आज डिजिटल विश्व में हिंदी सबसे तीव्र गति से बढ़ने वाली भाषा है। अब स्वयं गूगल का सर्वेक्षण यह सिद्ध करता है कि इंटरनेट पर हिंदी में प्रस्तुत होने वाली सामग्री में विगत 5 वर्षों में 94% की दर से इजाफा हुआ है.जबकि अंग्रेजी केवल 19% की दर से बढ़ रही है। इस समय भारत में 75 करोड़ लोगों के पास स्मार्ट फोन है जिसमें से 63 करोड़ से अधिक लोग हिंदी का प्रयोग करते हैं। भारत के 93% युवा यू- ट्यूब पर हिंदी का ही प्रयोग करते हैं।
भारतीय संविधान में राजभाषा का अधिकार प्राप्त करने के उपरांत इस वर्ष हिंदी 75 वर्ष पूर्ण कर रही है। यह राजभाषा हिंदी का अमृत महोत्सवी वर्ष है। इस बीच वह लगातार विकासमान है और उपलब्धियों के बड़े शिखर पार कर रही है। आज जब वैश्वीकरण की आंधी चल रही है तो हिंदी भी उसके स्कंध पर आरूढ़ होकर वैश्विक व्याप्ति का अनुभव कर रही है। आज भारत विश्व का सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश बन चुका है और पेशेवर भारतीयों के माध्यम से हिंदी विश्व के हर महत्त्वपूर्ण देश में पहुँच चुकी है। अब हिंदी वैश्विक संवाद का महत्वपूर्ण माध्यम बन गई है। वस्तुत: वैश्वीकरण संपूर्ण विश्व को एक रीति- नीति और अर्थतंत्र में लाने के प्रयास की अभिव्यक्ति है। बाजारवाद और उपभोक्तावाद वैश्वीकरण के सहचर हैं। यह संपूर्ण विश्व को तकनीक के माध्यम से एक सर्व-सुविधा सम्पन्न गाँव में रूपांतरित कर रही है । वैश्वीकरण का सर्वाधिक प्रभाव भाषाओं पर पड़ रहा है । इसके कारण बड़ी भाषाएँ विश्व व्यापी हो रही हैं और छोटी भाषाएँ अस्तित्व के संकट से जूझ रही हैं। ऐसी स्थिति में हिंदी पर खुला विमर्श समय की माँग है। इस आलेख में इस विषय पर गंभीर विश्लेषण प्रस्तुत हुआ है।
यह सर्वविदित है कि अब हिंदी विश्व भाषा बन चुकी है और नई तकनीक के सहारे वह विश्व व्यापी बन रही है। हिंदी की अब तक की उपलब्धियाँ कम आश्चर्यजनक नहीं हैं, क्योंकि इसके पीछे किसी साम्राज्यवादी शक्ति और उसका धन नहीं लगा है। वह अपनी सहजता, सरलता और सर्वप्रियता के कारण उपलब्धियों के बड़े शिखरों का संस्पर्श कर रही है। आज जब हम अपनी आजादी का अमृत महोत्सव पूर्ण करके अमृत काल में प्रवेश कर गए हैं तो यह आवश्यक हो जाता है कि हम हिंदी की अद्यतन उपलब्धियों का तटस्थ विश्लेषण करें। हिंदी अपनी सर्जनात्मक और बहुविध उपलब्धियों के कारण विश्व की किसी भी भाषा की समकक्षता की अधिकारिणी बन गई है। वह स्वाधीनता संग्राम की आधिकारिक भाषा थी, जिसके कारण आजादी मिलने के बाद देश के कर्णधारों ने हिंदी को भारतीय संघ की राजभाषा का सम्मान दिया। आजादी के बाद शासकीय कार्यालयों में हिंदी का प्रयोग बढ़ने से उसका बहुविध विकास हुआ। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 351 के निर्देशों के अनुरूप उसका विधिवत मानकीकरण किया गया। वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग की सहायता से 10 लाख से अधिक नए शब्द निर्मित किए गए। वह ज्ञान-विज्ञान, कला- संस्कृति, सिनेमा-साहित्य, विधि-वाणिज्य, बैंकिंग-राजनय, पत्रकारिता-मीडिया, डिजिटल दुनिया और विनिमय के अनेक क्षेत्रों में आधिकारिक तौर पर प्रयुक्त हो रही है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस दौरान हिंदी ने अनेक अवरोध पार करते हुए उपलब्धियों के बड़े शिखर भी पार किए हैं।
जब संविधान सभा में एक लंबी बहस के उपरांत हिंदी को भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया, तब उसे एक ऐसा संवैधानिक दर्जा मिल गया जो अन्य भारतीय भाषाओं से उसकी पहचान अलग करता है। हमें यह भी स्मरण रखना होगा कि जिस हिंदी को डॉ. बी.आर. आंबेडकर की अध्यक्षता वाली मसौदा समिति ने हिंदी को राजभाषा के पद पर आसीन किया, क्या राजनीतिक कारणों से हिंदी के विरोध द्वारा कुछ लोग डॉ. आंबेडकर का भी अपमान नहीं करते? इसी तरह महात्मा गांधी जिस हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दे चुके थे, क्या हम उसी हिंदी के विरोध द्वारा गाँधीजी का अपमान नहीं करते? यह भी चिंतनीय है कि दक्षिण भारतीय राजनेता श्री गोपाल स्वामी आयंगर ने हिंदी को राजभाषा घोषित करने वाले प्रस्ताव को रखा था। संविधान सभा में हिंदी और देवनागरी लिपि तथा भारतीय अंकों के अंतरराष्ट्रीय रूप को लेकर कई दिनों तक जो बहस चली थी तो उसका समापन श्री गोपालस्वामी आयंगर एवं गुजरात के श्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी द्वारा प्रस्तुत फार्मूले के रूप में हुआ, जिसे आज मुंशी-आयंगर फार्मूले के नाम से जाना जाता है। इस तरह हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिलाने में हिंदीतर भाषियों और दक्षिण भारतीयों की विशेष भूमिका रही है। ऐसी स्थिति में आज दक्षिण भारत में हिंदी का राजनीतिक कारणों से विरोध उचित नहीं है। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि जो हिंदी स्वाधीनता आन्दोलन के समय ही इस देश की संपर्क भाषा बनकर अपनी उपयोगिता सिद्ध कर चुकी है वह आज भी संपूर्ण देश को एकता के सूत्र में पिरोती है।
राष्ट्रीय आंदोलन के साथ हिंदी राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रीय चेतना के विकास का कारक भी बनी। वह स्वाधीन भारत में भी देश प्रेम की उत्कट भावनाओं का प्रतीक बनी हुई है। वह देशवासियों के मध्य आपसी संवाद का सबसे बड़ा जरिया है। वह दिलों को जोडने का काम करती है। आज हिंदी हमारी सामूहिक अस्मिता का परिचायक है। आज जब संपूर्ण विश्व बहुभाषिकता की ओर बढ़ रहा है और नई पीढ़ी स्वयं ही अनेक भाषाएं सीखने के प्रति उन्मुख है ,तब इस प्रकार के संकीर्ण दृष्टिकोण का कोई औचित्य नहीं रह गया है। हिंदी भारत बोध और अस्मिता बोध का संवर्धन-संवहन करती है। वह भारत के सबसे उत्तरी भाग सियाचिन ग्लेशियर स्थित इंदिरा घाटी से लेकर देश के