उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड की तर्ज पर मिथिला क्षेत्र को धार्मिक पर्यटन के तौर पर विकसित किया जा सकता है और इसकी असीम सम्भावनाएं हैं। इससे स्थानीय व्यवसाय और रोजगार को बल मिलेगा। मिथिला पर्यटन को बढ़ावा देने हेतु यातायात सुविधा के साथ ही बिहार में आवश्यक सकारात्मक परिवर्तन अपेक्षित है।
मिथिला, भारत के बिहार राज्य का एक समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक क्षेत्र है। यह क्षेत्र अपनी अद्वितीय कला, संस्कृति और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। मिथिला में कई महत्वपूर्ण पर्यटन और धार्मिक स्थल हैं, जो न केवल आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि रोजगार के अवसर भी प्रदान करते हैं।
प्रमुख पर्यटन स्थल
पुनौरा धाम : बिहार के सीतामढ़ी जिले के पुनौरा गांव में मां जानकी का जन्मभूमि मंदिर है, जिसे पुनौरा धाम के नाम से भी जाना जाता है। माता सीता का जन्म इसी स्थान पर हुआ था। पुनौरा धाम में मंदिर के पीछे जानकी कुंड के नाम से एक सरोवर है। इस सरोवर को लेकर मान्यता है कि इसमें स्नान करने से संतान की प्राप्ति होती है। यहां पंथ पाकार नाम की प्रसिद्ध जगह है। यह जगह माता सीता के विवाह से जुड़ी हुई है। इस जगह पर प्राचीन पीपल का पेड़ अभी भी है, जिसके नीचे पालकी बनी हुई है। यहां पर धार्मिक अनुष्ठान और मेला लगता है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। मिथिला में पुनौरा धाम आस्था का प्रमुख केंद्र है और यहां जरूर जाना चाहिए। भारत सरकार एवं बिहार सरकार अयोध्या के राम मंदिर की तरह ही मां जानकी सर्किट बनाने जा रही है। जिससे देश-विदेश के लोग आ सकेंगे और यह देश के प्रमुख पर्यटन स्थल में शामिल होगा। सीतामढ़ी में मां जानकी का मंदिर है, जहां हजारों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।
जानकी मंदिर (जनकपुर) : जानकी मंदिर माता सीता को समर्पित है और यह हिंदू धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। यहां हर साल लाखों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल मिलता है। वर्तमान समय में मिथिला का यह क्षेत्र नेपाल में है।
माता गौरी अर्थात गिरिजा स्थान (फुलहर) : बिहार के मधुबनी जिले के फुलहर गांव में ऐतिहासिक गिरिजा मंदिर है। प्राचीन काल में यहां उपवन के बीच गिरिजा माता का मंदिर बना हुआ था। मिथिला नरेश जनक के महल के नजदीक अवस्थित इस उपवन में तरह-तरह के फूल और फल वृक्ष थे। माता जानकी अपनी बाल्यावस्था से ही यहां गौरी पूजन के लिए आती थीं। धनुष भंग से पहले श्रीरामचरित मानस के अनुसार यहां मां सुनयना ने सीता मां को गिरिजा पूजन के लिए भेजा था। उसी समय श्रीराम व लक्ष्मण विश्वामित्र की पूजा के लिए पुष्प लेने यहां आए थे। जहां दोनों की भेंट हुई। आज भी मिथिला के लोग पूजा के लिए हजारों की संख्या में यहां प्रतिदिन आते हैं।
