आए दिन कहीं न कहीं आगजनी की घटनाएं सामने आ रही है, यह सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा। यदि शासन-प्रशासन भ्रष्टाचार से मुक्त होकर पूर्ण निष्ठा से अपना दायित्व निभाए तो इन घटनाओं में कमी आ सकती है।
भारत में आगजनी की घटनाएं एक बड़ी समस्या के रूप में चिंता का कारण बन रही है। जंगल हो या औद्योगिक संस्थान, अस्पताल हो या घर, बहुमंजिला इमारत हो या सरकारी कार्यालयों में अग्निकांडों के कारण जान-माल की हानि हुई है, वहीं सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती बनकर सामने खड़ी है। हाल ही में गुजरात के राजकोट में एक एम्यूजमेंट पार्क के अंदर गेमिंग जोन में लगी भीषण आग की लपटें हो या राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में बच्चों के एक प्राइवेट अस्पताल में आग लगना, निश्चित रूप से ये हादसे प्रशासनिक लापरवाही के कारण ही हुई है। यही कारण है कि कार्यप्रणालियों में खामियां और ऐसी आपदाओं को रोकने में सरकारी अधिकारियों की लापरवाही की निंदा भी व्यापक स्तर पर की जा रही है। यह याद रखने योग्य है कि नियमित अंतराल पर मानवीय जिम्मेदारी वाले पहलू की अनदेखी से ऐसी गम्भीर घटनाएं होने के बावजूद अधिकारियों की उदासीनता और लापरवाही कम होती नहीं दिख रही है। इन आग के दावानल ने कितने ही परिवारों के घर के चिराग बुझा दिए।
भारत के जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। तापमान, वर्षा, वनस्पति और नमी जैसे कारक इन आग के पैमाने और आवृत्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार जंगल में आग फैलने के तीन कारण हैं ईंधन का भार, ऑक्सीजन और तापमान। सूखी पत्तियां जंगल की आग के लिए ईंधन का काम करती हैं। भारतीय वन सर्वेक्षण की वेबसाइट बताती है कि भारत के लगभग 36 प्रतिशत जंगल प्राय: आग की चपेट में रहते हैं। देश के लगभग 10 प्रतिशत वन क्षेत्र में आग लगने की अत्यधिक सम्भावना है। एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार स्थानीय लोग अच्छी गुणवत्ता वाली घास उगाने, पेड़ों की अवैध कटाई को छिपाने, अवैध शिकार आदि के लिए जंगलों में आग लगाते हैं। सूखे पत्तों के साथ बिजली के तारों के घर्षण से भी जंगल में आग लगती है तथा बिजली गिरना भी आग लगने का बड़ा कारण है। वैस जंगलों में आग लगने की ज्यादातर घटनाएं इंसानों के कारण होती हैं, जैसे आगजनी, कैम्पफायर, बिना बुझी सिगरेट फेंकना, जलता हुआ कचरा छोड़ना, माचिस या ज्वलनशील चीजों से खेलना आदि। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, पश्चिमी महाराष्ट्र, दक्षिणी छत्तीसगढ़, मध्य ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक के क्षेत्रों में भी अत्यधिक और बहुत ज्यादा आग लगने की आशंका वाले क्षेत्र है।
ज्यादातर आग शॉर्ट सर्किट की वजह से ही लगती है। खासतौर से जब गर्मी का मौसम होता है तो बिजली पर भार अधिक बढ़ जाता है, ऐसे में शॉर्ट सर्किट होना आम है। इन जनबहुल जगहों पर आग लगने एवं जनहानि की खबरें आजकल आम हो गई है।
