राजा जनक, माता सीता और प्रभु श्रीराम की चरणधूल से परम पवित्र हुई मिथिला की तपोभूमि को धाम कहा जाता है। इसका जितना गौरव और यशगान किया जाए कम है। मिथिलावासी चाहे देश में हो या विदेश में अपनी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने के प्रति जागरूक हैं।
एहेन सुंदर मिथिला धाम।
दोसर पायब कोन ठाम॥
अर्थात मिथिला जैसी पावन भूमि इस धरा पर दूसरी नहीं है। इसमें अतिश्योक्ति भी नहीं है क्योंकि जहां विदेह राजा जनक जैसा ब्रह्मज्ञानी और जनक नंदिनी जानकी माता का जन्म हुआ, जहां साक्षात् भगवान राम दामाद के रूप में पधारे, ऐसी परम पवित्र धरती, उसकी परम्परा, विधाओं की श्रेष्ठता अवश्य ही वंदनीय है।
संस्कृति और साहित्य का प्रदेश मिथिला सदियों से बिहार की स्वर्णिम धरा पर अपनी अनूठी गरिमामई गाथा लिए विद्यमान है। कहते हैं किसी भी प्रदेश की पहचान उसके गांवों और शहरों से होती है। मिथिला का कण-कण हजारों वर्ष पुरातन कृतियों, उपलब्धियों, उत्तम जनजीवन, विविध समृद्ध विधाओं, त्यौहारों के लिए आज भी अनुकरणीय आदर्श प्रस्तुत करता है। क्या हम उस घड़ी की कल्पना कर सकते हैं कि एक ऐसा समाज जहां भगवान राम (हम सब के आराध्य देव) को भी ताने सुनने पड़े, सखियों की ठिठोली का उत्तर देना पड़ा। वो समाज जिसका सीधा सम्बंध प्रभु श्रीराम से था। वे किसी के जीजा, किसी के बहनोई, किसी के नंदोई, कोई साला (श्याला), कोई साली था और वो इन सभी रिश्ते से बंधे थे।
विदेह और मिथिला नामकरण का सर्वाधिक प्राचीन सम्बंध शतपथ ब्राह्मण में उल्लिखित ‘विदेघ माथव’ से जुड़ता है। वाल्मिकि रामायण तथा विभिन्न पुराणों में मिथिला नाम का सम्बंध राजा निमि के पुत्र मिथि से जोड़ा गया है। वृहद्विष्णुपुराण के मिथिला माहात्म्य में मिथिला एवं तीरभुक्ति दोनों नाम कहे गए हैं। मिथि के नाम से मिथिला तथा अनेक नदियों के तीर पर स्थित होने से तीरों में भोग (नदी तीरों से पोषित) होने से तीरभुक्ति नाम माने गए हैं। यह तीरभुक्ति मिथिला सीता का निमिकानन है, ज्ञान का क्षेत्र है और कृपा का पीठ है।
मैं बहुत गर्व महसूस करती हूं कि मैंने उस धरती पर जन्म लिया जहां मां सीता कण-कण में हैं, जहां श्रीराम प्रत्येक व्यक्ति के मन में हैं। मैं उस नगर की बात कर रही हूं जो साक्षी है त्याग, बलिदान, पराक्रम, प्रेम, धर्म, वचन और जीवन का। आज भी मैथिल समाज कला, अध्यात्म, तकनीक, व्यापार हर क्षेत्र में अपनी गरिमामई उपस्थिति बनाए हुए है।
टीवी जगत की प्रसिद्ध कलाकार श्रीति झा, सिनेमा के सुप्रसिद्ध निर्माता निर्देशक प्रकाश झा, समाचार-मीडिया जगत में मृत्युंजय झा, संगीत क्षेत्र में शारदा सिन्हा, मैथिलि ठाकुर वैश्विक स्तर पर तथा हमारे अनेक भाई-बंधु उच्च पद पर उत्कृष्ट भूमिका निभा रहे हैं। जैसे संजय झा ने जनवरी 2014 में ग्लोबल फाउंड्रीज के सीईओ का पदभार सम्भाला। यह एक सेमीकंडक्टर फाउंड्री है जो एमडी, ब्रॉडकॉम, क्वालकॉम और एसटी माइक्रो इलेक्ट्रॉनिक्स जैसी दिग्गज कम्पनियों के लिए चिप्स बनाती है। इससे पहले वे मोटोरोला मोबिलिटी के सीईओ और क्वालकॉम के सीओओ के रूप में कार्य कर चुके हैं।
अनगिनत मैथिलि परिवार विदेशों में बड़े पदों पर विराजमान होकर न सिर्फ भारत की विश्वस्तरीय क्षमता का लोहा मनवा रहे हैं अपितु अपनी सदियों पुरानी धार्मिक परम्परा, संस्कृति, रीती-रिवाजों को निष्ठापूर्वक निभा रहे हैं। अपनी मातृभूमि से दूर होने पर भी अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े रहना एक अनुकरणीय आदर्श है। मैथिल समाज समर्थ, सम्पन्न और बहुत ही सामर्थ्यवान रहा है। आज का मैथिल युवा विश्व भर में अपने अप्रतिम कौशल ज्ञान क्षमता से सम्मानजनक जीवन जी रहा है। मिथिला समाज आधुनिक युग के साथ अपनी पुरातन परम्पराओं से कदमताल करता हुआ प्रगति की ओर अग्रसर है।
–अपर्णा झा