‘परहित सरिस धर्म नहिं भाई’ को चरितार्थ करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा राष्ट्र कल्याण की दिशा में लगभग 99 वर्षों की अविराम साधना कोई साधारण कार्य नहीं है। संघ ने जितनी लम्बा यात्रा तय की है, उतने ही संघर्ष भी झेले हैं। असंख्य कार्यकर्ताओं का जीवन राष्ट्रकल्याण की यज्ञवेदी में आहूत हुआ है, तो वहीं असंख्य उपलब्धियां भी संघ के यशोगान को गुंजित कर रही हैं।
27 सितम्बर 1925 के दिन धर्म और सत्य की विजय का प्रतीक पर्व विजयादशमी के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का बीजारोपण हुआ। राष्ट्र कल्याण और समाज उत्थान के महासंकल्प के साथ लगभग 9 दशक से भी पूर्व रोपा गया यह पौधा आज विशाल वटवृक्ष के रूप में न केवल अपनी आभा बिखेर रहा है बल्कि विश्व पटल पर समाज और राष्ट्रहित में त्याग, तपस्या, समर्पण, सेवा और परोपकार के जीवंत उदाहरण भी प्रस्तुत कर रहा है। राष्ट्रीय स्वाहा, ‘इदं राष्ट्राय इदं न मम’ संघ के द्वितीय प. पू. सरसंघचालक श्रीगुरूजी का राष्ट्र को समर्पित यह मंत्र आज भी संघ के रोम-रोम में व्याप्त है।
‘परहित सरिस धर्म नहिं भाई’ को चरितार्थ करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा राष्ट्र कल्याण की दिशा में लगभग 99 वर्षों की अविराम साधना कोई साधारण कार्य नहीं है। संघ ने जितनी लम्बा यात्रा तय की है, उतने ही संघर्ष भी झेले हैं। असंख्य कार्यकर्ताओं का जीवन राष्ट्रकल्याण की यज्ञवेदी में आहूत हुआ है, तो वहीं असंख्य उपलब्धियां भी संघ के यशोगान को गुंजित कर रही हैं। जहां एक ओर छोटी-छोटी उपलब्धियों में व्यक्ति, संस्था अथवा संगठनों का अभिमान बढ़ जाता है, वहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसा विशाल संगठन 99 वर्षों से साहस, धीरज और स्वाभिमान के मंत्र को सार्थक कर प्रतिपल आगे बढ़ रहा है। दुनिया के सबसे बड़े सांस्कृतिक एवं वैचारिक संगठन का तमगा जरूर लगा है, लेकिन न किसी उपलब्धि का अभिमान है और न ही किसी संघर्ष का पश्चाताप।
भारत माता की सेवा को तत्पर रहने वाले असंख्य स्वयंसेवकों द्वारा अपनाया गए कण्टकाकीर्ण मार्ग पर चलकर संघ आज भी समाज में जनजागृति के अभियान को लेकर उसी गति से आगे बढ़ रहा है। यह दुनिया के लिए गौरवान्वित करने वाली बात हो सकती है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 27 सितंबर 2025 को अपनी 100 वर्षों की यात्रा पूर्ण करने जा रहा है, लेकिन संघ के समभाव रहने वाले स्वयंसेवकों के लिए यह महज एक पड़ाव है। अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने का, राष्ट्र कल्याण की दिशा में नए लक्ष्यों को निर्धारित करने का, समाज के अंतिम छोर तक पहुंच बनाने का, व्यक्ति निर्माण के संकल्प का, समाज में एकरूपता और एकजुटता लाने का, देश की उन्नति में अपने योगदान का, भारत को सामर्थ्यशाली और समृद्ध बनाने का।
हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी शताब्दी वर्ष के अवसर पर एक कार्यक्रम में स्वयंसेवकों को सम्बोधित कर कहते हैं कि संघ के स्वयंसेवक गमले के पुष्प नहीं, बल्कि वन के फूल हैं जो अपने पोषण की व्यवस्था स्वयं करता है। हम लोगों को समाज ने सम्मान दिया है। स्वयंसेवकों को नहीं भूलना चाहिए कि हमारी दशा बदली है, लेकिन दिशा नहीं। हमें विनम्रता और शील नहीं छोड़ना चाहिए, हम लोग बलशाली हो सकते हैं, परंतु उन्मुक्त नहीं। उन्होंने स्वयंसेवकों से आग्रह करते हुए कहा कि अपने लिए चार काम सुनिश्चित करें, पहला कार्य- शाखा की नित्य साधना है। दूसरा कार्य- शाखा से प्राप्त शिक्षा के आधार पर अपना आचरण रखना। तीसरा कार्य- जैसा समाज चाहिए उस अनुरूप अनुशासन के साथ प्रमाणिकता से आचरण और चौथा कार्य भोग नहीं बल्कि त्याग का सिद्धांत व्यवहार में उतारना। उन्होंने कहा कि स्वयंसेवक अपने दैनिक जीवन में सामाजिक समरसता, कुटुम्ब भाव, पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता, स्वदेशी का आग्रह और नागरिक कर्तव्य बोध का पालन करें। किसी देश का समुचित विकास तभी सम्भव हो पाता है, जब उसके नागरिकों में नागरिक कर्तव्य का बोध हो और उसके पालन के प्रति कठोरता हो।
पंच परिवर्तन से समाज कल्याण
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा के अनुसार संघ अपने शताब्दी वर्ष पर उपलब्धियों का गुणगान नहीं बल्कि समाज के साथ मिलकर कार्य करते हुए सामाजिक समरसता, कुटुम्ब प्रबोधन, पर्यावरण जागरुकता, स्व पर जोर व नागरिकों के कर्तव्य बोध जैसे पंच परिवर्तन पर काम करेगा।
सामाजिक समरसता- सामाजिक परिवर्तन समाज की सज्जन-शक्तियों के एकत्रीकरण और सामूहिक प्रयास से ही सम्भव है। सम्पूर्ण समाज को जोड़कर सामाजिक परिवर्तन की दिशा में आगे बढ़ने का संघ का संकल्प है। आज भी देश में ऊंच-नीच और
छुआछूत दिखाई देती है। शहरों में इसका प्रभाव बहुत कम है। संघ का लक्ष्य है कि गांव के तालाब, मंदिर और श्मशान को लेकर समाज में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।
कुटुम्ब प्रबोधन- संघ की पंच परम्परा में कुटुम्ब को समाज की इकाई माना है। कुटुम्ब, खुशहाल और स्वस्थ परिवार शांतिपूर्ण और समृद्ध समाज की कुंजी है। कुटुम्ब से व्यक्ति और समाज दोनों का, सब प्रकार से पोषण होता है। आज समय की आवश्यकता है कुटुम्ब प्रबोधन जिसका संघ ने बीड़ा उठाया है।
पर्यावरण- संघ का मानना है कि पानी, प्लास्टिक, पेड़- पर्यावरण की रक्षा, ये किसी एक संगठन का अभियान नहीं, वरन पूरे समाज का है। स्वयंसेवकों को स्वयं और अन्य लोगों को भी प्लास्टिक के प्रयोग से बचना चाहिए। पानी के दुरुपयोग और वृक्षों के सुरक्षा व संवर्धन पर भी ध्यान देना चाहिए। पंच परिवर्तन में पर्यावरण संरक्षण भी प्रमुख है।
स्वदेशी- ‘स्व’ आधारित व्यवस्था का आग्रह- संघ अपने शताब्दी वर्ष में स्वयंसेवकों को ‘स्व’ बोध का स्वाभिमान और स्वदेशी भाव पर जीवन को उत्कृष्ट बनाने की योजना पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। संघ का मानना है कि स्वयंसेवकों में ‘स्व’ के भाव का जागरण होगा तो समाज प्रेरणा लेगा।
नागरिक कर्तव्य- संघ के पंच परिवर्तन का एक बिंदु है ‘नागरिक कर्तव्य’। किसी देश का समुचित विकास तभी सम्भव हो पाता है, जब उसके नागरिकों में नागरिक कर्तव्य का बोध हो और उसके पालन के प्रति कठोरता हो। संघ का संकल्प है कि स्वयंसेवक इस दिशा में अपना उदाहरण प्रस्तुत करें और समाज को भी जागरूक करें।
संघ से जुड़ रही है युवा शक्ति
