हिंदू अस्मिता हमारे भारत के जनमानस को एक सामूहिक पहचान देती है। मैं पहले हिंदू हूं फिर किसी क्षेत्र, प्रांत, पंथ और जाति का हूं। इसी भाव का प्रत्येक हिंदू के भीतर जागरण करना विश्व हिंदू परिषद का अभीष्ठ है। विश्व हिंदू परिषद ने अपने पहले ही अधिवेशन में विराट हिंदू समाज के एकत्व को प्रदर्शित करने का काम किया।
हिंदू भारत की पहचान है। इसी हिंदू अस्मिता ने वर्षों हमारे भीतर हमारे ‘स्व’को जीवित रखा। उस स्व ने भारत के हिंदू समाज को आत्मबल दिया। उस बल के आधार पर ही हमें वर्षों की प्रशासनिक अधीनता में भी संघर्ष की प्रेरणा और अस्मिता के संरक्षण की शक्ति मिली। हम हिंदू अंग्रेजी शासन काल की अधीनता के विरुद्ध लड़े। सम्पूर्ण हिंदू समाज स्वतंत्रता के लिए संघर्ष इसलिए कर रहा था कि स्वतंत्र भारत में ‘स्व’ के आधार पर शासन प्रशासन होगा। हमारे इस राष्ट्र में पुनः हिंदू जीवन मूल्यों की स्थापना होगी। सामाजिक समता और समरसता पर आधारित हमारी सभी व्यवस्था होंगी। लेकिन आजादी के बाद भी भारत में मुस्लिम वर्ग के लिए वक्फ बोर्ड 1953 जैसा प्रावधान आ जाता है। वहीं वर्षों की हिंदू समाज की मांग गौरक्षा को लेकर किसी कानून का निर्माण नहीं हो पाता। देश के राष्ट्रपति सोमनाथ मंदिर जीर्णोद्धार के कार्यक्रम में शामिल होते हैं तो देश में वह साम्प्रदायिक कहे जाने लगते हैं। विदेशों में रह रहे हिंदुओं के सामने अपनी हिंदू अस्मिता को सुरक्षित रखना एक बड़े विषय के रूप में उभर रहता है।
इन्हीं सब परिस्थियों को लेकर स्वामी चिन्मयानंद एवं अन्य संतों तथा हमारे देश के हिंदू हितचिंतकों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्रीगुरुजी से भेंट की। उन्होंने श्रीगुरुजी से आग्रह किया कि एक गैर राजनीतिक हिंदू संगठन का निर्माण आज देश- दुनिया में रहने वाले हिंदू समाज की आवश्यकता है। इन्हीं सब विमर्शों के बीच वर्ष 1964 में कृष्ण जन्माष्टमी के पावन अवसर पर संदीपनी आश्रम मुंबई में हजारों संतों व हिंदू समाज के शंकराचार्यों एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर तथा श्रीगुरुजी की उपस्थिति में विश्व हिंदू परिषद की यात्रा की शुरुआत हुई थी। विश्व हिंदू परिषद के निर्माण की पृष्ठभूमि के अन्य पक्षों पर प्रकाश डालते हुए परिषद राष्ट्रीय सह-संगठन मंत्री विनायक राव कहते हैं कि जब देश अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहा था तब किसी के भी मन में क्षेत्र, प्रांत, जाति आदि का विषय नहीं था। बल्कि स्वतंत्रता के बाद देश में विभाजन की रेखा बनने लगी। हिंदू समाज में कितने ही विभाजन होने लगे। इसलिए आवश्यकता थी हिंदू समाज को संगठित करने की।
इसी कार्य को विश्व हिंदू परिषद ने करना प्रारम्भ किया। यह हिंदू अस्मिता हमारे भारत के जनमानस को एक सामूहिक पहचान देती है। मैं पहले हिंदू हूं फिर किसी क्षेत्र, प्रांत, पंथ और जाति का हूं। इसी भाव का प्रत्येक हिंदू के भीतर जागरण करना विश्व हिंदू परिषद का अभीष्ठ है। विश्व हिंदू परिषद ने अपने पहले ही अधिवेशन में विराट हिंदू समाज के एकत्व को प्रदर्शित करने का काम किया। कर्नाटक के उडुपी प्रांत में 13-14 दिसम्बर 1969 को प्रथम हिंदू सम्मेलन में संतों द्वारा कहा गया कि हिंदुओं में अखण्ड एकात्मकता के भाव का जागरण हो और अस्पृश्यता का अंत हो। इसी में संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्रीगुरुजी एवं संत समाज द्वारा ‘हिंदव: सोदरा सर्वे, न हिंदू पतितो भवेत। मम दीक्षा हिंदूरक्षा, मम मंत्र समानता॥’ का उद्घोष किया गया। इसी उद्घोष ने परिषद के मंतव्य को दुनिया के समाने व्यक्त किया। ये संस्कृत के कुछ शब्द हमारे भारत के दर्शन को तो परिलक्षित करते ही हैं अपितु विश्व हिंदू परिषद के अभीष्ट को भी स्पष्ट करते हैं। उद्घोष का पहला वाक्य कहता है, हम सब हिंदू आपस में सहोदर हैं कोई यहां पतित नहीं, कोई निम्न नहीं, कोई उच्च नहीं हम सब एक पूर्वज की संतान हैं, हम सब हिंदू हैं।
