संघ के 100 वर्ष पूरे होने को हैं। ऐसे में संघ के विरोध में दुनिया भर में वामपंथी, पूंजीवादी और धर्मांध ताकतें एक बड़ा विमर्श खड़ा करने का प्रयास कर रही हैं। इनका विरोध करने के लिए बौद्धिक क्षेत्र में मीडिया तथा सोशल मीडिया आदि के माध्यम से संघ के कार्यकर्ता भी कमर कस के खड़े हैं। यह एक लम्बा युद्ध है। विरोधी पक्ष के पास संसाधन बहुत अधिक है, लेकिन संघ के कार्यकर्ताओं के पास आत्मविश्वास है।
21वीं सदी वैचारिक विमर्श के युद्ध की सदी है। भारत इस विमर्श युद्ध के केंद्र में है, क्योंकि वह पूरी दुनिया द्वारा एक ऐसे वैचारिक अधिष्ठान को अपनाने के पक्ष में है जिसकी केंद्रीय धुरी में वसुधैव कुटुम्बकम जैसे सनातन और शाश्वत मूल्य हैं। भारत के भीतर और वैश्विक स्तर पर भी यह विमर्श का संघर्ष चल रहा है। इस युद्ध में हिस्सा लेने वाली ताकतें अलग-अलग विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। इन ताकतों में कम्युनिस्ट, इस्लामी कट्टरवादी तत्व, ईसाई मिशनरी संगठन तथा पूंजीवाद व अधिनायकवाद से जुड़ी ताकतें एक ओर हैं तथा दूसरी ओर है भारत के सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करने वाला हिंदू समाज तथा उसकी सबसे महत्वपूर्ण शक्ति राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। इसलिए भारत के भीतर ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर संघ सबके निशाने पर है।
संघ पर चारों ओर से प्रहार किए जा रहे हैं, ऐसा क्यों हो रहा है? इसका कारण यह है कि संघ सनातन धर्म को विश्व समाज की केंद्रीय धुरी बनाने में प्रयासरत है। सनातन धर्म और उनसे जुड़े शाश्वत मूल्य ही इस विश्व में संघर्ष को समाप्त कर प्रकृति के साथ एक सामंजस्य बनाकर दुनिया के हर समाज को एक गुणवत्तापूर्ण जीवन जीने में सहायता कर सकते हैं। संघ विरोधी ताकतों के अपने निहित स्वार्थ हैं। वे किसी एक पूजा पद्धति या आर्थिक व राजनीतिक व्यवस्था को ही दुनिया भर में क्रियान्वित करना चाहते हैं, क्योंकि उनसे एक वर्ग या समुदाय विशेष के स्वार्थों की पूर्ति होगी और यह कार्य सबके शोषण के आधार पर होगा।
स्वतंत्रता के बाद कई दशकों तक संघ धीरे-धीरे अपना प्रभाव क्षेत्र और अपने संगठन की शक्ति में वृद्धि करने में जुटा रहा। इस पूरी प्रक्रिया में संघ का लक्ष्य स्पष्ट था कि हमें अपनी सोच बदलनी हैं और एक ऐसा सकारात्मक विमर्श तैयार करना है जिसकी जड़ें भारत के मूल विचारों पर आधारित हों, हमारे समाज के आदिकाल से चले आ रहे संस्कारों पर आधारित हों।
भारत की गुप्तचर एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग के पूर्व निदेशक विक्रम सूद ने इस व्यापक सोच का सटीक सार प्रस्तुत किया है (द अल्टीमेट गोल; पृ. 280), भारतीय विमर्श अन्यत्र से बहुत लम्बा चला है। इसे बदलने की आवश्यकता है और इसे यूरोप, अमेरिका या अन्यत्र निर्धारित नहीं किया जा सकता है। भारत और भारतीयों को अपनी कहानी खुद बतानी होगी। हमें अपनी नियति को नियंत्रित करने के लिए अपनी कहानी को खुद अपने दृष्टिकोण से बताने और उसके विस्तार की आवश्यकता है।
इस दृष्टि से संघ के लिए यह चुनौतीपूर्ण कार्य भी है, क्योंकि संघ के कार्यकर्ता को तो हमेशा यही बताया गया कि उसे मंच, माला और माइक से दूर रहना है। यानी नेपथ्य में रहकर नींव के पत्थर की तरह काम करना है। किसी भी कार्य या उपलब्धि का श्रेय नहीं लेना है, क्योंकि संघ का मूल विचार यही है कि संघ समाज में कोई संगठन नहीं है बल्कि संघ समाज का संगठन करता है।
वैसे तो विमर्श में भारतीय पक्ष प्रस्तुत करने तथा भारत में राष्ट्रीय विचारों में संवर्धन के लिए संघ के कार्यकर्ताओं ने 1940 के दशक में ही पांचजन्य तथा ऑर्गनाइजर जैसे साप्ताहिक आरम्भ कर दिए थे। इसके बाद अगले कुछ दशकों में तरुण भारत और स्वदेश जैसे दैनिक समाचार पत्र भी आरम्भ हुए। 1970 के दशक में ‘द मदरलैंड’ नाम से संघ के कार्यकर्ताओं ने अंग्रेजी राष्ट्रीय दैनिक भी निकाला जो अत्यंत लोकप्रिय हुआ। इस बीच कई प्रकाशन संस्थान भी आरम्भ हुए। आज लगभग एक दर्जन से अधिक ऐसे संस्थान हैं जो राष्ट्रीय विचारों पर प्रेरणादायक साहित्य लगातार प्रकाशित कर रहे हैं।
