ऐसा लग रहा है मानो इजराइल हमास का अस्तित्व ही समाप्त कर देने को उतारू है और जिस तरह जुलाई के अंतिम सप्ताह में इजराइल ने हमास और हिजबुल्ला के आला कमांडरों की हत्या करवाई है, उससे पश्चिम एशिया में लगी आग के व्यापक क्षेत्र में फैलने की आशंका जाहिर की जा रही है। ईरान के राष्ट्रपति के शपथग्रहण समारोह में भाग लेने गए हमास नेता इस्माइल हानिया की राजधानी तेहरान में सरकारी निवास में हत्या की गई है, उससे गुस्साया ईरान धमकियां दे रहा है कि वह इसका बदला लेकर ही रहेगा। भय है कि इजराइल पर ईरान हमला करता है तो इजराइल के विरुद्ध एक साथ कई मोर्चे खुल जाएंगे और पेट्रोल कुओं से भरा पूरा मध्यपूर्व क्षेत्र धूं-धूं कर जलने लगेगा।
इजराइल और फिलिस्तीनियों के बीच 1948 से ही चल रही तनातनी के कारणों से पश्चिम एशिया में हमेशा युद्ध का वातावरण रहता है, लेकिन गत वर्ष 7 अक्टूबर को फिलिस्तीन उग्रवादी संगठन हमास ने इजराइल पर 3000 से अधिक राकेटों से ताबड़तोड़ हमले कर आग में पेट्रोल डालने का काम किया था, जो आज तक बुझने का नाम नहीं ले रहा। गत 31 जुलाई को इजराइल ने इस आग को और भड़काने का काम किया, जब ईरान की राजधानी तेहरान में फिलिस्तीनी हमास नेता इस्माइल हानिया पर देर रात हमला हुआ, जिसमें वह मारा गया। चूंकि इजराइल ने यह हमला ईरान की धरती पर किया, इसलिए ईरान तिलमिलाया हुआ है। सामरिक जगत इसकी प्रतीक्षा कर रहा है कि ईरान कब इजराइल को सबक सिखाने वाला जवाबी सैन्य हमला करता है। ईरान ने इसके पहले गत अप्रैल में भी इजराइल पर राकेटों से हमला किया था, जिस पर इजराइल ने संयम बरता था, लेकिन इस बार यदि ईरान इजराइल पर हमला करता है तो पूरा पश्चिम एशिया युद्ध की ज्वाला में दहक सकता है।
गत 7 अक्टूबर को इजराइल पर हमास द्वारा किए गए हमले से खुद हमास इजराइली गुस्से को झेलता हुआ इसमें झुलसते जा रहा है, लेकिन वह इजराइल के साथ संघर्ष विराम के लिए तैयार नहीं हो रहा। इजराइली हमले में फिलिस्तीनी क्षेत्र गाजा पट्टी के 40 हजार से अधिक लोग मौत के घाट उतर चुके हैं, लेकिन न तो इजराइल को इस जनसंहार का कोई पछतावा है और न ही हमास झुकने को तैयार है।
ऐसा लग रहा है मानो इजराइल हमास का अस्तित्व ही समाप्त कर देने को उतारू है और जिस तरह जुलाई के अंतिम सप्ताह में इजराइल ने हमास और हिजबुल्ला के आला कमांडरों की हत्या करवाई है, उससे पश्चिम एशिया में लगी आग के व्यापक क्षेत्र में फैलने की आशंका जाहिर की जा रही है। ईरान के राष्ट्रपति के शपथग्रहण समारोह में भाग लेने गए हमास नेता इस्माइल हानिया की राजधानी तेहरान में सरकारी निवास में हत्या की गई है, उससे गुस्साया ईरान धमकियां दे रहा है कि वह इसका बदला लेकर ही रहेगा। भय है कि इजराइल पर ईरान हमला करता है तो इजराइल के विरुद्ध एक साथ कई मोर्चे खुल जाएंगे और पेट्रोल कुओं से भरा पूरा मध्यपूर्व क्षेत्र धूं-धूं कर जलने लगेगा।
इजराइल और फिलिस्तीनियों के बीच लगातार उग्र और खूनी रूप लेते विवाद के कारण से पश्चिम एशिया का राजनीतिक और सुरक्षा वातावरण लगातार उलझता जा रहा है और अब यह पूरा क्षेत्र एक व्यापक क्षेत्रीय युद्ध के मुहाने पर खड़ा है। गत 7 अक्टूबर को हमास ने इजराइल पर हमला कर अपने विनाश के लिए इजराइल को खुला निमंत्रण दे दिया था, जो अब तक रुकने का नाम नहीं ले रहा है। इजराइल और फिलिस्तीनियों के बीच चल रहे संघर्ष में अब तक 40 हजार से अधिक फिलिस्तीनी और डेढ़ हजार से अधिक इजराइली मारे जा चुके हैं। अब यह लड़ाई केवल फिलिस्तीनी हमास और इजराइल के बीच ही सीमित नहीं रह गई है। इस युद्ध में लेबनान स्थित