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मोदी सरकार : कृषि नीति और बीज उद्योग

मोदी सरकार : कृषि नीति और बीज उद्योग

by हिंदी विवेक
in कृषि, पर्यावरण, सामाजिक
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खेती में जमीन के बाद सबसे महत्वपूर्ण बीज या रोप होता है। इससे किसान का पूरा जीवन बदल जाता है। केवल किसान का ही नहीं, कई बार तो पूरे राष्ट् का जीवन भी बदल जाता है। जैसे कि हरित क्रांति से हमारे पूरे राष्ट्र का जीवन बदल गया। इस क्रांति के अग्रदूत थे डॉ. स्वामीनाथन, जिन्हें इस वर्ष भारत रत्न से सम्मानित किया गया है। इसी प्रकार विश्व में हरित क्रांति की शुरुआत करने वाले वैज्ञानिक थे डॉ. नार्मन बोर्लोग, जिन्हें 1970 में नोबल पीस प्राईज मिला था। जिसके कारण सारे विश्व में अन्न उत्पादन के कर्यक्रम में अभूतपूर्व प्रगति हुई और मनुष्य जाति भूख के दुष्चक्र से बच गई।

यदि किसान को अच्छा बीज मिल जाए तो उसे सबसे ज्यादा खुशी होती है। भारत सरकार ने जो सबसे पहले बीज उत्पादन पर ही ध्यान दिया था। हर देश की अपनी-अपनी फसलों की प्रजातियां होती हैं, जिन्हें लैण्ड रेसेस कहते हैं। इन लैण्ड रेसेस को इकठ्ठा करके वैज्ञानिक अपने संशोधन केंद्र या विद्यापीठ के खेतों पर योजना पूर्वक (Germplasm collection) लगाते हैं और उनके सभी गुणों का अध्ययन करते हैं। जो बहुत अच्छे, चमकदार और अधिक उत्पादन देनेवाले बीज होते है, किसान उनका ही उत्पादन करते हैं और अगली फसल के लिए बचाकर भी रखते हैं। उन्हे किस्में (Varieties) कहते हैं, उसे खरीदने की किसानों को जरुरत नही पड़ती है। उसके अगले वर्ष खेत में बोने के लिए वह अपने उसी बीज का उपयोग करते हैं।

1960 की हरित क्रांति के बाद वैज्ञानिकों ने संकरित बीज बनाए। 17 नवंबर 1960 को जब भारत सरकार ने पंत नगर विश्वविद्यालय की स्थापना की थी, तो उन्हें 16000 एकड़ का सबसे उपजाऊ खेत बीज पैदा करने के लिए दिया था। बीज संशोधन में चार स्तर होते हैं।

  • केंद्रीय बीज (Nucleus seed) :- जो वैज्ञानिक अपने संशोधन से तैयार करते हैं। यह सबसे मूल्यवान होता है और कृषि वैज्ञानिक के जीवन की सबसे बड़ीउपलब्धि होती है।
  • प्रजनक बीज (Breeder seed) :- केंद्रीय बीज का उपयोग करके वैज्ञानिक प्रजनक बीज तैयार करते हैं। जिसकी देखभाल बिल्कुल अपने बच्चों की तरह करते हैं। प्रजनक बीज के खेत में यदिअन्य किसी बीज का पौधा उग आए तो वह खेत बीज उत्पादन कर्यक्रम में से तुरंत ही निकाल दिया जाता है। प्रजनक बीज काफी महंगा बिकता है।
  • आधार बीज (Foundation seed) :- प्रजनक बीज का उपयोग करके दूसरे साल आधार बीज तैयार किया जाता है। यह आधार बीज सरकारी खेत पर भी दिया जाता है और कुछ अच्छे किसान जो अपनी खेती की देखभाल बहुत ध्यान से करते हैं, उनके खेतों पर भी हो सकता है।
  • प्रमाणित बीज (Certified seed) :- आधार बीज का उपयोग करके जो बीज तैयार किया जाता है, उसे प्रमाणित बीज कहते हैं। वह बाजार में कसानों के लिए उपलब्ध रहता है। उसकी थैली पर छोटा सर्टिफिकेट (Tag), होता है, जिस पर वह बीज कब पैदा किया गया था और उसकी अंकुरण क्षमता (Germination Capacity) कितनी है, यह लिखा होता है। जिन बीजों की अंकुरण क्षमता अधिक होती है किसान उसी बीज को खरीदना पसंद करते हैं।

1960 के बाद भारत में जो हरित क्रांति हुई, उसमें अधिक उत्पादन देनेवाले संकरित बीजों (Hybrid seed) का प्रसार हुआ। संकरित बीज बनाने के लिए अच्छे गुणोंवाले पौधों को संकर (Cross) करते थे और उससे जो बीज बनता, उसे संकरित बीज कहते है और वह बीज किसान को हर बार बाजार से खरीदना पड़ता है। हरित क्रांति के बाद हर भाग के संशोधन केंद्रों और विद्यापीठों के संशोधन क्षेत्रों पर नर-नए संकरित बीज बनाए गए, जिससे देश का उत्पादन बढ़ता चला गया। नए-नए अधिक उत्पादन देनेवाले, कम पानी से उगनेवाले और कम रोग और कीड़ों को बलि पड़ने वाले संकरित बीज तैयार करना, यह वैज्ञानिकों और संशोधन केंद्रों की बड़ी उपलब्धि मानी जाने लगी।