उच्चैठ भगवती मंदिर (मधुबनी) : मधुबनी जिले में स्थित सिद्धपीठ उच्चैठ भगवती का मंदिर अत्यंत प्राचीन और ऐतिहासिक महत्व का है। आदिशक्ति के इस सिद्धपीठ का वर्णन शास्त्रों में मिलता है। इसकी मान्यता है कि यहीं मां काली ने कवि कालीदास को वरदान दिया था, जिसके बाद वे महान कवि के रूप में विख्यात हुए।
इतिहास में वर्णित दृष्टांत यह सिद्ध करते हैं कि राजा जनक, विद्यापति, भगवान श्रीराम और वशिष्ठ जैसे महान ऋषि यहां तपस्या कर चुके हैं। कहा जाता है कि पूर्णिमा और अमावस्या की मध्य रात्रि में मंदिर परिसर की छटा अलौकिक शक्ति से भरपूर होती है। इस अवधि में परिसर का सुगंधित वातावरण किसी अदृश्य दिव्य शक्ति का अनुभव कराता है। शांत वातावरण में साधकों की आहट की अनुभूति होती रहती है और कई साधकों ने इस अलौकिक अनुभव को महसूस किया है।
यहां देश-विदेश से श्रद्धालुओं का आना लगा रहता है। यहां यह मान्यता है कि भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। शारदीय नवरात्र में यहां विशेष पूजा अर्चना की जाती है और दसों दिन साधकों की भारी भीड़ लगी रहती है।
मां अहिल्या स्थान (दरभंगा) : अहिल्या स्थान दरभंगा जिला के अंतर्गत अहियारी गांव में है, जो अहिल्या स्थान के नाम से विख्यात है। पौराणिक कथा के अनुसार लोगों का मानना है कि जिस प्रकार गौतम ऋषि के श्राप से पत्थर बनीं अहिल्या का उद्धार जनकपुर जाने के क्रम में श्रीराम ने ऋषि विश्वामित्र की आज्ञा से, अपने चरण से किया था और उनके स्पर्श से पत्थर बनी अहिल्या में जान आ गई थी। उसी तरह जिस व्यक्ति के शरीर में अहिला होता है वे रामनवमी के दिन गौतम और अहिल्या स्थान कुंड में स्नान कर अपने कंधे पर बैंगन का भार लेकर मंदिर आते हैं और बैंगन का भार चढ़ाते हैं तो उन्हें अहिला रोग से मुक्ति मिलती है। अहिला व्यक्ति के शरीर के किसी भी बाहरी हिस्से में हो जाता है, जो देखने में मस्से जैसा लगता है। यहां नेपाल से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पूजा अर्चना करने आते हैं।
माता उग्रतारा मंदिर (महिषी सहरसा) : बिहार के प्रसिद्ध शक्ति स्थलों में सहरसा जिले के महिषी में अवस्थित उग्रतारा स्थान प्रमुख है। मंडन मिश्र की पत्नी विदुषी भारती से आदिशंकराचार्य का शास्त्रार्थ यहीं हुआ था, जिसमें शंकराचार्य को पराजित होना पड़ा था। सहरसा से 16 किलोमीटर दूर इस शक्ति स्थल पर साल भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, लेकिन नवरात्र के दिनों में और प्रति सप्ताह मंगलवार को यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होती है। मान्यता यह भी है कि ऋषि वशिष्ठ ने उग्रतप के बल पर भगवती को प्रसन्न किया था। उनके प्रथम साधक की इस कठिन साधना के कारण ही भगवती वशिष्ठ आराधिता उग्रतारा के नाम से जानी जाती हैं। उग्रतारा नाम के पीछे दूसरी मान्यता है कि माता अपने भक्तों की उग्र से उग्र व्याधियों का नाश करने वाली हैैं। जिस कारण भक्तों द्वारा इनको उग्रतारा नाम दिया गया। यहां बिहार के अतिरिक्त नेपाल के श्रद्धालु भी बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। बंगाल के साधक भी यहां वर्षभर आते रहते हैं। यह स्थल पर्यटन विभाग के मानचित्र पर है।
