विविध खेल की भांति चुनाव भी एक प्रतियोगिता है। जिसमें हार-जीत उसी प्रक्रिया का हिस्सा है, लेकिन पराजय स्वीकार नहीं करना विकृति है और यही लक्षण हार के बाद बौखलाए इंडी गठबंधन के नेताओं के मनगढ़ंत आरोपों-बयानों में झलक रहे हैं। देश को भी इनके झूठे विमर्श से सचेत रहना चाहिए।
18वीं लोकसभा चुनावों का परिणाम आने के बाद नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार प्रधान मंत्री पद की शपथ ली है। देश के इतिहास में 62 वर्षों के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि कोई गठबंधन सरकार तीसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ वापस आने में सफल हो गई है। यद्यपि विभिन्न कारकों के कारण भारतीय जनता पार्टी को अकेले पूर्ण बहुमत नहीं प्राप्त हो सका, लेकिन प्रधान मंत्री मोदी के नेतृत्व में चुनाव पूर्व राजग गठबंधन को पूर्ण बहुमत प्राप्त हो गया, जो ऐतिहासिक है। सम्पूर्ण विपक्ष एकजुट होकर भी नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकने में सफल नहीं हो सका। भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि गैर कांग्रेसी गठबंधन लगातार तीसरी बार सत्ता में आया है और कांग्रेस नीत विपक्ष को यह बात पच भी नहीं रही है।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजग गठबंधन को यह सफलता तब प्राप्त हुई है जब कई विदेशी शक्तियां प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए दिन-रात एक कर रही थीं, जिसमे जार्ज सोरोस, सैम पित्रोदा जैसे लोग थे और भारत का विपक्ष इनके हाथ का खिलौना बना हुआ था। किसान आंदोलन में विदेशी ताकतों का हस्तक्षेप सभी ने देखा था। विदेशों से आने वाली फर्जी खबरों के आधार पर विपक्ष ने बार-बार संसद ठप करके सरकार विरोधी वातावरण बनाने का असफल प्रयास किया। अमेरिका आदि देशों से भारत के विरुद्व धार्मिक भेदभाव वाली फर्जी रिपोर्ट जारी की गई और प्रधान मंत्री मोदी व सरकार की छवि को आघात पहुंचाने का हर सम्भव प्रयास किया गया। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार सत्ता में तब भी वापस आने में सफल रही जब मुसलमानों की ओर से वोट जिहाद का नारा दिया गया। स्वाभाविक रूप से यह प्रधान मंत्री मोदी की विजय ऐतिहासिक विजय है। यही कारण है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडी गठबंधन के सभी नेता निराशा और हताशा के गर्त में डूबकर बयानबाजी कर रहे हैं और हर दिन-हर क्षण अब सरकार गिर ही जाएगी, तब गिर जाएगी का पहाड़ा पढ़ रहे हैं। सरकार गठन के समय विपक्ष ने भाजपा के सहयोगी दलों की नाराजगी की अफवाह फैलायी। विपक्ष लगातार झूठा नैरेटिव फैलाने में लगा हुआ है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे का कहना है कि गलती से राजग सरकार बन गई है, जल्द ही बिखर भी जाएगी। वहीं राहुल गांधी बयान दे रहे हैं कि मोदी खेमे में असंतोष है, जरा सी चूक किसी भी समय सरकार गिरा देगी।
आज विपक्ष को कभी केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी में मोरारजी भाई के समय वाली सम्भावना दिखाई दे रही है और कभी भाजपा के नए अध्यक्ष के चयन में आशा की किरण दिखाई दे रही है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के बयान पर भी विपक्ष भाजपा व संघ के बीच दूरियों का झूठा नैरेटिव गढ़ रहा है।
ईवीएम पर निशाना-
