2024 लोकसभा चुनाव का महासमर आसान नहीं था, क्योंकि कांग्रेस एवं पूरे इंडी गठबंधन समेत वामी-जिहादी इकोसिस्टम आदि भारत विरोधी सभी वैश्विक शक्तियां नरेंद्र मोदी को रोकने के लिए अपना पूरा जोर लगा रही थीं। इस द़ृष्टि से फिर से तीसरी बार मोदी सरकार का सत्ता में आना ऐतिहासिक ही कहा जाएगा।
इस समय केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में जिस एक बात की सर्वाधिक चर्चा है, वह यह कि आखिरकार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी व राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को अपेक्षित बहुमत क्यों नहीं मिला? इसके बावजूद वे सरकार बनाने लायक पर्याप्त सीटें तो ले आए, लेकिन भाजपा अपने बूते सरकार बनाने से 32 सीट दूर क्यों रही? जबकि 2014 व 2019 में भाजपा को क्रमश: 282 व 303 सीटें मिली थीं, जिससे वह स्वतंत्र रूप से सरकार बना सकती थी।
सोशल मीडिया के इस दौर में यह भी कहा जा रहा है कि बहुसंख्यक समाज ने ही मोदी को व्यापक समर्थन नहीं दिया। ऐसे लोग वाकई सहानुभूति के पात्र हैं, जो केवल इससे खुश है कि भाजपा स्वतंत्र रूप से बहुमत लायक (272) सीटें नहीं ला पाईं और यह भी कि मोदी, भाजपा को 400 पार नहीं ले जा पाए। जबकि इंडी गठबंधन के दो दर्जन से अधिक दल मिलकर भाजपा की 240 सीट जितनी सीट नहीं ला पाए। इसमें भी उल्लेखनीय तथ्य तो यह है कि जो कांग्रेस बेहद खुश नजर आ रही है, वह 1996 के बाद से चार बार 200 व उसके अंदर रही और चार बार 100 के अंदर सीटें लाई, वह इस बार 99 सीट पाकर व भाजपा को 240 पर रोककर ऐसे खुश है, जैसे दुनिया का ताज उसे मिल गया हो।
आइए अब देखते हैं कि अनेक ऐतिहासिक उपलब्धियों और विकास के नित-नए कीर्तिमान बनाने के बाद भी भाजपा को अपेक्षित जन समर्थन क्यों नहीं मिला? भाजपा को इस पर चिंतन तो करना होगा कि वह कहां चूकी, क्या कमी रह गई। मेरा ऐसा मानना है कि भाजपा व राजग को कम सीटें मिलने के कुछ तो स्पष्ट कारण रहे हैं, कुछ संदेहजनक है, कुछ अज्ञात है और कुछ ऐसे हैं, जिनकी सच्चाई पता करना बेहद आवश्यक है। भाजपा के कम हुए जन समर्थन की प्रमुख बातों पर गौर करते हैं तो कुछ तथ्य सामने आते हैं।
सबसे पहला कारण है, जातिवाद में बंटा बहुसंख्यक वर्ग। यानी जिसे हम हिंदू कहते हैं, वह ब्राह्मण, जैन, राजपूत, वैश्य, सिख, जाट, यादव, पटेल, कुरमी, अनुसूचित जाति, जनजाति में विभाजित हैैं। इसे अधिक स्पष्ट करे तो आरक्षित व अनारक्षित वर्ग। इनके बीच अन्यान्य कारणों से इतने मतभेद, दूरियां, विसंगतियां, बैर-भाव है कि स्वयं भारत के मंगल, अंतरिक्ष में पहुंच जाने के बावजूद कम होने का नाम ही नहीं ले रहे। चुनाव जैसे राष्ट्रीय महत्व के मसले पर भी हम एकमत होने को तैयार नहीं हैं।
400 पार का नारा इस अर्थ में भारी पड़ गया कि विपक्ष ने समूचा चुनाव अभियान इस मुद्दे पर ही केंद्रित कर दिया और वे सारे हथकंडे अपनाए, जो इस आंकड़े तक पहुंचने से रोक सके। वे ऐसा मानते हैं कि उन्होंने भाजपा को इस आंकड़े से दूर रखकर बड़ी विजय प्राप्त कर ली है। भले ही भाजपा, राजग को सत्ता से दूर नहीं कर पाए।
भाजपा कार्यकर्ताओं के मन में सत्तावादी, सुविधाभोगी कार्यकर्ता की मानसिकता बैठ गई और उन्होंने भाजपा की परम्परा के अनुसार मैदानी कामों से मुंह मोड़ लिया। मोदी को दुनिया भर से मिले प्यार, सम्मान को उन्होंने विजय की गारंटी मान लिया। अनेक कार्यकर्ताओं व समर्थकों ने यह मान लिया था कि इस बार तो 400 पार हो ही रहे हैं, तब जबरन अतिरिक्त मेहनत क्यों की जाए?
