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ऐसी हिंसा के लिए स्थायी तंत्र की आवश्यकता

ऐसी हिंसा के लिए स्थायी तंत्र की आवश्यकता

by अवधेश कुमार
in ट्रेंडींग
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नागपुर, मुंबई के मलाड और हजारीबाग की हिंसा लगातार घट रही उस डरावनी प्रवृत्ति को ही दर्शाती है जिसे देश पिछले मोटा-मोटी तीन वर्षों से लगातार देख रहा है। अब तक इन्हें अस्थायी या छिटपुट घटना माना जाता रहा। हर घटना पर सामान्य सोच यही रहता है कि किन्ही कारणों से कुछ मुसलमानों ने गुस्से में आकर हमला किया है, यह देशव्यापी और स्थायी प्रवृत्ति नहीं हो सकती। लगातार ऐसे हमलों की बढ़ती और उग्रतर होती घटनाएं प्रमाण हैं कि यह अब स्थायी और स्थापित प्रवृत्ति है। सारे संकेत इसके ज्यादा उग्रता में बढ़ने के ही है।

पिछले तीन वर्षों में महत्वपूर्ण हिन्दू तिथियों, प्रतिमा विसर्जनों, उत्सवों, शोभायात्राओं या अन्य ऐसे आयोजनों पर कहीं न कहीं हमले हुए। अब यह भारत की क्रिकेट विजय के जुलूस तक पहुंच गया है। सभी में मोटा-मोटी एक ही प्रकार के कारण बताए गए- मस्जिद के सामने आपत्तिजनक नारे लगे, मस्जिद पर रंग फेंका गया, पत्थर फेंका गया आदि-आदि। नागपुर में औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग के लिए छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा पर धरना व प्रदर्शन स्थल पर खुलेआम एक मुस्लिम नेता 400- 500 की भीड़ लेकर पहुंचे और धमकाने लगे। इनके हाथों में कुल्हाड़ी, डंडे, राड आदि थे। पुलिस के आग्रह और चेतावनी के बावजूद माने नहीं। शाम को व्यापक क्षेत्रों में हिंदुओं के घरों, दूकानों, वाहनों पर हमले किए गए। पुलिस पर हमले हुए, सरकारी वाहन जलाए गए। संभल में हिंसक भीड़ पुलिस से लड़ रही थी। पुलिस वालों पर पत्थरबाजी और हमले की घटनाएं आम होने लगी हैं। सभी घटनाओं में सोशल मीडिया का व्यापक दुरुपयोग हुआ, मुसलमानों को मजहब के नाम पर भड़काने के लिए झूठे वीडियो, तस्वीर और कहानियां फैलाईं गईं।

ऐसी घटनाओं के दौरान या बाद जहां भाजपा की सरकारें हैं वहां थोड़ी निष्पक्ष कठोर कार्रवाई हो जाती है अन्यथा दूसरे राज्यों में लिपापोती होती है या पीड़ित को ही जिम्मेवार ठहरने का अभियान चल निकलता है। उदाहरण के लिए पश्चिम बंगाल, झारखंड, कर्नाटक आदि राज्य सरकारों ने आवश्यक कठोर कार्रवाई नहीं किया।
दो वर्ष पूर्व रामनवमी शोभायात्राओं पर बिहार में हुए हमलों में भी ऐसा ही रहा। तब नीतीश कुमार राजद, कांग्रेस और वाम दलों के समर्थन से मुख्यमंत्री थे। विरोधी हर घटना में भाजपा, संघ, बजरंग दल या आयोजक छोटे-बड़े हिंदू मंचों को ही दोषी ठहराने के लिए पूरी शक्ति लगा देते हैं। उनका इकोसिस्टम इतना प्रभावी है कि सामना करना कठिन होता है। हिंसा की सभी घटनाओं में कुछ लोगों को उत्तेजित कर संलिप्त कराया गया, किंतु हिंसा की सामग्रियों पत्थर, ईट, डंडे, पेट्रोल बमों से लेकर सोशल मीडिया के मैटर आदि तैयार थे। वास्तव में पूरे देश में मुसलमानों का एक बड़ा समूह जगह-जगह तैयार है जो योजनापूर्वक घटनाओं को अंजाम देता या दिलाता है।

