हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
मिथिला में नारी की दशा एवं दिशा

मिथिला में नारी की दशा एवं दिशा

by हिंदी विवेक
in नवम्बर २०२४, महिला, विशेष
0

मिथिला महिला सशक्तिकरण का आदर्श केंद्र रहा है और आज भी वहां की महिलाएं स्वावलम्बन, आत्मनिर्भरता और सक्षमीकरण में नित नए प्रतिमान स्थापित कर रही हैं। हालांकि स्वास्थ्य, शिक्षा, बाल विवाह, दहेज प्रथा जैसी चुनौतियों से उन्हें जूझना पड़ रहा है। महिलाओं को प्रोत्साहित करने हेतु राज्य सरकार को इस दिशा में ठोस पहल करने की आवश्यकता है।

मिथिला, जिसे अपनी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर, साहित्य और कला के लिए जाना जाता है, वहां महिलाओं की शक्ति और उनके योगदान का एक दीर्घकालिक इतिहास रहा है। प्राचीन काल से लेकर आधुनिक समय तक मिथिला की महिलाएं न केवल अपने परिवार और समाज की धुरी रही हैं, बल्कि शिक्षा, समाज सुधार, राजनीति, कला और संस्कृति में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मिथिला, जो वर्तमान बिहार और नेपाल के कुछ हिस्सों में फैला हुआ है, हमेशा से विद्वानों, साहित्यकारों और कलाकारों की भूमि रही है। यहां की महिलाओं ने भी बौद्धिक और सामाजिक जीवन में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है और शिक्षा, साहित्य, कला और समाज सुधार के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी छाप छोड़ी है।

प्राचीन काल में मिथिला की महिलाएं बौद्धिक और सामाजिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही हैं। वेदों और उपनिषदों में नारी विदुषियों का उल्लेख मिलता है, जो यह प्रमाणित करता है कि उस समय की महिलाएं शिक्षा और ज्ञान के उच्च स्तर पर पहुंच चुकी थीं। गार्गी और मैत्रेयी जैसी विदुषियों ने न केवल शिक्षा प्राप्त की, बल्कि अपने ज्ञान के बल पर पुरुष विद्वानों के साथ शास्त्रार्थ भी किया। गार्गी ने याज्ञवल्क्य जैसे महान ॠषि के साथ बहस की, जिससे यह सिद्ध होता है कि  महिलाओं को शिक्षा और ज्ञान प्राप्ति की पूर्ण स्वतंत्रता थी। सीता मिथिला की सबसे प्रसिद्ध नारी शक्ति का प्रतीक हैं, जो रामायण की मुख्य नायिका हैं। उनका जीवन भारतीय नारीत्व और उनके त्याग, समर्पण, शक्ति, धैर्य और संघर्ष का प्रतीक है। सीता न केवल एक आदर्श पत्नी के रूप में जानी जाती हैं, बल्कि उन्होंने समाज में महिलाओं की भूमिका को परिभाषित करने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।

मैत्रेयी प्राचीन भारतीय ग्रंथों में दिखाई देती हैं, जैसे कि एक संवाद में जहां वह बृहदारण्यक उपनिषद में याज्ञवल्क्य के साथ एक संवाद में आत्मान् (आत्मा या स्वयं) की हिंदू अवधारणा की पड़ताल करती हैं। इस संवाद के अनुसार प्रेम एक व्यक्ति की आत्मा से प्रेरित होता है और मैत्रेयी आत्मान और ब्रह्म के प्रति और उनकी एकता, अद्वैत दर्शन के मूल पर चर्चा करती है। यह मैत्रेयी-याज्ञवल्क्य संवाद सुरेश्वर की वर्तिका, एक भाष्य का विषय है। वे मित्र ॠषि की कन्या और महर्षि याज्ञवल्क्य की दूसरी पत्नी थीं। याज्ञवल्क्य की ज्येष्ठा पत्नी कात्यायनी अथवा कल्याणी मैत्रेयी से थोड़ी ईर्ष्या रखती थीं। कारण यह था कि अपने गुणों के कारण इसे पति का स्नेह अपेक्षाकृत अधिक प्राप्त था। आध्यात्मिक विषयों पर याज्ञवल्क्य के साथ इनके अनेक संवादों का उल्लेख प्राप्त है। पति के संन्यास लेने पर इन्होंने पति से अत्यधिक ज्ञान का भाग मांगा और अंत में आत्मज्ञान प्राप्त करने के बाद अपनी सारी सम्पत्ति कल्याणी को देकर वह याज्ञवल्क्य के साथ वन को चली गईं। आश्वलायन गृह्यसूत्र के ब्रह्मयज्ञांगतर्पण में मैत्रेयी का नाम सुलभा के साथ आया है।