ऐतिहासिक सूर्य मंदिर (कंदाहा महिषी) : कंदाहा गांव में सूर्य मंदिर एक महत्वपूर्ण धार्मिक और ऐतिहासिक स्थान है। कंदाहा सूर्य मंदिर, महिषी प्रखंड के पस्तवार पंचायत में स्थित है। यहां सात घोड़े रथ पर सवार सूर्य भगवान की शानदार मूर्ति एक ग्रेनाइट स्लैब पर बनाई गई है। पवित्र मंदिर (गर्भ गृह) के द्वार पर शिलालेख जो इतिहासकारों द्वारा लिखे गए हैं, पुष्टि करते हैं कि 14वीं सदी में मिथिला पर शासन करने वाले कर्नाटक वंश के राजा नरसिंह देव की अवधि के दौरान इस सूर्य मंदिर का निर्माण किया गया था।
मिथिला देवाधिदेव महादेव : मिथिला देवाधिदेव महादेव के पूजन स्थल के रूप में विशेष प्रसिद्ध है। वृहद् विष्णुपुराण के अनुसार यहां के अंतर्वर्ती प्रमुख शिवलिंग के नाम इस प्रकार हैं – शिलानाथ कपिलेश्वर (पूर्व में), कूपेश्वर (आग्नेय कोण में), कल्याणेश्वर (दक्षिण में), जलेश्वर (पश्चिम में), जलाधिनाथ क्षीरेश्वर (उत्तर में), त्रिजग महादेव, मिथिलेश्वर महादेव (ईशान कोण में), भैरव (नैऋत्य कोण में) तथा उगना महादेव, भवानीपुर, सिंहेश्वर महादेव और कामेश्वर लिंग का नाम अत्यधिक श्रद्धापूर्वक लिया गया है। इस प्रकार यहां एकादश शिवलिंगों के नाम परिगणित किए गए हैं। पूर्व में सिंहेश्वर महादेव को प्रणाम कर परिक्रमा आरम्भ करने तथा पुनः घूमकर सिंहेश्वर महादेव के पास पहुंचकर नियम विधिपूर्ण करके ही घर जाने की बात कई गई है।
कुशेश्वर स्थान : यह स्थान भगवान शिव को समर्पित है और यहां श्रावण महीने में कांवड़ यात्रा होती है, जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं।
बिस्फी गांव : मधुबनी स्थित बिस्फी गांव कवि कोकिल विद्यापति की जन्मस्थली है। उन्होंने यहां पर ही संस्कृत और मैथिली में कई ग्रंथों व गीतों की रचना की। कहते हैं कि विद्यापति के भक्तिभाव से अभिभूत होकर भगवान शंकर उगना बन कर उनके यहां चाकरी करने आए थे। यहां साहित्य और संस्कृति के प्रेमी पर्यटक आते हैं, जो मिथिला की साहित्यिक धरोहर से परिचित होते हैं।
माता श्यामा काली मंदिर, दरभंगा
बिहार के दरभंगा शहर में ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के प्रांगण में मां काली का एक भव्य मंदिर है। इसे श्यामा काली मंदिर के नाम से जाना जाता है।
उत्तरवाहिनी सिमरिया का गंगा
उत्तरवाहिनी सिमरिया का गंगा तट धर्म, संस्कृति और आध्यात्मिक पर्यटन के साथ-साथ रोजगार का एक बहुत बड़ा केंद्र बन गया है। मिथिला के प्रवेश द्वार का यह सिमरिया घाट एक बार फिर से दुनिया के मानचित्र पर स्थापित हो चुका है। विगत एक दशक में जिस रूप में सिमरिया गंगा तट पर आस्था को लेकर लोगों की अपार भीड़ इस भूमि पर पहुंच रही है, वह निश्चित रूप से धर्म, संस्कृति के साथ-साथ पर्यटन का एक बड़ा केंद्र बनता दिख रहा है।
