भारत में ही नहीं बल्कि सात समंदर पार भी लोग दीपावली जैसे परम्परागत त्योहार हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। दीयों की कतार से विदेशों की धरती अम्बर बन जाती है। पूजा-पाठ, मंत्रोच्चार व मंदिरों की घंटियों से विदेशों का वातावरण भी दिव्य व पवित्र हो जाता है। पटाखों की आवाज, पकवानों की महक सहज ही बच्चों व बुजुर्गों को रोमांचित कर देती हैं।
वैसे तो सभी त्योहारों का एक अलग और अनूठा रंग होता है पर दीप पर्व यानी दीपावली की बात ही अलग होती है। भारतवर्ष में तो दीपावली की धूम देखते ही बनती है पर यह पर्व विदेशों में भी उतने ही उल्लास व उमंग के साथ मनाया जाता है। मैं लगभग 8 वर्षों तक नैरोबी, केन्या में थी। अफ्रीकी प्रदेश होते हुए भी वहां सभी त्योहारों को इतने धूमधाम से मनाया जाता है कि विश्वास ही नहीं होता कि हम भारत से बाहर हैं। डेढ़-दो महीने पहले से ही बाजारों में दीपावली के सामान व साज-सज्जा से पूरा बाजार पट जाता है। जिनमें भारतीय परिधानों की बात हो, लक्ष्मीजी-गणेशजी की मनमोहक मूर्तियां हों, तरह-तरह के नयनाभिराम दीए एवं गृह सज्जा उपयोगी वस्तुएं, स्वर्णाभूषणों की खरीददारी, चांदी से बने सुंदर कलात्मक सामान, पटाखे आदि के कारोबार से विदेशों का बाजार गर्म रहता है। दीपावली से पहले जब नवरात्र का अवसर होता है तभी से पूरे शहर में त्योहार को लेकर धूम सी दिखाई देती है। ढोल, ताशों की धुन पर लोग गरबा खेलते हैं। ध्यान देनेवाली बात यह है कि पूरे नौ दिन तक डांडिया के दौरान वहां बॉलीवुड के फूहड़ गाने नहीं बजाए जाते बल्कि माता की एक से एक बढ़िया भावपूर्ण आरती, भजन, गीत बजाए जाते हैं। पूरा लाइव बैंड होता है, गायक कलाकार आते हैं और नित नए भजनों पर मां अम्बे को समर्पित गरबा एवं डांडिया रास होता है।
यह बात मुझे सबसे ज्यादा अच्छी लगी, क्योंकि भारत में तो अब प्रायः फिल्मी गानों पर डांडिया का स्वरूप ही बदल चुका है। खासकर अष्टमी की आरती का दृश्य देखने लायक होता है जब मंदिर में आधे घंटे के लिए सभी कृत्रिम लाईट बंद कर दी जाती हैं और सभी श्रद्धालुओं की आरती की थालियों में जलते अनगिनत दीए मां अम्बे के प्रति समर्पण एवं सच्ची भक्ति का सजीव प्रमाण होते हैं। मां दुर्गा की भावपूर्ण आरती समवेत स्वर में गाई जाती है कि वहां की दिव्यता और पवित्रता से मन अभिभूत हो उठता है।
लोग विदेशों में भी नवरात्र से ही भक्ति के रंग में रंगना शुरू हो जाते हैं। रावण दहन का समारोह भी उल्लासपूर्ण होता है। वहां के प्रसिद्ध सनातनी मंदिर के बड़े से परिसर में मेला लगता है। बहुत सारे मनमोहक स्टॉल लगते हैं। रामायण के पात्रों पर आधारित बच्चों की फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता का भी आयोजन होता है। इस दौरान रंगारंग कार्यक्रम भी प्रस्तुत किए जाते हैं। जो बहुत रोचक होता है। अंत में मेघनाद, कुम्भकरण व रावण के पुतलों का विधिवत भगवान श्रीराम के तीर से दहन करने का दृश्य देखने वहां प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में लोग आते हैं।
