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महावीर ने समाज में संस्कारों का किया बीजारोपण – नम्रमुनि महाराज

महावीर ने समाज में संस्कारों का किया बीजारोपण – नम्रमुनि महाराज

by मुकेश गुप्ता
in जीवन, ट्रेंडींग, मीडिया, विशेष, शिक्षा, संघ, संस्कृति, सामाजिक, साहित्य
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महावीर ने समाज में संस्कारों का किया बीजारोपण

– नम्रमुनि महाराज साहेब, राष्ट्रसंत परम गुरुदेव

हिंदी विवेक प्रकाशित ‘तीर्थंकर भगवान महावीर’ विशेषांक का विमोचन समारोह घाटकोपर में संपन्न

तीर्थंकर जैसे महापुरुषों और माता-पिता के जो उपकार भूल जाता है उसका पतन होना तय है और जो स्मरण रखता है वह उन्नति के पथ पर आगे बढ़ता है. सम्पत्ति नहीं, अपितु संस्कार श्रेष्ठ है. जब पूरी दुनिया भौतिकता की ओर भाग रही थी तब महावीर ने अपना राजपथ छोड़कर त्याग का महत्व बताया और अपने शुद्ध आचरण एवं आदर्श से समाज में पुन: संस्कारों का बीजारोपण किया. यह उद्बोधन हिंदी विवेक प्रकाशित ‘तीर्थंकर भगवान महावीर’ विशेषांक के विमोचन समारोह के दौरान राष्ट्रसंत परम गुरुदेव नम्रमुनि महाराज साहेब ने दिया.

घाटकोपर में आयोजित इस कार्यक्रम में आशीर्वचन के रूप में अपनी भावना व्यक्त करते हुए हुए उन्होंने आगे कहा कि जीवन में दो शब्द बहुत महत्व रखते है एक है ‘विनय’ और दूसरा है ‘विवेक’. भगवान महावीर के विचारों को मानना मतलब ‘विनय’ है और भगवान को ह्रदय में धारण कर समय, काल, परिस्थिति के अनुसार कब क्या करना चाहिए इसे ‘विवेक’ कहते है. हिंदी विवेक ने २५५० वीं निर्वाण वर्ष के उपलक्ष्य में अपने दायित्व का भान रखते हुए सही अर्थों में ‘तीर्थंकर भगवान महावीर विशेषांक’ का प्रकाशन कर अपने विवेकपूर्ण कर्तव्य का निर्वहन किया है. उसी तरह रा. स्व. संघ भारतीय संस्कृति को संरक्षित व संवर्धित करने के लिए परिश्रम की पराकाष्ठा कर रहे है. हिंदी विवेक और संघ के पुरुषार्थ की मैं सराहना करता हूं. महापुरुष माता के गर्भ से जन्म लेते है परंतु जन्मोंजन्म तक अनेकों के ह्रदय में उनके विचार, आदर्श, सिद्धांत जन्म लेते रहते है, ऐसे ही तीर्थंकरों का जन्मकल्याणक श्रेष्ठ होता है. महावीर ने उस समय समाज में व्यापत कुरीतियों जैसे हिंसा, बलिप्रथा, गुलाम प्रथा आदि के विरुद्ध शंखनाद किया और अपने अथक प्रयास से उसे समाप्त करने में अपनी अहम भूमिका निभाई.

नम्रमुनि महाराज ने मंगलाचरण गाकर महावीर वंदना से कार्यक्रम का शुभारम्भ किया. इसके बाद राष्ट्रसंत परम गुरुदेव नम्रमुनि महाराज के करकमलों द्वारा विशेषांक का विमोचन किया गया. साथ में मंच पर हिंदुस्थान प्रकाशन संस्था के अध्यक्ष पद्मश्री रमेश पतंगे, हिदी विवेक के कार्यकारी अधिकारी अमोल पेडणेकर, हिंदी विवेक की कार्यकारी सम्पादक पल्लवी अनवेकर, विधायक पराग शाह एवं समाजसेवी परेश शाह उपस्थित थे. इन सभी मान्यवरों का परिचय देकर उनका स्वागत सम्मान किया गया. इसके पूर्व नम्रमुनि महाराज साहेब को सम्मान चिन्ह और पुस्तक साहित्य देकर सम्मानित किया गया.

