गर्भसंस्कार से अंत्येष्टि तक किए जाने वाले संस्कार हजारों सालों से हमारे नित्य कर्म का एक महत्वपूर्ण अंग बन चुके हैं। संस्कारों की रीति, तरीके और मुख्यत: उनका शास्त्रीय तथा वैज्ञानिक उद्देश्य आनेवाली पीढ़ी जानें इसके लिए संस्कारों का मुख्य स्वरूप और उद्देश्य अबाधित रखकर अलग अंदाज में ‘संस्कार शिविर’ आयोजित किए जाने चाहिए।
संस्कार सभी धर्मों की आत्मा मानी गई है, जिसका संबंध इंसान के व्यक्तित्व के साथ जुड़ा हुआ है। इंसान के हर कार्य के पीछे उसके संस्कारों की दृढ़ता होती है। माता-पिता के संस्कार से लेकर पाठशाला, विश्वविद्यालय आदि से जुड़े शिक्षक अपनी तरफ से लोगों को संस्कारित करने की कोशिश करते रहते हैं। लगातार दिए जानेवाले ये संस्कार लोगों के मन में घर कर जाते हैं और फिर इस जन्म में ही नहीं, अगले जन्म तक उसके व्यक्तित्व का एक अंग बन जाता है। संस्कारों की ये परंपरा हजारों सालों से चली आ रही है।
मुझे याद है, जब मैं छोटा था, तो हमारे घर का नियम था कि शाम को घर लौटने के बाद हाथ-पांव धोकर दीया लगाया जाता था और परिवार के सभी सदस्य एकसाथ प्रार्थना किया करते थे। हमारे पड़ोसी भी इस प्रार्थना में शामिल हुआ करते थे। पिताजी कहते थे कि जब आप ये प्रार्थना सुबह-शाम करोगे तो परमेश्वर हमेशा आपके साथ रहेगा और उसका फल आज नहीं तो कल जरूर मिलेगा। देवपूजा, उपासना, धार्मिक रीति-रिवाज, परंपरा इत्यादि सभी तरह की विधियां हमारे घर में होती रहती थीं। अत्यंत गरीब होते हुए भी इन सारे रीति-रिवाजों और संस्कारों का पालन नियमित रूप से होता था। कई बार मुझे इन संस्कारों के शास्त्रीय कारण नहीं पता चलते थे, इसीलिए मैं इसका विरोध किया करता था।
कालांतर से इन संस्कारों की महिमा और गरिमा से मेरी पहचान होने लगी। आज पता चलता है कि गर्भसंस्कार से अंत्येष्टि तक ये संस्कार हजारों सालों से हमारे नित्य कर्म का एक महत्वपूर्ण अंग बन चुके हैं। इनमें जो घटक और वस्तुएं इस्तेमाल होती हैं, इनका हमारे पूर्वजों ने पूरी शास्त्रीयता और सूक्ष्मता से विचार किया है। पूजा-विधि, मंत्रोच्चार, झांज की आवाज, शंख ध्वनि, नारियल चढ़ाना और इन विधियों के समय अग्नि को साक्षी रखना जैसी सारी चीजें शास्त्रीय विचारधारा के अंतर्गत हमें संस्कारित करती हैं। गर्भाधान विधि और बच्चे के पहले अन्नप्राशन के बाद बच्चा सारे संस्कार अपने आंकलन और ग्रहण क्षमता के अनुसार निजी जीवन में इस्तेमाल करता है। इन संस्कारों की गतिविधियां सूक्ष्मता से स्थूलता की तरफ आत्मा, बुद्धि, मन और अंतिम शरीर के दिशा में जाती हैं।
संस्कारों की विविध परंपराएं पंथ और देश के हिसाब से होंगी। लेकिन पहला संस्कार गर्भाधान और अंतिम संस्कार (अंत्येष्टि) हर जगह स्थायी है। हजारों सालों से कुछ प्रमुख संस्कार हम देखते और अनुभव करते आए हैं, वे इस प्रकार हैं-