यहां के विभिन्न मंदिरों की साज-सज्जा देखकर आप दांतों तले ऊंगली दबा लेंगे। केन्या के फूल विश्व-प्रसिद्द हैं। मंदिरों में अधिकतर सजावट हेतु इन्हीं फूलों का प्रयोग किया जाता है। मौसम ठंडा होने के कारण फूलों से बनी मालाएं, बंदनवार, मूर्ति के गहने आदि कई-कई दिनों तक तरोताजा रहते हैं। करवाचौथ में भी मंदिरों में जबरदस्त भीड़ रहती है। सभी सुहागिन लाल जोड़े या भारतीय परिधानों में सजी संवरी दिखती हैं। मेंहदी रचे हाथों में लाल लाल चूड़ियां, सिंदूर से भरे मांग सोलह श्रृंगार देख कर सचमुच लगता ही नहीं है कि हम भारत से बाहर कहीं हैं। दीपावली की साज-सज्जा लगभग महीने भर पहले से ही शुरू हो जाती है। कई भारतीय लोग अपने पूरे के पूरे बंगले को दुल्हन की तरह सजाते हैं। आपस में उपहार का भी आदान-प्रदान होता है।…और हां दुर्गा-पूजा की चर्चा किए बिना यह लेख अधूरा रह जाएगा। जी हां, पूरे विधि-विधान के साथ दुर्गा पूजा का भी आयोजन होता है। इतने आकर्षक पंडाल बनाए जाते हैं जो मन मोह लेते हैं। हर आरती में भक्तों की भीड़ देखने को मिलती है। बंगाली स्त्रियां शाम को सुंदर और पारम्परिक बंगाली साड़ियों में सजी-धजी दिखती हैं। मां दुर्गा की विधि-विधान से पूजा की जाती है। सिंदूर खेला वाले दिन सभी स्त्रियां पारम्परिक लाल पाड़ वाली बंगाली साड़ियां पहनती हैं और अपनी सखियों के संग सिंदूर खेला खेलती हैं। सच मानिए इतने वर्ष भारत में रहने के बाद भी मैंने यह सब कभी नहीं किया था पर अपनी बंगाली सखियों संग इन सबका अनुभव वहां किया, जिसमें ब़हुत आनंद आया था।
धनतेरस से लेकर भाईदूज तक पांचों दिन पटाखे फोड़े जाते हैं। अनुशासन के नियम भी मुझे प्रभावित कर गए कि वहां की सरकार द्वारा मंदिर के परिसर में पटाखे फोड़ने की अनुमति दी जाती है और विशेषतौर पर कुछ कुछ परिसरों में अनुमति दी जाती है ताकि एक तो पूरे शहर में कचरा नहीं हो पाए और दूसरे बाकी लोगों को असुविधा भी नहीं हो।
लगभग दो महीनों तक इस उत्सव की धूम मची होती है और सभी लोग भी बढ़-चढ़ कर हर कार्य में भागीदारी निभाते हैं।
अफ्रीका के बाद हम करीब तीन वर्षों से दुबई में प्रवास कर रहे हैं। यहां पर भी दीपावली की छटा निराली है। देखिए दोनों देशों में कोई तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि केन्या में नैरोबी एक छोटा-सा शहर है और गल्फ टाइगर के नाम से प्रसिद्ध दुबई संयुक्त राष्ट्र अमीरात का एक मॉडर्न तकनीक से निर्मित शहर है। अगर दीपावली की बात की जाए तो यहां पर भी महीने भर पहले से विभिन्न प्रदर्शनियां आदि लगनी शुरू हो जाती हैं। जहां नया और एकदम ट्रेंडी दीपावली सम्बंधित सामान मिलता है। अल सीफ व् अन्य कई समुद्री स्थलों पर दीपावली की बड़ी ही मनमोहक छटा देखी जा सकती है।
आकाश में बड़ी ही आकर्षक आतिशबाजी की जाती है। सभी घर और खासकर जिनके बंगले हैं दुल्हन की तरह सजाए जाते हैं। उन दिनों अकसर लोग रात को अपनी गाड़ियों में शहर की रौशनी देखने को निकलते हैं। घरों की साज सज्जा-सफाई वैसे ही की जाती है जैसे अन्य देशों में की जाती है। मंदिरों में भी दीपावली हेतु विशेष सौहार्दपूर्ण आयोजन किए जाते हैं और वहां की सजावट भी नयनाभिराम होती है।
मुझे ऐसा लगता है कि पर्व कोई भी हो उनका मुख्य उद्धेश्य प्रेम, शांति व खुशियां बांटना ही है।
त्योहारों का आनंद अपनों के साथ होता है पर जब हम भारत से बाहर रहते हैं तो जो मित्र होते हैं वही परिवार बन जाते हैं। हम सब कोशिश करते हैं कि हर भारतीय उत्सव की सुंदरता बनाए रखे और अपने संस्कारों से, अपनी माटी, अपनी जड़ों से जुड़े रहें!
-अनु बाफना