यह हमारे लिए बहुत ही पीड़ादायक है। परिवार पर दु:खों का पहाड़ टूटा है ।ऐसा नहीं होना चाहिए था। परंतु नियति जानती है। जो सांसों का हिसाब रखता है वह जानता है। हम ही अनभिज्ञ होते हैं। उम्मीद पर जीते हैं। कोई चमत्कार होगा ऐसा लगता है। स्वयं को समझाते हैं। मृत्यु हमारे लिए अचानक है , पर मृत्यु सब कुछ जानती है।
इसकी पुष्टि प्रखर प्रयोगशील प्रकाशक माधव जोशी के निधन से एक बार फिर हो गई। अप्रैल में 66 वर्ष की उम्र में पदार्पण करने वाले माधव जोशी महज 8 दिन में ही बेहोश हो गए। मृत्यु से लड़ने में असफल रहे और हमेशा के लिए चले गए। पिछले कई वर्षों में मधुमेह से ग्रस्त होने के कारण, त्रस्त हुए माधवराव कभी-कभी मृत्यु की बातें किया करते थे ,परंतु उन्होंने अपना काम चालू रखा था।
माधव जोशी का बचपन ठाणे के दर्शन शास्त्र विश्वविद्यालय में बीता। उनके पिता पांडुरंग शास्त्री आठवले के सहकर्मी थे। स्वाभाविक है कि, वहां के वातावरण का प्रभाव माधव जोशी पर पड़ा। मो.ह. विद्यालय से शालेय शिक्षा पूर्ण कर माधव जोशी ने रुईया महाविद्यालय में प्रवेश लिया। वहां माधव जोशी और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का परिचय हुआ ।अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संपर्क में आने के पश्चात माधव जोशी ने मानस शास्त्र विषय में एम .ए . की उपाधि प्राप्त की।
उन्होंने महाविद्यालयिन पढ़ाई के दौरान विद्यार्थी विस्तारक के रूप में मुंबई के मध्य विभाग में कार्य किया। इसके पश्चात मुंबई में भी कार्य किया। गुजरात के राजकोट में पूर्णकालिक कार्य किया। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का 5 वर्षीय पूर्णकालिक कार्य करते समय उन्होंने सन 1983 में गुवाहाटी में घुसपैठ विरोधी आंदोलन में भाग लिया। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का पूर्णकालिक काम बंद करने के बाद ,वे दो वर्ष नौकरी के सिलसिले में मेघालय और असम में रहे।
उन्होंने वहां से लौट के आने बाद जीवनयापन के लिए मीडिया क्षेत्र को चुना। फ्री प्रेस , मुंबई तरुण भारत, और ग्रंथाली में कार्य करने के पश्चात स्वयं का प्रकाशन व्यवसाय शुरू किया। उन्होंने परम मित्र प्रशासन की एक आविष्कारशील प्रयोग योजना तैयार की थी ।उन्होंने प्रकाशन व्यवसाय स्वयं के बल पर शुरू किया था। प्रकाशन व्यवसाय इस वर्ष एक शताब्दी पूरी कर लेगा ,परंतु यह देखने के लिए आज माधव जोशी नहीं है । शुरुआत में मासिक प्रकाशन शुरू किया और बाद में पुस्तक प्रकाशन शुरू किया। अभी तक कुल 228 पुस्तक प्रसिद्ध हुई है । इसमें से बहुतेरी पुस्तकें माधव जोशी के टर्मस् और कंडीशन पर प्रकाशित हुई है। एक चरण के बाद माधव जोशी ने अपनी पसंद के हिसाब से लोगों को जोड़ा उनकी मित्रता सूची में शामिल होने के लिए लोगों को स्पष्ट वाक्यपटुता के परे की वाकपटुता की आदत होना आवश्यक था। उनके मित्र विविध विचारों के थे। भिन्न-भिन्न विषयों को पढ़ना, उनकी जानकारी और इसका एक अलग अर्थ देना माधव जोशी की विशेषता थी । यह अंतर लेखक और पुस्तक में देखा जा सकता है। वरिष्ठ इतिहासकार गजानन मेंहन्दले ने छत्रपति श्री शिवाजी महाराज का चरित्र अंग्रेजी में दो खंडों में में विस्तृत रूप से लिखा था। इस शिव धनुष को माधव जोशी ने उठाया था। उन खंडों के प्रकाशन से, प्रकाशन व्यवसाय में परममित्र ने अपना एक अलग स्थान निर्माण किया था। यह परियोजना वैचारिक और व्यावसायिक रूप से सफल रही । यह सब करते समय कभी-कभी स्वास्थ्य संबंधी शिकायतें माधव जोशी को परेशान कर देती थी । परंतु फिर भी कुछ अलग करने की ऊर्जा उनमें अभी भी थी।