विपक्ष विदेश से आयातित मुद्दों को आधार बनाकर राजनीति कर रहा है और वह लगातार जारी है। सरकार गठन का कार्य पूरा हो जाने के दो सप्ताह बाद टेस्ला कंपनी के मालिक एलन मस्क ने एक सनसनीखेज बयान दे डाला कि ईवीएम को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या ह्यूमन इंटरवेंशन के माध्यम से हैक किया जा सकता है। मस्क का यह बयान अमेरिका और प्यूटोरिको देश में हुए चुनाव में धांधली पर था। एलन मस्क के बयान पर अमेरिका में तो कोई बवाल नहीं मचा, किंतु भारत में ईवीएम को लेकर हल्ला होने लगा। राहुल गांधी के नेतृत्व में सम्पूर्ण विपक्ष ईवीएम और चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर फिर संदेह करने लग गया। उधर एक छोटे टेबलायड मिड डे ने ओटीपी से ईवीएम हैक करने का समाचार छाप दिया जो एकदम बेबुनियाद था।
भारत में ईवीएम का मामला ऐसा हो गया है कि इसके बारे में बार-बार झूठ बोलो, तरह-तरह से प्रश्न उठाओ और लोगों के मन में संदेह पैदा करो। एलन मस्क ने ईवीएम पर प्रश्न उठाए, किसी दूसरे देश के बारे में टिप्पणी किया, लेकिन हमारे लोग मैदान में आ गए। भारत में विपक्ष ईवीएम पर तब प्रश्न उठा रहा है जब देश में अब तक 157 चुनाव ईवीएम से हो चुके हैं। ईवीएम विरोध करने वाली ममता बनर्जी बंगाल में ईवीएम से ही अपनी सरकार बना रही हैं। विधानसभा में ईवीएम को हैक कर दिखाने वाले अरविंद केजरीवाल दो बार से ईवीएम के सहारे ही मुख्य मंत्री बने हैं। जो राहुल गांधी ईवीएम को ब्लैक बॉक्स कह रहे हैं वह भी रायबरेली व वायनाड से जीतकर आए हैं, क्या उन्होंने ही ईवीएम हैक कर कर ली थी? राहुल गांधी को कैसे पता था कि इस बार इंडी गठबंधन की ही सरकार बनने जा रही है और उसे इस बार 295 सीटें मिलेंगी?
ईवीएम को लेकर विभिन्न उच्च न्यायालय से सर्वोच्च न्यायालय तक में खूब बहस हो चुकी है। ईवीएम पर चालीस याचिकाएं खारिज हो चुकी हैं। देश अच्छी तरह से जानता है कि 1990 के दशक से लेकर ईवीएम आने तक देश में लोकतंत्र का क्या हाल बनाकर रखा गया था। विरोधियों को यह भी समझ में नहीं आता कि यदि ईवीएम हैक होती तो मोदी कम से कम 272 सीटें तो रखते अपने पास। क्या इनको झूठे विमर्श चलाने हैं? सारे मिलकर एक हो गए, विदेशी ताकतों से पैसा और सहायता ली, तकनीक का दुरुपयोग किया। खटाखट स्कीम लाकर जनता को धोखा दिया। मोदी की सीटें अवश्य थोड़ी कम हो गई, लेकिन ये उनके आस-पास भी नहीं पहुंच पाए।
वास्तविकता यह है कि नरेंद्र मोदी ही भारत के प्रधान मंत्री हैं और विपक्ष ये स्वीकार नहीं कर पा रहा है। अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, आंध्र प्रदेश और उड़ीसा की जनता ने भी एनडीए को ही मौका दिया है। कुछ उपचुनाव वाली सीटों पर भी कांगे्रस व इंडी गठबंधन को निराशा हाथ लगी है और इसी निराशा के गर्त में डूबा विपक्ष ईवीएम- ईवीएम, चुनाव आयोग, जिला प्रशासन आदि-आदि कर रहा है।
उचित तो यह होता कि राहुल गांधी के नेतृत्व में अब सम्पूर्ण विपक्ष अपनी पराजय स्वीकार करके मोदी के शपथ ग्रहण का स्वागत करता और गम्भीर विपक्ष की भूमिका निभाता, आगे के लिए चिंतन- मनन करता। चुनाव हारने और सत्ता से दूरी बने रहने के बाद भी विपक्ष 15 दिन तक जीत का जश्न मनाता रहा, जबकि प्रधान मंत्री ने परिणाम आने के बाद एक पल भी व्यर्थ नहीं गंवाया और अपने मंत्रिमंडल सहित काम में जुट गए।
शपथ ग्रहण के 10 दिनों के अंदर कैबिनेट कई निर्णय ले चुकी है। किसानों को सम्मान निधि की एक किश्त जारी हो चुकी है। प्रधान मंत्री अपने संसदीय क्षेत्र का दौरा कर चुके हैं। 832 वर्षों के बाद नालंदा का गौरव वापस आया है। भारत ॠ-7 देशों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका है। ऐसे अहर्निश सेवाव्रती प्रधान मंत्री मोदी को पूरे संसार का छल-बल उपयोग करके भी पराजित नहीं किया जा सकता।