स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए सत्याग्रह कारावास में जाने की और यदि आवश्यकता हो तो बलिदान देने की भी तैयारी थी। स्वतंत्र भारत में समाज में कौन से गुण हो, यदि इसका विचार किसी ने किया तो वह केवल डॉ. हेडगेवार ने। यही उनका स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में असामान्यत्व है। देश के लिए जीने वाले नागरिक चाहिए। दैनंदिन व्यवहार में देशभक्ति का जीवन जीने वाले, अनुशासन का पालन करने वाले, ईमानदारी से व्यवहार करने वाले, पर्यावरण पूरक जीवन शैली और भेदभाव न मानने वाले, स्वाभिमानी नागरिक चाहिए। “क्रांत दर्शी केशवाने दिव्य स्वप्न पाहिले” ऐसी एक काव्य पंक्ति है।
20 वी सदी के पहले 50 वर्षों का कालखंड स्वतंत्रता आंदोलन से प्रभावित था। संघ निर्माता डॉक्टर हेडगेवार पहली पंक्ति के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। चाहे क्रांतिकार्य हो, लोकमान्य तिलक की होम रूल लीग के लिए पैसा एकत्रित करना हो, महात्मा गांधी का असहयोग आंदोलन हो, खादी का प्रचार हो, स्वदेशी वस्तुओं का भंडार चलाना हो, ” स्वातंत्र्य” दैनिक का संचालन हो, ऐसे सब कार्यों में उनका सहभाग दिखाई देता है।
ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत स्वशासन नहीं चाहिए, वरन “संपूर्ण स्वतंत्रता” के वे आग्रही थे। 1920 के नागपुर कांग्रेस अधिवेशन में कार्यसमिति को भेजे गए प्रस्ताव से उनके हृदय में धधकने वाली स्वतंत्रता की चिंगारी ध्यान में आती है। भारत में प्रजा की सत्ता का निर्माण कर (गणतंत्र) पूंजीवादी राष्ट्रों के जबड़े से विश्व के देशों को मुक्त करना, यह कांग्रेस का ध्येय है, ऐसा प्रस्ताव कांग्रेस द्वारा पारित किया जाए, ऐसी डॉक्टर हेडगेवार की इच्छा थी। परंतु उस काल में अधिकृत रूप से ऐसा घोषित करना कांग्रेस के लिए सुविधाजनक नहीं था। 1921 में उनको सुनाई गई सजा के समय उन्होंने न्यायालय में अपने बचाव में जो कहा था उससे उनके मन में स्वतंत्र होने की कितनी तीव्रता है, यह ध्यान में आता है। “वास्तव में ऐसा कोई कानून है क्या कि जिसके बल पर एक देश के लोग, दूसरे देश के लोगों पर शासन कर सके? न्यायालय में डॉक्टर हेडगेवार ने पब्लिक प्रॉसिक्यूटर को पूछा था। यह बात प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के विरुद्ध नहीं है क्या? अंग्रेजों को भारत वासियों को अपने पैरों तले रौंद कर उन पर शासन करने का अधिकार किसने दिया? जिस प्रकार इंग्लैंड के लोग इंग्लैंड पर, जर्मनी के लोग जर्मनी पर शासन करते हैं, वैसे ही हम भारत के लोग भारत पर मालिक के रूप में अपना शासन चाहते हैं। हमें पूर्ण स्वतंत्रता चाहिए और वह हमें मिलेगी ही।”
स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए चलने वाली सभी प्रकार की गतिविधियों में सहभागी होते समय उन्हें एक मूलभूत प्रश्न हमेशा सताता था। स्वतंत्रता प्राप्त करने जितना ही वह महत्वपूर्ण है, ऐसा उन्हें लगता था।
स्वतंत्रता गई क्यों? जिन गलतियों के कारण स्वतंत्रता गई, वैसे ही वह फिर से नहीं जाएगी, उसकी गारंटी क्या?
