जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 मई को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कहा— “आतंकवाद और व्यापार-वार्ता एक साथ नहीं चल सकते, पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते”, तो उन्होंने न केवल ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के उद्देश्य को स्पष्ट किया, बल्कि भारत-पाकिस्तान संबंधों की भावी दिशा भी तय कर दी। अब पाकिस्तान प्रायोजित किसी भी आतंकी हमले का जवाब भारत मोमबत्तियां जलाकर, तख्तियां उठाकर जुलूस निकालने, सबूतों के आदान-प्रदान, साझा जांच के पाखंड या ‘कड़ी निंदा’ और ‘सख्त विरोध’ जैसे खोखले जुमलों से नहीं, बल्कि सर्जिकल स्ट्राइक, तोप के गोलों, ब्रह्मोस जैसी घातक मिसाइलों और अन्य निर्णायक प्रहारों से देगा। दोनों देशों के बीच व्यापार पर पूर्ण विराम, पाकिस्तानी नागरिकों के भारत आने पर प्रतिबंध और सिंधु जल संधि का स्थगन— निकट भविष्य और दीर्घकाल में भी भारत-पाकिस्तान के रिश्ते नए आयामों से परिभाषित करेंगे।
वास्तव में भारत-पाकिस्तान के बीच शत्रुभाव किसी जमीन के टुकड़े, व्यक्तिगत दुश्मनी या सत्ता-संघर्ष का परिणाम नहीं है। यह सदियों से चले आ रहे एक गहरे वैचारिक संघर्ष की उपज और दो पूरी तरह भिन्न विश्वदृष्टियों का टकराव है। भारतीय उपमहाद्वीप में खंडित भारत, समरसतापूर्ण, लोकतांत्रिक और बहुलतावादी कालजयी संस्कृति का वाहक है। पाकिस्तान उस संकीर्ण मजहबी चिंतन की अभिव्यक्ति है, जो आठवीं शताब्दी में अरब आक्रांता मोहम्मद बिन कासिम के साथ तलवार की नोक पर इस भूभाग में दाखिल हुई थी। पाकिस्तान आधिकारिक रूप से अपने जन्म को कासिम द्वारा वर्ष 712 में सिंध के हिंदू राजा दाहिर को पराजित करने से जोड़ता है। वैचारिक दृष्टिकोण से पाकिस्तान स्वयं को उन्हीं इस्लामी आक्रांताओं—गजनवी, गोरी, बाबर, औरंगज़ेब, अब्दाली, टीपू सुल्तान आदि को नायक मानता है, जिन्होंने मजहबी जुनून में भारत में हिंदुओं का कत्लेआम किया, उनके मंदिरों को तोड़ा और सांस्कृतिक प्रतीकों को रौंदा। पाकिस्तान मानता है कि उस पर भारतीय उपमहाद्वीप में अधूरा ‘गजवा-ए-हिंद’ पूरा करने की मजहबी जिम्मेदारी है। यही कारण है कि यह संघर्ष दो देशों का नहीं, बल्कि दो सभ्यताओं के बीच सतत चल रहा द्वंद्व है। इसी तथ्य को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कई बयानों में भी रेखांकित किया है।
पाकिस्तान ने भारत पर पहला आतंकवादी हमला अपने जन्म के दो माह पश्चात 22 अक्टूबर 1947 को कर दिया था। तब उसकी सेना कबाइलियों के साथ मिलकर लूटपाट, हत्या और बलात्कार करते हुए श्रीनगर की ओर बढ़ रही थी। 78 वर्ष बाद भी पाकिस्तान का यह जुनूनी सफर पूरा नहीं हुआ है। पाकिस्तान द्वारा 1965 में सैन्य संघर्ष के बीच संयुक्त राष्ट्र में भारत के खिलाफ अगले “एक हजार वर्षों तक लड़ने” की धमकी देना, 1971 के युद्ध में करारी हार के बाद भारत को “हजारों घाव” देकर समाप्त करने की नीति अपनाना, 1984 में सियाचिन पर कब्जा करने का प्रयास करना, 1999 में मित्रता के बदले कारगिल में छुरा घोंपना और बीते चार दशकों से लगातार भारत में होने वाले आतंकवादी हमलों में प्रत्यक्ष-परोक्ष भूमिका—उसी लगभग 1300 साल पुराने सभ्यतागत संघर्ष का छोटा हिस्सा भर हैं।
वर्ष 2014 से पहले भारत जब भी पाकिस्तान प्रायोजित जिहाद का शिकार हुआ, तब भारतीय नेतृत्व ‘आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता’ की रट लगाते हुए पाकिस्तान और शेष विश्व से न्याय के लिए गुहार लगाता रहा। इसका परिणाम यह हुआ कि भारत में प्रत्यक्ष-परोक्ष स्थानीय सहयोग से एक के बाद एक आतंकवादी हमले होते रहे और जिहादी पाकिस्तान स्थित अपने सुरक्षित ठिकानों पर निश्चिंत लौटकर अपने अगले हमले की साजिश रचते रहे। यह दुष्चक्र वर्षों जारी रहा और इसके परिणामस्वरूप भारत— 1989-91 से कश्मीर में हिंदुओं के संहार के साथ-साथ मुंबई (1993, 2006, 2008, 2011), भारतीय संसद (2001), गुजरात अक्षरधाम मंदिर (2002), दिल्ली (2005, 2008), जयपुर (2008), अहमदाबाद (2008), पुणे (2010), वाराणसी (2010), हैदराबाद (2013), बोधगया (2013) आदि जिहादी हमलों का शिकार हुआ।