सबसे दक्षिणी भाग ग्रेट निकोबार स्थित इंदिरा प्वाइंट तक भारतीय सेनाओं द्वारा प्रयुक्त हो रही है। इसी तरह भारत के सबसे पूर्वी क्षेत्र नागालैंड-मिजोरम से लेकर पश्चिमी छोर नलिया तक प्रयोग में है। वह भारत की सांस्कृतिक एकता का अनिवार्य आधार बन गई है। वह अनेक निराशावादियों की आशंकाओं को रौंदती हुई एक संश्लिष्ट और समंजित इकाई के रूप में निरंतर विकासमान है। वह राष्ट्रीय संपर्क भाषा से ऊपर उठकर विश्व भाषा की गरिमा का संस्पर्श कर रही है।
जब हम हिंदी की विश्वव्याप्ति और वैश्विक भाषा के रूप में अद्यतन स्थिति पर विचार करते हैं तो पाते हैं कि आज हिंदी संपूर्ण विश्व में सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है, भारतवर्ष की विकासशील जनसंख्या हिंदी के प्रसार का एक बड़ा कारण है। आज हिंदी अनेक बोलियों से समन्वित भाषा है।उसका देश- विदेश में अपना संयुक्त परिवार है। आज जितने लोग मातृभाषा अथवा पहली भाषा के रूप में हिंदी का प्रयोग करते हैं, उससे कहीं अधिक लोग उसका द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, पंचम और विदेशी भाषा के रूप में प्रयोग करते हैं। इस समय संपूर्ण विश्व में बहुभाषिकता को बढ़ावा मिल रहा है। फलतः हिंदी संपूर्ण विश्व में 67 करोड़ लोगों की पहली भाषा और 50 करोड़ लोगों की दूसरी और तीसरी भाषा है । वह गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, केरल, तेलंगाना तथा पूर्वोत्तर के भारतीय राज्यों और अधिकांश केन्द्र शासित प्रदेशों तथा नेपाल, भूटान, पाकिस्तान,बांग्लादेश,संयुक्त अरब अमीरात, ओमान, फिजी, मारीशस, थाईलैंड, सूरीनाम, त्रिनिदाद और गयाना जैसे देशों में दूसरी एवं तीसरी भाषा के रूप में प्रयुक्त होती है। शेष विश्व में लगभग 25 करोड़ लोगों द्वारा चौथी, पांचवी और विदेशी भाषा के रूप में प्रयुक्त होती है। इस तरह संपूर्ण विश्व में 140 करोड़ लोग किसी न किसी रूप में हिंदी बोल अथवा समझ लेते हैं।
यही पद्धति अंग्रेजी और चीन की भाषा मंदारिन का आकलन करने वाले भी अपनाते हैं। अंग्रेजी की संख्या का आकलन करने वाले उन भारतीयों को भी अंग्रेजी बोलने वालों में शुमार करते हैं जो अंग्रेजी माध्यम से पढ़े हैं। यद्यपि अमेरिकी- ब्रिटिश और ऑस्ट्रेलियाई अंग्रेजी में पर्याप्त अंतर है लेकिन उन्हें अलग भाषा के रूप में उल्लिखित नहीं किया जाता है। ठीक इसी तरह चीन की भाषा मंदारिन भी 56 बोलियों और विभाषाओं से समन्वित है। लेकिन चीन सरकार उन्हें अलग नहीं मानती। चीन में मंदारिन के अलावा कैंटोनी, अंग्रेजी, पुर्तगाली, यूगुर, तिब्बती, मंगोली और झियांग को भी आधिकारिक भाषा का दर्जा प्राप्त है। इसी तरह यह भी तुलनीय है कि भारत में 82% भारतीय हिंदी बोल अथवा समझ सकते हैं जबकि चीन में केवल 62% लोग ही मंदारिन बोल अथवा समझ पाते हैं। हिंदी को वैश्विक भाषा का दर्जा दिलाने में भारत की विकासमान अर्थव्यवस्था भी है।