सोशल मीडिया पर भाजपा के शुभचिंतकों ने ऐसा माहौल बना दिया कि भाजपा 400 नहीं, संसद के भी पार निकल जाएगी। इस चक्कर में वे ऐसी बातें भी पोस्ट करते रहे, जो भाजपा के एजेंडा में था ही नहीं, इसमें वे यह नहीं समझ पाए कि इससे इंडी गठबंधन के समर्थकों, कांग्रेस के सोशल मीडिया सेल को उन बातों की काट करने का मसाला मिलता रहा और वे काफी आक्रामक ढंग से प्रचार में जुटे रहे और दलित-पिछड़ों के मन में फिजूल की बातों को ठूंसकर बिठाने में सफल हो गए। इसी तरह विपक्ष के इस प्रचार का प्रभाव कम करने में भाजपा विफल रही कि मोदी सरकार आई तो दलित-पिछड़ों का आरक्षण खत्म कर देगी और संविधान को बदल कर रख देगी।
भाजपा नेतृत्व ने अनेक राज्यों के स्थानीय प्रभावी क्षेत्रों की अनदेखी कर उन्हें या उनके समर्थकों की बजाय नए को टिकट दिए। इसमें जातिगत संतुलन का भी ध्यान नहीं रखा गया, जिसका नुकसान उसे उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान में खास तौर से उठाना पड़ा। राजपूतों की नाराजगी बड़ा मुद्दा रहा।
विपक्ष केवल मुस्लिम वोट बैंक के ठेकेदारों के हित पूरे कर पूरे समाज के वोट एकतरफा प्राप्त करने का खेल करता रहा। मुस्लिम मतदाता एक मत हैं और जो उनके हित साध सकता है, उसे एकतरफा समर्थन देते हैं, जबकि हिंदू मतदाता स्वतंत्र भारत में आज तक यह तय नहीं कर पाया कि उसका हितचिंतक कौन है? इस दुविधा में उसका वोट बंट जाता है और मुस्लिम का स्थिर रहता है। इस बात को भाजपा लेशमात्र भी असरकारक ढंग से प्रस्तुत नहीं कर पाई।
जब 22 जनवरी को राम मंदिर प्राणप्रतिष्ठा हुई, उसके बाद देश भर से विशेष रेलगाड़ियों से लोगों को रामलला के दर्शन के लिए ले जाया गया। इसमें केवल भाजपा कार्यकर्ता ही गए, जबकि देश के उस वंचित वर्ग को ले जाना था, जो चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाता है। सीधी बात है कि दलित, आदिवासी, पिछड़े वर्ग को देव दर्शन कराते तो शायद कुछ लाभ तो मिलता। मैं इसे भाजपा की बड़ी रणनीतिक चूक मानता हूं। इससे भले ही सीटों की उल्लेखनीय बढ़ोतरी न होती, लेकिन गलतफहमी भी पैदा नहीं होती या वे दुष्प्रचार से बच पाते।
अब बात करते हैं भारत के लोकसभा चुनाव में विदेशी हस्तक्षेप की। धीरे-धीरे सोशल मीडिया के माध्यम से यह सामने आ रहा है कि कुछ विदेशी ताकतें भारतीयों के कंधे पर बंदूक रखकर मोदी पर निशाना साध रही थी, जो फिलहाल तो चूक गया, लेकिन संकट अभी टला नहीं है। इस बारे में कुछ जानकारों की राय है कि इन भारत विरोधी ताकतों का ध्येय केवल 2024 के लोकसभा चुनावों में मोदी को पराजित करना भर नहीं था, बल्कि वे चाहते हैं कि देश में ऐसे हालात बन जाएं कि सरकार और देश अराजक स्थिति में पहुंच जाए, ताकि वे अपने हित साध सके।