हाल ही में नोएडा एक्सटेंशन के हाईराइज बिल्डिंग में आग लगी थी, जांच में पता चला कि ये आग पूजा घर से लगी थी। इसलिए अगर आप ऊंची इमारतों में रहते हैं तो कोशिश करें कि पूजा घर में दीपक या अगरबत्ती तभी जलाएं जब आप घर में रहें। कभी भी दिया जला कर घर से बाहर ना जाएं। दूसरे नंबर पर शॉर्ट सर्किट आग लगने वाले कारणों में बेहद आम कारण है। ज्यादातर घरों, कार्यालयों, अस्पतालों, होटलों एवं कारखानों में आग शॉर्ट सर्किट की वजह से ही लगती है। सबसे पहले तो गर्मी के मौसम में 24 घंटे ए.सी. ना चलाएं। दूसरा की एक ही प्वाइंट पर ढेर सारे प्लग ना लगाएं। रात में सोते वक्त गैस सिलेंडर रेगुलेटर के पास से जरूर बंद कर दें। लिकेज सिलेंडर का इस्तेमाल भूल कर भी ना करें। अस्पताल एक ऐसी जगह है जहां हर कोई बेहतर स्वास्थ्य पाने के लिए जाता है, लेकिन कभी-कभी यह एक दुःस्वप्न बन जाता है। अस्पतालों में बिजली की आग लगने का सबसे आम कारण खराब वायरिंग या उपकरण हैं। हालांकि मेडिकल ऑक्सीजन सिलेंडर सुरक्षित और नियमित अस्पताल उपकरण प्रतीत होते हैं, लेकिन अगर इन्हें ठीक से न उपयोग किया जाए तो ये काफी घातक हो सकते हैं। सिलेंडर में अगर ज्यादा ऑक्सीजन भर जाए या उनके वाल्व खराब हो जाए तो वे फट सकते हैं। फैक्ट्री में मशीनरी चाहे कितनी भी आधुनिक क्यों न हो, उसमें खराबी आने की सम्भावना बनी रहती है। तेल रिसाव या विषैले द्रव रिसाव जैसी चीजें, साथ ही इन मशीनों के संचालन के दौरान प्राय: निकलने वाली चिंगारी, अगर तुरंत न बुझाई जाए तो आग में बदल सकती हैं।
हॉस्पिटल, कारखाने, होटल आदि के मिस मैनेजमेंट और लापरवाही का स्थानीय प्रशासन को अंदाजा होना चाहिए कि उसके कार्यक्षेत्र में किस तरह के व्यवसाय कानूनी प्रक्रियाओं की अनदेखी करते हुए चलाए जा रहे हैं? प्रश्न है कि इन बढ़ती दुर्घटनाओं की नृशंस चुनौतियों का क्या अंत है? यह चुनौती सरकार के सम्मुख तो है ही, आम जनता भी इससे बच नहीं सकती।आग क्यों और कैसे लगी, यह तो जांच का विषय है ही, लेकिन इन व्यावसायिक इकाइयों को उसके मालिकों ने मौत का कुआं बना रखा था। आखिर क्या वजह है कि जहां दुर्घटनाओं की ज्यादा सम्भावनाएं होती हैं, वही सारी व्यवस्थाएं फेल दिखाई देती है? सारे कानून कायदों का वहीं पर स्याह हनन होता है। हर दुर्घटना में गलती भ्रष्ट आदमी यानी अधिकारी एवं व्यवसायी की ही होती है, पर कारण बना दिया जाता हैं पुर्जों व उपकरणों की खराबी को। जैसे प्रशासनिक सर्तकता की बात सुनाई देती है, वैसे ही प्रशासनिक कोताही के सबूत सामने आते हैं। मरने वालों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन हर बड़ी दुर्घटना कुछ शोर-शराबें के बाद एक और नई दुर्घटना की बाट जोहने लगती है। सरकार और सरकारी विभाग जितनी तत्परता मुआवजा देने में और जांच समिति बनाने में दिखाते हैं, अगर सुरक्षा प्रबंधों में इतनी तत्परता दिखाएं तो दुर्घटनाओं की संख्या घट सकती है।
अग्निकांडों के डरावने हादसों एवं दुर्घटनाओं पर काबू पाने के लिए प्रतीक्षा नहीं, प्रक्रिया आवश्यक है। आग बुझाने के लिए आधुनिक तकनीक को अपनाना जरूरी है। स्थानीय निकाय हो या सरकारें, अग्निशमन विभाग हो या लाइसेंसिंग विभाग हो, अगर मनुष्य जीवन की रक्षा नहीं की जा सकती तो फिर इन विभागों का औचित्य ही क्या? कौन नहीं जानता कि ये विभाग कैसे काम करते हैं।
सब जानते हैं कि प्रदूषण नियंत्रण के नाम पर इंस्पेक्टर आते हैं और बंधी-बंधाई राशि लेकर लौट जाते हैं। लाइसेंसिंग विभाग में ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार है। नैतिकता और मर्यादाओं के इस टूटते बांध को, लाखों लोगों के जीवन से खिलवाड़ करते इन आदमखोरों से कौन मुकाबला करेगा? कानून के हाथ लम्बे होते हैं पर उसकी प्रक्रिया भी लम्बी होती है। कानून में अनेक छिद्र हैं, सब बच जाते हैं। सजा पाते हैं गरीब आश्रित, निर्दोष अभिभावक जो मरने वालों के पीछे जीते जी मर जाते हैं।