एक दूजे का ख्याल रखना और हर परिस्थिति में साथ देना भाई – बहन बचपन से ही सीख जाते हैं। भाई-बहन का रिश्ता बचपन की मासूमियत से लेकर बड़ी आयु की समझदारियों तक साथ चलता है। इस अनमोल स्नेह के बीज बचपन से ही जड़ें जमा लेते हैं। इसीलिए बचपन से बंधी प्रेम की यह डोर भाई और बहन को जीवन भर आपस में बांधे रखती हैं।
दुनिया का सबसे प्यारा और निच्छल रिश्ता होता है भाई-बहन का। यह निश्छलता ही है जो इस बंधन को जीवन भर जोड़े रखती हैैं। कच्चे धागे की डोरी और भरोसे के तार से बुना यह नेह का नाता जितना सहज और स्नेह भरा होता है उतना ही मजबूत भी। तभी तो सुख-दुःख वाले इस रिश्ते में प्रेम और आपसी समझ का भाव हमेशा बना रहता है। आत्मीयता और अपनेपन का ऐसा मेल शायद ही किसी और रिश्तों में देखने को मिलता हो। रक्षा सूत्र के रूप में प्यार, विश्वास और मुस्कुराहट की ये अनोखी डोर सचमुच दिलों को बांधती हैैं और सदा के लिए बांधे रखती है।
बचपन से जुड़े स्नेह के तार :-
एक दूजे का ख्याल रखना और हर परिस्थिति में साथ देना भाई – बहन बचपन से ही सीख जाते हैं। भाई-बहन का रिश्ता बचपन की मासूमियत से लेकर बड़ी आयु की समझदारियों तक साथ चलता है। इस अनमोल स्नेह के बीज बचपन से ही जड़ें जमा लेते हैं। इसीलिए बचपन से बंधी प्रेम की यह डोर भाई और बहन को जीवन भर आपस में बांधे रखती हैं। कहा भी जाता है कि मन के बंधन कभी फीके नहीं पड़ते। यही वजह है कि बड़े होकर अतीत की मधुर स्मृतियों को मन जिस तरह इस रिश्ते में सहेजता है, शायद ही कोई रिश्ते में ऐसा होता हो। यह बंधन ही कमाल का है। तभी तो आज की आपाधापी भरी जिंदगी में सभी रिश्तों के रंग फीके हो चले हैं, पर भाई-बहन के रिश्ते की चमक आज भी बरकरार है। दिल से जुड़े इस बंधन के मोह के धागों के ताने-बाने में ना कुछ बदला है और ना ही बदलेगा।
साझी मुस्कुराहटों का सलोना साथ :-
आयु का कोई भी पड़ाव हो, भाई-बहन के बीच मीठी नोंक-झोंक, शिकायतें, प्यार, तकरार होना एक सामान्य सी बात है। यह मधुरता ही इस स्नेह भरे रिश्ते को सहेजे रखती हैं। कच्चे धागे से बंधे इस रिश्ते को और खुशनुमा बनाती हैं। बचपन में बड़ों की डांट से बचाना हो या बड़े होने पर एक-दूजे के सपनों की उड़ान को पूरा करने की राह पर साथ देना हो, बचपन से ही भाई-बहन जितना लड़ते-झगड़ते हैं, उतना ही एक-दूसरे का पक्ष भी लेते हैं। तकलीफ में भी साथ खड़े मुस्कुराते हैं। तभी तो यह खट्टे-मीठे रिश्ते संघर्ष भरी परिस्थितियों में भी फलते-फूलते हैं। हर उतार-चढ़ाव के परे, एक दूसरे का सम्बल बनने का भाव ही इसे और भी जीवंत बनाए रखता है। यही वजह है भाई-बहन का रिश्ता जीवन भर भावनाओं से और भावुकता से भरा रहता है।
पारिवारिक रिश्ते सहेजते रेशमी डोर :-
राखी का पर्व भाई-बहन को नहीं पारिवारिक रिश्तों को भी जोड़ता है। विवाह के बाद ससुराल में रहने वाली बहनों को यह डोर अपने मायके के आंगन से बांधे रखती है। मोह के धागों का यह बंधन भाई-बहन के बीच कभी दूरियां नहीं आने देती। बड़े होने पर अपनी-अपनी जिंदगी में व्यस्त होने के बावजूद भाई-बहनों का यह रिश्ता स्नेहिल भाव और आत्मीयता के डोर से जुड़ा रहता है। सुखद है कि नई पीढ़ियां भी इस डोर के स्नेह से जुड़ी रहती हैं। मेल-मिलाप और रिश्तों का अर्थ समझती हैं। रक्षा सूत्र में भाई के प्रति बहन के असीम स्नेह और बहन के प्रति भाई के कर्तव्यबोध समाहित होते हैं। प्रेम व कर्तव्य का यह भाव भाई-बहन के रिश्ते को ही नहीं, पूरे परिवार में अपनेपन को पोषित और पल्लवित करता है। दोनों घरों को मजबूती से जोड़े रखता है। यह मजबूती पारिवारिक रिश्तों को संजीदगी से सहेजने और उन्हें दृढ़ता से थामे रखने का भी काम करती है।
समाज को भी बांधता है रक्षा सूत्र :-
रक्षाबंधन यानी कि राखी बांधना असल में एक जिम्मेदार सोच से जुड़ा भाव है। यह अपने कर्तव्य को निभाने का उत्तरदायित्व है। अपने दायित्व को समझने का बोध लिए हुए है। यही वजह है कि हमारे यहां सिर्फ भाई को ही राखी बांधने की परम्परा नहीं है। राखी के पर्व का सम्बंध रक्षा करने के वचन से भी जुड़ा है। इसीलिए जो भी रक्षा करने वाला है उसके प्रति आभार जताने के लिए भी रक्षासूत्र बांधने की भावना होनी चाहिए। यही वजह है रक्षा के कई सूत्र सामाजिक सरोकार से भी जुड़े होते हैं। प्रकृति की रक्षा के लिए देश के कई हिस्सों में रक्षाबंधन के दिन पेड़ों को राखी बांधी जाती है। सरहद पर देश की रक्षा करने वाले सैनिकों के लिए भी हर साल देशभर से राखियां भेजी जाती हैं। यह कितना सुखद है कि धर्म, जाति और वर्ग से परे भारतीय बहनें अपने सैनिक भाइयों के लिए पावन प्रेम में गूंथे रक्षा सूत्र भेजती हैं। सामाजिक जुड़ाव के भाव के चलते रक्षा बंधन का प्यारा पर्व केवल सगे भाई-बहन को ही समर्पित नहीं है, बल्कि कई लोग अपनी मुंहबोली बहनों से भी राखी बंधवाते हैं। रीत यह भी है कि कई घरों में पुरोहित यजमान को रक्षासूत्र बांधते हैं। इस पावन पर्व से जुड़ा भाव ही इतना सुंदर है कि हमारे यहां सृष्टि के रचयिता ईश्वर को भी रक्षासूत्र बांधे जाने की परम्परा है।
-डॉ. मोनिका शर्मा