कल्पवास मेले का राजकीयकरण, अर्द्धकुम्भ, महाकुम्भ के साथ-साथ साहित्य महाकुम्भ ने सिमरिया की दशा और दिशा को बदल दिया है। सिमरिया को धर्म और पर्यटन के दृष्टिकोण से बेहतर बनाने के लिए यहां हरिद्वार की तर्ज पर जानकी पौड़ी बनाने की योजना है। राम घाट से लेकर निषाद घाट तक सीढ़ियों का निर्माण, पर्याप्त रोशनी, धर्मशालाओं और अतिथिशालाओं का निर्माण, शौचालय, चेंजिंग रूम, ओपन थिएटर, विविध रंगमंच, अच्छी सड़कें, पर्यटक सूचना केंद्र, सुरक्षा व्यवस्था, नौकायन और गंगा आरती जैसी सुविधाओं को यदि सही रूप से व्यवस्थित किया जा सके, तो यहां आने वाले लोगों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती चली जाएगी।
सरकार यदि प्रयास करें तो सिमरिया घाट रोजगार का सबसे बड़ा केंद्र बन सकता है। वर्तमान में हर साल 50 लाख से अधिक लोगों की भीड़ गंगा घाट पर पहुंचती है। इसको ध्यान में रखते हुए होटल, परिवहन, फुटकर विक्रेता और नौकायन जैसी सुविधाओं को विकसित करके सिमरिया घाट को और भी आकर्षक बनाया जा सकता है। इन सुविधाओं के चलते लाखों पर्यटक हर साल यहां आते हैं।
दरभंगा का किला : दरभंगा महाराज ने जब राजनगर से अपनी राजधानी हटाई तो दरभंगा में किले और कई महलों का निर्माण किया। लाल ईंटों से बना यह किला देश के चुनिंदा आकर्षक किलों में से एक है। किले में नरगौना पैलेस, आनंदबाग महल और बेला महल प्रमुख है। दरभंगा का किला एक ऐतिहासिक स्थल है जो दरभंगा महाराजाओं के शासनकाल की गाथा कहता है। यह किला पर्यटकों के लिए प्रमुख आकर्षण का केंद्र है।
राजनगर (दरभंगा) : यह दरभंगा रियासत की पुरानी राजधानी रही है। दरभंगा महाराज के पुराने महलों के भग्नावशेष यहां की ऐतिहासिक समृद्धि का आज भी बखान करते नजर आते हैं। यह महल अपनी स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है और यहां की भव्यता पर्यटकों को आकर्षित करती है। हालांकि अनदेखी से यहां के महल अब खंडहर हो चले हैं। यह बिहार के मधुबनी में स्थित है।
बलिराजगढ़ : मधुबनी जिला के बाबूबरही प्रखंड में बलिराजगढ़ का प्राचीन किला और गढ़ है। यह आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा संरक्षित स्थल है और इसे राजा बलि के गढ़ के रूप में जाना जाता है। पांच चरणों में यहां हुई खुदाई में तीन हजार साल पुरानी सामग्री मिली थी।
मिथिला का आधुनिक पर्यटन मिथिला हाट
पर्यटकों को आकर्षित कर रहा है मिथिला हाट परिसर। 50 आधुनिक दुकानों के अलावा यहां फूड कोर्ट, ओपन एयर थिएटर, प्रशासनिक भवन, मल्टी-पर्पज हॉल, डॉरमेट्री, झरना, पार्किंग क्षेत्र आदि का भी निर्माण कराया गया है। पूर्व-पश्चिम कॉरिडोर (एनएच 57) के किनारे स्थित होने के कारण मिथिला के साथ-साथ देश-विदेश के पर्यटक भी मिथिला हाट तक आसानी से पहुंच सकेंगे। यहां आकर लोग मिथिला की कला-संस्कृति, जैसे- मिथिला पेंटिंग, हस्तकला, सिक्की घास और खादी से निर्मित उत्पादों के अलावा स्थानीय व्यंजन आदि से परिचित हो सकेंगे। इससे आसपास के क्षेत्रों के लोगों को रोजगार के नए अवसर मिलेंगे। मिथिला हाट के साथ लगती बड़ी पोखर का जल संसाधन विभाग ने जीर्णोद्धार एवं सौंदर्यीकरण कराया है। मिथिला हाट आने वाले पर्यटक यहां बोटिंग का भी आनंद ले सकेंगे। मिथिला में एकमात्र आधुनिक पर्यटन स्थल के तौर पर मिथिला हाट लोकप्रिय होता जा रहा है।