देश में बीज उत्पादन का नया उद्योग शुरु हो गया। सरकार ने भी बीजक्षेत्र (Farm)  बनाए और व्यवसायिक संस्थानों को भी अपने बीजक्षेत्र बनाने और देश और विदेशों में उन्हें बेचा। आज बीज उद्योग खेती के सबसे बड़े उद्योगो में से एक है। किसान अच्छी पैदावार देनेवाले बीजों को खरीदने के लिए लाईन लगाकर खड़े रहते थे। आणंद कृषि विश्वविद्यालय के तंबाकू के बीज को खरीदने के लिए किसानों की 1-1 किलोमीटर लंबी लाईन लग जाती थी। इसी प्रकार चावल के और कपास के बीजों को खरीदने के लिए किसान बहुत दूर से आते थे। गुजरात सरकार और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने नीति बनाई, जिसके अंतर्गत सभी विद्यापीठों को बीज प्रसंस्करण संयंत्र (Seed Processing Plant) लगाने के लिए प्रोत्साहित किया गया और धनराशि दी गई। 2006-07 में कृषि विज्ञान विद्यापीठ, धारवाड, कर्नाटक का बीज प्रसंस्करण संयंत्र अत्यधिक उन्नत सुविधाओं से युक्त देश का सबसे अच्छा बीज प्रसंस्करण संयंत्र था। उनका ग्रामीण बीज कार्यक्रम काफी प्रसिद्ध हुआ और देश में काफी सराहा गया। आणंद में भी सभी उन्नत सुविधाओं से युक्त बीज प्रसंस्करण संयंत्र लगाया गया। कृषि विद्यापीठ के सभी संशोधन केंद्रों पर बीज उत्पादन किया गया और आणंद लाकर प्रसंस्करण करके और थैलियों में भरकर (Processing and Packing) गुजरात सरकार को दिया। जिसे वे अपने बिक्री केंद्रों के माध्यम से किसानों को बेच सकते थे। गुजरात सरकार की जितनी मांग थी, कृषि विद्यापीठों ने उससे भी अधिक बीज उत्पादन किया और बीज की थैलियां भर-भर कर ट्रकों को गांव के साप्ताहिक बाजार में पहुंचा दिया। जिससे किसानों को बीज सुविधा से बिना भाग-दौड़ के उपलब्ध हो सके।

बीजों के उत्पादन में नया मोड़ आया और आनुवंशिक रूप से संशोधित (Genetically Modified) बीज, जिसमें मिट्टी में से एक बॅक्टेरिआ (बैसिलस थ्रुन्गिनेसिस- Bacillus thuringiensis) जो रोगनाशक था, उसे कपास के बीज में डाल दिया गया। जिससे कपास की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ गई और उत्पादन भी काफी अधिक बढ़ा। मोदी जी ने सरकारी स्तर पर निर्णय लिया और बीटी कपास (Bt cotton) का बीज किसानों को मिल सके, इसकी व्यवस्था की। यद्यपि इसका विरोध भी काफी हो रहा था, परंतु यदि कपास का उत्पादन बढ़ता है तो किसानों के और देश के हित में है, इसलिए मोदी जी ने उसे नीतिगत समर्थन दिया। देश के काफी वैज्ञानिकों का और किसान संगठनों का जीएम बीज के लिए विरोध था, परंतु फिर भी मोदी जी इस पर अडिग रहें। खेती के तकनीक में एक और बड़ा परिवर्तन आया और वैज्ञानिकों ने बीज के बजाय पौधे के पत्ते या तनों के छोटे से टुकड़े के ऊतक (Tissue) का उपयोग करके पूरा पेड़ बना दिया, जिसमें मातृ पेड़ के सभी गुण मौजूद थे। यह तकनीक ऊतक संवर्धन (Tissue culture) कहलाती है। इसके बाद ऊतक संवर्धन के माध्यम से फलों और फूलों के नए-नए पौधे तैयार किए गए और किसानों को उगाने के लिए दिए गए। यह ऊतक संवर्धन के पेड़ धनवान किसानों में काफी पसंद किए जाते हैं। वातावरण नियंत्रित खेती (Controlled Condition Cultivation), Polly House, Green House, Net House में ऊतक संवर्धन के पेड़ का उपयोग करके नई तकनीक की खेती काफी बढ़ी। वातावरण नियंत्रित खेती में पैदा किए गए फूलों और सब्जियों का निर्यात किया गया। जिससे भारत का कृषि निर्यात बहुत बढ़ गया। बीजों का उत्पादन (2016-17) में इस प्रकार था ; भुसार माल 229.8, दालें 29.47, तेलिबिया 49.97, सूत की फसलें 2.17, आलू 0.38, अन्य 0.33, कुल बीज 311.43 लाख क्विन्टल। यह बाजार 2022-23 में कुल 6.3 अब्ज डालर का हो गया है। और अनुमान है कि यह 2028 तक बढ़कर 12.27 अब्ज डालर का हो जाएगा। यानी यह 12.45% के (Compound Annual Growth Rate – CAGR) रेट से बढ़ेगा। अर्थात बीज में केवल नया पौधा पैदा करने की क्षमता ही नहीं, तो देश की अर्थव्यवस्था बदलने की क्षमता भी  होती है।

– लेखक : प्रा. डॉ. म. चं. वार्ष्णेय

– लेखन सहायक : तन्मय म. वार्ष्णेय

 

 

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