इस समय भारत की जनसंख्या 145 करोड़ है, जबकि अमेरिका की 33 करोड़, कनाडा की लगभग 3 करोड़, संपूर्ण यूरोप की 75 करोड़, रूस की 15 करोड़ और ऑस्ट्रेलिया की ढाई करोड़ है। कहने का आशय यह है कि इस समय धरती के लगभग 60% हिस्से पर जितनी जनसंख्या रहती है उससे अधिक जनसंख्या भारत जैसे संपूर्ण विश्व के 5% से भी कम क्षेत्रफल वाले देश में रहती है। इस दृष्टि से भी हिंदी का पलड़ा भारी है। हमारी जनसंख्या हिंदी के संख्याबल का सबसे बड़ा आधार है।
डॉ. जयंती प्रसाद नौटियाल ने भी हिंदी जानने वालों की संख्या का आकलन किया है। इन्होंने अपने शोध में बोलने वालों की संख्या में उर्दू का भी हिंदी के अंतर्गत समावेश किया है जो व्यावहारिक रूप से सही है, चूंकि उर्दू का अपना कोई व्याकरण नहीं है और वह अपनी भाषिक संरचना एवं शब्द-संपदा के लिए मूल रूप से हिंदी पर ही निर्भर है। अतः वह भाषा- वैज्ञानिक दृष्टि से लिपिभेद के बावजूद हिंदी की एक शैली मात्र है। ध्यान रहे यह बात केवल बोलने के संदर्भ में है, हिंदी में काम करने वालों को लेकर नहीं है। इस दृष्टि से चीजों को सही संदर्भ में समझने की अपेक्षा है।
आज डिजिटल विश्व में हिंदी सबसे तीव्र गति से बढ़ने वाली भाषा है। अब स्वयं गूगल का सर्वेक्षण यह सिद्ध करता है कि इंटरनेट पर हिंदी में प्रस्तुत होने वाली सामग्री में विगत 5 वर्षों में 94% की दर से इजाफा हुआ है,.जबकि अंग्रेजी केवल 19% की दर से बढ़ रही है। इस समय भारत में 75 करोड़ लोगों के पास स्मार्ट फोन है जिसमें से 63 करोड़ से अधिक लोग हिंदी का प्रयोग करते हैं। भारत के 93% युवा यू- ट्यूब पर हिंदी का ही प्रयोग करते हैं। भारतीयों द्वारा हर महीने गूगल प्ले स्टोर से एक अरब ऐप्स डाउनलोड किए जाते हैं। हिंदी वायस सर्च क्वेरी 400% की दर से प्रतिवर्ष बढ़ रही है और सोशल मीडिया हिंदी जानने वालों का सबसे बड़ा पटल बन गया है। इस समय जो तकनीकी सुविधा अंग्रेजी में उपलब्ध है वह हिंदी में भी उपलब्ध है। इस समय अंग्रेजी की तुलना में फेसबुक, ट्विटर पर हिंदी ज्यादा लोकप्रिय है। इसका सबसे बड़ा कारण अभिव्यक्ति की सरलता है। इसलिए अंग्रेजी की तुलना में हिंदी में प्रस्तुत होने वाली सामग्री ज्यादा शेयर भी की जाती है। अब ब्लॉगिंग के महासागर में हिंदी की उत्ताल तरंगें देखी जा सकती हैं। भारत निकट भविष्य में विश्व का सबसे बड़ा इंटरनेट उपभोक्ता बनने जा रहा है जिसका सबसे प्रभावी माध्यम हिंदी रहने वाली है।
सोशल मीडिया के कारण अब ई-मेल भी अप्रासंगिक हो रहा है। अब भाषाओं का प्रशिक्षण भी ई-लर्निंग के माध्यम से संभव है। हिंदी में इस समय जो वेब लिंक्स उपलब्ध हैं उनमें राष्ट्रीय पोर्टल, साहित्य कोश और शब्दकोश संबंधी पोर्टल, शिक्षा एवं हिंदी शिक्षण संबंधी पोर्टल, धर्म एवं खेल संबंधी पोर्टल, पत्र-पत्रिकाओं तथा विविध चैनलों के पोर्टल का समावेश है। एक नवीनतम सूचना यह भी है कि नेट फेलिक्स (Netflix) पर सामग्री अब पूरी तरह से हिंदी में उपलब्ध है। आप आमेजान पर भी हिंदी में आदेश भेज सकते हैं। संक्षेप में आज वे सारी तकनीकी सुविधाएं जो विश्व की किसी भी भाषा के पास हैं, वे हिंदी में या तो उपलब्ध हैं अथवा बनने की प्रक्रिया में हैं।