वहीं दूसरा वाक्य कहता है की हिंदू समाज में कोई पतित कैसे हो सकता है, जबकि हम सब तो एक ही हैं। अगली ही पंक्ति कहती है कि हमारा संकल्प हिंदू समाज के संरक्षण का है, हमारा मंत्र एक ही है, वो है समानता। इस प्रकार से भारत की हिंदू संस्कृति, हिंदू गौरव के पुनर्जागरण का ध्येय लिए, परिषद के पथिक चल पड़े। हमें विदित है कि भारत में मुस्लिम और फिर अंग्रेजों का शासन रहा। इस कालखंड में हमारे हिंदू समाज का कभी शक्ति और कभी दमन के माध्यम से मतांतरण करने का प्रयास किया गया तो ब्रिटिश काल में ईसाई मिशनरियों के प्रलोभन और सेवा की नौटंकी के माध्यम से भी मतांतरण के प्रयास हुए। लेकिन जब भारत में हमारे अपने लागों का शासन आ गया तब भी यह मतांतरण रुका नहीं, बल्कि इसमें तेजी ही आई। हमारे जनजातीय समाज, वंचित, गरीब एवं अनुसूचित जाति को ईसाई मिशनरियों द्वारा मतांतरित करने का कार्य जारी रहा। इस मुद्दे पर भी विश्व हिंदू परिषद ने विचार किया कि यदि हिंदू समाज इसी तरह घटता रहेगा तो इससे भारत की अखंडता पर संकट होगा। हिंदू घटा तो देश बंटा।
विहिप ने जहां मतांतरण को लेकर देश भर में हिंदू समाज के भीतर जनजागरण का कार्य प्रारम्भ किया वहीं इसी समय धर्मस्थान मुक्ति अभियान का भी सूत्रपात हुआ। जिसमें अयोध्या, मथुरा काशी इन तीन स्थानों की मुक्ति, अभियान के केंद्र में रही। 1970 के असम जोरहाट में परिषद का सम्मेलन हुआ जिसमें सभी प्रमुख नादियों के जल को एक निर्मित जल कुंड में डाला गया। इसे देश के एकता की दिशा में किया गया बड़ा काम कह सकते हैं। 1974 के आंध्रप्रदेश के तिरुपति में हुए परिषद के सम्मेलन में देश की राजनीतिक पार्टियों को हिंदू समाज द्वारा ये चेता दिया गया की मुस्लिम तुष्टिकरण छोड़ हिंदू केंद्रित राजनीति करेें। इसी सम्मेलन में स्वामी चिन्मयानंद के द्वारा हिंदू वोट बैंक बनाने की बात करना अपने में एक नई बात ही थी। जो भारत को अपनी पुण्य भूमि मानते हुए अपनी संस्कृति पर गर्व करता है, वो हिंदू है। ऐसे हिंदू दुनिया में फैले हैं। हमारी हिंदू मान्यताओं का अनुसरण करने वाले है यह सब भी हिंदू हैैं।
ऐसे में सम्पूर्ण विश्व में फैले हिंदू समाज को संगठित करने हेतु 1979 में प्रयाग में विदेशस्थ हिंदुओं का सम्मेलन किया गया। जिसमें दुनिया के 23 दशोें के प्रतिनिधि शामिल हुए। देशभर में एकात्मकता यज्ञ यात्रा 1983, 1984 में राम जानकी यात्रा, रामेश्वर से नेपाल काठमांडू के पशुपतिनाथ की यात्रा निकाली। बंगाल के गंगा सागर से गुजरात स्थित भगवान शिव के सोमनाथ ज्योतिर्लिंग तक, वहीं हरिद्वार से कन्याकुमारी तक भी यात्रा निकाली गई। उत्तर पूर्व में परशुराम रथ यात्रा, केरल की धर्म यात्रा, महर्षि वाल्मीकि व सिद्धू-कान्हू रथ यात्राएं, बाबा अमरनाथ यात्रा, बूढ़ा अमरनाथ यात्रा, संत रविदास यात्रा, उड़ीसा की अष्टमातृका रथ यात्रा इत्यादि। इन्हीं यात्राओं के बीच विश्व हिंदू परिषद अपने कई आयामों का भी सृजन करता रहा। जब सरकार द्वारा श्रीराम जानकी यात्रा को सुरक्षा देने की मनाही कर दी गई तो बजरंग दल की स्थापना की गई। सेवा, सुरक्षा और संस्कार का ध्येय लिए वीर बजरंगियों के हर हर महादेव के उद्घोष ने सम्पूर्ण हिंदू समाज के भीतर आत्मविश्वास का जागरण किया।
बजरंग दल हिंदू युवाओं का शारीरिक, चारित्रिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक विकास कर उन्हें एक राष्ट्रीय संगठन के रूप में एकत्र लाता है। विश्व हिंदू परिषद के जनजागरण अभियान का ही परिणाम है कि आज अयोध्या में प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि अपने भव्य रूप को प्राप्त कर रहा है। आज हमारा हिंदू देश और राजनीति के विमर्श में आया है नहीं तो मुस्लिम समाज को लेकर और उनके वोट बैंक को लेकर ही देश में राजनीति हो रही थी। वक्फ बोर्ड हो या शाहबानु सब मामले मुस्लिम तुष्टिकरण के ही कारण थे। आज सभी पार्टिया हिंदू आस्था और विश्वास से अपने को जोड़ हिंदू समर्थन की बात कर रही हैं।
प्रवेश कुमार