इसके बाद 1980 के दशक में जब रामजन्मभूमि आंदोलन आरम्भ हुआ तो इसके विषय में विरोधी पक्ष द्वारा कई प्रकार की ‘फेक न्यूज’ फैलाने का सुनियोजित प्रयास हुआ। इससे निपटने के लिए संघ के कार्यकर्ताओं ने देश के हर प्रांत में विश्व संवाद केंद्र की स्थापना की। इनके माध्यम से देश भर के पत्रकारों व बुद्धिजीवी वर्ग को तथ्यात्मक जानकारियां उपलब्ध करवाने का प्रयास आरम्भ हुआ, जो आज भी अनवरत जारी है। इस बीच संघ के प्रचार विभाग की भी स्थापना हुई, जिसके माध्यम से मीडिया को समय-समय पर संघ की गतिविधियों व राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय महत्व के विषयों पर नियमित जानकारियां देने की व्यवस्था स्थापित की गई।
सन 2000 के बाद संघ के विचारों से प्रभावित बुद्धिजीवी समाचार चैनलों पर राष्ट्रीय विचारों के प्रचार-प्रसार तथा संघ के विरुद्व दुष्प्रचार को समाप्त करने की दृष्टि से अपने विचार रखने लगे। इस बीच सोशल मीडिया का भी आगमन हो गया। सोशल मीडिया को लेकर संघ ने पिछले कुछ समय में अपने कार्यकर्ताओं के लिए कई प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए हैं। संघ की संगठनात्मक व्यवस्था में अब हर जिला स्तर तक संघ के कार्यकर्ताओं की सोशल मीडिया इकाईयां हैं जो देश व समाज हित में इस मीडिया का उपयोग भी करती हैं और विमर्श के इस युद्ध में अपना पक्ष मजबूती से रखती हैं। संघ के शिक्षण वर्गों में भी अब मीडिया तथा सोशल मीडिया के विषय में विशेष प्रशिक्षण सत्र रहते हैं, जहां सभी कार्यकर्ताओं को इस सम्बंध में जानकारी दी जाती है और सोशल मीडिया के सकारात्मक उपयोग के लिए उन्हें प्रशिक्षित भी किया जाता है।
संघ के विचारों से प्रभावित कई कॉलम लेखक भी अब राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्व के लिए हितकारी वैचारिक विमर्श बनाने में अपनी भूमिका निभा रहे हैं। विदेशी पत्रकारों के साथ संघ के अधिकारियों के अब नियमित संवाद होते हैं, जिससे उनके मन की भ्रांतियों को दूर किया जा सके। फेसबुक, ट्विटर, यू ट्यूब आदि पर अब संघ के सैंकड़ों कार्यकर्ता सक्रिय हैं जो अपने स्तर पर सनातन मूल्यों के प्रचार-प्रसार में अपना योगदान दे रहे हैं। संघ शक्ति के इस व्यापक विस्तार का असर अब भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में नजर आ रहा है। अमेरिकी राजनयिक व बुद्धिजीवी वाल्टर एंडरसन जैसे लोगों ने संघ पर पुस्तकें लिखी हैं, जिसमें संघ के दृष्टिकोण को कुछ हद तक समझने का प्रयास भी नजर आता है, लेकिन दूसरी ओर क्रिस्टोफर जेफरलोट जैसे बुद्धिजीवियों का एक वर्ग भी है जो थिंक टैंक्स और अपनी पुस्तकों के माध्यम से संघ के विरोध में विषवमन कर रहा है। इनका तथ्यात्मक विरोध करने के लिए संघ के कार्यकर्ताओं ने भी अपने स्तर पर कई थिंक टैंक बनाए हैं, मसलन विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन, इंडिया फाउंडेशन, इंडिया पॉलिसी फाउंडेशन आदि।
संघ के 100 वर्ष पूरे होने को हैं। ऐसे में संघ के विरोध में दुनिया भर में वामपंथी, पूंजीवादी और धर्मांध ताकतें एक बड़ा विमर्श खड़ा करने का प्रयास कर रही हैं। इनका विरोध करने के लिए बौद्धिक क्षेत्र में मीडिया तथा सोशल मीडिया आदि के माध्यम से संघ के कार्यकर्ता भी कमर कस के खड़े हैं। यह एक लम्बा युद्ध है। विरोधी पक्ष के पास संसाधन बहुत अधिक है, लेकिन संघ के कार्यकर्ताओं के पास आत्मविश्वास है। उनकी वैचारिक प्रतिबद्धता ही उनका सम्बल है। यह एक धर्म युद्ध है और इस वैचारिक युद्ध से भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर का भविष्य तय होगा।