से पानी और बिजली दोनों का ही अपव्यय होता है और उत्पादन में वृद्धि नही होती है।

मोदी सरकार की कृषिनीति एवं न्यूनतम समर्थन मूल्य

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2014 में मोदी सरकार चुनकर आई और मोदी सरकार ने किसानो के हित में कई योजनाएं लागू की। उसमें सबसे महत्वपुर्ण  योजना है, किसान सन्मान निधि योजना, जिसमें गरीब  किसानो को 6000/- प्रतिवर्ष सन्मान निधि दी गई, यह निधी दो-दो हजार के तीन हफ्तों में दी गई, इससे गरीब किसानों को काफ़ी बड़ी आर्थिक सहायता हो गई। इसी प्रकार भारत सरकार ने फसलों के न्युनतम समर्थन मूल्य भी स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के अनुरूप उत्पादन मूल्य के डेढ़ गुना बढ़ाए। साथ ही यह न्युनतम समर्थन मूल्य फसलों के खरीफ और रबी मौसम की शुरुआत से  पहले घोषित किए गए।

सूर्या फाऊंडेशन द्वारा प्राकृतिक जैविक किसान सम्मेलन

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खेती में बढ़ती रासायनिक खाद के उपयोग से बढ़ती स्वास्थ्य समस्याएं आज की प्रमुख समस्याओं में से एक है। अधिक उत्पादन की दौड़ में अंधाधुंध रसायनिक खादों के प्रयोग से आज मिट्टी दूषित हो गई है। और उन विकृतियों का परिणाम आज हमें खाद्य पदार्थों में दिखता है। खराब होती मृदा पर्यावरण के लिए भी मुश्किलें खड़ी कर रही है। इसके निवारण हेतु आवश्यकता है प्राकृतिक एवं जैविक कृषि की। इस सम्मेलन में आए सभी संबंधित अधिकारियों ने किसानों को प्राकृतिक खेती की तकनीकों को सिखाया।

भारत में किसानों की आय हो रही है दोगुनी

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केंद्र सरकार द्वारा किए गए उक्त वर्णित कई उपायों के चलते फसलों और पशुधन की उत्पादकता में वृद्धि हुई है, संसाधनों के उपयोग में दक्षता आने से उत्पादन लागत में कमी आई है, फसल की सघनता में वृद्धि दर्ज हुई है, उच्च मूल्य वाली खेती की ओर विविधिकरण हुआ है, किसानों को उनकी उपज का लाभकारी मूल्य मिल रहा है एवं अतिरिक्त श्रमबल को कृषि क्षेत्र से हटाकर गैर कृषि क्षेत्र के पेशों में लगाया गया है। इस सबका मिलाजुला परिणाम यह हुआ है कि किसानों की शुद्ध आय में वृद्धि दृष्टिगोचर हो रही है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों रूप से किसानों की आय बढ़ती हुई दिखाई दे रही है।

उपजाऊ भूमि का मरुस्थल में बदलना गंभीर संकट

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विश्व में जमीन का मरुस्थल में परिवर्तन होना गंभीर समस्या एवं चिन्ता का विषय है। भारत में भी यह चिंता लगातार बढ़ रही है। इसकी वजह यह है कि भारत की करीब 30 फीसदी जमीन मरुस्थल में बदल चुकी है। इसमें से 82 प्रतिशत हिस्सा केवल आठ राज्यों राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, जम्मू एवं कश्मीर, कर्नाटक, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश और तेलंगाना में है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) द्वारा जारी “स्टेट ऑफ एनवायरमेंट इन फिगर्स 2019” की रिपोर्ट के मुताबिक 2003-05 से 2011-13 के बीच भारत में मरुस्थलीकरण 18.7 लाख हेक्टेयर बढ़ चुका है। सूखा प्रभावित 78 में से 21 जिले ऐसे हैं, जिनका 50 फीसदी से अधिक क्षेत्र मरुस्थलीकरण में बदल चुका है।

किसानों-कृषि को मजबूती देने में अग्रणी शिवराज सरकार

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खेती-किसानी और उससे जुड़े व्यवसाय मध्यप्रदेश की अर्थव्यवस्था एवं विकास की धुरी हैं। यह बात मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं उनकी सरकार बखूबी समझती है। मुख्यमंत्री श्री चौहान के हाथ में जब से प्रदेश की कमान है, तब से उन्होंने लगातार किसानों की बेहतरी के लिए प्रयास किए हैं। केंद्र में मोदी सरकार और राज्य में शिवराज सरकार, दोनों ने अपनी प्राथमिकता में किसानों को रखा है। मध्यप्रदेश के राजगढ़ में आयोजित ‘किसान-कल्याण महाकुंभ’ के आयोजन से सरकार ने यही संदेश देने का प्रयास किया है कि वह किसानों के हितों की चिंता करने में सदैव की तरह अग्रणी रहेगी।

गाय मानवता के लिए वरदान है

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‘बाचा: द राइजिंग विलेज’ को मिली सराहना के बाद हमारे समूह का उत्साह बढ़ा। अब हम नये वृत्तचित्र के लिए नयी कहानी खोज रहे थे। एक कार्यक्रम के निमित्त भोपाल स्थित शारदा विहार आवासीय विद्यालय जाना हुआ। वहां कई कहानियां थीं, जिन्हें हम सुना सकते थे। भौतिकी की खुली प्रयोगशाला…

जलवायु परिवर्तन का भारतीय फसलों पर असर

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वैज्ञानिकों ने 60 साल से अधिक वक्त के आंकड़ों का उपयोग कर यह पता लगाया है कि दीर्घकाल तक जलवायु परिवर्तन ने कैसे भारत के तीन प्रमुख अनाज – चावल, मक्का और गेहूं की फसलों पर असर डाला है। अमेरिका में इलिनोइस विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने पता लगाया कि किसान…

जागरूकता का माध्यम ‘मन की बात’

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अक्टूबर, 2014 में शुरू हुए ‘मन की बात’ कार्यक्रम के 99 एपिसोड में प्रधानमंत्री ने कई विषयों पर बात की है। आकाशवाणी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस कार्यक्रम को प्रेरणा का एक विश्वसनीय स्रोत तथा कृषि और उद्यमिता विकास के लिए व्यापक जागरूकता के माध्यम के रूप में माना…

अमृत सरोवर योजना : जल संरक्षण से बदलेगी स्थिति

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पृथ्वी हमारा निवास स्थान है। मनुष्य सहित सभी प्राणी इसी धरती पर जन्म लेते हैं और इसी पर जीवन यापन करते हैं। पृथ्वी हमारे जीवन का आधार है। पृथ्वी से हमें वायु, जल और भोजन प्राप्त होता है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि पृथ्वी ने मनुष्य व अन्य सभी…

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