बढ़ती हुई मंहगाई, बाजार में बढ़ती प्रतिस्पर्धा, करियर बनाने की बढ़ती चाह और अपनी अलग पहचान बनाने की इच्छा के कारण महिलाएं नौकरी, बिजनेस और उद्यमिता के क्षेत्र में बढ़-चढ़ कर अपनी भागीदारी निभा रही हैं. इसके साथ ही महिलाओं में बाजार की मांग के अनुरूप खुद को फिट एंड स्मार्ट रखने की चाहत भी बढ़ रही है.
वर्तमान में एकल परिवारों का बढ़ता प्रचलन, बढ़ती हुई मंहगाई, बाजार में बढ़ती प्रतिस्पर्धा, करियर बनाने की बढ़ती चाह और अपनी अलग पहचान बनाने की इच्छा के कारण महिलाएं नौकरी, बिजनेस और उद्यमिता के क्षेत्र में बढ़-चढ़ कर अपनी भागीदारी निभा रही हैं. इसके साथ ही महिलाओं में बाजार की मांग के अनुरूप खुद को फिट एंड स्मार्ट रखने की चाहत भी बढ़ रही है. यह अच्छी बात है, लेकिन कई महिलाएं (खास कर मॉडलिंग, विज्ञापन, सिनेमा आदि के क्षेत्र में) इस चक्कर में अपने नवजात बच्चों को ब्रेस्ट फीडिंग कराने से बचती हैं. उन्हें लगता है कि इससे उनका फिगर खराब हो जायेगा. यह पूरी तरह से एक भ्रामक तथ्य है.
ब्रेस्टफीडिंग यानि की स्तनपान जन्म के छह महीने बाद तक एक नवजात शिशु के लिए जितना जरूरी होता है, उतना ही जरूरी एक मां के लिए भी होता है. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट के अनुसार, बच्चे को स्तनपान करवाने से टाइप 2 डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर का खतरा कम हो जाता है. साथ ही, स्तनपान कराने वाली महिलाएं ब्रेस्ट कैंसर के खतरे से भी सुरक्षित रहती हैं. महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर एक जानलेवा बीमारी है, जिसे समय से पहचान कर इलाज करवाना बेहद जरूरी है.
– स्तनपान कराने से कैंसर कोशिकाओं का रूकता है विकास
दरअसल महिलाओं के शरीर में स्वत: रूप से कुछ ऐसे हार्मोन का उत्पादन होता है, जो कि कैंसर कोशिकाओं को विकसित होने से रोकता है. जो मांएं स्तनपान कराती हैं, उनमें मेनोपॉज से पहले या मेनोपॉज के बाद स्तन कैंसर का खतरा कम होता है. उस पर भी जो मांएं छह महीने या इससे अधिक समय तक स्तनपान कराती हैं, उन्हें इस बीमारी से ज्यादा सुरक्षा मिलती है. कारण, स्तनपान कराने से एस्ट्रोजन हॉर्मोन का स्तर कम होता है, जिससे कि ब्रेस्ट कैंसर का खतरा कम हो जाता है. स्तनपान करवाने से शरीर में कुछ हार्मोनल बदलाव होते हैं, जिससे कि मासिक चक्र की वापसी में देरी होती है. यह एस्ट्रोजन हार्मोन के उत्पादन को भी कम कर देता है, जिससे कि स्तन कैंसर और अंडाशय कैंसर का जोखिम कम होता है.
– स्तनों की होती है नियमित सफाई
इसके अलावा गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान महिलाओं के स्तन अतिरिक्त उत्तकों को भी बहा देते हैं. इससे संभावित डीएनए स्तनों को क्षति से बचाव के साथ ही हानिकारक कोशिकाओं को हटाने में मदद कर सकता है और स्तन कैंसर के विकास की संभावनाओं को कम करता है. स्तनपान ओवेल्यूशन को रोककर अंडाशय कैंसर के जोखिम को भी कम करने में मदद करता है. ओवेल्यूशन जितना कम होगा, अंडाशय में अंडे उतने ही कम बनेंगे और शरीर द्वारा एस्ट्रोजन हार्मोन का उत्पादन भी उतना ही कम होगा. इस तरह शरीर की असामान्य कोशिकाएं, एस्ट्रोजन के संपर्क में कम आएंगी और इनके कैंसर सेल में परिवर्तित होने का खतरा कम हो जायेगा. इस तरह ब्रेस्टफीडिंग से ब्रेस्ट की कोशिकाएं नियमित रूप से साफ होती रहती हैं, जिससे कैंसर के विकास का खतरा कम होता है.
– वजन नियंत्रित करने में मिलती है मदद
स्तनपान कराने से मां का वजन नियंत्रित रहता है, जो ब्रेस्ट कैंसर के खतरे को कम करने में मदद करता है. दरअसल, स्तनपान के दौरान, मां का शरीर दूध उत्पादन के लिए अतिरिक्त कैलोरी जलाता है. इससे उनका वजन कम हो सकता है. इसके अलावा, स्तनपान से ऑक्सीटोसिन हार्मोन का स्तर बढ़ता है, जो गर्भाशय को संकुचित करने और प्रसव के बाद के वजन को कम करने में मदद करता है.
– शिशुओं की रोग प्रतिरोधी क्षमता में होती है क्षमता
मां का दूध शिशुओं के लिए आदर्श पोषण प्रदान करता है. मां के स्तनों से निकलने वाला पहला दूध एक पतला पीला फ़्लूड होता है, जिसे कोलोस्ट्रम कहा जाता है. कोलोस्ट्रम में खास तौर पर, कैलोरी, प्रोटीन, सफ़ेद रक्त कोशिकाओं तथा एंटीबॉडीज की भरपूर मात्रा पायी जाती है. मां के दूध से शिशुओं को फार्मूला मिल्क की तुलना में अधिक आसानी से पच जाता है. इसमें एंटीबॉडीज़ और सफ़ेद रक्त कोशिकाएं होती हैं, जो आपके बच्चे को वायरस और बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करते हैं. इससे शिशुओं की कई तरह के संक्रमणों से सुरक्षा होती है.