अब यह इतिहास है। विगत 11 वर्षों में—ऐतिहासिक रूप से संवेदनशील जम्मू-कश्मीर और कुछ माओवाद-प्रभावित जिलों को छोड़कर—शेष भारत में किसी भी बड़े आतंकी हमले की घटना लगभग नगण्य रही है। यह तुलनात्मक शांति उस नीति-परिवर्तन का परिणाम है, जिसे वर्तमान भारतीय नेतृत्व ने आतंकवाद और उसके पोषकों—देश के भीतर और बाहर दोनों—के प्रति अपनाया है। 2016 में उरी और 2019 में पुलवामा के आतंकवादी हमलों के प्रतिकारस्वरूप भारत ने बिना पूर्व चेतावनी के सर्जिकल स्ट्राइक कर अपने शत्रुओं को चौंकाया था। किंतु इस बार भारत ने न केवल अपनी रणनीतिक मंशा स्पष्ट की, बल्कि प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक रूप से और बिना किसी लाग-लपेट के दोषियों को दंडित करने की दृढ़ प्रतिज्ञा व्यक्त की है, जिसका मूर्त रूप सफल ‘ऑपरेशन सिंदूर’ है। प्रधानमंत्री मोदी का ठीक ही कहना है— “शांति का मार्ग शक्ति से होकर जाता है”।
स्वाभाविक प्रश्न है कि क्या अब पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद समाप्त हो जाएगा?—शीघ्र नहीं। यह लड़ाई लंबी चलेगी। वर्ष 1971 में भारतीय नेतृत्व ने गृहयुद्ध के शिकार पाकिस्तान को दो हिस्सों में बांटकर बांग्लादेश को जन्म दिया था। फिर भी पाकिस्तान की भारत-हिंदू विरोधी मानसिकता में कोई परिवर्तन नहीं आया। उसने सीधे युद्ध के स्थान पर आतंकवादियों के माध्यम से भारत के खिलाफ छद्म युद्ध शुरू कर दिया। विश्व में भारत की ही भांति इजराइल भी अपने जन्म से ही ‘काफिर-कुफ्र’ अवधारणा से प्रेरित मजहबी जुनून और घृणा का शिकार रहा है। पिछले 77 वर्षों में शायद ही कोई दिन ऐसा गया हो, जब इज़राइल को आतंकवाद से जूझना नहीं पड़ा हो। इसमें 1967 का वह काल भी शामिल है, जब उसने अपने अस्तित्व की रक्षा हेतु एक साथ पांच अरब देशों के विरुद्ध सफलतापूर्वक छह दिवसीय युद्ध लड़ा था। 7 अक्टूबर 2023 को फिलीस्तीनी आतंकवादी संगठन हमास ने इजराइल में बर्बरता दिखाते हुए 1200 निरपराधों की हत्या की और 250 से अधिक नागरिकों का अपहरण कर लिया। इस दुस्साहस के विरुद्ध इजराइल पिछले डेढ़ वर्ष से हमास, हिजबुल्ला, हूती जैसे जिहादी संगठनों का समूल नाश करने हेतु बहुआयामी युद्ध लड़ रहा है। भारत को ऐसे ही संकल्प के साथ आतंकवादी हमलों के खिलाफ लड़ने हेतु तैयार रहना होगा।
पाकिस्तान कोई प्राकृतिक, ऐतिहासिक अथवा भूगोलजन्य कारणों से बना देश नहीं है। यह वास्तव में एक कृत्रिम राष्ट्र है, जिसे 1947 पूर्व भारतीय मुस्लिम समाज के एक बड़े वर्ग ने वामपंथियों और ब्रितानियों के सहयोग से आकार दिया था। इसकी संरचना स्वयं विरोधाभासों की शिकार है। ‘सच्चा मुसलमान’ सिद्ध होने की होड़ में शिया, सुन्नी और अहमदिया एक-दूसरे के खून के प्यासे हैं। ‘तहरीक-ए-तालिबान’ जैसे आतंकी संगठन सैकड़ों हमले कर हजारों पाकिस्तानी नागरिकों-सैनिकों को इसलिए मार रहे हैं, क्योंकि वे उनके अनुसार ‘खालिस शरीयत’ नहीं अपनाते। बलूचिस्तान, खैबर पख्तूनख्वा और सिंध में पाकिस्तान-विरोधी अलगाववाद तेजी से अपनी जड़ें जमा रहा है। बलूचिस्तान में विद्रोहियों ने इस वर्ष मार्च से अब तक 300 से अधिक पाकिस्तानी सुरक्षाकर्मियों को मारने का दावा किया है।
इस पृष्ठभूमि में नए भारत की आतंकवाद के प्रति ‘शून्य सहनशीलता’ की नीति, पाकिस्तानी सत्ता-स्थापन (फौज सहित) को प्रायोजित आतंकवाद की भारी कीमत का स्मरण कराती रहेगी। देर-सवेर इसके एक वर्ग को समझ में आएगा कि आतंकवाद का भरण-पोषण करना, एक महंगा और आत्मघाती सौदा है। इसलिए भविष्य में वह भारत पर आतंकी हमला करने से पहले कई बार सोचेगा। जब तक भारतीय नेतृत्व और जनमत सजग रहकर पाकिस्तान पर यह दबाव बनाए रखेगा, तब तक भारत सुरक्षित रहेगा। स्पष्ट है कि सतत चौकसी और भीषण प्रतिकार ही आतंकवादी घटनाओं को रोकने का एकमात्र उपाय है। इस संदर्भ में अमेरिका के पहले राष्ट्रपति जॉर्ज वाशिंटन की उक्ति— “युद्ध के लिए तैयार रहना, शांति बनाए रखने के सबसे प्रभावी उपायों में से एक है” बहुत प्रासंगिक है।
-बलबीर पुंज