जब हम भाषाओं के भविष्य पर विचार करें तो यह भी जरूरी है कि हम उनके इतिहास और वर्तमान स्वरूप को भी समझ लें। हिंदी लगभग एक हजार सालों से अलग-अलग रजवाड़ों और जनपदों में राजकीय भाषा रही है। वह स्वाधीनता आन्दोलन के इतिहास में संवाद का मुख्य जरिया बनकर उभरती है और खैबर के दर्रे से लेकर रंगून तक वह स्वाधीनता आन्दोलन की अभिव्यक्ति का स्वाभाविक माध्यम बनती है।
अपनी इसी ऐतिहासिक भूमिका के कारण वह स्वतंत्र भारत की राजभाषा बनती है। वह लंबे समय तक नेपाल की भी दूसरी राजभाषा रही है जिसका दर्जा वहां की कम्युनिस्ट सरकार ने समाप्त कर दिया है। हिंदी इस समय भारत के अलावा फिजी एवं संयुक्त अरब अमीरात में भी आधिकारिक भाषा बन गयी है। अब संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी अपना ट्विटर हैंडल हिंदी में आरंभ कर दिया है। उसकी वेबसाइट भी हिंदी में उपलब्ध है। वह हर शुक्रवार एक घंटे का हिंदी कार्यक्रम रेडियो पर प्रस्तुत कर रहा है। अभी हाल ही में भारत सरकार के प्रयासों से संयुक्त राष्ट्र संघ ने हिंदी में भी कामकाज करने और सूचनाएं देने की सुविधा प्रदान की है।
हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी संयुक्त राष्ट्र संघ और हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर हिंदी में अपनी बात बड़े प्रभावी ढंग से रखते हैं जिससे उनकी वैश्विक लोकप्रियता में अभूतपूर्व बढ़ोत्तरी हुई है। इसी तरह अमेरिकी जनगणना के अनुसार सन 2000 से 2011 के बीच अमेरिका में हिंदी बोलने वाले 105% की दर से बढ़े हैं। हमें यह भी स्मरण रखना होगा कि विश्व के जितने भी विकसित राष्ट्र हैं उन सबने अपनी भाषा में विकास किया है। यह बात अमेरिका, रूस, जर्मनी, जापान, फ्रांस, ब्रिटेन, इटली, स्पेन, पुर्तगाल, इजरायल और चीन तक समान रूप से देखी जा सकती है। इजरायल जैसे छोटे से राष्ट्र ने हिब्रू में उत्कृष्ट तथा मौलिक शोधकार्य करके अबतक 12 नोबेल पुरस्कार प्राप्त किए हैं। ये सारे देश अपनी भाषाओं के विकास पर बड़ी धनराशि खर्च करते हैं। इसकी तुलना में भारत सरकार हिंदी एवं भारतीय भाषाओं पर बहुत कम धनराशि खर्च करती है।
इन देशों की सरकारें ऐसी योजनाएं प्रस्तुत करतीं हैं कि उनकी भाषा और साहित्य के प्रति आकर्षण बढ़े और विश्व समुदाय की उन्मुखता उनकी ओर बनी रहे। हम भारत सरकार से भी यही अपेक्षा रखते हैं। यह तभी संभव है जब समूचा हिंदी जगत सरकार पर दबाव बनाए। हम भारत सरकार को इस बात के लिए तैयार करें कि वह विश्व के अनेक देशों में हिंदी और भारतीय भाषाओं की स्थिति का आकलन करने के लिए विद्वानों-विशेषज्ञों की एक समिति गठित करे जो हर १० साल की जनगणना के बाद हिंदी और भारतीय भाषाओं की वस्तुस्थिति का खाका तैयार करे। इसी के साथ भारत में परिचालन करने तथा अंधाधुंध कमाई करने वाली अनेक कंपनियों का यह कर्तव्य सुनिश्चित किया जाए कि वे अपनी सेवाएं हिंदी और भारतीय भाषाओं में दें।
