प्रश्न उठता है कि हिंदू मतदाता क्यों विभाजित होते हैं, जबकि मुस्लिम मतदाता एकजुट रहते हैं? इसका उत्तर सामाजिक और राजनीतिक षडयंत्रों में छिपा है। राजनीतिक दल अधिकतर हिंदू मतदाताओं को जाति, क्षेत्र और सामाजिक-आर्थिक स्थिति के आधार पर विभाजित करते हैं, ताकि वे एक संगठित शक्ति के रूप में उभर न सकें।
भारत का राजनीतिक परिदृश्य जटिल है, जिसमें मतदाता कई कारकों के आधार पर अपने निर्णय लेते हैं। इन कारकों में जाति, धर्म, सामाजिक-आर्थिक स्थिति और राजनीतिक विचारधारा शामिल हैं। हिंदू मतदाताओं का मतदान करने का दृष्टिकोण इस संदर्भ में विशेष ध्यान देने योग्य है, क्योंकि वे अधिकतर विभिन्न जातियों और क्षेत्रीय पहचान के आधार पर विभाजित होते पाए जाते हैं। दूसरी ओर, मुस्लिम मतदाता आमतौर पर एक मजबूत धार्मिक एकता बनाए रखते हुए एकतरफा मतदान करते हैं। इस प्रवृत्ति का गहरा प्रभाव हिंदू समुदाय के समग्र राजनीतिक प्रभाव पर पड़ता है, जो लम्बे समय में हानिकारक साबित हो सकता है।
हिंदू मतदाताओं का अलग-अलग समूहों में बंटा होना एक बड़ी चुनौती है। इस विभाजन का लाभ अधिकतर वे राजनीतिक पार्टियां उठाती हैं जो धार्मिक और सांस्कृतिक एकता को कमजोर करने की कोशिश करती हैं। उदाहरण के तौर पर, 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद किए गए राष्ट्रीय चुनावी अध्ययनों में पाया गया कि 33 प्रतिशत मतदाता जातिगत आधार पर अपने निर्णय लेते हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में जातिगत राजनीति इतनी गहराई तक फैली हुई है कि यह हिंदू समुदाय के समग्र राजनीतिक दृष्टिकोण को कमजोर कर देती है। यहां यह सोचने की जरूरत है कि यह विभाजन हिंदू समुदाय के लिए लाभदायक है या हानिकारक?
इसके विपरीत, मुस्लिम मतदाता आमतौर पर धार्मिक आधार पर एकजुट रहते हैं और अपने मतों का प्रयोग सामूहिक हितों को सुरक्षित करने के लिए करते हैं। मुस्लिम मतदाताओं की यह एकता एक रणनीतिक हिम्मत होती है, जो उन्हें राजनीतिक रूप से अधिक प्रभावी बनाता है। इस संदर्भ में, हिंदू मतदाताओं को यह समझना होगा कि अगर वे एकता से काम नहीं लेते, तो उनकी राजनीतिक स्थिति कमजोर होती जाएगी।
यहां यह प्रश्न उठता है कि हिंदू मतदाता क्यों विभाजित होते हैं, जबकि मुस्लिम मतदाता एकजुट रहते हैं? इसका उत्तर सामाजिक और राजनीतिक षडयंत्रों में छिपा है। राजनीतिक दल अधिकतर हिंदू मतदाताओं को जाति, क्षेत्र और सामाजिक-आर्थिक स्थिति के आधार पर विभाजित करते हैं, ताकि वे एक संगठित शक्ति के रूप में उभर न सकें। इसके विपरीत, मुस्लिम मतदाताओं की एकजुटता को समर्थन देने वाले दल उनकी धार्मिक एकता को बरकरार रखने के प्रयास करते हैं। यह एक षडयंत्र है जिसका मुख्य उद्देश्य हिंदू समुदाय की राजनीतिक शक्ति को विभाजित करना है। इस षडयंत्र को समझने और इसे उजागर करने की जिम्मेदारी हिंदुओं पर हैं।
