भारतीय वैदिक सनातन धर्म के कई प्रमुख पर्व और त्योहार जैसे करवाचौथ, अहोई अष्टमी, धनतेरस, भगवान धन्वंतरि जयंती, नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा, भैया दूज, छठ पूजा, अक्षय नवमी, देवोत्थान एकादशी, तुलसी शालिग्राम विवाह, मासिक कार्तिगाई, रोहिणी व्रत, गोपाष्टमी, रमा एकादशी, देव दीपावली और कार्तिक पूर्णिमा आदि त्योहार भी इसी पावन कार्तिक मास में ही आते हैं।
भारतीय वैदिक सनातन संस्कृति में कार्तिक मास को बहुत ही पवित्र और पुण्य दायी महीना माना जाता है। पुराणों के अनुसार इसी माह में भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कुमार कार्तिकेय ने तारकासुर नामक महाबली दैत्य का वध किया था।कुमार कार्तिकेय के बल और पराक्रम को सम्मान देने के लिए ही समस्त देवों ने इस माह को कार्तिक नाम दिया। इसीलिए इस मास को कार्तिक मास कहा जाता है। इसे दामोदर मास के नाम से भी जाना जाता है। द्वापर युग में इसी मास में भगवान श्रीकृष्ण ने बाल रूप में दामोदर लीला की थी। इस लीला में मां यशोदा ने भगवान कृष्ण को रस्सी के द्वारा उखल से बांध दिया था।रस्सी को दाम कहते हैं और पेट को उदर। तो दाम यानी रस्सी जो कि श्रीकृष्ण के उधर से बांधी गई, तो भगवान के उदर पर निशान पड़ गए थे। इसलिए इस माह को दामोदर मास भी कहा जाता है।
भारतीय वैदिक सनातन धर्म के कई प्रमुख पर्व और त्योहार जैसे करवाचौथ, अहोई अष्टमी, धनतेरस, भगवान धन्वंतरि जयंती, नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा, भैया दूज, छठ पूजा, अक्षय नवमी, देवोत्थान एकादशी, तुलसी शालिग्राम विवाह, मासिक कार्तिगाई, रोहिणी व्रत, गोपाष्टमी, रमा एकादशी, देव दीपावली और कार्तिक पूर्णिमा आदि त्योहार भी इसी पावन कार्तिक मास में ही आते हैं।
कार्तिक मास भगवान विष्णु को सबसे अत्यधिक प्रिय है। भगवान विष्णु की कई लीलाएं और अवतार भी इसी मास में हुए हैं।भगवान की इन लीलाओं में गोवर्धन लीला, इंद्र मान मर्दन, चीर हरण लीला और ब्रज गोपांगनाओं के द्वारा मां भगवती पूजन आदि लीलाएं प्रमुख हैं।इन लीलाओ का उद्देश्य केवल राक्षसों का संहार ही नही था। त्रेता युग में भगवान ने माता जानकी जी को यह वचन दिया था, के मेरा आगामी अवतार भक्तों के प्रेम के आस्वादन के लिए और रसस्वादन के आदान प्रदान के लिए ही होगा।इसीलिए द्वापर युग में ठाकुरजी ने श्रीकृष्ण अवतार में विभिन्न लीलाओं से भक्तों को कृतार्थ किया। और सम्पूर्ण शापमय लोगों को, जो शापित जीव थे उनका उद्धार किया।क्योंकि जितने भी शापित जीव थे, वो भगवान की प्रतीक्षा कर रहे थे, के कब ठाकुरजी आएं और हमारा उद्धार करें।
कार्तिक माह तप और व्रत का माह है। कार्तिक में समस्त देवी देवताएं अन्य अनेक रूपों में पृथ्वी पर भ्रमण करने आते हैं।इसीलिए इस माह में भगवान की भक्ति और पूजा अर्चना करने से मनुष्य दोष मुक्त होकर भगवद प्राप्ति का अधिकारी बन जाता है।
गौडीय संप्रदाय में इस मास को नियम मास के नाम से भी जाता है।ब्रज मंडल के समस्त गौडीय संत, भक्त और ब्रजवासी गण इसी माह में कार्तिक नियम सेवा करते हैं।कार्तिक मास में किए जाने वाले इन नियमों के विषय में पद्म पुराण में वर्णन आता है कि
श्लोक :
“हरि जागरणम् प्रातः स्नानम् तुलसि सेविनम्।
उद्यापम् दीप दानम् , व्रतान्ये तानि कार्तिके।।”
अर्थात – कार्तिक माह में स्नान-दान, व्रत-उपवास, दीपदान तुलसी पूजा एवं भगवत लीलाओं की कथा का श्रवण करना चाहिए। इन पांचों नियमों का पालन करने वाले व्यक्ति को कार्तिक व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है और उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। पौराणिक तथ्य है कि ये नियम भगवान नारायण ने ब्रह्मा को, ब्रह्मा जी ने नारद को और नारद जी ने महाराज पृथु को बताए थे और कार्तिक मास के सर्वगुण संपन्न महात्म्य की कथा श्रवण कराई थी। धर्म ग्रथों के अनुसार कार्तिक मास की महत्ता बताते हुए ब्रह्मा जी ने नारद जी से कहां है कि मानव कल्याण के लिए कार्तिक मास ही सर्वोत्तम मास है क्योंकि इस माह में समस्त देवी-देवता मनुष्यों के अत्यंत सन्निकट होते हैं। जो कि इस माह में मनुष्यों द्वारा किए गए स्नान-दान, जप-तप, हवन-यज्ञ आदि का अनन्त गुणा फल प्रदान करते हैं।