उनके विज्ञापन में हमारी भाषाओं को यथोचित सम्मान मिले। चूंकि लिपि भाषा का शरीर है अतः देवनागरी तथा दूसरी भारतीय लिपियों के प्रयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। यह हर्ष का विषय है कि आज भारत विश्व की सबसे तीव्र गति से उभरने वाले अर्थ व्यवस्था है और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में उसकी हैसियत लगातार बढ़ रही है। जब किसी राष्ट्र को विश्व बिरादरी अपेक्षाकृत ज्यादा महत्व और स्वीकृति देती है तथा उसके प्रति अपनी निर्भरता में बढ़ोत्तरी पाती है तो उस राष्ट्र की अनेक चीजें स्वतः महत्वपूर्ण हो जाती हैं। ऐसी स्थिति में भारत की विकासमान अंतरराष्ट्रीय हैसियत हिंदी के लिए वरदान-सदृश है। अब हिंदी राष्ट्रभाषा अथवा राजभाषा की गंगा से विश्वभाषा का गंगा सागर बनने की प्रक्रिया में है। आज विश्वस्तर पर उसकी स्वीकार्यता और व्याप्ति अनुभव की जा सकती है। आने वाला समय हिंद और हिंदी का है।
इस समय हिंदी राजनीति, समाज-व्यवस्था, धर्म, दर्शन, संस्कृति, पर्यटन, मनोरंजन, मीडिया,खेल और रोजगार के क्षेत्र में सबसे प्रभावी भाषा बनकर उभरी है। यह राजभाषा हिंदी का अमृत महोत्सवी वर्ष है और यह अत्यंत हर्ष की बात है कि वर्तमान सरकार में राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री कार्यालय, गृह मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय समेत अनेक मंत्रालयों में संपूर्ण कामकाज हिंदी में संपन्न कर रहे हैं। हमें एकजुट होकर अंग्रेजी के खिलाफ खड़े होना चाहिए। हिंदी और भारतीय भाषाओंको हम शिक्षा का माध्यम बनवाकर अपनी भाषाओं के भविष्य को सदा-सर्वदा के लिए सुरक्षित कर सकते हैं। हमें अपनी सरकारों को इस बात के लिए तैयार करना होगा कि वे शिक्षा का माध्यम हिंदी और भारतीय भाषाओं को रखें और अंग्रेजी दूसरी विदेशी भाषाओं की तरह एक भाषा के रूप में सिखाई जाए। ऐसा करके ही हम आगामी चुनौतियों के लिए अपने युवाओं को सक्षम, समझदार तथा नवाचार के योग्य बना सकते हैं। तभी वे विश्वस्तरीय मौलिक शोधकार्य कर सकेंगे। यह दौर खुली एवं विश्वस्तरीय प्रतिस्पर्धा का है। इस युग का मंत्र है:- ‘स्पर्धा में जो उत्तम ठहरे रह जावें।’ हम अपने नौनिहालों को हिंदी तथा भारतीय भाषाओं में ही विश्वस्तरीय प्रतियोगिता के योग्य बना सकते हैं। यदि भारत को विश्व गुरु की अपनी स्वाभाविक छवि पुनः प्राप्त करनी है तो यह हिंदी और भारतीय भाषाओं द्वारा ही संभव है। हम विदेशी भाषा में विश्वगुरु नहीं बन सकते हैं।