गर्भाधान– ये संस्कार पति द्वारा अपनी पत्नी पर किया जाता है, जिसमें गर्भ सारे रोगों से मुक्त होकर भौतिक, आध्यात्मिक और दैवीय शक्ति से जुड़ जाता है। दोषमुक्त होकर गर्भ निरोगी रहता है।
अवनवलोभन – गर्भ को स्थिरता प्राप्त करवाने के लिए ये संस्कार किया जाता है।
जातकर्म- बच्चे के जन्म के बाद यह विधि की जाती है।
कर्णवेध– यह संस्कार हिंदू धर्म की पहचान है। इस संस्कार का उद्देश्य रोग-बीज नष्ट करना और स्मरण-शक्ति बढ़ाना है।
नामकरण– किसी भी बच्चे की पहचान उसके नाम से होती है। चार तरह के नाम रखे जाते हैं, परंतु व्यावहारिक नाम मुख्य होता है।
अन्नप्राशन– बच्चा जैसे जैसे बड़ा होता है, उसकी पाचन शक्ति बढ़ती है। विविध प्रकार के अन्न का परिचय कराते हुए आठ महीने में यह संस्कार किया जाता है।
प्रथम केशमुंडन- गर्भ में पल रहे बच्चे के केश चर्बीयुक्त होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। ऐसे बालों में कीट जल्दी होते हैं। इसीलिए ये बाल कुछ महीनों में निकाल दिए जाते हैं।
उपनयन– इस संस्कार में बच्चे की कुमारावस्था शुरू होती है। उसके जीवन का यह महत्वपूर्ण चरण माना गया है। बौद्धिक क्षमता और प्रगल्भता बढ़ाने के लिए हमारे पूर्वजों ने इस संस्कार को आवश्यक माना है। पौगंडावस्था में बच्चे के बिगड़ने की संभावना अधिक होती है। इसलिए कुछ बंधन आवश्यक होते हैं। उपनयन ऐसा ही एक उत्कृष्ट संस्कार है।
विवाह– स्त्री-पुरुष के संबंधों को एक पवित्र रिश्ते में दृढ़ता से, विश्वास से रखने का है यह संस्कार। भिन्न विचार प्रणाली, वातावरण, व्यक्तित्व से जुड़े दो जीव करीब आते हैं, इसीलिए उनके वैवाहिक जीवन को शाश्वत रूप देने हेतु ये संस्कार बनाए गए हैं।
अंत्येष्टि– जीवन यात्रा समाप्त होने पर आत्मा की शांति के लिए ये संस्कार किए जाते हैं।
इनके अलावा भी और कई तरह के संस्कार हैं। आज हमारी जीवन शैली काफी हद तक बदल गई हैं और इन संस्कारों के लिए किसी के पास वक्त नहीं है। परंतु संस्कार का महत्व इससे कम नहीं होता। संस्कारों की रीति, तरीके और मुख्यत: उसका शास्त्रीय तथा वैज्ञानिक उद्देश्य आनेवाली पीढ़ी को समझ नहीं आएगा। इसलिए मैं चाहता हूं कि संस्कारों का मुख्य स्वरूप और उद्देश्य अबाधित रखकर अलग अंदाज में ‘संस्कार शिविर’ होने चाहिए। स्वयं को ‘मॉडर्न’ समझने के प्रयास में हम कितनी गलतियां करते हैं। स्वतंत्रता के नाम पर परिवार एक दूसरे से बिछुड़ रहे हैं। प्रदूषित और गलत प्रकार के आहारों से स्वास्थ्य बिगड़ता है और बीमारियां ना सिर्फ परिवारों का हिस्सा बन गईं हैं, बल्कि आनेवाली पीढ़ियों तक अनुवांशिक रूप में पहुंच रही हैं।