पुराणों के अनुसार इस मास में भगवान विष्णु नारायण रूप में जल में निवास करते हैं।इसलिए व्यक्ति को कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक नियमित ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सूर्योदय से पूर्व गंगा, यमुना आदि पवित्र नदियों या सरोवरों में स्नान करना चाहिए।जिससे उसे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
कार्तिक मास में दूसरा नाम तुलसी पूजा का बताया गया है। इस महीने में तुलसी शालिग्राम विवाह, तुलसी सहस्त्रार्चन का पाठ, तुलसी पूजन तथा सेवन करने का विशेष महत्व है। वैसे तो प्रत्येक महीने में नित्य ही तुलसी पूजा करनी चाहिए, लेकिन कार्तिक मास में तुलसी पूजन व आराधना करने से इसका फल कई गुणा अधिक बढ़ जाता है। कार्तिक माह में दीपदान का भी विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यतानुसार इस माह में संध्या के समय पवित्र नदियों तुलसी, पीपल आदि वृक्षों और मंदिर देवालयों में दीपदान करने से हमारे जीवन में सौभाग्य का उदय होता है। साथ ही हमें ऊर्जा और तेज की प्राप्ति होती है।
कार्तिक मास का व्रत करने से अग्निष्टोम यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है।कार्तिक मास में व्रत और उद्यापन करने वाले व्यक्ति को तपस्वियों के समान व्यवहार आचरण करना चाहिए। अर्थात वह मौन रहे या बहुत ही कम बोले, किसी की निंदा या विवाद न करें और मन पर संयम रखें।ऐसा करने वाले व्यक्ति को भगवान के निज धाम वास मिलता है।
इनके अलावा भी कार्तिक मास में अन्य नियम बताए गए हैं। जिनमें भूमि पर शयन, तेल आदि का प्रयोग वर्जित, दलहन यानी दाल खाना निषेध और ब्रह्मचर्य का पालन।
इसीलिए कार्तिक मास में भूमि पर शयन करना चाहिए।भूमि पर सोने से मन में सात्विकता का भाव आता है तथा अन्य विकार भी समाप्त हो जाते हैं। कार्तिक महीने में केवल एक बार नरक चतुर्दशी (कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी) के दिन ही शरीर पर तेल लगाना चाहिए।जब कि पूरे माह के दिनों में तेल लगाना वर्जित है। कार्तिक महीने में दलहन यानी दाल का सेवन निषेध माना जाता है।इसीलिए इस मास में उड़द, मूंग, मसूर, चना, मटर, राई और मसाले आदि चीजें नहीं खानी चाहिए। इसके अलावा कार्तिक मास में ब्रह्मचर्य का पालन अति आवश्यक बताया गया है। इसका पालन नहीं करने पर दंपत्ति को दोष लगता है और इसके अशुभ फल भी प्राप्त होते हैं।
कार्तिक मास में दान आदि का भी विशेष महत्व बताया गया है। जैसे सतयुग में सत्य बोलना, त्रेता में तप करना और द्वापर में दया को धर्म का विशेष रूप में माना जाता है,वैसे ही कालिकल में दान ही सनातन धर्म का प्रमुख अंग है।इसीलिए कार्तिक माह में निर्धन, असहाय, ब्राह्मण आदि को अन्न, धन, वस्त्र एवं गौ आदि का दान करना चाहिए।जिससे उनके जीवन में आने वाली विभिन्न बाधाओं का नाश हो जाता है और उनके शारीरिक संकट दूर हो जाते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार चातुर्मास के बाद भगवान के योग निद्रा से जागरण का समय इसी मास को कहा जाता है।भगवान जब योग निद्रा से इस महीने में जागृत होते हैं, तो सृष्टि में ग्रीष्म और वर्षा ऋतु के बाद कई परिवर्तन आते हैं और वातावरण जनित जो दोष हैं, उन सभी दोषों से उत्पन्न नाना प्रकार की आंधी व्याधियों से बचने के लिए नियम का पालन करते हैं।इन्ही नियमों को जब धर्म से जोड़ दिया गया,तो ये ही नियम हमारी जीवात्मा का परमात्मा से मिलन के साधन बन गये।इसीलिए जो संत हैं भक्त हैं या तपस्वी हैं,वो कार्तिक मास में परमात्मा से मिलन के लिए इन नियमों का पालन करते हैं।ताकि भक्ति पथ में उनका मन तनिक भी विचलित न हो और परमात्मा की सात्विक भक्ति को प्राप्त करके उनके चरणों में अपना स्थान सुनिश्चित कर सके।
इसीलिए कार्तिक मास में विश्व के समस्त सनातन धर्मावलंबी भारत देश में आकर चारों धामों, समस्त तीर्थों, सप्त पुरियों आदि के दर्शन करते हैं।साथ ही पवित्र नदियों में स्नान करके और जप, तप, व्रत, दान आदि अनुष्ठान करके अपने आराध्य को रिझाते हैं।
इसके अलावा ब्रज चौरासी कोस में भी कार्तिक मास में देश-विदेश के असंख्य प्रभु अपने आराध्य के दर्शनों के लिए आते हैं।यहां आकर वे पूरे एक माह कार्तिक नियमों का पालन करते हुए मंगला आरती, सोहनी सेवा और राग सेवा करते हैं।ताकि उनका जीवन सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर सदा के लिए प्रभु भक्ति को ओर अग्रसर हो जाए।
डॉ. राधाकांत शर्मा