रोजगार के अवसर – मिथिला के पर्यटन और धार्मिक स्थलों के कारण रोजगार के कई अवसर उत्पन्न होते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख क्षेत्र निम्नलिखित हैं:
1. होटल और रेस्टोरेंट : पर्यटकों और तीर्थयात्रियों की बड़ी संख्या को देखते हुए विभिन्न स्थलों पर होटल और रेस्टोरेंट्स का विकास हुआ है, जो स्थानीय लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं।
2. गाइड सेवाएं : पर्यटकों को स्थलों की जानकारी देने के लिए गाइड सेवाओं की आवश्यकता होती है, जो स्थानीय युवाओं को रोजगार का अवसर प्रदान करती हैं।
3. ट्रांसपोर्ट सेवाएं : पर्यटकों के लिए परिवहन सेवाओं की भी बड़ी मांग होती है, जिससे टैक्सी ड्राइवर्स और बस ऑपरेटरों को रोजगार मिलता है।
4. हस्तशिल्प और स्मृति चिन्ह और मखाना : मिथिला पेंटिंग्स और अन्य स्थानीय हस्तशिल्प की विक्री भी रोजगार का एक प्रमुख स्रोत है। ये कला वस्त्रों, घरेलू सजावट और उपहारों के रूप में बेची जाती है। देश विदेश में मखाना उत्पाद का भी व्यापार बढ़ेगा।
चुनौतियां और समाधान- मिथिला में पर्यटन और धार्मिक स्थलों से सम्बंधित कुछ चुनौतियां भी हैं, जैसे:
बुनियादी ढांचे की कमी : पर्यटन स्थलों पर आधारभूत सुविधाओं का अभाव है, जिसे सुधारने की आवश्यकता है।
स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण : पर्यटन स्थलों पर स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूकता बढ़ानी होगी।
सुरक्षा : पर्यटकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी प्रबंधन और सुरक्षा उपायों की आवश्यकता है।
रेलवे एवं हवाई अड्डों की कमी ः पर्यटन में सबसे बड़ी बाधा है। भारत सरकार और बिहार सरकार यदि सच में मिथिला क्षेत्र में पर्यटन को उद्योग के रूप में विकसित करना चाहती हैं, तो मुंबई और अन्य शहरों से सुपरफास्ट ट्रेनों की संख्या बढ़ानी चाहिए और दरभंगा हवाई अड्डे से विमानों की संख्या बढ़ानी चाहिए। इसके अलावा हवाई अड्डे का भी शीघ्र विकास और विस्तार आवश्यक है। रेलवे एवं हवाई अड्डों की पर्यटन में सबसे बड़ी भूमिका मानी जाती है।
मिथिला में पर्यटन और धार्मिक स्थलों का विकास न केवल क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध बनाता है, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी प्रदान करता है। इन स्थलों के संरक्षण और विकास के लिए सरकार और स्थानीय समुदाय को मिलकर प्रयास करने होंगे, ताकि मिथिला की समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर को आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित रखा जा सके। राज्य सरकार और भारत सरकार के पर्यटन स्थलों में मिथिला के पर्यटन स्थलों को भी शामिल करना चाहिए। मिथिला से बाहर रहने वाले लोग पारिवारिक समारोह और त्योहारों में भी आने से घबराते हैं, तो पर्यटन के लिए बिहार आना तो दिवास्वप्न जैसा लगता है। यह सच है कि स्थानीय लोगों में पर्यटन स्थलों को लेकर उत्साह बढ़ा है। रेलवे में जब तक कन्फर्म टिकट उपलब्ध नहीं होगी और फ्लाइट की संख्या नहीं बढ़ेगी, तब तक मिथिला क्षेत्र को पर्यटन के रूप में विकसित करने की योजना सफल नहीं हो पाएगी।
– आमोद कुमार झा