इस्लाम या दीन पर खतरे का झूठा भय पैदा कर दिया जाए, मजहब या दीन पर खतरा बता दिया जाए तो मुसलमानों से कुछ भी कराना असंभव नहीं। अतिवादी दुष्प्रचार का सबसे बड़ा उदाहरण वक्फ संशोधन विधेयक है जो अन्यायपूर्ण तंत्र को न्यायसंगत बनाने के लिए है तथा यह गरीब मुसलमानों के हित में होगा। बावजूद दुष्प्रचार यह है कि मोदी सरकार मुसलमानों की मस्जिदें, कब्रिस्तान, मदरसे सब खत्म कर उन पर कब्जे चाहती है। सरेआम झूठ बोलकर करोड़ों मुसलमानों को हिंसा के लिए उकसाया जा चुका है और केवल वोट के लिए या सेक्युलरिज्म के नाम पर भाजपा व संघ विरोध में विपक्षी उनके साथ हैं। पहले अंदर भाव रहते हुए भी खुलकर औरंगजेब, गजनवी, सालार मसूद के पक्ष में खड़े होने वाले उंगलियों पर मिलते थे। अब तो यह संकोच भी मुस्लिम नेताओं का खत्म है।

निश्चित मानिए कि आगामी रामनवमी उत्सव पर भी कहीं हमले होंगे। हर हिंसा के बाद कार्रवाईयां शुरू होती है, पर अगली घटना करने वालों पर इसका प्रभाव नहीं होता।
जब औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग, गलत हो या सही इस्लाम मजहब का विषय बन जाता है और हजारों लोग मरने-मारने को उतारू हो जाते हैं, महमूद गजनवी और सालार मसूद जैसे आक्रमणकारी, लुटेरे हिंदू सहित गैर मुसलमानों के साथ हर तरह के दुर्व्यवहार करने वाले के नाम पर मेले लगते हैं, महिमामंडन होता है तथा उनके बचाव की कोशिश होती है तो मान लेना चाहिए कि स्थिति कल्पना से ज्यादा विकट और भयावह है। लाखों लोगों के अंदर यह भावना बैठाया जा चुका है कि मुसलमान के रूप में अस्तित्व बचाने का समय है तो वे किसी सीमा तक जाने को तैयार होंगे। इस तरह के मुस्लिम कट्टरपंथ और हिंसा ने अनेक देशों को बर्बाद कर दिया। स्वयं भारत विभाजित हो गया और आज भी विश्व में दृष्टि डाल लीजिए ऐसे समाज वाले मुस्लिम देश ही तबाह हैं। इसलिए घटना पर तदर्थ कार्रवाई आत्मघाती सिद्ध होगी। आप बुलडोजरों से मुख्य अपराधियों की अवैध संपत्तियों को ध्वस्त करते थे। नागपुर में दो अवैध निर्माण ध्वस्त हुए ही थे कि उच्च न्यायालय का रोक आदेश आ गया।

