प्राचीन काल से ज्ञान और शिक्षा की भूमि रही तिरहुत-मिथिला साहित्य का गढ़ माना जाता रहा है। इस क्षेत्र के प्रसिद्ध कवि विद्यापति, बाबू अयोध्या प्रसाद, बाबू देवकीनंदन खत्री, श्रीराम वृक्ष बेनीपुरी, फणीश्वर नाथ रेणु, बाबा नागार्जुन, राम इकबाल सिंह राकेश, राम जीवन शर्मा, आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री आदि अनेक साहित्यकारों ने मिथिला की साहित्य रसधारा को समृद्ध एवं गौरवान्वित किया है।
कमला, बागमती, बूढ़ी गंडक, कोसी, नारायणी और गंगा जैसी नदियों की गोद में अवस्थित मिथिला-तिरहुत अंचल की धरती और आंचलिकता जिस भारतीय समृद्ध सनातन परम्परा, सांस्कृतिक वैभव तथा ज्ञान सम्पदा से सुसज्जित और सम्पन्न है, वह प्राचीन काल से ही पूरे भारत ही नहीं विश्व के लिए भी आकर्षण और प्रेरणा का केंद्र रहा है। तात्विक ज्ञान से दीप्त विदेहराज जनक, ऋषि याज्ञवल्क्य, जगत जननी जानकी, तीर्थंकर भगवान महावीर, जिनके तोते भी वैदिक ऋचाओं के पाठ करते थे। साथ ही आचार्य मंडन मिश्र जैसे अनेक ऋषियों, साधकों, ज्ञानियों-ध्यानियों की यश कृतियों से गौरवान्वित और प्रेरित यह पूरा जनपद आज भी लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में पूरा विश्वास करता है।
जयशंकर प्रसाद की यह पंक्तियां विनम्रता और स्वाभिमान से गुंजित हो जाती हैं – ‘जगे हम, लगे जगाने, विश्व लोक में फैला आलोक।’ आदि शंकराचार्य अपने ज्ञान और ब्रह्मचर्य का दम्भ तथा तेज लिए आए थे। मिथिला की अमराईयों में और शास्त्रार्थ करते हुए आचार्य मंडन मिश्र की सहधर्मिणी विदुषी भारती मिश्र के ज्ञान से हतप्रभ होते हुए पराजित हुए थे।
यहां की साहित्यिक परम्पराओं का दिग्दर्शन कवि विद्यापति के आलोक में जब करते हैं तो राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर के अनेक रचनाकारों का नाम उभर कर आते हैं। भक्ति, श्रृंगार और सौंदर्य के अतुलनीय कवि विद्यापति की काव्यधर्मिता का प्रवाह न केवल इस अंचल को बल्कि बंग-संस्कृति को भी स्पर्शित करता रहा, तभी तो विश्व कवि रवींद्रनाथ ठाकुर की रचनाओं पर उनका गहरा प्रभाव देखा जा सकता है। आज भी कहना बड़ा कठिन है कि विद्यापति भक्तिभाव के बड़े कवि हैं या श्रृंगार रस के। उनके भक्ति परक पद आद्यशक्ति जगदम्बा के लिए हैं तो आदिदेव महादेव के लिए भी है। उन्होंने राधा और कृष्ण के प्रेम का जो वर्णन किया है, वह प्रेम की समग्र अभिव्यक्ति है। उनकी रचनात्मक विलक्षणता अद्भुत और अद्वितीय थी। आज भी लोक कंठों में उनके पद और गीत रचे-बसे हैं तथा गुंजायमान होते रहते हैं।
खड़ी बोली हिंदी के प्रवर्तक बाबू अयोध्या प्रसाद ने हिंदी की शुद्धता के लिए जो प्रयास किया वह अनुकरणीय है। भारतेंदु हरिश्चंद्र की इस मान्यता को कि हिंदी में खड़ी बोली पद की रचना नहीं की जा सकती है, बाबू अयोध्या प्रसाद ने दो खंडों में खड़ी बोली के पद को संग्रहित और प्रकाशित करके बदल दिया था। बाबू देवकीनंदन खत्री के चंद्रकांता और चंद्रकांता संतति उपन्यासों को पढ़ने के लिए अहिंदी भाषा-भाषियों ने हिंदी सीखना शुरू कर दिया था। उनकी लोकप्रियता पूरे देश में फैली थी। जब टीवी चैनल के माध्यम से चंद्रकांता सीरियल की प्रस्तुति हुई तो उसे देखने वाले लोगों की नगरों से गांवों तक में भी भीड़ उमड़ती रही। कलम के जादूगर रामवृक्ष बेनीपुरी अपने शब्द चित्रों के साथ-साथ समाजवादी दर्शन, चिंतन तथा गद्य साहित्य की अनमोल कृतियों के लिए आज भी एक मानक है। एक पत्रकार और सम्पादक के रूप में उन्होंने साहित्यिक, सांस्कृतिक, सामाजिक तथा राजनीतिक मूल्यों की कई पत्रिकाओं का प्रकाशन-सम्पादन किया। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की भूमिका के लिए उन्हें वर्षों तक जेल में रहना पड़ा, मगर वहां भी उन्होंने अपने समय का सदुपयोग रचनात्मक सृजन में किया। लोकशिल्पी कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु की कृतियां विश्व की कई भाषाओं में अनूदित होकर लोकप्रिय हुईं। उनकी कहानी ‘मारे गए गुलफाम’ पर आधारित ‘तीसरी कसम’ फिल्म आज भी अपनी श्रेष्ठता के लिए जानी जाती है। मैला आंचल अद्वितीय उपन्यास है। बाबा नागार्जुन ने साहित्य की सारी विधाओं में लिखते हुए एक यायावर लेखक की दृष्टि से पूरे देश में कई पीढ़ियों का निर्माण किया। वे ऐसे जनप्रिय विद्रोही और क्रांतिकारी कवि थे जो निरंकुश सत्ता के विरोध में सदा मुखर आवाज बनते रहे। उत्तर छायावाद के अग्रणी कवि राम इकबाल सिंह राकेश, लोक कवि राम जीवन शर्मा जीवन और हिंदी गीत कविता के शिखर पुरुष महाकवि आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री की साहित्य साधना से हिंदी भाषा साहित्य समृद्धशाली हुआ है।
छायावाद के प्रकृति चितेरे कवि सुमित्रानंदन पंत की षष्ठी पूर्ति के अवसर पर सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय के सम्पादन में प्रकृतिपरक कविताओं का विशाल संग्रह ‘रूपांबरा’ नाम से प्रकाशित हुआ था, जिसके दो उपखंडों में राम इकबाल सिंह राकेश की श्रेष्ठ प्रकृति केंद्रित कविता का प्रकाशन हुआ था, जिसके संदर्भ में बार-बार अपनी भूमिका में अज्ञेय ने उल्लेख किया है। आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री संस्कृत मनीषी और प्रकांड विद्वान होने के बावजूद हिंदी गीत कविता के बड़े कवि थे। उन्होंने अपनी रचनाधर्मिता के लिए रवींद्रनाथ ठाकुर को चुनौती के रूप में सामने रखा था। साहित्य की समस्त विधाओं में श्रेष्ठ लेखन करते हुए उन्होंने सात सर्गों का महाकाव्य ‘राधा’ का प्रणयन किया जो हिंदी के कुछेक महाकाव्यों की श्रृंखला में कई अर्थों में विशिष्ट और अतुलनीय है। इनका महाकाव्यात्मक उपन्यास ‘कालिदास’ कालिदास की साहित्यिक ऊंचाइयों के साथ ही समय का जीवंत सृजन है। हिंदी गीत की नवधारा ‘नवगीत’ के प्रवर्तक राजेंद्र प्रसाद सिंह ने ‘नवगीत’ नामकरण संस्कार ही नहीं किया, बल्कि नवगीत की प्रवृत्तियों को रेखांकित करते हुए गीत विधा के नए द्वार को भी खोला। हिंदी मुक्तछंद की कविता को नई कविता से आगे निकालते प्रक्रियावाद के नए क्षितिज को उद्घाटित करते हुए इन्होंने पुनर्नवगीत और फिर सतत नवगीत की धारा को भी प्रवाहित किया। वैश्विक बोध के राजेंद्र प्रसाद सिंह ने तीसरी दुनिया पर केंद्रित बहुत सारी कविताओं का सृजन किया। उनका अंग्रेजी काव्य संग्रह ‘सो हियर आई स्टैंड’ अंग्रेजी काव्य साहित्य के बीच संवाद सक्रिय है। पद्मश्री श्याम नंदन किशोर एक सुकंठ कवि, गीतकार और जाने-माने शिक्षाविद