सर्वश्री जे. साई दीपक (सुप्रीम कोर्ट वकील व लेखक), अश्विनी उपाध्याय (सुप्रीम कोर्ट वकील, जनहित याचिका विशेषज्ञ) ने अलग-अलग पोस्ट में विस्तार से बताया है कि किस तरह से कांग्रेस व विपक्ष ने कैसे मोदी व भाजपा नेताओं के फर्जी वीडियो वायरल किए, ताकि उनसे जनता में भ्रम फैले। कैसे विदेशी ताकतों ने भारतीय राजनेताओं को सरकार को बदनाम करने के लिए इस्तेमाल किया और कैसे उनका उद्देश्य देश को अस्थिर करने का है, ताकि वे भविष्य में अपना एजेंडा लागू कर सके। इन विद्वानों की बातें भारत के विरुद्व गहरे राज का स्पष्ट संकेत देते हैं।
अश्विनी उपाध्याय ने बताया कि आरक्षण खत्म करने के नरेंद्र मोदी व अमित शाह के भाषण के संविधान बदलने, उप्र में एससी, एसटी का पदोन्नति में आरक्षण समाप्त करने, ठाकुरों, ब्राह्मणों को गालियां देने के अमित शाह व योगी के पूरी तरह से फर्जी वीडियो वायरल किए। ऐसे सैकड़ों फर्जी वीडियो को योजनाबद्ध तरीके से देश भर में फैलाया गया ताकि आमजन के मन में यह विचार पनपे कि मोदी-योगी-शाह दलित, पिछड़े, अजा, जजा आदि के विरुद्व हैं और वे सत्ता में आ गए तो उनकी सारी सुविधाएं, विशेषाधिकार समाप्त कर देंगे। किसी हद तक इनका असर हुआ भी है, जो भाजपा की सीटों के कम होने से पता चलता है। इसके लिए अश्विनी उपाध्याय ने देश के घटिया कानून, न्याय व्यवस्था और फर्जीवाड़ा को दोषी माना है। उनका कहना है कि यदि देश में झूठी, तर्कहीन बातें कहने और फर्जी वीडियो तैयार कर वायरल करने के विरुद्व सख्त कानून होता तो किसी की हिम्मत नहीं होती।
जे. साई दीपक ने एक साक्षात्कार में पत्रकार सुशांत सिन्हा से स्पष्ट तौर पर कहा कि कुछ विदेशी ताकतों ने 2024 के आम चुनाव को तो पूरी तरह से प्रभावित करने का प्रयास किया ही, आगे भी वे बाज नहीं आएंगे। इसके लिए उन्होंने भाजपा विरोधी राजनीतिक दल का उपयोग किया। वे देश में जातिवाद के जहर को फैलाना चाहते हैं। इन विदेशी ताकतों का मानना है कि हिंदुओं को यदि तोड़ दिया गया तो भारत के टुकड़े करने में भी ज्यादा समय नहीं लगेगा। आप समझ सकते हैं कि भारत के टुकड़े करने में किसे दिलचस्पी है और कौन खुलेआम इस तरह के नारे लगाते हैं और कौन उन्हें खुल्लम-खुल्ला समर्थन देते हैं।
अब बड़ा प्रश्न यह है कि क्या मोदी व राजग सरकार के सामने इस कार्यकाल में विकट चुनौतियां आने वाली हैं? जिसे कहते हैं कि नजर हटी और दुर्घटना घटी। इसलिए 2014 से 2024 तक के कार्यकाल से कहीं अधिक सावधानी, जिम्मेदारी, संयम और संजीदगी के साथ मोदी सरकार को कदम बढ़ाने होंगे। आमजन को भी सोचना चाहिए कि किन हाथों में देश सुरक्षित व विकसित रहेगा। हम प्रतीक्षा करेंगे सरकार के कुछ ऐसे साहसिक, कठोर व जनहितकारी फैसलों की जो देश को नई ऊंचाइयों की ओर ले जाएगा, जिससे भारत फिर से विश्वगुरु कहलाने लगेगा।