संदेशखाली का कुख्यात अपराधी शेख शाहजहां जब पश्चिम बंगाल की पुलिस हिरासत में आया तब उसके शारीरिक भाव-भंगिमाओं को देख कर लग ही नहीं रहा था कि वह गिरफ्तार किया गया है, परंतु केंद्रीय जांच एजेंसी के गिरफ्त में आते ही उसकी भंगीमा बदल गई। इस भाव के परिवर्तन के पीछे के मनोविज्ञान से आप बंगाल की वर्तमान राजनैतिक और प्रशासनिक स्थिति को समझ सकते हैं।
6 जुलाई 2024 को पश्चिम बंगाल के नेता प्रतिपक्ष और भाजपा के नेता शुभेंदु अधिकारी ने एक ट्वीट किया। जिसमें उन्होंने कुचबिहार भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा की महिला कार्यकर्ता को तृणमूल कर्मियों द्वारा बाल पकड़ कर घसीटने, निर्वस्त्र करने और बुरी तरह पीटने की घटना के बाद पुलिस ने पीड़िता से जब उनकी फटी हुई साड़ी, साया और ब्लाउज जमा करने का नोटिस दिया। इस घटना को पीड़िता को प्रताड़ित करने का संवेदनशील मामला बताया।
इस ट्वीट के बाद देश के विभिन्न भागों से लोगों के जो ट्वीट आए वो ऐसे थे जैसे बंगाल भाजपा या केंद्र की भाजपा अपने लोगों के साथ न्याय की लड़ाई न लड़कर बस उसको खबरों और सोशल मीडिया में ही प्रसारित कर रही हैैं, जबकि सच्चाई यह है कि भाजपा अपने कार्यकर्ताओं के साथ पुलिस, प्रशासन और न्यायालय सभी मोर्चे पर सक्रिय दिखती है। केंद्र से महिला आयोग एवं मानवाधिकार आयोग के पदाधिकारी राज्य में घटनास्थलों का दौरा करते हैं। पीड़ितों से भेंट कर रिपोर्ट भी तैयार होती है, परंतु दोषियों को सजा मिली हो, ऐसी जानकारी जनसामान्य को नहीं मिलती। जिससे समाज में गलत संदेश जाता है। त्वरित कानूनी कार्रवाई और दोषियों को सजा यह समय की मांग है। यदि भारतीय जनता पार्टी इस मोर्चे पर ढीली होती हैं तो इसका सीधा प्रभाव पश्चिम बंगाल के सामान्य कार्यकर्ता, समर्थक और शुभचिंतकों पर पड़ता है।
2024 के लोकसभा चुनावों में मुस्लिमों ने पूरे देश में भाजपा के विरुद्ध वोट दिया, यह एक कटू सत्य है। अच्छा होगा कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व इस तथ्य को स्वीकार कर पसमांदा मुसलमानों और मुस्लिम महिला की अपनी नीति में देश, काल, परिस्थिति के अनुरूप परिवर्तन करे।
संदेशखाली का कुख्यात अपराधी शेख शाहजहां जब पश्चिम बंगाल की पुलिस हिरासत में आया तब उसके शारीरिक भाव-भंगिमाओं को देख कर लग ही नहीं रहा था कि वह गिरफ्तार किया गया है, परंतु केंद्रीय जांच एजेंसी के गिरफ्त में आते ही उसकी भंगीमा बदल गई। इस भाव के परिवर्तन के पीछे के मनोविज्ञान से आप बंगाल की वर्तमान राजनैतिक और प्रशासनिक स्थिति को समझ सकते हैं।
बंगाल में हिंसा, दंगा-फसाद, महिलाओं के साथ बलत्कार, अपराध का साम्राज्य और शासन-प्रशासन स्तर पर जंगलराज चल रहा है, पर क्या भाजपा भी मौन रह कर बंगाल को ऐसे ही अनियंत्रित तुष्टिकरण की आग में जलने देगी?
