हिंदुस्थान के प्रबल समर्थक प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में वैश्विक स्तर पर हिंदी को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ को 11.69 लाख डॉलर का आर्थिक योगदान दिया है। भारत सरकार के अथक प्रयास और संयुक्त राष्ट्र संघ के जन सूचना विभाग के सहयोग से हिंदी@यूएन परियोजना 2018 में शुरू की गई थी।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने हिंदी को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए हैं। मोदी सरकार ने सभी राजकीय कार्य हिंदी में किए जाने का निर्णय लिया। परिणामस्वरूप सभी विभागों से लेकर न्यायालयों तक में हिंदी को निरंतर बढ़ावा दिया जा रहा है। सरकार हिंदी को बढ़ावा देने के लिए राजभाषा विभाग को प्रत्येक वर्ष करोड़ों रुपए का बजट आवंटित कर रही है। वास्तव में भारतीय जनता पार्टी की सरकारों ने हिंदी के साथ-साथ क्षेत्रीय भाषाओं के विकास का बीड़ा उठाया है।
हिंदू, हिंदी, हिंदुस्थान के प्रबल समर्थक प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में वैश्विक स्तर पर हिंदी को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ को 11.69 लाख डॉलर का आर्थिक योगदान दिया है। भारत सरकार के अथक प्रयास और संयुक्त राष्ट्र संघ के जन सूचना विभाग के सहयोग से हिंदी@यूएन परियोजना 2018 में शुरू की गई थी। जिसका उद्देश्य हिंदी भाषा में संयुक्त राष्ट्र की सार्वजनिक पहुंच को बढ़ाना और वैश्विक स्तर पर जागरूकता फैलाना था। भारत 2018 से संयुक्त राष्ट्र संघ के वैश्विक संचार विभाग (डीजीसी) के साथ अतिरिक्त आर्थिक योगदान देकर मुख्यधारा और हिंदी भाषा में डीजीसी की समाचार व मल्टीमीडिया सामग्री को समेकित करने हेतु साझेदारी कर रहा है। वर्ष 2018 से हिंदी में संयुक्त राष्ट्र समाचार यूएन की वेबसाइट और इंटरनेट मीडिया हैंडल पर प्रसारित किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र समाचार का हिंदी ऑडियो बुलेटिन (यूएन रेडियो) पर प्रत्येक सप्ताह जारी किया जाता है। इसका वेबलिंक यूएन हिंदी समाचार वेबसाइट के साथ-साथ साउंडक्लाउड यूएन न्यूज-हिंदी पर भी उपलब्ध है।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी भारतीय संस्कृति के संरक्षक बनकर उभरे हैं। उन्होंने मई 2014 में प्रधान मंत्री पद की शपथ लेते ही गौरवशाली भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने के साथ-साथ इसके प्रचार-प्रसार पर भी बल दिया। इस कड़ी में भारतीय भाषाएं विशेषकर हिंदी भी सम्मिलित है। यद्यपि उनकी मातृभाषा गुजराती है फिर भी उन्हें जितना प्रेम अपनी मातृभाषा गुजराती से है, उतना ही प्रेम हिंदी से भी है। हिंदी के बारे में उनका कहना है कि हिंदी एक भाषा ही नहीं, बल्कि एक भावना है जो हम सभी को जोड़ती है। आज पूरा विश्व हिंदी भाषा की शक्ति को पहचान रहा है। भाषा अभिव्यक्ति का साधन होती है। भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम होती है। मेरी कामना है कि हिंदी भाषा राष्ट्रीय एकता और सद्भावना की डोर को निरंतर मजबूत करती रहेगी।
भाषाएं सांस्कृतिक परम्परा की प्रतिनिधि हैं। हिंदी में अखिल भारतीय संस्कृति के प्रतिनिधित्व की अपार क्षमता है। इसीलिए म. गांधी ने इंदौर में हिंदी साहित्य समिति की नींव रखते हुए हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में चिह्नित किया था। अनेक गैर-हिंदी भाषी महापुरुषों ने भी हिंदी का समर्थन किया था। इस बात से भी हिंदी के महत्व का पता चलता है। ऐसे में इन महापुरुषों के सपनों को साकार करना हमारा परम कर्तव्य बन जाता है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी इसी कर्तव्य का निर्वाह कर रहे हैं। वे स्वयं अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हिंदी में ही अपनी बात रखते हैं। चाहे संयुक्त राष्ट्र हो, जी-20 का सम्मेलन हो या विदेशों में प्रवासी सम्मेलन हो, सभी में वे हिंदी का ही प्रयोग करते हैं। इसमें दो मत नहीं है कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने हिंदी को नई ऊंचाई प्रदान की है। उन्होंने विश्व को हिंदी के सामर्थ्य से परिचित कराते हुए भारतीयों में हिंदी प्रेम को जागृत करने का महत कार्य किया है। वे लोगों से भी हिंदी के माध्यम से भारत की संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने का आग्रह करते हैं, जो सभी भारतीय भाषाओं के साथ सरलता से सामंजस्य स्थापित करती है। वास्तव में हिंदी का प्रचार-प्रसार हमें प्रधान मंत्री के ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ विजन के निकट लाता है। हिंदी हमारे स्वाभिमान का प्रतीक है।