हिजबुल्ला, यमन स्थित हूती और ईरान भी पक्षकार बन चुका है। इजराइली सैनिक कार्रवाई से फिलिस्तीनी समर्थकों को लगातार उकसाया जा रहा है और जवाब में ईरानी व इसके फिलिस्तीनी पिट्ठू इजराइल का अस्तित्व समाप्त कर देने की लगातार खोखली धमकियां ही दे रहे हैं, लेकिन इजराइल को इससे डर नहीं लग रहा है तो इसका एक बड़ा कारण यह है कि उसकी पीठ पर अमेरिका का हाथ है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय केवल मूकदर्शक ही बने रहने को मजबूर हैं। इजराइल द्वारा किए जा रहे फिलिस्तीनी नरसंहार को रुकवाने के बदले अमेरिका इजराइल को अरबों डालर की सैन्य सहायता दे रहा है, जिससे इजराइल का मनोबल बढ़ा हुआ है।
गत 7 अक्टूबर को गाजा पट्टी के क्षेत्र से फिलिस्तीनी हमास संगठन द्वारा अभूतपूर्व तरीके से 3 हजार रॉकेटों की बरसात कर इजराइलियों को झकझोर कर रख दिया था। अपने इतिहास में इजराइलियों ने इतना बड़ा हमला पहली बार झेला था। 1948 में इजराइल राज्य की स्थापना के बाद से ऐसा पहली बार हुआ कि फिलिस्तीनियों के हमले से इजराइल कराहने लगा हो। इस हमले में करीब 1400 इजराइली मारे गए थे। राकेटों से हमला करने के अलावा फिलिस्तीनी लोग पैराशूट और जमीनी वाहनों से इजराइल में घुसे थे और 250 से अधिक इजराइलियों को बंधक बना कर ले गए थे। इनमें से करीब 50 बंधक आज भी हमास के कब्जे में हैं, जिन्हें छोड़ने के लिए हमास की शर्तों को इजराइल मानने को तैयार नहीं है। हमास की मांग है कि इजराइल की जेलों में बंद सैंकड़ों फिलिस्तीनियों को रिहा किया जाए। इजराइल की दादागिरी का समुचित निर्णायक उत्तर देने की ताकत न तो हमास के पास है और न ही ईरान के पास। गाजा पट्टी के क्षेत्र में पिछले 10 महीने से इजराइल रोजाना सैंकड़ों फिलिस्तीनियों की जानें ले रहा है और जिस तरह अस्पतालों पर मिसाइली हमले इजराइली सेना कर रही है, उसकी अंतरराष्ट्रीय समुदाय निंदा तो कर रहा है, लेकिन इन हमलों को रोकने के लिए कोई ठोस जमीनी कार्रवाई नहीं कर रहा है।
दूसरी ओर मुस्लिम देश होने के बावजूद बाकी अरब देश फिलिस्तीनियों के साथ खुल कर सामने नहीं आ रहे। सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, कुवैत आदि देशों ने फिलिस्तीनी भाइयों के लिए इजराइल से लड़ने हेतु किसी तरह की ठोस सैन्य सहायता नहीं दी है। उन्हें डर है कि यदि इजराइल के विरुद्ध युद्ध में ईरान को विजय मिलती है तो खुद उनके अस्तित्व को संकट पैदा होगा। ईरान समर्थित हुती, हिजबुल्ला और हमास का पश्चिम एशिया पर प्रभुत्व बढ़ने लगेगा और भविष्य में उनकी राजशाही पर आंच आने लगेगी।
इजराइल और फिलिस्तीनी गुटों व इसके आकाओं के बीच यदि युद्ध छिड़ता है तो इसका प्रतिकूल असर भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा, जो भारत सरकार और भारतीय सामरिक जगत के लिए गहरी चिंता की बात है। जहां एक ओर भारत के सैन्य बल इजराइली रक्षा कम्पनियों पर निर्भर है, वहीं पेट्रोलियम उत्पादों के लिए भारत खाड़ी के देशों पर निर्भर है। इसके अलावा पश्चिम एशिया के देशों में 80 लाख से अधिक भारतीय मूल के कामगार रहते हैं, जो हर साल भारत को 100 अरब डॉलर से अधिक की विदेशी मुद्रा भेजते हैं। साफ है कि इजराइल व फिलिस्तीनी संगठनों के बीच बढ़ते तनावों की वजह से पश्चिम एशिया में व्यापक युद्ध छिड़ा तो इससे भारत की अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी। चूंकि भारत की इजराइल व सभी पश्चिम एशियाई देशों से अच्छे सम्बंध हैं, इसलिए भारत को इस क्षेत्र में शांति स्थापित करने के लिए राजनयिक पहल करनी चाहिए।
– रंजीत कुमार