17-18 जुलाई को प्रदेश भाजपा की बैठक कोलकाता में हुई। यहां शुभेंदु अधिकारी ने कहा कि ‘हम उनके साथ, जो हमारे साथ’। क्या ‘सबका साथ’ कभी सम्भव है? लोकतांत्रिक राजनीति में बहुमत सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। भाजपा सबके साथ की नीति के कारण अपनों के साथ उतनी मजबूती से खड़ी नहीं हो पा रही जितनी आवश्यकता है। पश्चिम बंगाल में पिछले 10 वर्षों में संगठन विस्तारीकरण और सुदृढ़ीकरण अवश्य हुआ है। विधानसभा में आसनों की संख्या और मत प्रतिशत में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। आज प्रमुख विपक्षी दल की भूमिका में भाजपा विधानसभा में उपस्थित है। बावजूद इसके वे प्रभावी एवं आक्रामक विपक्ष की भूमिका नहीं निभा पा रहे है। लोग त्वरित न्याय के मोर्चे पर भाजपा को संसद से सड़क तक अपने लोगों के लिए संघर्ष करता हुआ देखना चाहते हैं।
जैसे अभी हाल ही में तमिलनाडु में बहुजन समाजवादी पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष के आर्मस्ट्रांग की हत्या होने पर बसपा तुरंत सक्रिय हुई, उसने राज्य सरकार पर हत्यारों को सजा देने के लिए दबाव बनाया। इंडियन एक्सप्रेस के 15 जुलाई 2024 के समाचार के अनुसार इस हत्या के मुख्य आरोपी को पुलिस ने मार गिराया है।
वहीं दूसरी ओर पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रत्याशी से लेकर समर्थक और शुभचिंतकों तक को मारा जाता है, किसी की हत्या होती है और हजारों लोगों को तो घर छोड़ कर भाग जाना पड़ता है। पार्टी उनके रहने-खाने की व्यवस्था दूसरे क्षेत्रों में कर देती हैं, परंतु क्या एक लोकतांत्रिक देश में विश्व का सबसे बड़ा राजनैतिक दल का कार्यकर्ता जिसकी पार्टी केंद्र में सत्तारूढ़ है और राज्य में प्रमुख विपक्षी दल की भूमिका में है, अपना मान-सम्मान, सुरक्षा और स्वाभिमान सबसे समझौता कर केवल छिपाकर रखे जाने जैसे सहयोग की अपेक्षा रखता है? अधिकांश मामले न्यायालयों में लम्बित हैं, न्याय कहां है? इससे कार्यकर्ता हतोत्साहित होता है, समर्थक चिंतित होते हैं, शुभचिंतक हताश हो जाते हैं।
बावजूद इसके पश्चिम बंगाल क्रांतिकारियों की भूमि रही हैं। ‘लड़ेंगे और जीतेंगे’ यह भाव कार्यकर्ताओं के मन में होने के कारण 2021 की भयावहता के बाद भी 2024 में कार्यकर्ता अपने प्राण प्रिय दल के प्रति अपनी निष्ठा के साथ मैदान में उतरे और काम किया। सीटें कम होने के कई कारण हैैं। वामपंथियों के जमाने से चली आ रही वैधानिक धांधली, धमकी, वोट की लूट और एक वर्ग का एकतरफा वोटिंग पैटर्न तो हैं ही, साथ में गलत लोगों पर पार्टी का विश्वास करना भी एक महत्वपूर्ण कारण है।
2021 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को लगभग 38.1 प्रतिशत मत प्राप्त हुए और इस बार के लोकसभा चुनावों में भी 38.73 प्रतिशत मत प्राप्त हुए। मत प्रतिशत ठीक रहते हुए भी सीटें कम हुई! इस पर भाजपा ने अवश्य विचार किया होगा। नई रणनीति भी बन रही होगी। अन्यथा शुभेंदु अधिकारी ऐसे ही ‘जो हमारे साथ, हम उनके साथ’ नहीं बोलेंगे। असम और उत्तर प्रदेश का उदाहरण सबके सामने है।
दूसरे दल और दूसरी विचारधारा के लोगों को अपने परिवार में स्वागत करना समय की मांग और दल की आवश्यकता है, परंतु दल को बड़ा करने के साथ-साथ इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि पश्चिम बंगाल में जिन्होंने दल को खड़ा करने हेतु अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया, उनका भी ध्यान रखा जाए। अपने लोगों को प्राथमिकता देना आवश्यक है। नहीं तो ऐसा दौर आ सकता है जब सांसद या विधायक तो भाजपा का हो, परंतु वो व्यक्ति विशेष सनातन विरोधी या राष्ट्र विरोधी अथवा अपने वैचारिक पृष्ठभूमि का घोर विरोधी निकल जाए। लोकतांत्रिक राजनीति में सीटों की संख्या महत्वपूर्ण हैं, पर भारतीय जनता पार्टी जैसे ध्येयवादी दल के लिए सीटों से अधिक महत्वपूर्ण वैचारिक प्रतिबद्धता और ध्येय निष्ठा है। इसके लिए आवश्यक है कि महत्वपूर्ण निर्णय लेने वाले स्थानों पर अपने लोग हो। अपने लोगों का साथ, अपने लोगों का प्रयास और अपने लोगों का विश्वास अभी भाजपा और भारत के लिए अति आवश्यक है।
–विप्लव विकास