महान भारतीय ॠषि गार्गी वाचक्नवी दुनिया में नारीवाद के शुरुआती प्रतीकों में से एक थीं। 9वीं से 7वीं शताब्दी ईसा पूर्व में उत्तरी भारत में मिथिला के पास जन्मी वह एक जन्मजात दार्शनिक थीं। वह वैदिक साहित्य की एक प्रसिद्ध व्याख्याता थीं। ॠषि वचक्नु की पुत्री के रूप में जन्मीं वह महान ॠषि गर्ग की वंशज भी थीं। छोटी आयु से ही उनकी वैदिक साहित्य और वैदिक दर्शन में रुचि थी। उन्हें ॠषि गार्गी के नाम से भी जाना जाता है, जिसका उल्लेख ॠग्वेद के गृह सूत्र में भी किया गया है। अपने गहन ध्यान के माध्यम से उन्होंने ॠग्वेद के कुछ मंत्रों को प्रकट किया। दर्शन पर उनके विचार इतने उत्कृष्ट माने जाते हैं कि उनका उल्लेख छांदयोग उपनिषदों में मिलता है। उनकी मां इस विचार के विरुद्ध थीं। उसने खुद देखा था कि कैसे एक ॠषि धार्मिक ग्रंथों में डूब जाता है और गृहस्थ के रूप में व्यावहारिक जीवन के बारे में भूल जाता है। वह चाहती थीं कि युवा गार्गी शादी करके गृहिणी बन जाए, लेकिन ढृढ़निश्चयी गार्गी के मन में बौद्धिक और आध्यात्मिक लक्ष्य अधिक थे। वह महान बुद्धि से सम्पन्न थीं और चारों वेदों के जटिल दर्शन में पारंगत थीं। वेदों के विज्ञान और दर्शन में उनकी महारत के लिए उन्हें बहुत सम्मान और आदर मिला। उन्होंने ब्रह्म यज्ञों में भाग लिया और व्याख्यान दिए, इसलिए उन्हें ब्रह्मवादिनी की उपाधि से सम्मानित किया गया। यह उनकी महानता का प्रमाण था कि उन्हें मिथिला के राजा जनक के दरबार में नवरत्न में से एक के रूप में मान्यता दी गई थी।

मंडन मिश्र अपनी पत्नी विदुषी भारती के साथ माहिश्मती नगरी में रहते थे। मंडन मिश्र की पत्नी उभय भारती भी अपनी विद्वता के लिए प्रसिद्ध थीं। कहते हैं कि एक बार शंकराचार्य मंडन मिश्र के साथ शास्त्रार्थ के लिए उनके गांव पहुंचे। इस शास्त्रार्थ के पहले चरण में शंकराचार्य ने मंडन मिश्र को पराजित किया, लेकिन अंत में शंकराचार्य को भारती के हाथों पराजित होना पड़ा। मंडन मिश्र और शंकराचार्य के बीच हुए शास्त्रार्थ में शंकराचार्य विजयी हुए, लेकिन मिश्र की पत्नी भारती ने शंकराचार्य से कहा, मंडन मिश्र विवाहित हैं। हम दोनों मिलकर अर्धनारीश्वर की तरह एक इकाई बनाते हैं। आपने अभी आधे भाग को हराया है। अभी मुझसे शास्त्रार्थ करना बाकी है। कहते हैं कि शंकराचार्य ने उनकी चुनौती स्वीकार की। दोनों के बीच जीवन-जगत के प्रश्नोत्तर हुए। शंकराचार्य जीत रहे थे, लेकिन अंतिम प्रश्न भारती ने किया। भारती के प्रश्न पर उन्होंने अपनी हार स्वीकार कर ली। अंत में सभा मंडप ने विदुषी भारती को विजयी घोषित किया। वर्तमान में श्यामा सिन्हा जैसी महिलाओं ने समाजसेवा और राजनीति के माध्यम से समाज को सुधारने का प्रयास किया। इसके अलावा कई अन्य महिलाएं साहित्य, शिक्षा और शोध के क्षेत्र में योगदान दे रही हैं, जिससे समाज में महिलाओं की भूमिका और सशक्त हो रही है।

कला और संस्कृति में महिलाओं की भूमिका

मिथिला की महिलाएं न केवल साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में बल्कि कला और संस्कृति के क्षेत्र में भी आगे बढ़ी हैं। मिथिला पेंटिंग को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने वाली जगदम्बा देवी, सीता देवी, महासुंदरी देवी, दुलारी देवी, महालक्ष्मी, बउआ देवी, गोदावरी दत्त और कई अन्य महिला कलाकारों ने इस पारम्परिक कला को न केवल सहेजा बल्कि उसे नए रूप में प्रस्तुत किया।

महिला सशक्तिकरण और स्वावलम्बन

आधुनिक मिथिला में महिलाओं ने स्वरोजगार और कुटीर उद्योगों के माध्यम से आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। मिथिला पेंटिंग, कढ़ाई, बुनाई और अन्य हस्तशिल्प उद्योगों में महिलाओं ने अपनी जगह बनाई हैं, जिससे वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो रही हैं और अपने परिवारों का समर्थन कर रही हैं। हालांकि मिथिला की महिलाएं कई क्षेत्रों में आगे बढ़ी हैं, फिर भी उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, बाल विवाह, दहेज प्रथा और पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण महिलाओं की प्रगति में बाधाएं आती हैं। इसके बाद भी महिलाएं इन समस्याओं से लड़ने के लिए तत्पर हैं और समाज में सुधार की दिशा में काम कर रही हैं। मिथिला की नारी शक्ति सदियों से समाज और संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग रही है। आज भी नारी सशक्तिकरण के प्रतीक के रूप में समाज में अपनी जगह बनाए हुए हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बनी हुई है। उनके संघर्ष और योगदान ने यह सिद्ध कर दिया है कि वे हर क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकती है और समाज को प्रगति के मार्ग पर ले जा सकती है।

 -डॉ. बबिता कुमारी

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: #hindivivek #mithila

हिंदी विवेक

Next Post
सेवाकार्य और अन्य गतिविधियां

सेवाकार्य और अन्य गतिविधियां

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0