उच्चतम न्यायालय का बुलडोजर विरोधी रुख सामने है। मजहबी जुनून में हिंसा करने वालों के पक्ष में न्यायालय में बड़े वकीलों की टीम खड़ी होती है, मुसलमानों सहित अन्य संगठन जितने संसाधन खर्च करते हैं, देश और दुनिया में प्रभावी प्रचार करते हैं उनका सामना नहीं हुआ है। ऐसी स्थायी स्थापित मजहबी हिंसक चरित्र और प्रवृत्तियां तथा विचारधारा की व्यापक स्वीकृति के बाद सरकार, राजनीतिक दल, गैरराजनीतिक संगठन और संपूर्ण समाज को उसी के अनुरूप स्थायी और स्थापित विचार, अप्रोच तथा ढांचे स्थापित करना चाहिए था। विवादास्पद मुद्दों के उभरने के बावजूद निपटने की समग्र नीतियां और व्यवहार नहीं होने से हिन्दुओं में भी गुस्सा पैदा होता है। गजनवी और सालार मसूद या औरंगजेब के महिमामंडन पर विवेकवानों को भी गुस्सा आएगा। इसमें एक हल्की तोड़फोड़ या सड़क कि नामपट्टी पर कालिख पोतने को ये मुस्लिम विरोधी वातावरण बताकर दुष्प्रचार करते हैं। दूसरी ओर न्यायालय जाकर हिंदुओं के नाम पर हिंदुओं का उद्धारक और नेता बनने के आकांक्षी कुछ निहित लोग भी अतिवादी बयान देते हैं। भाजपा की पूरी तरह मुस्लिम विरोधी पार्टी की छवि बना दी गई है।
बिहार में सेवा निवृत्त पुलिस अधिकारी पीएफआई को गजवा-ए-हिंद के लिए वैचारिक और सैन्य प्रशिक्षण दे रहा है। जब जगह-जगह लड़ने की तैयारी है, लोगों की मानसिकता बदली जा रही है तब घटना सामने आने पर प्रतिक्रिया देंगे या स्थायी व्यवस्था करेंगे। तो क्या किया जाए? बिना स्थायी और समग्र अप्रोच, नीतियां व तंत्र के इतने प्रचंड खतरनाक प्रचार का सामना कैसे करेंगे? साफ है कि गहराई से विचार कर केंद्र और प्रदेश सरकारों और नीतियां बनानी होगी। इससे चिंतित और अंत की चाहत रखने वाले संगठनों, समूहों को भी सामना करने और निपटने के लिए कार्य योजना तय करनी होगी।

आतंकवाद, नक्सलवाद आदि के विरुद्ध विशेष ढांचे खड़े हुए, खुफिया तंत्र निश्चित हुआ, विशेष जांच एजेंसी बनी एवं सुरक्षा बलों की भूमिका भी निश्चित हुई। उसी तरह इस हिंसा से निपटने के लिए भी कानूनी, खुफिया, सुरक्षा बल, विशेष जांच एजेंसियों की केंद्र से प्रदेशों तक ढांचा खड़ा करना होगा। वर्तमान सुरक्षा ढांचे के अंतर्गत भी एक स्थायी विंग बनाया जा सकता है।
मुसलमानों में भी इससे असहमत होने वाले हैं। उनके साथ संपर्क और विमर्श के लिए भी एक ढांचा सरकार एवं पार्टी के अंदर होना चाहिए। संगठनों के अंदर भी स्थायी भूमिका व व्यवस्था विकसित करनी होगी। हजारों लोग ‘सिर तन से जुदा’ के नारे लगाते हुए सड़कों पर उतरते हैं, हिंसक तत्व हिंसा कर रहे हैं, लेकिन गैर मुस्लिम एवं इनसे असहमत अहिंसक विरोध के लिए भी सड़कों पर नहीं उतरते।

जो संविधान के तहत प्रदत अधिकारों के तहत भी विरोध नहीं करते और सरकार एवं सुरक्षा बलों की मुंह ताकते हैं, उनका मानस बदलने की भूमिका संगठनों को ही निभानी होगी। कुछ तनाव और भड़काने वाले मुद्दों का समाधान संभव है। आयोग बनाकर उन सारे स्थलों का पता लगे जहां आक्रमणकारियों, लूटेरों के नाम पर अर्श व मेले लगते हैं। कम से कम भाजपा शासित राज्यों में उन्हें एक साथ बंद कर दिया जाए। आततायियों के नाम हटाकर सड़कों के नाम समय सीमा में बदले जा सकते हैं। संभल अकेला नहीं है।
आजादी के बाद हिंदू मंदिरों या अन्य स्थलों पर पर कब्जों या जमींदोज की पूरी जानकारी राज्य सरकारें एकत्र कर एकबारगी समाधान करने के कदम उठाएं। इतिहास, संस्कृति और समाजशास्त्र की पुस्तकों में इन आततायियों का पूरा सच पढ़ाया जाये। नरेंद्र मोदी सरकार गठित होने के बाद जिनके हाथों इसका दायित्व था उनके द्वारा ऐसा ना किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। इस कारण हिंदुओं के अंदर गलतफहमियां हैं तभी सालार मसूद के नाम पर अर्श व मेले में इनकी संख्या ज्यादा होती है।

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