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पंचदिवसीय दिपावली का पर्व

पंचदिवसीय दिपावली का पर्व

by हिंदी विवेक
in ट्रेंडींग, विषय
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रामायण की कथा के अनुसार आज ही के दिन राम जी लंका विजय प्राप्त कर अपने श्रीधाम अयोध्या लौटे थे, इस प्रसन्नता को अवध वासियों ने उत्सव के रूप में मनाया घरों को सजाया, चौराहों को सजाकर तरह-तरह के पकवान बनाकर और दीप मालिका सजाकर प्रभु श्री राम का स्वागत किया, इसलिए अयोध्या की दिवाली विशेष मानी जाती हैं ।

शुभम करोति कल्याणम ,आरोग्यम धन संपदा ।
शत्रु बुद्धि विनाशाय, दीप ज्योति नमोस्तुते ।।

है दीपक अपनी ज्योति से, इस जग को आलोकित कर दो।
सुख शांति व यश , वैभव से जन-जन का घर आंगन भर दो ।।

हमारे भारतवर्ष में वैसे तो वर्ष भर में कोई ना कोई उत्सव त्यौहार व्रत आदि मनते ही रहते हैं कोई भी सप्ताह कोई भी महीना सूना नहीं है लेकिन जो प्रमुख त्योहारों की यदि बात करें तो दिवाली उनमें से एक है दिवाली का त्योहार सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है । हमारी भारतीय संस्कृति में दीपों का आदिकाल से बड़ा ही महत्व रहा है हर प्रकार के मांगलिक कार्यों में दीप प्रज्वलित अवश्य किया जाता है ,इसका तात्पर्य है कि प्रत्यक्ष रूप से अंधकार एवं परोक्ष रूप से अज्ञान का अंधकार जीवन से नष्ट होता है, तभी हम जीवन में आगे की दिशा तय कर पाते हैं ।
दीपावली का त्यौहार भी इसी प्रकार का त्यौहार है जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है हमारी भारतीय संस्कृति बड़ी अद्भुत है हमारे ऋषि मुनियों ने कितने चिंतन और मनन के बाद संस्कृति को विकसित किया है हमारे जीवन में यदि उत्सव धर्मिता, मिलना मिलाना ,तीज त्योहारों, की धूम यदि ना हो तो जीवन नीरस हो जाएगा ,और शायद इसीलिए यह परंपरा है की तीज त्योहारों को अकेले नहीं बल्कि अपने परिवार के साथ मनाना ही श्रेष्ठ है।

दिवाली के दो दिन पहले आता है धनतेरस का पर्व जो दिवाली का आरंभ माना जाता है यानि धन्वंतरि त्रयोदशी, पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के समय अमृत कलश धारण किए हुए धन्वंतरी भगवान प्रकट हुए थे ।
भगवान धन्वंतरि जी को ही आयुर्वेद का जनक माना जाता है और यही देवताओं के वैद्ध भी कहे जाते हैं ।
कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी भगवान धन्वंतरि जी का जन्म दिवस है जिसे आम बोलचाल की भाषा में धनतेरस कहा जाता है इस दिन घर की साफ सफाई करके सांयकाल दरवाजों पर दिए लगाए जाते हैं धन्वंतरि जी की पूजा की जाती है तथा सदा सर्वदा आरोग्य रहने की प्रार्थना की जाती है ,आज ही के दिन प्रदोष काल में यम के लिए दीपदान एवं नैवेद्य अर्पण करने का भी प्रावधान है ,कहा जाता है कि ऐसा करने से अकाल मृत्यु नहीं होती है।
वैसे तो कार्तिक माह पूरा ही पावन पवित्र है दीपदान आदि के लिए किंतु समय अभाव है तो 5 दिन तो अवश्य ही करना चाहिए ।

दिवाली से एक दिन पहले आती है छोटी दीवाली जिसे नरक चतुर्दशी कहा जाता है आज के दिन भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर राक्षस का वध किया था इस विजय के उपलक्ष में ही यह त्यौहार मनाने का उल्लेख पुराणों में मिलता है कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है शास्त्रों में ऐसा कहा जाता है कि कृषि प्रधान देश भारत में शारदीय फैसले पककर घर आती है तो लोगों का मन उत्साह से झूम उठता है ,लोग उत्साह में भरकर नये अन्न, धन से माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं ,घरों में दिए जलाते हैं नये अनाज से धन की देवी लक्ष्मी की पूजा करके यह त्यौहार मनाते हैं नए-नए वस्त्र आभूषणों को धारण करना भी दिवाली में शुभ माना जाता है ।
हमारे धर्म ग्रंथो में दिवाली मनाने के भिन्न-भिन्न कारण मिलते हैं कल्प के भेद के कारण एक ही दिन कई संयोग बनने से दिवाली मनाने के कई कारण प्रचलित है ,समुद्र मंथन के समय लक्ष्मी जी का प्राकट्य कार्तिक अमावस्या के दिन ही हुआ था इसलिए लक्ष्मी जी के जन्मोत्सव के रूप में दिवाली मनाई जाती है ,दिए जलाकर लक्ष्मी जी का स्वागत किया जाता है ।
रामायण की कथा के अनुसार आज ही के दिन राम जी लंका विजय प्राप्त कर अपने श्रीधाम अयोध्या लौटे थे, इस प्रसन्नता को अवध वासियों ने उत्सव के रूप में मनाया घरों को सजाया चौराहों को सजाकर तरह-तरह के पकवान बनाकर दीप मालिका सजाकर प्रभु श्री राम का स्वागत किया इसलिए अयोध्या की दिवाली विशेष मानी जाती हैं ।