हमें अंधश्रद्धा का शिकार नहीं होना है, परंतु श्रद्धापूर्वक संस्कारों का अभ्यास होना चाहिए, जो कालबाह्य संस्कार हैं, जैसे कि ‘पुंसवन’- जो लड़का पाने की चाहत में किया जाता है, उसका विरोध किया जाना चाहिए। मगर परिवार और समाज में एकता हेतु जो संस्कार बने हैं, उन्हें अपनाना चाहिए। लाखों-करोड़ों रुपए खर्च करके शादी या अन्य कार्यक्रम संस्कारों के नाम पर किए जाते हैं, उसका मैं विरोध करता हूं। परंतु किसी विधि संस्कार में सादगीपूर्वक ढंग से शामिल होने आए लोगों के प्रेम को मैं स्वीकृत करता हूं।
भारतवर्ष के हजारों साल पुराने ये संस्कार आज पाश्चात्य देशों के लिए एक संशोधन का विषय बन गए हैं। हमारे पूर्वज कितने संशोधक और विचारक थे। सिर्फ पुराण कथा और कहानियां समझकर हमें उन्हें ठुकराना नहीं है। नमस्कार, मंत्रोच्चार, दिनचर्या, सर्वधर्मसमभाव, आचरण, विवेक, अनुशासन ये सभी संस्कारों की देन है।
सुसंस्कृत इंसान ही दूसरी पीढ़ी तैयार करता है। आओ, हम सब अपने राष्ट्र की इस आदर्श संस्कृति की संपत्ति की महत्ता को समझते हैं, उसका अध्ययन करते हैं और उसे सहेज कर रखते हैं।
Vikram Duvvuri
9 Sep 2018Very informative article by Sadguru Mangeshda ji. Please publish many more articles written by Him.
Aparna
22 Aug 2018Very well written. We should take pride in our culrure of Sanskars. Thank you Vivek magazine.
Siddhi Paradkar
20 Aug 2018Very good Article by Sadguru Mangeshda regarding *Sanskar*.There is indeed a need for such Sanskar Shibirs.I request Sadguru to conduct Sanskar Shibirs for the overall development of society.Thank You Vivek magzine for this informational article.
Prashanti ch
20 Aug 2018Very informative article and really helpful to all the mother’s.
Vaibhav Ruikar
20 Aug 2018Very nice article by Sadguru Dr. Mageshda , thank you vivek magzine for publishing this, would love to read more article by Sadguru Dr. Mangeshda
Nilesh D. Ambre
20 Aug 2018Very informative article by Sadguru Dr Mangeshda. Expecting many more such articles on different topics. Thanks Vivek Magazine for covering such good article.
Deepanshu
20 Aug 2018Very nicely and precisely written..Good Job Hindi Vivek for apublishing such good articles
Adarsh Agrawal
20 Aug 2018Thanks Sadguru Dr.Mangeshda for such a beautiful informative article. A very unique topic taken by you. Thanks to Vivek magazine for publishing the same. Hari Om.
Saraswati Vasudevan
20 Aug 2018Very well written. Expecting more such articles
Pradeep
20 Aug 2018डॉ. सद्गुरू मंगेशदा जी
आपण “संस्कार आणि त्यांचे महत्व” ह्या बद्दल लिहिलेला लेख अप्रतिम आहे, असेच अप्रतिम लेख लिहून आमच्या ज्ञानामध्ये भर पाडा ही विनंती,
धावपळीच्या जीवनात मानवाने आहार कसा घ्यावा ह्या बद्दल पुढे कधी लेख लिहून मार्गदर्शन करावे ही विनंती. धन्यवाद