एक महत्वपूर्ण कारण जो किसी के भी ध्यान में आएगा वह याने दगाबाजी। सिंध के सम्राट राजा दाहिर थे, महा पराक्रमी राजा के रूप में उनकी ख्याति थी। वे मोहम्मद बिन कासिम के आक्रमण का सामना करते हुए हार गए। इसका कारण उनके सेनापति ने गद्दारी की, ऐसा कहा जाता है।
दिल्ली के सम्राट वीर पृथ्वीराज चौहान जिन्होंने आक्रमणकारी मोहम्मद गोरी को अनेक बार पराजित किया था, एक बार हार गए। वे हार गए या उन्हें जानबूझकर हराया गया? पराक्रमी पृथ्वीराज के समधी जयचंद ने भीतराघात किया और पृथ्वीराज को गिरफ्तार करवा दिया।
शत्रु तो लालच दिखाएगा ही। उसको मैं मारता हूं, उसकी जगह तुम्हें सम्राट बनाता हूं, सम्राट होने की लालसा बलवती हुई तो क्या शत्रु को हम अपने देश में ही प्रवेश करने दे रहे हैं, यह विचार जयचंद के मन को छू भी नहीं सका।
यह ऐसा ही चलता रहा तो प्राप्त की गई स्वतंत्रता टिकेगी क्या?
देश भक्ति कुछ लोगों का ही गुण है, ऐसा क्यों?
प्रत्येक नागरिक स्वभाव से देशभक्त ही होना चाहिए, प्रत्येक का प्राथमिक गुण देशभक्ति ही होना चाहिए। स्वतंत्रता जितना ही यह प्रश्न महत्वपूर्ण है। गद्दार होने की परंपरा रुकनी ही चाहिए।
हम परतंत्र क्यों हुए? इस प्रश्न से केशव के मन में कितनी अस्वस्थता थी, यह उनके और उनके चाचा के बीच हुए पत्राचार से स्पष्ट होती है।
कोलकाता से डॉक्टर की डिग्री लेकर केशव नागपुर वापस आ गए। उनके रिश्तेदारों के बीच स्वाभाविकत: यह चर्चा जोर पकड़ने लगी कि केशव अपना दवाखाना खोलेगा, शादी कर अपनी गृहस्थी बसाएगा। उनके चाचा जी जिन्हे सब आबा कहते थे, ने केशव को पत्र लिखकर ही यह पूछताछ की। आबा ने पत्र के माध्यम से पूछा, लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी, वीर सावरकर, डॉक्टर मुंजे इन प्रभ्रुतियों ने शादी भी की एवं वे सभी स्वतंत्रता के आंदोलन में भी सक्रिय हैं। तुम्हारा क्या विचार है? केशव द्वारा इस प्रश्न के दिए गए उत्तर से उनके मन में चल रहे ऊहापोह का पता चलता है। केशव ने लिखा, पत्र में आपने जो लिखा सब सच है, परंतु मेरे मन को एक प्रश्न में आवेष्टित कर रखा है। हमारे अपने लोगों की गद्दारी के कारण हम पराजित हुए एवं गुलाम हो गए। यह रोका नहीं जा सकता क्या? इसके लिए यदि मैं कुछ कर सका, तो मैं अपने आप को धन्य समझूंगा।
शादी करके स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रहा जा सकता है, यह आपका कहना सच है, परंतु मेरी सोच अलग ही है। यह घर के लिए एवं यह देश के लिए, इस प्रकार का विचार मैं नहीं कर सकता। शादी के बंधन में नहीं बंधना, यह मैं निश्चित कर चुका हूं, कृपया शादी की चर्चाओं को विराम दें।
उनके अंतःकरण में स्वतंत्रता की जो आग थी, उसका प्रकटीकरण समय-समय पर उनके द्वारा दिए गए वक्तव्यों से होता है।
18 मार्च 1922 को महात्मा गांधी को 6 वर्ष के लिए कारावास का दंड सुनाया गया। वे कारावास से बाहर आने तक प्रत्येक माह की 18 तारीख “गांधी दिन” के रूप में मनाई जाती थी। ऐसे ही एक “गांधी दिन” के अवसर पर डॉक्टर साहब द्वारा व्यक्त विचारों के दो वाक्य ही देखें। महात्मा गांधी जैसे पुण्यवान पुरुष के सद्गुणों के श्रवण तथा चिंतन करने का आज का दिन है। महात्मा गांधी द्वारा आत्मसात अत्यंत महत्वपूर्ण सद्गुण यानी निश्चित किए गए कार्य को संपन्न करने हेतु अपने स्वार्थ का भी त्याग करना। यदि वह व्यक्ति महात्मा गांधी को स्वयं का अनुयाई कहता है तो, स्वत: के जीवन को होम कर युद्ध के मैदान में उतरना, ऐसे विचारों से डॉक्टर जी का अंत:करण हमेशा धधकता रहता था।