हुए, जिन्होंने ‘इड़ा गायत्री’ और ‘आंजनेय’ महाकाव्य लिखते हुए भारतीय भक्तिधारा और आध्यात्मिक चेतना को जन व्यापकता प्रदान की। डॉ. मृदुला सिन्हा ने लोक को केंद्र में रखकर अपनी कथा कृतियों और आलेखों के माध्यम से भारतीयता के शाश्वत तत्वों को उत्कर्ष दिया। पुराण प्रसिद्ध पंच कन्याओं पर आधारित उनके उपन्यास स्त्री विमर्श के व्यापक और नए आयाम हैं। ‘सीता पुनि बोली’ से आगे निकलते हुए उनके उपन्यासों में परितप्त लंकेश्वरी, अहिल्या उवाच, अतिशय, घर-बार आदि अनमोल कृतियां हैं।
डॉ. शिवदास पांडेय ने भारतीय संस्कृति के बड़े व्याख्याता के रूप में सक्रिय भूमिका का निर्वाह करते हुए द्रोणाचार्य, गौतम गाथा, चाणक्य तुम लौट आओ, जगतगुरु शंकराचार्य तथा त्रिनचिकेत जैसे उपन्यासों का लेखन करके भारतीय ज्ञान वैभव को अधुनातन संदर्भों में आलोकित किया। वे प्रेम के बड़े कवि के रूप में भी प्रसिद्ध हुए। ब्रज किशोर प्रसाद सिंह की ओजस्वी कविताएं आज भी सुनी और सराही जाती हैं। हिंदी आलोचना के क्षेत्र में डॉ. रेवती रमण ने रेखांकित और महत्वपूर्ण कार्य किया है। दिवंगत साहित्यकारों की लम्बी सूची के बीच हम जब इस अंचल के वर्तमान लेखन की ओर ध्यान देते हैं तो एक ही साथ कई पीढ़ियां सक्रिय दिखाई पड़ती हैं। जो साहित्य की विभिन्न विधाओं में राष्ट्रीय स्तर पर निरंतर लिखते हुए समादृत हो रही हैं।
अंग्रेजी शासन के विरोध में सबसे पहला बम धमाका मिथिला-तिरहुत के हृदयस्थल मुजफ्फरपुर में युवा शौर्य खुदीराम बोस ने किया था। इसी बम धमाके का समर्थन लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने अपने केसरी समाचारपत्र के माध्यम से जब किया तो उन पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चला, उन्हें सजा दी गई और मांडले जेल में रहते हुए ‘गीता रहस्य’ जैसा कर्मयोग पर केंद्रित महान ग्रंथ का सृजन हुआ। अपने शब्द साधकों और समय शिल्पियों पर गर्व करता हुआ यह पूरा आंचल कला साहित्य के माध्यम से वैश्विक परिदृश्य पर जाना जाता है। सिद्ध साधकों कि यह भूमि पत्रकारिता के जगत में भी अपनी प्रखर लेखनी और सामाजिक सरोकार के कारण चर्चित रही है। साहित्यिक, सामाजिक, सांस्कृतिक पत्रकारिता के साथ ही राजनीतिक पत्रकारिता भी जनजागरण का कार्य राष्ट्रीय स्तर पर करती रही है। बड़े साहित्यकारों के साथ ही नामचीन राजनेताओं ने भी पत्रकारिता में समय-समय पर हस्तक्षेप किया और योगदान दिया है। वर्तमान समय में लेखनरत नामों का उल्लेख करना बहुत आसान नहीं है। सूची लम्बी हो जाएगी और फिर ‘को बर छोट कहत अपराधु’ का भी द्वंद्व खड़ा हो जाएगा। विश्व विभूतियों को आकर्षित करने वाला यह क्षेत्र अतिथि सत्कार के लिए भी जाना जाता है। प्राचीन काल से वर्तमान काल तक सृजन का संवेदनात्मक प्रवाह निरंतर जारी है, जिसमें आप्यायित होती हुई जन चेतना अपनी धन्यता को उपलब्ध करते हुए गौरवान्वित होती हैं। प्रेम, सत्य और करुणा की वाणी इस अंचल की सृजन धारा की संजीवनी है। इसमें भारतीयता का मंगल भाव, आध्यात्मिक स्वर और सत्य दर्शन है। विश्व मानवता के कल्याण के लिए इसके सृजन में आत्मीयता का अद्भुत रस समाहित है, जिसमें भारतीय स्वाभिमान, संस्कार और संस्कृति का आलोक भरा है।
– संजय पंकज