उम्मीदों की कसौटी पर सीएए

पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से प्रताड़ित हो कर भारत में आए गैरमुस्लिम शरणार्थियों के लिए सीएए किसी वरदान से कम नहीं है और जो राजनीतिक नेता इसका विरोध कर रहे हैं, उनके दोहरे चरित्र को सदैव याद रखा जाएगा क्योंकि इनके मुंह से कभी बांग्लादेशी-रोहिंग्या घुसपैठियों के विरुद्ध एक शब्द नहीं निकलता।

भारत के विभाजन के बाद पाकिस्तान व बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के धार्मिक उत्पीड़न की घटनाओं के बीच 8 अक्टूबर 1950 को नेहरू-लियाकत समझौते में दोनों देशों में मौजूद अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए हस्ताक्षर किए गए थे। भारत ने न केवल अल्पसंख्यकों को समान अधिकार और अवसर प्रदान करके अपना वादा निभाया बल्कि 7 दशकों में इनकी संख्या में 5 प्रतिशत से अधिक बढ़ोत्तरी भी हुई। वर्ष 2009 में तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने सार्वजनिक रूप से अल्पसंख्यकों का देश के संसाधनों पर पहला अधिकार की बात कही थी। परंतु पड़ोस में अल्पसंख्यक हिंदू, सिख व अन्य अपने अस्तित्व सम्बंधी संकट का सामना करते रहे। पाकिस्तान ने खुद को इस्लामिक राज्य घोषित कर लिया तथा धार्मिक अल्पसंख्यकों की युवा लड़कियों के धर्मांतरण और शादियों के माध्यम से जबरन इस्लाम में परिवर्तित किया जाने लगा। गैर-मुसलमानों के विरुद्ध ईश निंदा जैसे कानूनों का दुरुपयोग, गैर-मुस्लिमों के विरुद्ध उत्पीड़न के परिणामस्वरूप पाकिस्तान में कुल जनसंख्या का 23 प्रतिशत रहे गैर-मुस्लिम आज 2 प्रतिशत से भी कम हो गए हैं। बांग्लादेश में वर्ष 1950 में कुल जनसंख्या का लगभग एक तिहाई थे, जो घटकर 1971 में लगभग 20 प्रतिशत व वर्तमान में 8 प्रतिशत से भी कम बचे हैं। अफगानिस्तान हिंदू व बौद्ध आस्था का एक बड़ा केंद्र था। वर्ष 1970 के दशक तक 7 लाख हिंदू-सिख थे, जो वर्तमान के तालिबानी शासन तक लगभग शून्य है।

भारत सरकार का सीएए कानून पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देता है, जो अपने-अपने देशों में धार्मिक उत्पीड़न के शिकार थे तथा अपने जीवन व सम्मान को बचाने के लिए सीमा पार करने के लिए मजबूर हुए हैं। अधिनियम में कहा गया है कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों को अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा बल्कि वे भारत की नागरिकता पाने के लिए पात्र होंगे। सीएए भारत में सभी भारतीय धर्मों के उत्पीड़ित लोगों को बसाने की दिशा में पहला कदम है। महात्मा गांधी ने भी कहा था कि पाकिस्तान में मौजूद हिंदू और सिख अगर वहां नहीं रहना चाहते तो नि:संदेह उन्हें भारत आने का अधिकार है। भारत सरकार उन्हें रोजगार, नागरिकता और आरामदायक जीवन जीने के लिए सभी सुविधाएं प्रदान करने के लिए बाध्य होगी वे हमारे हैं, हमेशा हमारे रहेंगे। उनका कल्याण और कठिनाइयां हमेशा हमारे दिमाग में सबसे ऊपर रहेंगी। पाकिस्तान के सिख और हिंदू, जब भी भारत आने का मन बनाएंगे, उनके स्वागत का विचार पं. जवाहरलाल नेहरू का था।

पाकिस्तान के हिंदू और सिख अल्पसंख्यकों के लिए एक सुरक्षित और स्वागत करने वाले राष्ट्र के वादें, जो भारत के विभाजन से वर्तमान तक प्रतिबिंबित होते रहे है। इसी का परिणाम है कि भारत सरकार द्वारा 12 मार्च 2024 को नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 के कार्यान्वयन के लिए नियमों को अधिसूचित करने के साथ ही सदियों की प्रतीक्षा को समाप्त कर भारत के सामूहिक दृष्टि को रेखांकित किया है।