स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए चलने वाले सभी प्रकार के प्रयत्नों में आगे रहते हुए एवं सक्रिय रहते हुए, साथ ही साथ उनके मनों में उठने वाले विचारों के बारे में यदि देखा जाए तो स्वतंत्रता सैनिक के रूप में उनकी एक अलग ही छवि ध्यान में आती है।
१. संपूर्ण प्रभावी संस्कार किए बिना देश भक्ति का टिकाऊ स्वरूप निर्माण होना संभव नहीं तथा ऐसा स्वरूप निर्माण होने तक सामाजिक व्यवहार में ईमानदारी आना संभव नहीं।
२. देशभक्ति से सराबोर एवं शीलवान, गुणों के विकास से प्रभावी, निस्सीम सेवा भाव से स्वत: अनुशासित जीवन जीने के उत्सुक ऐसे क्रियाशील, कर्तृत्वशाली युवा लाखों की संख्या में तैयार होने चाहिए।
३. समाज के जागृत प्रश्नों का हल निकालने हेतु प्रयत्न तो अवश्य होना चाहिए, परंतु इन भीषण प्रश्नों को हमेशा के लिए समाप्त करना हो तो मात्र कुछ पीढ़ियों तक राष्ट्रीयत्व की दीक्षा देकर देश हित के लिए संपूर्ण जीवन होम करने वाले नागरिक पूरे देश में प्रचंड संख्या में खड़े करने चाहिए।
डॉ. केशव राव हेडगेवार के मन में चलने वाले उपरोक्त विचारों से ऐसा ध्यान में आता है कि मिलने वाली स्वतंत्रता अबाधित रखने के लिए समाज की सिद्धता कैसी होनी चाहिए, इसका वे विचार कर रहे थे।
पहले स्वतंत्रता या समाज सुधार यह विवाद भी इन दिनों चल रहा था। डॉक्टर जी इस विवाद में शामिल नहीं हुए, ऐसा दिखता है। Eternal vigilance is the price of liberty ऐसा एक अंग्रेजी वाक्य प्रसिद्ध है। Enternal vigilance के लिए आवश्यक गुणों से युक्त समाज रचना के लिए क्या करना होगा, इसका सविस्तर विचार उन्होंने किया होगा, ऐसा दिखाई देता है।
केवल इतना ही विचार कर वे रुके नहीं, स्वतंत्रता की प्राप्ति हेतु चलने वाली सभी प्रकार की गतिविधियों में उन्होंने उत्साह से भाग लिया। आंदोलन में शामिल रहते हुए भी उन्होंने आंदोलन, क्रांति से दूर एक अनोखा काम प्रारंभ किया। यही कार्य अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नाम से जाना जाता है।
राष्ट्रीयत्व की दीक्षा देकर व्यक्तिगत स्वार्थ एवं महत्वाकांक्षा की बली ना चढ़ते हुए राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत ऐसा अपना समाज हो, ऐसा डॉक्टर हेडगेवार जी को लगता था।
राष्ट्रीयत्व की भावना की पैठ समाज में हो, इसके लिए कुछ पीढ़ियों तक काम करना पड़ेगा, ऐसा उन्हें हृदय से लगता था। राष्ट्रीयता की भावना से अभिभूत, देश हित के लिए जीवन भर अखंड जागृत रहने वाले नागरिक पूरे देश में प्रचंड संख्या में और परंपरा से खड़े रहें, यह उद्देश्य आंखों के सामने रखकर उन्होंने एक अलग प्रकार के (से) काम को चालना दी, उसका नाम (जो उन्होंने निश्चित किया था) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ!