पुराणों के अनुसार एक बार राजा बलि ने समस्त भूमंडल सहित सभी देवी देवताओं को अपने आधीन कर लिया था तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण करके देवताओं को उनकी सुख संपदा लौट आई थी ,इस उपलक्ष में देवताओं ने दिए जलाकर भगवान विष्णु का आभार प्रकट किया था ।
महाभारत के अनुसार पांडवों के वन से लौटने के उपलक्ष में प्रजा जनों ने नगर को सजा कर दीप जलाकर उनका स्वागत किया था इसलिए हम कह सकते हैं की दीपावली का पर्व अनेकों कारणों से संबंध होते हुए प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है ।
दीपावली का पर्व अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ने का सन्मार्ग प्रदान करता है ।

दिवाली में रात्रि जागरण का भी बहुत अधिक महत्व है, दैवीय शक्तियां प्राप्त करने के लिए ,अपने आराध्य देव की विशेष कृपा पाने के लिए ,धन की देवी लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए ,घर में सुख शांति समृद्धि चिर स्थापित रहे ,और जीवन में अज्ञान रूपी अंधकार की समाप्ति एवं ज्ञान रूपी प्रकाश की प्राप्ति के लिए भी दीपावली का पर्व रात्रि जागरण करते हुए विशेष साधना ,जप ,ध्यान आदि करने का विशेष महत्व है ।
मां लक्ष्मी की पूजा में घर की साफ सफाई करके ,नये वस्त्याभूषणों को धारण करना, नैवेद्य आदि मां लक्ष्मी को अर्पित करना, दीप मालिका प्रज्ज्वलित करना ,और सप्त धान्य यानि सात प्रकार के अन्न् मां लक्ष्मी को अर्पित करना साथ ही प्रार्थना करना चाहिए कि सभी जन सुखी संपन्न एवं निरोगी रहे “सर्वे भवन्तु सुखिना सर्वे संतु निरामया”

यह हमारी नीति भी है, दिवाली के दूसरे दिन आता है गोवर्धन पूजा का दिन, मान्यता है कि आज ही के दिन भगवान श्री कृष्ण ने बृजवासियों को इंद्र के प्रकोप से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत अपनी उंगली पर धारण किया था, और समस्त ब्रज को इस घोर संकट से बचाया था, इसी उपलक्ष्य में बृजवासियों ने भगवान श्री कृष्ण को छप्पन भोग लगाकर तथा अन्नकूट यानी के कढी, चावल और बाजरा और साबुत मूंग इन सभीका मिश्रण अन्नकूट कहलाता है जो आज भी ब्रज में बहुत प्रचलित है ,गोवर्धन पूजा का ब्रजमंडल में बहुत अधिक महत्व है जहां एक और मंदिरों में छप्पन भोग का आयोजन होता है वही लोग घर-घर में पारिवारिक जनों इष्ट मित्रों के साथ मिलकर यथासंभव पूजा की सामग्री एकत्र करके भगवान श्री कृष्ण की पूजा करते हैं और प्रार्थना करते हैं।
गिरिराज धरण, हम तेरी शरण ,गिरिराज धरण हम तेरी शरण ,राखो लाज हमारी गोवर्धन,

द्वापर युग से लेकर आज तक ऐसी मान्यता है कि जो भी किसी प्रकार की सार्थक मनोकामना लेकर गिरिराज जी की परिक्रमा करेगा उसकी समस्त मनोकामना सिद्ध होगी गोवर्धन पर्वत को ही साक्षात भगवान श्री कृष्ण का स्वरूप माना जाता है ।
आप ही पूजे आप पूजावे, लीला केहीं विधि बरनी जावे ।

इसके बाद आता है भाई दूज का पर्व जो कार्तिक शुक्ला दोज को मनाया जाता है इस दिन मां यमुना का उनके भाई यम के साथ पूजन करने का विशेष महत्व है ऐसी मान्यता है कि जो भी मनुष्य कार्तिक शुक्ला दोज को भाई-बहन हाथ पकड़ कर यमुना जी में स्नान करते हैं और यह यमुना का पूजन करते हैं उनको यम की यातना से मुक्ति मिल जाती है मथुरा में विश्राम घाट पर यम- यमुना का मंदिर है यहां पर प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैंभाई बहन का यह पर्व त्यौहार बड़े उत्साह से मनाया जाता है .

कार्तिक शुक्ला दोज को भाई दोज के नाम से भी जाना जाता है इस दिन बहन के यहां भोजन करने का भी विशेष महत्व है ,
इस प्रकार से विविध कथाओं को समेटे हुए पूर्ण होता है हमारा पंचदिवसीय दीपावली का त्योहार जो सभी के कल्याण का पथ प्रदर्शन है अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाना अपने प्रभु की आराधना में लीन रहना सभी इष्ट मित्र व परिवारी जनों के साथ मिलकर मन को प्रसन्नता प्रदान करने वाला त्यौहार है दीपावली।
सभी सुखी हो, संपन्न हो ,निरोगी हो ,और हां पर्यावरण की रक्षा हेतु कृपया पटाखों से दूरी बनाए रखें पटाखे के धुएं से बहुत लोगों को परेशानी हो जाती है, हमारी प्रसन्नता किसी के दुःख का कारण नहीं बननी चाहिए ।आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं….

-सुमन पाठक

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