Ravindra Chandavarkar
20 Aug 2018Thanks Vivek n team by reading I came to know about blindly following too good article
Vatsal
20 Aug 2018Wonderful article. Would love to read more articles by Sadguru Dr. Mangeshda
Kanu
20 Aug 2018wonderful article
Nehal Ghosalkar
20 Aug 2018Very nice article.. looking forward for such more articles.
Chandrakant Baraskar
17 Aug 2018आजकल ऐसे विषय पर कोई कम लिखता है. हमारे बुजुर्ग हमे इसका ज्ञान जरूर देते है. लेकीन जब कोई अधिकारी व्यक्ती यह बाते विस्तार से कारणमीमांसा के साथ कहता है तो वह हमारे मन में बस जाती है. हमारी परंपरा धार्मिक विधिया शास्त्र पर आधारित है. इन मे कोई संदेह नही. यह दुनिया सिकुडती जा रही है. Nuclear कुटुंब मे इन विधियो के बारे मे अज्ञान है. ऐसे मे यह लेख एक अच्छा कदम है आपके हिंदी विवेक के जरिये. हम आशा करते है आप भविष्य मे हमे ऐसे जाणकारी देनेवाले विषय से अवगत करेंगे.
Asha
16 Aug 2018Very insightful and well written article.Looking forward to more such articles by Sadguru Sri Sri Mangeshda.
Lakshmi H. Iyer
20 Aug 2018Very informative article.Hope you continue to publish many such articles.
Anjali Mahadik
16 Aug 2018Very Informative article.Looking forward for more such articles.Thank You Vivek magazine for publishing the same.
Vinita
16 Aug 2018Very nice article. Enjoyed reading. Informative too. Kindly publsh more such articles.
Venu Madhav
16 Aug 2018Your magazine is bringing out very informative and thought provoking articles. This article is one such as it clears many misconceptions. May you continue to inspire
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Sneha
16 Aug 2018As a fairly new mother… I find this article very informative and extremely helpful. This helps us on giving us a perspective of the age old rituals. Making it easier to accept them
Anuradha .V.R
16 Aug 2018Very nice article. Looking forward to more of such articles.
Rupali
16 Aug 2018A very good and informative article should have such more articles
Ravindra Chandavarkar
16 Aug 2018Very well written
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Sunil Pai
16 Aug 2018Very nicely written article. Looking forward to more such articles. Thank you Hindi Vivek for publishing such articles.
Nidhi Pathak
16 Aug 2018Amazing article . Looking forward to read more of such valuable articles.
विश्वप्रकाश
16 Aug 2018लेखक ने काफी विस्तार मे विश्लेषण दिया हूआ है.
जब भी यह सब बाते हम करते है तो सिर्फ यह सोचते है के हमारे पूर्वजोंने किया था ईसलीए हमे भी दोहराना चाहीए. कही ना कही हम एक डर की भावना सभी विधीया करते वक्त हमारे मन मे रखते है, के यह विधीया ना करे तो कूछ गलत ना हो जाये
अगर मंगेशदा जैसे विश्लेषण से कोई समझाता तो यह डर की भावना कभकी दूर होती थी.
हमारि विनंती है विवेक से के मंगेशदाजीके लेख ज्यादा से ज्यादा शामील करें.
Rajeev Raval
16 Aug 2018Sundar article and very well written. Thanks Vivek for publishing the same.
HRISHIKESH AMBAYE
16 Aug 2018“हमें अंधश्रद्धा का शिकार नहीं होना है, परंतु श्रद्धापूर्वक संस्कारों का अभ्यास होना चाहिए, जो कालबाह्य संस्कार हैं, जैसे कि ‘पुंसवन’- जो लड़का पाने की चाहत में किया जाता है, उसका विरोध किया जाना चाहिए। मगर परिवार और समाज में एकता हेतु जो संस्कार बने हैं, उन्हें अपनाना चाहिए। लाखों-करोड़ों रुपए खर्च करके शादी या अन्य कार्यक्रम संस्कारों के नाम पर किए जाते हैं, उसका मैं विरोध करता हूं। परंतु किसी विधि संस्कार में सादगीपूर्वक ढंग से शामिल होने आए लोगों के प्रेम को मैं स्वीकृत करता हूं।” – यह एक बहोत ही महत्त्वपूर्ण बात गुरुजींने कही है! शास्त्रवादी विचारधारा होने के कारण, यह लेख पढने में बहोत आनंद मिलता है! गुरुजी का और आपका हार्दिक धन्यवाद!