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पहचान याने संघ की रोज लगने वाली 1 घंटे की शाखा! संघ की शाखा याने देश भक्ति का सत्संग! प्रत्येक व्यक्ति में देश भक्ति का यह प्राथमिक गुण होना ही चाहिए। समाज में अनुभव सिद्ध सत्संग, सद्विचार, सदाचार का एक नया आयाम उन्होंने जोड़ा। साधु संत संप्रदाय के प्रवर्तक हमेशा समाज को सत्संग में आने का आह्वान करते रहते हैं। सत्संग के कारण व्यक्ति के जीवन में सद्गुणों की वृद्धि होती है। ईश्वर भक्ति, देव भक्ति, गुरु भक्ति निर्माण करने वाले सत्संग समाज में चलते रहते हैं। इन सब की समाज में कोई कमी नहीं, कमी है तो प्रखर देश भक्ति की! पूर्ण प्रभावी संस्कार यदि न किए जाएं तो देशभक्ति का टिकाऊ स्वरूप निर्माण होना असंभव है और ऐसा स्वरूप निर्माण होने तक सामाजिक व्यवहार में ईमानदारी आना कठिन है।
देशभक्ति के प्रभावी संस्कार हो सके, इसलिए ऐसे सत्संग की आवश्यकता है। संघ की प्रत्येक शाखा याने देशभक्ति का सत्संग, यह था डॉ हेडगेवार का मौलिक चिंतन!
संघ की किसी भी शाखा में किसी भी देवता या महापुरुष की फोटो या प्रतिमा ना लगाई जाती है ना रखी जाती है। यदि किसी महापुरुष की विशेष तिथि शाखा की ओर से मनाना हो तो उस कार्यक्रम के लिए उस व्यक्ति का फोटो लगाया जाता है। संघ निर्माता के रूप में डॉ. हेडगेवार का फोटो भी नहीं लगाया जाता। किसी प्रकार के नारे भी नहीं लगाए जाते, जैसे डॉक्टर हेडगेवार अमर रहे, जय श्री राम, जय जगत, जय भीम इत्यादि। हनुमान चालीसा, नवग्रह स्तोत्र इत्यादि भी नहीं। शाखा याने विशुद्ध राष्ट्र भक्ति!
मुझे क्या मिलेगा? इस पर देश भक्ति अवलंबित नहीं है। यह सौदेबाजी का विषय हो ही नहीं सकता, इस आशय के विचार डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर ने संविधान सभा में अपने अंतिम भाषण में व्यक्त किए थे। “अब हम बहुदलीय लोकतंत्र को स्वीकार कर रहे हैं। प्रत्येक दल सत्ता में आने का प्रयास करेगा। दलहित या राष्ट्रहित ऐसा प्रश्न जब जब खड़ा होगा तब तब दलहित राष्ट्रीय हितों से ऊपर रहेगा क्या? ऐसा प्रश्न मेरे मन में बार-बार आता है। इतने प्रदीर्घ कालावधी के बाद मिली स्वतंत्रता हम गंवा तो नहीं देंगे।
मैं प्रथम भारतीय, मध्य में भारतीय, अंत में भी भारतीय। भारत के लिए बलिदान देने का यदि समय आया तो मैं प्रथम पंक्ति में रहूंगा। भारत की एकता पर कोई भी आघात सहन नहीं किया जा सकता।
There is a deep cultural unity in our society (that should be recognized by all)
आप मार्क्सवादी हो, लोहिया वादी हो, गांधीवादी हो, आम्बेडकरवादी हो, आदि कोई भी हो लेकिन राष्ट्रवादी होना महत्वपूर्ण है। नेशन फर्स्ट की भूमिका प्रत्येक भारतीय की होनी चाहिए, ऐसा प्रयत्न संघ का है।