संक्षेप में हिंदी संपूर्ण भारत की समन्वयवादी संस्कृति और एकता की प्रतीक बन गई है। वह समस्त भारतीय भाषाओं और अंतरराष्ट्रीय भाषाओं के बीच सेतु का कार्य कर रही है । वह बदलते समय के अनुरूप अपने आपको समायोजित करते हुए भारतीय जन-मन की आकांक्षा को प्रतिबिंबित कर रही है। वह भारतीय संस्कृति का संरक्षण, संवर्धन और पुरस्करण कर रही है। इतना तय है कि आने वाले समय में विश्व की बड़ी भाषाओं का भविष्य और वर्चस्व बढ़ेगा लेकिन जिन उपभाषाओं और बोलियों के बोलने वाले बहुत कम हैं, उनके समक्ष अस्तित्व का संकट उपस्थित होगा। इन बोलियों को भी डिजिटलकरण द्वारा सुरक्षित किया जा सकता है। इस दिशा में विश्व समुदाय को और भी गंभीर होने की जरूरत है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि हम नवीनतम तकनीक का सदुपयोग करके भारतीय भाषाओं के समक्ष आसन्न संकट का सफलतापूर्वक सामना कर सकेंगे।
इसी दिशा में नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति के रूप में एक बड़ा कदम उठाया गया है। इस दृष्टि से यह स्वाधीन भारत का सबसे बड़ा प्रयास है। हमारी वर्तमान सरकार इसी वर्ष से अभियांत्रिकी और चिकित्सा की पढ़ाई हिंदी में आरंभ करवाकर एक बड़े लक्ष्य की ओर कदम बढ़ा चुकी है। वर्तमान भारत सरकार का अधिकांश कार्य हिंदी के माध्यम से ही सम्पन्न हो रहा हैं। आज सचमुच हिंदी विश्व की सबसे तीव्र गति से बढ़ने वाली भाषा बन गई है। हमें यह भी स्मरण रखना होगा कि आज संपूर्ण भारतीय भाषाओं में क्या लिखा जा रहा है, इसकी सूचना भी हिंदी के माध्यम से ही संपूर्ण देश और विश्व को मिल रही है। वह समस्त भारतीय भाषाओं के मध्य सेतु बनाने का कार्य कर रही है। हमारी सांस्कृतिक-सामाजिक और भाषिक एकता की जड़ें कितनी गहरी हैं, हिंदी उसके प्रतिबिंबन का सबसे सशक्त माध्यम है। फलस्वरूप वह अपने विकासमान व्यक्तित्व की भाँति अपनी उपादेयता का भी निरंतर उन्नयन कर रही है। हिंदी अपनी सर्वसमावेशी दृष्टि के बलपर नवीनतम तकनीकी आविष्कृतियों तथा वैश्विक माध्यमों में अपनी प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज करा रही है।
वह अपने विश्वबोध और विराटता के द्वारा न केवल राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता का मेरुदंड बनी हुई है अपितु विश्व के अनेक देशों में कार्यरत अनिवासी तथा प्रवासी भारतीयों के मन में भारत प्रेम की तरलता को बनाए हुए है। वह राष्ट्रभाषा की सार्थकता को सिद्ध करते हुए विश्व- भाषा की शक्ति तथा संभावना से अनुप्राणित होकर 21 वीं शती की आकांक्षा का प्रतिनिधित्व कर रही है। फलस्वरूप वह अपने वैभव तथा उज्ज्वल भविष्य के प्रकर्ष की ओर निरंतर विकासमान है। वह सही अर्थों में वैश्वीकरण के दौर की प्रमुख भाषा के रूप में प्रतिष्ठा अर्जित कर रही है। फलस्वरूप उसका भविष्य अतिशय उज्ज्वल है। वह विकसित भारत की आशा और आकांक्षा का प्रतिबिंब बनने जा रही है।