अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में अब करीब दो महीने का समय शेष है और चुनाव सर्वेक्षण कुछ साफ बताने की स्थिति में नहीं हैं। कुछ समय पहले तक डोनाल्ड ट्रंप की बढ़त दिखाई पड़ रही थी, पर जो बाइडेन के हटने और कमला हैरिस का नाम सामने आने के बाद यह बढ़त कम होती प्रतीत हो रही है। सर्वेक्षणों से लगभग यह बात सामने आ रही है कि मतदाता अर्थव्यवस्था और आप्रवास के मुद्दों पर ट्रंप को पसंद करते हैं। इसके अलावा ट्रंप के विरुद्ध पिछले चार वर्षों में हुई कार्रवाइयों के कारण भी वोटर की हमदर्दी उनके साथ है।
सच यह है कि पिछले कुछ वर्षों में देश में ध्रुवीकरण तेजी से बढ़ा है। इसमें ‘ब्लैक लाइव मैटर्स’ और फलस्तीन-समर्थन में हुए आंदोलन की भूमिका भी है। एक हद तक बढ़ती असमानता भी इसके लिए उत्तरदायी है। अमेरिका के सबसे अमीर और अत्यंत गरीब दोनों वर्गों में गोरों की संख्या ज्यादा है, जो प्रायः रिपब्लिकन पार्टी के समर्थक हैं। उनकी तुलना में बाहर से आए लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी है। दूसरी नस्लों के लोगों की संख्या बढ़ रही हैं। गोरे मतदाताओं की हिस्सेदारी 71 प्रतिशत से घटकर 65 प्रतिशत के आसपास हो गई है। इन बातों से बहुसंख्यक गोरे मतदाताओं के भीतर अवसाद बढ़ रहा है। इस चुनाव में यूक्रेन और पश्चिम एशिया में चल रही लड़ाइयों की छाया भी पड़ेगी।
देश में प्रत्येक 4 साल में राष्ट्रपति पद के और 2 साल में संसद के चुनाव होते हैं। एक बार राष्ट्रपति चुनाव के साथ और एक बार केवल संसद के चुनाव होते हैं। इस वर्ष 5 नवम्बर को अमेरिकी जनता अगले अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव करने के लिए मतदान करेगी। इस मतदान पर दुनिया भर की नजर रहेगी। इस बार के चुनाव कई कारणों से महत्वपूर्ण हो गए हैं। सबसे बड़ा कारण है पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का मैदान में उतरना और दूसरे वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन का पहले मैदान में उतरना और फिर हट जाना।
नवनिर्वाचित राष्ट्रपति को जनवरी में वाशिंगटन डीसी में कैपिटल बिल्डिंग की सीढ़ियों पर आयोजित एक समारोह में शपथ दिलाई जाती है, जिसे उद्घाटन समारोह कहते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति के पास असाधारण शक्तियां होती हैं और कुछ कानून स्वयं पारित करने की शक्ति भी। विश्व मंच पर उसे देश का प्रतिनिधित्व करने और विदेश नीति संचालित करने के पर्याप्त अधिकार प्राप्त हैं, पर ज्यादातर कानूनों को पारित करने के लिए उन्हें संसद के दोनों सदनों के साथ मिलकर काम करना पड़ता है।
अमेरिका में राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने के पहले प्रत्याशियों को जनता के बीच जाकर अपनी दावेदारी को रखना होता है। देश की दोनों मुख्य पार्टियां राज्य प्राइमरी और कॉकस नामक मतदान की एक श्रृंखला आयोजित करके राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को नामित करती हैं, जहां मतदाता चुनते हैं कि वे आम चुनाव में पार्टी का नेतृत्व करने का दायित्व किसे देना चाहते हैं।