जापान का एक उदाहरण कई बार सुना है। एक भारतीय परिवार जापान में प्रवास के लिए जाता है। रेस्टोरेंट में भोजन के बाद वेटर बिल के अनुसार पैसे लेता है तथा कहता है, “आपने बहुत सा खाना थाली में ही छोड़ दिया है यह अच्छा नहीं किया।” भारतीय प्रवासी कहता है “तुम्हें पैसे पूरे मिल गए ना? हम खाए या ना खाएं यह हमारा प्रश्न है।” जापानी वेटर कहता है, “पैसा आपका ही है, परंतु अन्न इस देश का है।”
आज 80 हजार से अधिक देशभक्ति के सत्संग चालू है। जल्दी ही उनकी संख्या 1 लाख से ऊपर हों, ऐसा प्रयत्न है। ऐसे सत्संग प्रत्येक गांव में, प्रत्येक बस्ती में क्यों नहीं? ऐसा एक सूत्रीय कार्यक्रम संघ ने चलाया है।
प. पू. सरसंघचालक राज्य और प्रांत का प्रवास करते हैं। कार्यकर्ताओ की बैठक लेते हैं, बैठकों में इस संबंध में पूछताछ होती है। सभी मंडलों में, बस्तियों में, शाखा की क्या योजना है?
स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए सत्याग्रह कारावास में जाने की और यदि आवश्यकता हो तो बलिदान देने की भी तैयारी थी। स्वतंत्र भारत में समाज में कौन से गुण हो, यदि इसका विचार किसी ने किया तो वह केवल डॉ. हेडगेवार ने। यही उनका स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में असामान्यत्व है। देश के लिए जीने वाले नागरिक चाहिए। दैनंदिन व्यवहार में देशभक्ति का जीवन जीने वाले, अनुशासन का पालन करने वाले, ईमानदारी से व्यवहार करने वाले, पर्यावरण पूरक जीवन शैली और भेदभाव न मानने वाले, स्वाभिमानी नागरिक चाहिए। “क्रांत दर्शी केशवाने दिव्य स्वप्न पाहिले” ऐसी एक काव्य पंक्ति है। हमने प्रारंभ किया हुआ कार्य स्वतंत्रता को अमरत्व प्राप्त कराने वाला हो, इसका उन्हें प्रबल आत्मविश्वास था। संघ कार्य ईश्वरीय कार्य है, ऐसा वे हमेशा कहते थे।
-मधुकर राव कुलकर्णी
आज के युग में कोई देशभक्ति नहीं चाहता सब मै के लिए जी रहे है हम के लिए कोई नहीं जी रहा है चाहे वो संघ समर्थित भारतीय जनता पार्टी ही क्यों न हो वो भी अपना स्वार्थ सिद्ध कर रही है राम भगवान के नाम से सत्ता पर अधिकार जमा लिया लेकिन पार्टी के नेता महाभ्रष्ट है और अगर नेता भ्रष्ट है तो उनका नेतृत्व करने नेता भी भ्रष्ट ही कहलायेगा फिर चाहे वो मोदी जी अमित शाह क्यों न हो आज हमारे देश सबसे ईमानदार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी कहा जाता है लेकिन उनके कार्यकाल में इतने घोटाले हुए कि दाग उन्हीं पर लग गया इसलिए संघ को हर क्षेत्र में अपना प्रतिनिधि लाना चाहिए और पूरे नियंत्रण के साथ
बढ़िया आलेख,शुद्ध विचार,इसे अपनाकर ही राष्ट्र का ध्येय प्राप्त किया जा सकता है।शाखा हमारा तीर्थ स्थल हों चाहिए। यहां से मिलने वाली प्रेरणा राष्ट्र भक्ति का भाव जगाती है। और जागृति आती है।