अभी-अभी दो सुखद और उत्साहवर्धक घटनाएं घटी थी। प्रो. डॉ अशोकराव मोडक की लिखी हुई और परममित्र द्वारा प्रसिद्ध की हुई “अयोध्या आंदोलन की बैलेंस शीट” नामक पुस्तक का ठाणे में एक बड़े कार्यक्रम में विमोचन किया गया । यह कार्यक्रम आचार्य गोविंददेवगिरी महाराज और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक भैयाजी जोशी की उपस्थिति में हुआ था। इस पुस्तक को बहुत अच्छी प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं । इस कार्यक्रम के पश्चात ठाणे के रोटरी क्लब ने प्रकाशन व्यवसाय में किए विशिष्ट कार्य के लिए, उन्हें विशेष पुरस्कार देकर सम्मानित किया था। इन दोनों कारणों से उनके परिवार में काफी उत्साह था। परंतु दोनों समय उनका स्वास्थ्य मिलने वालों के लिए चिंता का विषय था।
दिनांक 4 जून को चुनाव का परिणाम सुनने देखने के लिए अरुण करमरकर ,शरद गांगल, रविंद्र कर्वे यह सब राजू (श्रीकृष्ण ) हँबर्दे के घर एकत्रित हुए थे ।माधव जोशी भी वहां उपस्थित थे परंतु तबीयत असहज महसूस होने के कारण वह जल्दी ही घर चले गए। मंगलवार को पूरे दिन वह सोए थे । बुधवार को उन्हें तकलीफ शुरू हो गई । शाम को उन्हें अस्पताल में दाखिल किया गया ।बुधवार दिनांक 5 से बुधवार दिनांक 12 तक उनका जीवन मरण का संघर्ष चल रहा था। रात्रि में वह समाप्त हो गया । प्रकाशन व्यवसाय में अलग राह पर चलने वाले माधव जोशी हमेशा के लिए रुक गए।
वर्ष में एक बार सभी माधव जोशी के घर “ऊँधियो पार्टी” के अवसर पर एकत्रित होते थे। इस वर्ष वह हुई ही नहीं। ठाणे के विद्यार्थी परिषद के पुराने और सीनियर कार्यकर्ता
सपरिवार स्वाति जोशी के हाथों के स्वादिष्ट ऊँधियों का स्वाद लेने के लिए एकत्रित होते थे ।पिछले कुछ वर्षों से उसमें मेरी भी सहभागिता होने लगी।
माधव जोशी से कार्यकर्ता के रूप में परिचय अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ठाणे के अध्ययन वर्ग के वक्ता के रूप में हुआ था। जिसका रूपांतरण धीरे-धीरे मित्रता में हो गया । महीने में दो बार माधव जोशी के घर दो कप चाय और सभी विषयों पर चर्चा हमारा नियोजित कार्यक्रम होता था। परंतु हमे सुनने वाले, समझने वाले, हमें समझाने वाले ,कभी अपनेपन से नाराज होने वाले वरिष्ठ मित्र माधव जोशी अब चर्चा के लिए नहीं होंगे।
वे संगठन से जुड़े होने के बावजूद कभी भी संगठन के प्रलोभन में नहीं फंसे ।जो विचार उन्होंने स्वीकार किया, उसका महिमामंडन किए बिना उसके प्रति ईमानदार रहे । सबके बीच रहकर भी उनका एक अलग दृष्टिकोण था। माधव जोशी के अकस्मात चले जाने से परम मित्र प्रकाशन सदमे में है ।उनकी सुविद्य पत्नी स्वाति जोशी,
उच्चशिक्षित पुत्री मुदिता, और पुत्र भास्वान ,माधव जोशी की याद में “परममित्र” को और भी अधिक सक्षम बनाएंगे। प्रवाह के विपरीत तैरने का प्रयत्न करने वाले माधव जोशी को भावभीनी श्रद्धांजलि….
मकरंद मुळे