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के कुशल नेतृत्व में केंद्र सरकार हिंदी के प्रयोग में सुधार, प्रदर्शन एवं परिवर्तन के सिद्धांतों को तीव्र गति से लागू कर रही है। हिंदी सलाहकार समिति इस दिशा में सराहनीय कार्य कर रही है। यह केंद्र सरकार के प्रत्येक मंत्रालय में गठित एक ऐसी समिति है, जो राजभाषा हिंदी में सरकारी कामकाज को प्रोत्साहित करती है। इसका उद्देश्य मंत्रालय के संचालन में एक आधिकारिक भाषा के रूप में हिंदी के उपयोग को बढ़ावा देना है। इसकी एक वर्ष में कम से कम दो बैठकें आयोजित की जाती हैं, जिससे हिंदी के प्रचार-प्रसार की समीक्षा की जा सके। उल्लेखनीय है कि संसदीय राजभाषा समिति का गठन राजभाषा अधिनियम 1963 के अधीन 1976 में किया गया था। यह उच्चाधिकार प्राप्त समिति है, जिसमें 30 संसद सदस्य होते हैं। इनमें 20 सदस्य लोकसभा से और 10 सदस्य राज्यसभा से होते हैं। गृह मंत्री इसके अध्यक्ष हैं। राजभाषा हिंदी की प्रगति के निरीक्षण के लिए इस समिति को तीन उप-समितियों में विभाजित किया गया है। केंद्र सरकार के सभी मंत्रालय, गृह मंत्रालय द्वारा दिए गए दायित्वों को पूर्ण करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जिससे हिंदी का प्रचार हो तथा वार्षिक कार्यक्रम में निर्धारित लक्ष्यों को पूर्ण किया जा सके। सभी मंत्रालय सामूहिक राष्ट्रवाद को दर्शाते हुए हिंदी को राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक एकता के प्रतीक के रूप में मान्यता देते हैं। संसदीय राजभाषा समिति के अध्यक्ष अमित शाह यह सुनिश्चित करते हैं कि सभी मंत्रालयों में अधिक से अधिक कार्य हिंदी में ही किया जाए, क्योंकि देश की अधिकांश जनसंख्या हिंदी भाषी है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में हिंदी बोलने एवं समझने वालों की संख्या लगभग 60 करोड़ है। इसके अतिरिक्त विदेशों में भी करोड़ों लोग हिंदी बोलते हैं।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी हिंदी के प्रबल समर्थक हैं। वे कहते हैं विश्व पटल पर हिंदी का प्रचार-प्रसार दिनोदिन बढ़ता जा रहा है। हिंदी की बढ़ती प्रतिष्ठा के कारण आज हिंदी सीखना समय की मांग हो गई है। एक वैज्ञानिक भाषा होने और जैसा बोला जाता है वैसी लिखी जाने जैसी विशेषताओं ने इसे लोकप्रिय भाषा बना दिया है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह हिंदी को वैश्विक मंचों पर गौरवान्वित किया है, यह हमारे लिए प्रेरणा की बात है। इससे न केवल देश, अपितु विदेश में रहने वाले भारतीयों को भी बहुत गर्व होता है। हमारे विभाग व अन्य कार्यालयों और उपक्रमों में प्रत्येक स्तर पर इस बात के प्रयास किए जाते हैं कि सरकारी कामकाज में हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा मिले और इसमें काफी सफलता भी मिली है।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने हिंदी को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए हैं। मोदी सरकार ने सभी राजकीय कार्य हिंदी में किए जाने का निर्णय लिया। परिणामस्वरूप सभी विभागों से लेकर न्यायालयों तक में हिंदी को निरंतर बढ़ावा दिया जा रहा है। सरकार हिंदी को बढ़ावा देने के लिए राजभाषा विभाग को प्रत्येक वर्ष करोड़ों रुपए का बजट आवंटित कर रही है। वास्तव में भारतीय जनता पार्टी की सरकारों ने हिंदी के साथ-साथ क्षेत्रीय भाषाओं के विकास का बीड़ा उठाया है। इसका प्रारम्भ मध्य प्रदेश से हो चुका है। मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ने हिंदी भाषा में चिकित्सा की पढ़ाई प्रारम्भ करके शिक्षा के क्षेत्र में इतिहास रच दिया है। यहां के सभी 13 राजकीय चिकित्सा महाविद्यालयों में हिंदी भाषा में पढ़ाई प्रारम्भ हो चुकी है। इसके पश्चात उत्तर प्रदेश सरकार ने भी चिकित्सा एवं तकनीकी पढ़ाई हिंदी में करवाने की घोषणा की थी।
उल्लेखनीय है कि नई शिक्षा नीति के अंतर्गत हिंदी सहित सभी भारतीय भाषाओं को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके अंतर्गत तीन भाषाओं का सिद्धांत दिया गया है, जिसमें अंग्रेजी के अतिरिक्त दो भारतीय भाषाओं को स्थान दिया गया है। अब तक गैर-हिंदी भाषी राज्यों में क्षेत्रीय भाषा के अतिरिक्त केवल अंग्रेजी को प्राथमिकता दी जाती थी। इस नई शिक्षा नीति में तृतीय भाषा के रूप में हिंदी को अनिवार्य कर दिया गया है।
डॉ. सौरभ मालवीय