इकोसिस्टम या परितंत्र बहुत व्यापक शब्द है। इकोसिस्टम हमारे आसपास, हमारे चारों ओर उपस्थित है। जीवविज्ञान में जब हम इस शब्द का प्रयोग करते हैं तो उसका आशय किसी स्थान पर उपस्थित सभी भौतिक और जैविक कारकों से होता है। यदि हम किसी जंगल के इकोसिस्टम की बात करें तो इसमें सभी प्रकार के पेड़-पौधे, घास, जीव-जंतु, मिट्टी और पेड़ों पर पाए जाने वाले सूक्ष्म जीव, हवा, पानी, धूप, जल सब कुछ शामिल होते हैं।
प्रधान मंत्री मोदी ने जब संसद में कहा कि इकोसिस्टम को उसी की भाषा में जवाब दिया जाएगा तो एक बार फिर इकोसिस्टम पर चर्चा आरम्भ हो गई। इस इकोसिस्टम को समझने की आवश्यकता है। जरूरत इस बात की है कि इकोसिस्टम को चुनाव और राजनीति के दायरे से बाहर आकर समझा जाए।
इकोसिस्टम या परितंत्र बहुत व्यापक शब्द है। इकोसिस्टम हमारे आसपास, हमारे चारों ओर उपस्थित है। जीवविज्ञान में जब हम इस शब्द का प्रयोग करते हैं तो उसका आशय किसी स्थान पर उपस्थित सभी भौतिक और जैविक कारकों से होता है। यदि हम किसी जंगल के इकोसिस्टम की बात करें तो इसमें सभी प्रकार के पेड़-पौधे, घास, जीव-जंतु, मिट्टी और पेड़ों पर पाए जाने वाले सूक्ष्म जीव, हवा, पानी, धूप, जल सब कुछ शामिल होते हैं। इसी प्रकार राजनैतिक सामाजिक क्षेत्र में जिस इकोसिस्टम की बात हो रही है, उसमें जॉर्ज सॉरोस जैसे खरबपति वामपंथी भी आते हैं और देश-विदेश में बैठे विशाल मीडिया मुगल भी। इसमें चीन और अनेक पश्चिमी ताकतों के डीप स्टेट भी आते हैं जो भारत को अस्थिर और कमजोर करना चाहते हैं और उनके द्वारा पोषित विशाल फाउंडेशन और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भी हैं।
इसमें भारत में नस्लीय और जातीय विमर्श को पैदा करने, बढ़ाने और पोसने वाले बहुत सारे राजनीतिक और गैर राजनीतिक संगठन भी आते हैं। ऐसे छोटे-छोटे सैकड़ो संगठन सारे देश में स्थानीय स्तर पर काम कर रहे हैं। इसमें मजहब की खुराक पर पलने वाली जमातें और कन्वर्जन तंत्र भी आता है। इसमें शहरी नक्सली भी आते हैं और हथियारबंद नक्सली भी। कुल मिलाकर हर वह व्यक्ति या संगठन जो भारत की सांस्कृतिक चेतना, भारत की हिंदू पहचान के विरोध में काम करता है या उसे नापसंद करता है, वह समझ-बूझकर या अनजाने में इस तंत्र का हिस्सा है।
सबके निशाने पर हैं हिंदू विचार और हिंदू संगठन के लिए काम करने वाले संगठन। इनका सबसे बड़ा लक्ष्य है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, प्रधान मंत्री मोदी और भारतीय जनता पार्टी। निशाने पर है हिंदू समाज। हिंदू समाज को छोटे-छोटे समूह में बांटना और उन समूहों का अहिंदूकरण करना इनका सबसे बड़ा लक्ष्य है।
किसी को यह बात अतिशयोक्तिपूर्ण लग सकती है, लेकिन ध्यान दें देश में चारों ओर चलाए जा रहे जातीय विमर्श पर। जातीय पहचानों को मजबूत करने के चौतरफा हो रहे प्रयास। राम मंदिर आंदोलन, अयोध्या, काशी को लेकर किए जा रहे योजनाबद्ध प्रहार। सनातन पर बेधड़क अपमानजनक बयानबाजी और इसमें गले तक डुबे राजनैतिक दल और उनके नेता तथा दूसरे संगठन। सबके अपने-अपने मतलब, अपने-अपने स्वार्थ हैं। याद करें पीएफआई का भारत को इस्लामी देश में बदलने का दस्तावेजीकृत इरादा और सारे भारत को ईसाइयत की छांव में लाने के संकल्प-पत्र।