सीईओ अमोल पेडणेकर ने अपनी प्रस्तावना में कहा कि तीर्थंकर भगवान महावीर ने मानव से लेकर प्राणीमात्र तक, पर्यावरण से लेकर प्रकृति तक और अणु से लेकर परमाणु तक के संदर्भ में अपने विचार प्रतिपादित किए है तथा इनके कल्याण के लिए कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांत दिए है. जिनका पालन कर हम सृष्टि को सुन्दर बना सकते है. स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि अमृतस्य पुत्र: अर्थात हम अमृत के पुत्र है, अमर है अजर है. हममें ईश्वर का अंश और अनंत शक्ति का भंडार समाहित है. भारत में समय-समय पर ऐसे दिव्यात्मा, महापुरुष, राष्ट्र पुरुष, संत-महात्मा आदि जन्म लेते रहें है और अपने प्रबोधन से राष्ट्र की संस्कृति को जीवंत बनाए रखा है. भारत की विवधताओं से भरी चिंतन धारा राष्ट्र, समाज और जनता के लिए कल्याणकारी सिद्ध हुई है. आज भी भारत को ऐसे ही अनेकानेक दृश्य-अदृश्य दैवीय शक्तियों का आशीर्वाद प्राप्त है इसलिए अनेक संकटों से पार पाते हुए हम अंतत: विजयी होते रहे हैं.

पद्मश्री रमेश पतंगे ने अपने वक्तव्य में कहा कि तीर्थंकर महावीर जी की २२५० वीं निर्वाण वर्ष के उपलक्ष्य में रा. स्व. संघ के सभी शाखाओं सहित, संघ से जुड़े सभी संगठनों-संस्थाओं द्वारा वर्ष भर महावीर जी के विचारों का स्मरण किया जाएगा और उनके योगदान, महत्व एवं प्रासंगिकता को रेखांकित किया जाएगा. संघ के इसी योजना के अनुरूप हिंदी विवेक मासिक पत्रिका ने ‘तीर्थंकर भगवान महावीर’ विशेषांक प्रकाशित किया है. भौतिकता क्षणिक होती है, उसकी एक काल मर्यादा है लेकिन विचार का सामर्थ्य कालजयी होता है. इसलिए हजारों वर्षों बाद भी भगवान महावीर के विचारों, सिद्धांतो, आदर्शों पर हम चल रहे है. विज्ञान की बात करे तो क्वांटम फिजिक्स का सिद्धांत क्या है? सूक्ष्म से सूक्ष्तम का इसमें गहराई से अध्ययन किया जाता है, इस रहस्य का उद्घाटन १९२० में हुआ लेकिन महावीर जी ने तो ढाई हजार पूर्व ही यह सिद्धांत प्रतिपादित कर दिया था. भारत में बहुत सारा वैचारिक धन है. ज्ञान का भंडार है लेकिन हम उनसे अनभिज्ञ है. हम आज भी जाती, पंथ, भाषा, प्रांत जैसे विवादों में फंसे हुए है. इनसे ऊपर उठकर महावीर जी के बताए मार्ग पर चलकर ही हम स्वयं का, समाज और राष्ट्र का उत्थान कर सकते है.

इस कार्यक्रम के दौरान हिंदी विवेक प्रकाशित ‘तीर्थंकर भगवान महावीर’ विशेषांक को सफल बनाने में अपना महत्वपूर्ण सहयोग देनेवाले घाटकोपर के विधायक पराग शाह, समाजसेवी परेश शाह और हिंदी विवेक के प्रतिनिधि विलास मेस्त्री को नम्रमुनि महाराज के करकमलों द्वारा शाल एवं पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया. पल्लवी अनवेकर ने कार्यक्रम का सफल संचालन किया और नम्रमुनि महाराज ने नवकार मंत्रोच्चार से कार्यक्रम का समापन किया.

 

 

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