भारतीय इतिहास साक्षी है कि नारी कभी भी अबला नहीं रही है। वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई हो या धर्म कथाओं से जुड़ी कहानियों के अनुसार मां दुर्गा और चंडी। ये सिर्फ धार्मिक कथाओं में वर्णित किरदार नहीं, अपितु ऐसी संदेश वाहक हैं जिनके अनुसार मातृशक्ति हर समय सशक्त और सामर्थ्यवान रही है। ऐसे में जब नवरात्रि का पर्व नजदीक है, तो हमारी बहन-बेटियों को यह प्रण लेना चाहिए कि अत्याचार किसी भी प्रकार का क्यों न हो उससे निपटने के लिए महिलाओं को मोर्चा स्वयं सम्भालना होगा।
हमारे समाज में महिलाओं की सुरक्षा एक संवेदनशील और ज्वलंत मुद्दा है। बदलते समय के साथ महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है, लेकिन सामाजिक व्यवस्था के लचर होने के कारण से महिला सुरक्षा की चुनौती हमेशा बनी रहती है और वर्तमान समय में महिलाओं के प्रति अपराध की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि महिलाएं स्वयं अपनी सुरक्षा का ध्यान रखें और आत्मरक्षा के उपाय अपनाएं।
वैसे भी देखा जाए तो भारतीय इतिहास साक्षी है कि नारी कभी भी अबला नहीं रही है। वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई हो या धर्म कथाओं से जुड़ी कहानियों के अनुसार मां दुर्गा और चंडी। ये सिर्फ धार्मिक कथाओं में वर्णित किरदार नहीं, अपितु ऐसी संदेश वाहक हैं जिनके अनुसार मातृशक्ति हर समय सशक्त और सामर्थ्यवान रही है। ऐसे में जब नवरात्रि का पर्व नजदीक है, तो हमारी बहन-बेटियों को यह प्रण लेना चाहिए कि अत्याचार किसी भी प्रकार का क्यों न हो उससे निपटने के लिए महिलाओं को मोर्चा स्वयं सम्भालना होगा।
महिलाओं की सुरक्षा सिर्फ शारीरिक हमलों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह मानसिक, भावनात्मक और साइबर अपराधों तक फैली हुई है। महिलाओं के विरुद्ध हिंसा एक वैश्विक समस्या है, चाहे वह घरेलू हिंसा हो, यौन उत्पीड़न हो या फिर सार्वजनिक स्थानों पर किसी प्रकार का दुर्व्यवहार। हाल ही में कोलकाता में हुई घटना को शायद ही कोई भूल सकता है। यह कोई पहली और आखिरी घटना भी नहीं। निर्भया कांड से लेकर ऐसे अनगिनत मामले हैं। जिसे सुनकर सभ्य समाज की आत्मा कांप जानी चाहिए, लेकिन जिस समाज में एक आंकड़े के अनुसार प्रतिदिन औसतन 87 बलात्कार के मामले दर्ज होते हों और राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार साल 2022 में महिलाओं में विरूद्ध दर्ज अपराधों की कुल संख्या 4,28,278 हो, उस समाज और व्यवस्था से महिलाएं आस और विश्वास करे कि उनकी सुरक्षा के लिए कोई ठोस कदम उठाया जाएगा तो यह स्वयं को धोखा देने जैसा होगा।
यौन उत्पीड़न, अपहरण, दहेज के लिए हत्या और कार्यस्थल पर उत्पीड़न जैसे अपराध यह चीख-चीखकर प्रमाण देते हैं कि पुरुषरूपी दानव से महिलाएं कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं। धार्मिक ग्रंथों में असुरों का नाश कर देवी स्वरूपा मातृशक्ति ने देवताओं को सुरक्षित किया था, लेकिन कलयुग में महिलाएं पुरुषों से ही सुरक्षित नहीं। यह कितनी दुर्भाग्यपूर्ण बात है। इन्हीं कारणों से महिलाओं का आत्मनिर्भर होना और अपनी सुरक्षा के प्रति जागरूक होना अत्यंत आवश्यक हो जाता है। निसंदेह महिलाएं जब तक अपने आप को सुरक्षित नहीं समझेंगी, तब तक वे समाज में स्वतंत्र रूप से नहीं रह सकेंगी। इसीलिए जरूरी है कि महिलाएं आत्मनिर्भर बनें और सुरक्षा के उपायों को अपनाएं। इसके लिए सबसे महत्वपूर्ण है आत्मरक्षा। आत्मरक्षा का मतलब सिर्फ शारीरिक प्रशिक्षण से नहीं है, बल्कि मानसिक रूप से भी तैयार रहना चाहिए।
महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराध समाज की मानसिकता और जागरूकता के स्तर का दर्पण होते हैं। ऐसे में समाज की मानसिकता में बदलाव के साथ महिलाओं को आत्मरक्षा के लिए मार्शल आर्ट्स, कराटे और जूडो जैसी तकनीकों का प्रशिक्षण लेना चाहिए। यह न केवल शारीरिक हमलों से बचाव के लिए उपयोगी सिद्ध होगा, अपितु यह उन्हें आत्मविश्वास से भी भर देगा। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार यौन उत्पीड़न के 80 प्रतिशत से अधिक मामलों में हमलावरों का लक्ष्य महिलाओं को कमजोर या असुरक्षित बनाना होता है। इस स्थिति में आत्मरक्षा का प्रशिक्षण उन्हें इन संकटों का सामना करने में सहायता कर सकता है। इसके अलावा महिलाएं अपने साथ पेपर स्प्रे, इलेक्ट्रिक शॉक गन और अलार्म डिवाइस जैसे सुरक्षा उपकरण रख सकती हैं। ये उपकरण किसी आपात स्थिति से निपटने में उनके लिए सहायक सिद्ध हो सकते हैं।
इतना ही नहीं कई बार महिलाएं दूसरों के लिए अपनी खुशी और सम्मान को किनारे कर देती हैं। उन्हें अपने आत्मसम्मान और खुशियों को प्राथमिकता देनी चाहिए। यह भावनात्मक सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस संदर्भ में प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक डॉ. सीमा शर्मा कहती हैं कि भावनात्मक सशक्तिकरण से महिलाएं मानसिक शोषण का सामना बेहतर तरीके से कर सकती हैं और कठिन परिस्थितियों से निपटने के लिए आत्मनिर्भर हो सकती हैं। ऐसे में महिलाओं को अपने परिवार और दोस्तों से भावनात्मक समर्थन प्राप्त करना चाहिए। किसी भी मुश्किल परिस्थिति में संवाद और समर्थन भावनात्मक समस्याओं का हल निकालने में सहायता कर सकते हैं।
महिलाओं को अपनी सुरक्षा के लिए कानूनी जानकारी होना भी अत्यंत आवश्यक है। सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई कानूनी प्रावधान किए हैं, जैसे कि यौन उत्पीड़न से सुरक्षा अधिनियम, घरेलू हिंसा से सुरक्षा अधिनियम और कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से सुरक्षा अधिनियम। कानून महिलाओं की सुरक्षा के लिए एक मजबूत ढाल हो सकता है, बशर्ते कि महिलाएं अपने कानूनी अधिकारों की जानकारी रखें और उनका उपयोग करें। ऐसे में कुल मिलाकर देखा जाए तो एक व्यवस्थित सामाजिक ढांचे के लिए स्त्री-पुरूष दोनों का समान महत्व है। इसलिए दोनों का सम्मान समान दृष्टिकोण से होना चाहिए और महिलाओं की सुरक्षा एक सामूहिक जिम्मेदारी है, लेकिन यह भी महत्वपूर्ण है कि महिलाएं स्वयं अपनी सुरक्षा का ध्यान रखें। अपराधों की बढ़ती संख्या को देखते हुए आत्मरक्षा के उपाय अपनाना और सुरक्षा के प्रति जागरूक रहना महिलाओं के लिए बहुत जरूरी है। अपनी सुरक्षा के लिए आत्मनिर्भर बनकर महिलाएं समाज में निडर और स्वतंत्र रूप से रह सकती हैं। यह उनका अधिकार है और इसे प्राप्त करने के लिए उन्हें सशक्त और जागरूक होना पड़ेगा।
-सोनम लववंशी