याद करें, जॉर्ज सोरोस का भाषण जिसमें उसने खुलेआम कहा था कि मैंने भारत के प्रधान मंत्री मोदी को सत्ता से बाहर करने के लिए 100 करोड़ डॉलर दिए हैं। याद करें राहुल गांधी के विदेश में जाकर दिए गए भाषण, जिसमें भारत में तानाशाही आने, तथाकथित अल्पसंख्यकों, दलितों, किसानों, श्रमिकों व महिलाओं पर अत्याचार के किस्से भरे पड़े होते थे। याद करें कांग्रेस के नेताओं का पाकिस्तान में जाकर मोदी सरकार को हटाने के लिए सहायता मांगना। कांग्रेस के नेताओं का बांग्लादेश के अखबारों में लेख लिखना कि मोदी सरकार को हटाना कितना जरूरी है। स्मरण करें भारत के बड़े-बड़े न्यूज पोर्टल्स को चीन के द्वारा करोड़ों की राशि मिलने के खुलासे और मई 2024 में रूस की विदेश मंत्री के द्वारा दिया गया बयान कि भारत के लोकसभा चुनावों को प्रभावित करने के लिए विदेशी प्रयास हो रहे हैं।
इस प्रकार ऊपर से लेकर जमीनी स्तर तक, राजधानियों से लेकर भारत के कस्बों, बस्तियों, गांवों, अंचलों तक न्यूज पोर्टलों से लेकर व्हाट्सअप समूहों तक, कला अकादमियों से लेकर नुक्कड़ नाटकों तक, विशाल राजनैतिक रैलियों से लेकर पान की दुकानों और चौपालों तक, जेएनयू, डीयू, अशोका से लेकर आपके पड़ोस के सरकारी छात्रावास तक, जातीय संगठनों तक ये इकोसिस्टम काम करता है।
जब आरक्षण को लेकर कोई फेक वीडियो चलता है तो ये सारा तंत्र मिलकर उसे फैलाता है। जब कोई अप्रिय घटना घटती है तो ये सारा तंत्र उसका दोहन करता है। हम जानते हैं कि ये झूठ है, लेकिन हर मोबाइल में, चौपालों की चर्चाओं में दोहराया जाता है कि श्रीराम जन्मभूमि मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में दलित, पिछड़ों, जनजातियों को नहीं बुलाया गया।
आरक्षण समाप्त करने के प्रयास हो रहे हैं, संविधान को मिटाकर तानाशाही लाई जा रही है। तुम्हें दूसरे दर्जे का नागरिक बनाया जाने वाला है। सरकारी नौकरियां समाप्त की जा रही हैं आदि। ये ऐसे औजार हैं कि इसका लाभ चुनाव में भी मिलता है और ‘तुम हिंदू नहीं हो’ कहने वाले संगठनों को भी। इन्हें नक्सली भी अपने पर्चों-पोस्टरों में उपयोग करते हैं और कन्वर्जन माफिया भी इनका उपयोग करता है। किसान से कहा जाता है कि तुम जो कुछ उगाओ, जितना उगाओ, सरकार को सब खरीदना पड़ेगा। मजदूर को बरगलाया जाता है कि तुम्हारी मजदूरी संकट में है। युवाओं से कहा जाता है कि रोजगार का एकमात्र मतलब होता है सरकारी नौकरी और अग्निवीर को पेंशन क्यों नहीं दी जा रही। अब दुनिया में कौन सी सरकार या कम्पनी चार साल की नौकरी के बाद पेंशन देती है? छात्राओं से कहा जाता है कि हिंदू या सनातनी, महिला विरोधी सोच वाले हैं, महिलाओं को चूल्हें-झाड़ू तक सीमित रखना चाहते हैं। यह सब मिलकर इकोसिस्टम बनता है।
कहने की जरूरत नहीं कि ये सब केवल चुनावों तक सीमित नहीं, बल्कि भारत के बाल्कनाईजेशन (विखंडन) के षड्यंत्र का हिस्सा है। इससे निपटने की जिम्मेदारी केवल सरकार या किसी संगठन की नहीं है। जिम्मेदारी हर जागरूक नागरिक की है। हर नागरिक को सामाजिक संवाद-सम्पर्क बढ़ाने की आवश्यकता है। हिंदू समाज के हर जाति वर्ग में हमारे मित्र, आत्मीय सम्बंध, मेलजोल बढ़े, साथ बैठें, साथ हवन-पूजन करें, सुख-दुःख में सहभागी हों, संवेदनशीलता बढ़े, तभी इस चुनौती से निपटा जा सकता है। सत्य को जानना पर्याप्त नहीं, बल्कि उसे व्यवहार में उतारना, अपने आसपास के दायरे में लेकर जाना, उसे अपने संस्कारों का हिस्सा बनाना आवश्यक है। ये ध्यान रखना आवश्यक है कि निशाने पर केवल सत्ता नहीं है, निशाने पर सारा हिंदू समाज है। निशाने पर हिंदू एकता है, असावधान अबोध मन है, यही इकोसिस्टम है।