संघ ने वर्ष 2012 में ज्वाइन आरएसएस के तहत एक ऑनलाइन माध्यम प्रारम्भ किया था, इसके अंतर्गत प्रतिवर्ष 1 से 1:25 लाख लोग संघ के साथ विविध गतिविधियों में जुड़ रहे हैं। इस वर्ष भी जून के अंत तक 66529 लोग संघ के सम्पर्क में आए। 2024 में आयोजित प्रशिक्षण वर्गों में 24 हजार से अधिक कार्यकर्ताओं ने प्रशिक्षण लिया है। देशभर में 40 वर्ष से कम आयु के स्वयंसेवकों के लिए इस वर्ष कुल 72 वर्ग (संघ शिक्षा वर्ग- 60, कार्यकर्ता विकास वर्ग प्रथम- 11, कार्यकर्ता विकास वर्ग द्वितीय – 1) आयोजित हुए, इनमें 20 हजार 615 लोगों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया तो वहीं 40 से 65 वर्ष की आयु के लोगों के लिए आयोजित 18 वर्गों में 3 हजार 335 शिक्षार्थियों ने भाग लिया। पिछले वर्ष आयोजित प्राथमिक शिक्षा वर्गों में 1 लाख नए नागरिकों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया। इसी प्रारम्भिक वर्गों (तीन दिवसीय) का आयोजन देशभर में हो रहा है, जिसमें प्राथमिक से दोगुनी संख्या में युवा सहभागी हो रहे हैं। गौरतलब है कि श्रीराम जन्मभूमि अक्षत वितरण अभियान के दौरान 15 दिनों में देश के पौने छह लाख गांवों तक स्वयंसेवक पहुंचे थे।
संघ कार्य के विस्तार पर जोर
अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आम्बेकर ने मीडिया से संवाद में बताया कि विजयादशमी 2025 तक देश में संघ कार्य विस्तार को लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में सभी मंडल तथा शहरी क्षेत्रों में सभी बस्तियों में दैनिक शाखा का लक्ष्य तय किया है। मार्च 2024 तक देश में 58981 मंडलों में से 36823 मंडल में प्रत्यक्ष दैनिक शाखा हैं। ऐसे ही शहरी क्षेत्रों में 23649 बस्तियों में से 14645 बस्तियों में संघ कार्य हैं। शेष में साप्ताहिक अथवा मासिक सम्पर्क है। देश में 73117 दैनिक शाखाएं और 27717 साप्ताहिक मिलन चलते हैं। इसके अलावा जहां शाखा कार्य अथवा सम्पर्क नहीं है, संघ ऐसे 158532 गांवों में जागरण पत्रिकाओं के माध्यम से लोगों तक पहुंच बना रहा है। 2025-26 शताब्दी वर्ष है और इन वर्षों में सामाजिक परिवर्तन के पंच उपक्रम को शाखा स्तर और समाज तक पहुंचाने की योजना के अनुरूप शताब्दी वर्ष के कार्य विस्तार की योजना को पूर्ण करने के लिए देश भर में 3000 कार्यकर्ता दो वर्ष का समय शताब्दी विस्तारक के रूप में दे रहे हैं।
हर परिस्थिति में डटकर खड़े रहते हैं स्वयंसेवक
संघ व्यक्ति निर्माण की पाठशाला है जो राष्ट्रनिर्माण की ओर अग्रसर है। हर परिस्थिति में संघ के स्वयंसेवक मानव सेवा को तत्पर रहते हैं, चाहे भीषण आपदा हो या कोई दुर्घटना। 1971 के उड़ीसा चक्रवात हो या 1977 के आंध्र प्रदेश चक्रवात। ट्रेन दुर्घटना हो या फिर बाढ़। कोरोना जैसी महामारी में राहत कार्य हो या फिर गरीब और शोषित, वंचितों के बीच सेवा कार्य। संघ ने हमेशा महती भूमिका निभाई है। राहत और पुर्नवास संघ के संस्कारों में है। आज हर क्षेत्र में संघ की उपस्थिति देखी जा सकती है। किसान, महिला, युवा, मजदूर, वनवासी, युवा, शिक्षक, अधिवक्ता हर वर्ग के नागरिकों से संघ का जुड़ाव है। अनकों अनुसांगिक संगठन संघ के नेतृत्व में मातृभूमि की सेवा में तत्पर होकर कार्य कर रहे हैं। संघ की मूल भावना यही पुकार करती है कि-
कर्म समर्पित हो हर प्राण, यश अपयश पर ना हो ध्यान।
व्यमोही आकर्षण तज दें, आलोकित हो शील विनय॥
सृजन करें नव शुभ रचनाएं, सत्य अहिंसा पथ अपनाएं।
मंगलमय हिंदुत्व सुधा से, छलकाएंगे घट अक्षय॥
– आलोक शर्मा