यदि हम ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखें, तो 1990 के दशक में राम मंदिर आंदोलन के दौरान हिंदू मतदाताओं ने एक असाधारण एकता दिखाई थी। उस समय, उन्होंने अपनी जातिगत और क्षेत्रीय पहचानों से ऊपर उठकर एक धार्मिक और सांस्कृतिक मुद्दे पर एकजुट होकर मतदान किया था। इसका नतीजा यह हुआ कि भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार राष्ट्रीय राजनीति में बड़ी सफलता प्राप्त की। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, हिंदू मतदाता फिर से विभाजित हो गए और यह विभाजन अब तक जारी है। यह इस बात का प्रमाण है कि जब हिंदू मतदाता एकजुट होते हैं, तो वे एक मजबूत राजनीतिक शक्ति बनते हैं, लेकिन जब वे विभाजित होते हैं, तो उनका प्रभाव कम हो जाता है।
ठीक वैसे ही 2019 के लोकसभा चुनाव को देखा जाए तो राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने कई सामाजिक-आर्थिक सुधार किए, जिनमें प्रधान मंत्री जन धन योजना और उज्ज्वला योजना जैसे कार्यक्रम शामिल थे। इन योजनाओं ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को राहत दी, और इसका असर सभी धर्म के मतदाताओं के एक बड़े वर्ग पर पड़ा। इसके बावजूद, देखा गया कि मुस्लिम मतदाताओं ने एकजुट होकर एनडीए के विरुद्ध मतदान किया तो वहीं हिंदू मतदाता जाति और क्षेत्रीय दलों के प्रभाव में बंटे रहे, जिससे उनका समग्र राजनीतिक प्रभाव कमजोर हो गया।
हिंदू मतदाताओं के लिए यह सोचने का समय आ गया है कि क्या वे अपनी जातिगत और क्षेत्रीय पहचान को प्राथमिकता देंगे, या फिर धार्मिक और सांस्कृतिक एकता के आधार पर एकजुट होकर मतदान करेंगे। अगर हिंदू मतदाता इसी तरह विभाजित होते रहे, तो इसका लाभ उठाने वाले राजनीतिक दल उन्हें एक संगठित राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरने नहीं देंगे।
यहां पर यह भी ध्यान देने की जरूरत है कि मुस्लिम मतदाताओं की एकजुटता सिर्फ चुनावी लाभ तक सीमित नहीं है। उनकी एकता सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर भी मजबूत होती है, जिससे वे अपने हितों की रक्षा करने में, दबाव बनाने में भी समर्थ होते हैं। हिंदू मतदाताओं को भी इस बात का एहसास होना चाहिए कि यदि वे इसी प्रकार विभाजित रहते हैं, तो उनके धार्मिक और सांस्कृतिक हितों की रक्षा करना मुश्किल हो जाएगा।
यह समय है कि हिंदू मतदाता जागरूक हों और इस विभाजन के कारणों को समझें। यह कोई संयोग नहीं है कि राजनीतिक दल उनकी जातिगत पहचान को उभारते हैं और उन्हें विभाजित करते हैं। यह एक सोची-समझी रणनीति है, जिसका उद्देश्य उन्हें कमजोर करना है। हिंदू मतदाताओं को इस षडयंत्र को समझने और इसे नकारने की जरूरत है। अगर हिंदुओं के हितों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है तो उन्हें एकता के साथ मतदान करना होगा ताकि वे अपने धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक हितों की रक्षा कर सकें।
आखिरकार, भारतीय लोकतंत्र की ताकत मतदाताओं की एकजुटता में निहित है। हिंदू मतदाताओं को यह समझना होगा कि अगर वे विभाजित रहते हैं, तो उनका राजनीतिक प्रभाव कमजोर होता रहेगा। उन्हें अपने विभाजन को दरकिनार करते हुए एकजुट होकर मतदान करने की जरूरत है, ताकि वे एक मजबूत और प्रभावी राजनीतिक शक्ति बन सकें। इस प्रक्रिया में, वे न केवल अपने धार्मिक और सांस्कृतिक हितों की रक्षा कर पाएंगे, बल्कि भारत के भविष्य की आर्थिक और राजनीतिक स्थिरता में भी योगदान दे सकेंगे।
-रोहन गिरी