मिथिला के सबसे युवा आईएएस अधिकारी बनने का गौरव प्राप्त करनेवाले मुकुंद ठाकुर अपनी जन्मभूमि को भी बहुत प्यार करते हैं और मिथिला को दिल से याद करते हैं। मिथिला क्षेत्र और समाज से जुड़े विविध विषयों पर उन्होंने अपनी मनोभावना व्यक्त की है। प्रस्तुत है उनके साक्षात्कार का सम्पादित अंश
अपना संक्षेप में परिचय दीजिए।
मेरा नाम मुकुंद ठाकुर है। मेरा जन्म 18 नवम्बर 1997 में बिहार के मधुबनी जिले स्थित बरुआर गांव में हुआ था। अभी मेरी आयु 27 साल है। मैं अपनी बैच में एकमात्र युवा आईएएस था, जो इतनी कम आयु में इस पद तक पहुंचा।
आपकी शिक्षा-दीक्षा कहां से हुई?
मेरी पढ़ाई चिल्ड्रेन पब्लिक विद्यालय में नर्सरी से लेकर 5वीं तक मधुबनी में ही हुई। इसके बाद 2008 से लेकर 2015 तक 6वीं से लेकर 12वीं तक सैनिक स्कूल गोलपाड़ा (असम) से मेरी पढ़ाई हुई। इसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में 2018 में ग्रेज्युएशन पूर्ण किया। सिविल सर्विस में मात्र 22 वर्ष में ही मैं आ गया था और 2020 में प्रशासनिक अधिकारी बन गया।
आप मिथिला में कब तक रहे?
बचपन से लेकर 12 साल की आयु तक मैं मिथिला में ही रहा। इसके बाद हर साल छुट्टियों में मैं घर आता था और लगभग महिना, दो महीने रहता था।
आपने अपने गृह राज्य बिहार में भी अपनी सेवाएं दी हैं?
जब मैं प्रशासनिक अधिकारी बना तो मेरी इच्छा यही थी कि मुझे अपने राज्य में सेवा का मौका मिले ताकि मैं बिहार के लिए कुछ कर सकूं, लेकिन आईएएस सेवा में नियम होता है कि केवल एक तिहाई अधिकारी ही राज्य के होते हैं, इसलिए मुझे केरल कैडर मिला। मैं आशा करता हूं जब भी मुझे अपने राज्य बिहार में सेवा का मौका मिलेगा तब मैं अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान अवश्य दूंगा।
बिहार और खासकर मिथिला क्षेत्र और समाज के प्रति आपके मन में क्या भाव हैं?
सच बताऊं तो मैं मिथिला और अपनी जन्मभूमि को बहुत ज्यादा याद करता हूं। कुछ समय पूर्व मैं केरल के कोलम जिले में था, अभी त्रिवेंद्रम राजधानी में पोस्टेड हूं। सिविल सप्लाय डिपार्टमेंट और कंज्यूमर एक्साइज डिपार्टमेंट में कमिश्नर हूं। यहां जब भी मुझे समय मिलता है तब मैं मैथिलि गाना सुनता हूं। मेरी माताजी भी मेरे साथ ही रहती हैं। अभी मिथिला का एक त्योहार हमने केरल के त्रिवेंद्रम में अपने घर की छत पर मनाया। मिथिला को मैं हमेशा से ही याद करता हूं। मिथिला दरभंगा महाराजा रामेश्वर के पीए अमरकांत मिश्रा ने मिथिला पर ‘रूलिंग डायनेस्टी ऑफ मिथिला’ नामक पुस्तक लिखी है, उसे मैंने अमेजन से मंगवा कर पढ़ना शुरू किया है। मैथिली की जितनी भी फिल्में हैं, जैसे अभी हाल ही में ‘नून रोटी’ रिलीज हुई थी, उसे देखते रहता हूं और इस तरह अपनी मिथिला की यादों को तरोताजा करता हूं। जब मैं मिथिला जाता हूं तो वहां के अधिक से अधिक मंदिर घूमने का प्रयास करता हूं।
मिथिला (बिहार) में पलायन रोकने के लिए क्या किया जा सकता है?
शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण की दिशा में सुधार और परिवर्तन की आवश्यकता है। मिथिला में बहुत प्रतिभा है। यदि राज्य सरकार उनकी क्षमताओं का लाभ उठाए तो पलायन रुक सकता है और बिहार बदल सकता है। उद्योग, व्यवसाय, रोजगार की बहुत अधिक सम्भावना और मांग है। स्थानीय उद्योगों को स्थापित करने से प्रवासी कुशल कारीगर या मजदूर अन्य राज्यों में नहीं जाएंगे। यदि सही प्लेटफार्म दिया जाए तो वे बहुत ही बेहतर कर सकते हैं। यदि आप स्वेच्छा से अमेरिका जाकर कमाना चाहें तो इसमें कोई बुराई नहीं है, लेकिन यह आपकी मजबूरी नहीं होनी चाहिए। रोजी-रोजगार के अभाव में मजबूरन जाना पड़े तो यह बहुत ही पीड़ादायक होता है।
बिहार में बुनियादी और मूलभूत सुविधाओं की स्थिति कैसी है और क्या सुधार व परिवर्तन अपेक्षित है?
मुझे लगता है अभी बहुत कुछ किया जाना अपेक्षित है। समय के साथ अच्छा हुआ है, हो रहा है, लेकिन अभी भी आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है। यदि विकास के मामले में केरल से तुलना करे तो बहुत कुछ करना बाकी है। बिहार में बहुत सम्भावनाएं हैैं और बहुत कुछ किया जा सकता है।
वर्तमान चुनौतियों से निपटने हेतु मिथिला समाज को क्या कदम उठाने चाहिए?
समाज को ही एकजुट होकर हर समस्या व चुनौती से मार्ग निकालना पड़ेगा। समाज में जो विभाजन है जाति, भाषा, प्रांत के नाम पर, उससे ऊपर उठकर सामूहिक रूप से संगठित होकर अपनी मांग रखनी होगी और बदलाव के लिए पहल करनी होगी। स्वयं का हित पीछे रखकर समाजहित को प्राथमिकता देनी होगी। समाज को एकजुट होकर समाज की कैसे उन्नति हो, इस बारे में मंथन करना चाहिए, उसी से समाधान निकलेगा।
उद्योग, व्यवसाय, पर्यटन और रोजगार की दृष्टि से मिथिला को कैसे आकर्षण का केंद्र बनाया जा सकता है?
स्थानीय रोजगार के अवसर कैसे उपलब्ध हों, इसके लिए सरकार, समाज और उद्योग-व्यवसाय आदि विविध क्षेत्रों से जुड़े प्रतिष्ठित लोग मिलकर विचार, मंथन एवं चिंतन करें और उसे अमल में लाए।
पलायन की पीड़ा व दर्द और अपने गांव-घर न आ पाने के प्रवासी लोगों की मजबूरी के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?
जो लोग रोजगार के लिए बाहर जाते हैं वो भी बहुत त्याग कर रहे हैं। विवाह, पर्व-त्यौहार के दौरान वे सभी अपने परिजनों को बहुत याद करते हैं। इनका दर्द कौन समझेगा? हम तो अधिकारी हैं, केरल में है फिर भी इतना याद करते हैं तो जो जमीन से जुड़ा व्यक्ति कितना याद करता होगा। होली, दिवाली, छंठ आदि त्योहारों के दौरान मन में ऐसी कल्पना आती है कि काश कोई टाइम मशीन आ जाए और हम झट से अपने गांव पहुंच जाए। मेरे जैसे सरकारी अधिकारी के पास पैसा है तो मैं फ्लाईट से आ जाऊंगा, लेकिन आम आदमी कैसे आएगा? जब मैं दिल्ली में था तब जनरल बोगी में बैठकर आया हूं, इसलिए मुझे यात्रियों की परेशानी का पता है। ऐसे बहुत से हमारे भाई-बहन हैं जो धक्का-मुक्की का सामना करते हुए ट्रेन से यात्रा कर रहे हैं। यह दिल दहलाने वाली बात है। ट्रेन में आने-जाने के लिए कन्फर्म टिकट तक नहीं मिलता, बावजूद इसके इनके यातायात सुविधा की ओर ध्यान नहीं दिया जाता। यह स्थिति ठीक नहीं है, सरकार को कुछ करना चाहिए।
अपने कार्यक्षेत्र में कैसे सफलता प्राप्त की जा सकती है और समाज में सकारात्मक बदलाव कैसे हो सकता है?