रिपब्लिकन पार्टी में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने प्रतिद्वंद्वियों पर भारी बढ़त के साथ अपनी पार्टी का समर्थन हासिल कर लिया। विस्कॉन्सिन के मिल्वौकी में हुए पार्टी सम्मेलन में वे रिपब्लिकन पार्टी उम्मीदवार बन गए हैं। डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से पहले राष्ट्रपति पद के लिए जो बाइडेन और उपराष्ट्रपति पद के लिए कमला हैरिस के नाम तकरीबन तय हो चुके थे, पर जो बाइडेन के बाहर हो जाने के बाद वे अब राष्ट्रपति पद की प्रत्याशी हैं। उन्हें गत 6 अगस्त को पार्टी ने अपना आधिकारिक प्रत्याशी घोषित कर दिया। चुनाव में राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी अपने उपराष्ट्रपति का चयन पहले से कर लेते हैं। राष्ट्रपति का चुनाव जीतने वाले के सहयोगी उपराष्ट्रपति स्वयमेव जीत जाते हैं। इस चुनाव में ट्रंप ने जेडी वेंस को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है और कमला हैरिस ने टिम वाल्ज़ को अपना रनिंग मेट बनाया है।
कुछ स्वतंत्र उम्मीदवार भी चुनाव लड़ रहे हैं, जिनमें पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी के भतीजे रॉबर्ट एफ कैनेडी जूनियर भी शामिल हैं। आमतौर पर चुनाव की रात को विजेता की घोषणा कर दी जाती है, लेकिन 2020 में सभी वोटों की गिनती में कुछ दिन लग गए थे। 6 जनवरी 2021 को ट्रंप समर्थकों ने देश के संसद भवन पर धावा भी बोल दिया था, जिसके कारण वे चुनाव विवादास्पद हो गए थे। उस घटना के बाद से डोनाल्ड ट्रंप के विरुद्ध कई प्रकार के मुकदमे अदालतों में चल रहे हैं। अमेरिका में यदि किसी प्रत्याशी को सजा हो जाए, तब भी उसे चुनाव लड़ने से रोका नहीं जा सकता।
अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी को उदार राजनीतिक दल माना जाता है, जिसका एजेंडा मुख्यतः नागरिक अधिकारों, व्यापक सामाजिक सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपायों के लिए प्रयास करना है। रिपब्लिकन पार्टी रूढ़िवादी राजनीतिक दल है। इसे ग्रैंड ओल्ड पार्टी के नाम से भी जाना जाता है। यह पार्टी टैक्स कम करने, सरकार के आकार को छोटा करने, बंदूक रखने के अधिकार और आव्रजन तथा गर्भपात पर कड़े प्रतिबंधों के पक्ष में है।
राष्ट्रपति पद का चुनाव सीधे जनता करती है, पर विजेता वह व्यक्ति नहीं होता, जिसे देश भर में सबसे अधिक वोट मिले हों। दोनों उम्मीदवारों के बीच देश के 50 राज्यों में प्रतिस्पर्धा होती है। प्रत्येक राज्य में एक निश्चित संख्या में निर्वाचक मंडल के वोट होते हैं जो आंशिक रूप से जनसंख्या पर आधारित होते हैं। कैलिफोर्निया से सबसे ज्यादा 55 निर्वाचक आते हैं और वायोमिंग, अलास्का और नॉर्थ डकोटा (और वॉशिंगटन डीसी) से सबसे कम तीन-तीन। चुनाव की पद्धति यह है कि जब किसी प्रत्याशी को किसी राज्य में बहुमत मिल जाता है, तो उस राज्य के सभी निर्वाचक उसके खाते में आ जाते हैं। उदाहरण के लिए यदि टेक्सास से रिपब्लिकन पार्टी को बहुमत मिला, तो राज्य से रिपब्लिकन पार्टी के सभी 38 निर्वाचक जीत जाएंगे। फिर भी दो राज्य मेन और नेब्रास्का ऐसे हैं, जो प्रत्याशियों को मिले वोटों के अनुपात में निर्वाचकों की संख्या तय करते हैं। देशभर में कुल 538 सीटों के लिए चुनाव होते हैं और विजेता वह होता है जो 270 या उससे अधिक सीटें जीते।
ज्यादातर राज्य एक या दूसरी पार्टी की तरफ ज्यादा झुके हुए हैं, इसलिए आम तौर पर ध्यान एक दर्जन या उससे ज्यादा राज्यों पर होता है, जहां दोनों में से कोई भी जीत सकता है। इन्हें ‘बैटलग्राउंड’ या ‘स्विंग स्टेट’ के नाम से जाना जाता है। इस व्यवस्था में सम्भव है कि कोई उम्मीदवार राष्ट्रीय स्तर पर सबसे अधिक वोट जीत ले, लेकिन फिर भी वह निर्वाचक मंडल में पराजित हो जाए, जैसा कि 2016 में हिलेरी क्लिटंन के साथ हुआ था।