भारत की बहुलतावादी परम्पराओं और विभाजन के बाद के इतिहास की सीमित समझ रखने वाले लोग सीएए का विरोध कर रहे हैैं। इन तीन इस्लामी देशों से केवल उत्पीड़ित हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई व पारसियों को नागरिकता दी गई है, जबकि पाकिस्तान के इस्लामिक कट्टरवाद का दंश सह रहे शिया और अहमदिया मुसलमानों को सीएए में शामिल नहीं करने से कुछ लोगों द्वारा विरोध किया गया है। परंतु यह स्पष्ट होना चाहिए कि सीएए उन लोगों को राहत देने के लिए है, जो भारत के विभाजन की विभीषिका के शिकार हुए थे। वास्तविकता यह है कि शिया और अहमदिया भारत के विभाजन के जिम्मेदार और पाकिस्तान बनाने के आंदोलन में अग्रणी भूमिका में थे। मार्च 1940 में मजहब के आधार पर पाकिस्तान के विचार को अहमदिया मुस्लिम मुहम्मद जफरुल्लाह खान ने मुखरता से लिखा था, जो पाकिस्तान के पहले विदेश मंत्री बने। अक्टूबर 1947 में अहमदिया मुस्लिम समाज की खुद की आर्थिक मदद से तैयार फुरकान बटालियन भारत पर हमले में शामिल थी। द्विराष्ट्र सिद्धांत के जनक व पाकिस्तान आंदोलन के मुख्य सूत्रधार मोहम्मद अली जिन्ना शिया मुस्लिम थे। अपने सपनों का देश पाकिस्तान में आज शिया और अहमदिया दोनों इस्लामिक कट्टरवाद के शिकार हैं। उन्हें एक-दूसरे से बचाने के लिए भारत बाध्य भी नहीं है। उनके वंशजों को सीएए जैसी राहत देकर एक नए विभाजन की पृष्ठभूमि तैयार करना उचित भी नहीं है, जो विभाजन के समय नरसंहार के जिम्मेदार है।

भारत को सैकड़ों वर्षों से जनसांख्यिकीय और सांस्कृतिक आक्रमण के विरुद्ध अपनी रक्षा करने का अधिकार है। नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 भारत का आंतरिक मामला है। यह अधिनियम अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों से सम्बंधित अल्पसंख्यकों को एक सुरक्षित आश्रय प्रदान करता है, जिन्होंने 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश किया है। सीएए नागरिकता देने के बारे में है, किसी वर्तमान भारतीय की नागरिकता खत्म करने के बारे में नहीं है। हालांकि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के मुसलमान या कोई विदेशी नागरिक धारा-5 के अंतर्गत आवेदन कर नागरिकता अधिनियम के तहत भारत की नागरिकता प्राप्त कर सकता है।

इतिहास के पन्नों में विभाजन के दौरान पाकिस्तानी हिंदुओं की दुर्दशा एक मूक कल्पित कहानी बनी हुई है, जिसे आज की युवा पीढ़ी को जानने की जरूरत है। विभाजन के समय जिन हिंदुओं-सिखों ने पाकिस्तान को अपना देश स्वीकार किया था तथा दलित-मुस्लिम गठबंधन व पाकिस्तान को देश के रुप में अपनाकर मंत्री बने दलित नेता योगेंद्र नाथ मंडल मजहबी उत्पीड़न के कारण भारत लौट आए। परंतु जिन लोगों ने इन पर विश्वास कर पाकिस्तान को अपना आश्रय बनाया था, वे वर्षों से भेदभाव, हत्या, बलात्कार और धर्मांतरण का दंश झेल रहे थे। उन्होंने अपना घर, संपत्ति भी खो दिया, सामान्य जीवन जीने के अधिकार से भी वंचित हो गए। उनकी सुरक्षा, सम्मान और अधिकारों का आश्वासन उसी समय दिया गया था, जिसे पाने के लिए प्रतीक्षारत थे। उनकी शेष बची हुई पीढ़ियां धार्मिक आस्था के कारण अपमान और उत्पीड़न सहते हुए बड़े हुए हैं। उनके लिए नागरिकता संशोधन कानून उम्मीद की किरण बन कर आया है। यह नेहरू-लियाकत समझौते की वादा खिलाफी व ऐतिहासिक त्रुटि के सुधार के साथ ही महात्मा गांधी की भावनाओं के अनुरूप न्यायसंगत भी है।

                                                                                                                                                                                        नवीन कुमार मिश्र 

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