मैं जिस पद पर भी हूं या जिस कार्यक्षेत्र में हूं, मैं वहां अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दूंगा। जब यह भाव सभी में आएगा और ऐसा सच में होने लगेगा तो हमारा समाज प्रगति की ओर अग्रसर हो जाएगा। आप जिस भी पद पर हैं, उस पद से आपका नाम नहीं होना चाहिए बल्कि आपसे उस पद का नाम होना चाहिए। लोग कह सकें कि ये व्यक्ति बहुत अच्छा है और अच्छा काम करता है, ऐसे ही लक्ष्य के प्रति समर्पित काम करने से सफलता पाई जा सकती है। प्रेरक आदर्श व्यक्ति के योगदान से समाज में सकारात्मक बदलाव आता है। हर किसी को अपने कार्यक्षेत्र में सकारात्मक परिवर्तन लाने और सफल होने का अवसर अवश्य आता है, तब उसे इस मौके का लाभ उठाना चाहिए।
प्रवासी मैथिल समाज कैसे अपनी मातृभूमि मैथिली के विकास में सहायता कर सकते हैं?
‘यथा शक्ति तथा भक्ति’ की तरह जो जिस स्थिति में है उसकी क्षमता के अनुसार लोगों को मिथिला क्षेत्र और समाज के विकास के लिए योगदान अवश्य करना चाहिए। केवल धन से ही सहायता नहीं की जा सकती बल्कि मन से भी की जा सकती है।
मिथिला क्षेत्र में अवसरों की कितनी सम्भावना है और मिथिलावासी इसका कैसे लाभ उठा सकते हैं?
मिथिला क्षेत्र में अच्छा करने का बहुत अवसर है। युवा वर्ग के साथियों को यह सपना देखना पड़ेगा और यह विश्वास करना होगा कि ‘मैं कुछ कर सकता हूं।’ एक-एक व्यक्ति को जिम्मेदारी उठानी होगी, केवल सरकार के भरोसे रह कर या छोड़ कर सुधार एवं बदलाव नहीं लाया जा सकता। माना सरकार एक बहुत बड़ा सिस्टम है, जो बड़े स्तर पर बदलाव ला सकता है, लेकिन आप व्यक्तिगत प्रयास से भी आगे बढ़ सकते हैं। समाज को कुछ लौटा सकते हैं। इस मनोभावना के साथ हमें आगे बढ़ना पड़ेगा। हमारा देश भारत अवसरों से भरा हुआ है, इसमें बहुत सी सम्भावनाएं हैं। यदि किसी में क्षमता है, तो वो आए और मौके का लाभ उठाए वरना कोई और इस अवसर को ले जाएगा।
आप अपने गांव-घर जाते हैं तब आपको कैसा लगता है?
मैं हर साल अपने घर जाता हूं तब 15 दिन मैं घर पर ही रहता हूं। इस दौरान कहीं बाहर घूमने नहीं जाता। मेरी यही इच्छा रहती है कि साल में एक महीना मैं अपने घर गांव व मधुबनी में बिताऊं। मुझे अपने गांव में बहुत मजा आता है। इसकी किसी से तुलना ही नहीं की जा सकती। ‘स्वर्ग से सुंदर मिथिला धाम’ की कहावत बिल्कुल सच है। जैसे ही हम दरभंगा एयरपोर्ट या रेलवे स्टेशन पर आते हैं तो एकदम से मन भर आता है।
हिंदी विवेक के पाठकों सहित मैथिली समाज को आप क्या संदेश देना चाहेंगे?
स्मार्ट वर्क अपनी जगह है, लेकिन इसके साथ आपका परिश्रमी होना अत्यंत आवश्यक है। ‘जो तपा है, जो जला है चमक उसी में आई है’ इस बात को हमेशा याद रखना चाहिए। सूरज की तरह चमकना है तो सूरज की तरह जलना होगा। यदि आगे बढ़ना है तो खुद यह जिम्मेदारी उठानी होगी कि मुझे ही कुछ करना है, मैं ही अपने जीवन का भाग्य विधाता हूं। मुझे अपने माता-पिता और समाज व देश के लिए कुछ करना है। हिंदी विवेक के पाठकों सहित मिथिला के सभी लोगों को मेरी ओर से बहुत-बहुत शुभकामनाएं।