“समर्थ विकसित भारत बनाने हेतु हमारे पास अनगिनत विकल्प उपस्थित है। ‘सनातन अर्थशास्त्र’ की प्रेरणा से भी भारत अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। सभी देशवासियों की सहभागिता, संकल्प और योगदान से भारत को 2047 तक परमवैभवशाली राष्ट्र बनाया जा सकता है।”
वर्ष 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की कल्पना अब केवल एक सपना नहीं बल्कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नीति-निर्माण और क्रियान्वयन की प्राथमिक दिशा बन चुका है। भारत सरकार की दृष्टि और दिशा प्रधान मंत्री मोदी का स्वप्न और तदनुसार एक्शन, युवा जनसंख्या, तकनीकी प्रगति और रणनीतिक भौगोलिक स्थिति इस संकल्प को साकार करने के लिए मजबूत नींव प्रस्तुत करती है। इस नींव को विकसित भारत के मजबूत निर्माण में बदलने के लिए देश को एक स्पष्ट, संतुलित और समावेशी आर्थिक मॉडल, रोडमैप और ब्ल्यूप्रिंट की आवश्यकता है जो प्रति व्यक्ति आय और सकल राष्ट्रीय खुशहाली, उद्योग-व्यवसाय, रोजगार, शासन प्रणाली, नीति निर्माण, आयात-निर्यात और वैश्विक व्यापार के हर पहलू को सशक्त रूप से सम्बोधित करे।
भारत की उत्सवधर्मिता आधारित अर्थव्यवस्था को केंद्र में रखना होगा। नीति निर्माताओं को भारत के उत्सवों को ध्यान में रखकर आर्थिक नीतियों का ताना-बाना बुनना होगा और इसका आधार होगा ‘सनातन अर्थशास्त्र’ जो सस्टेनेबिलिटी को भी ध्यान में रखता है।
दुनिया जब आर्थिक मंदी के चपेट में गाहे-बगाहे आ जाती है तब भी भारत पर इसका असर न्यूनतम होता है क्योंकि सदियों से भारत की अर्थव्यवस्था तीर्थाटन-पर्यटन, मंदिर, त्योहार, मेला (हाटों) पर आधारित है, जो बाजार में मांग का समय-समय पर निर्माण कर इसे मंदी से निकाल देती है। भारत को यही बात ध्यान में रख विविध क्षेत्रों में उद्योग-व्यवसाय का विस्तार करना चाहिए, जिससे आर्थिक रीढ़ की सुदृढ़ता सुनिश्चित हो।
देश के आर्थिक विकास में उद्योग-व्यवसाय की भूमिका निर्णायक होती है। भारत अब केवल सेवा क्षेत्र में आगे ना बढ़कर उसे निर्माण, हरित ऊर्जा, रक्षा उत्पादन, एग्रो प्रोसेसिंग, पर्यटन और डिजिटल इनोवेशन जैसे क्षेत्रों में वैश्विक नेतृत्व की ओर बढ़ना होगा। कृषि के प्राथमिक क्षेत्र जिससे भारत का किसान सीधे जुड़ा हुआ है, उसे नगदी की ताकत और काम करने की प्रेरणा तभी मिलेगी जब कृषि के द्वितीयक क्षेत्र एग्रो प्रोसेसिंग और सप्लाई चेन पर युद्ध स्तर पर लगना होगा। इसकी पहली कड़ी होगी कृषि को उद्योग का दर्जा देना और किसानों को आदि सनातन उद्यमी घोषित करना।
उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजनाओं के माध्यम से भारत सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मा और टेक्सटाइल जैसे क्षेत्रों में नया निवेश आकर्षित किया है, इसे अब लगातार जारी रखना होगा यदि हमें चीन से आगे निकलना है तो। एक जिला एक उत्पाद, विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना और जिला-स्तरीय औद्योगिक क्लस्टर की अवधारणा से स्थानीय संसाधनों पर आधारित उत्पादन को बढ़ावा मिल रहा है इसे भी सतत जारी रखना होगा और बाजार को इनके दरवाजे पर लाकर खड़ा करना होगा। शहरी और ग्रामीण हाट, डिजिटल मार्केट प्लेस, लोकल से ग्लोबल अभियान के माध्यम से स्थानीय उत्पादों को वैश्विक बाजार में लाना आवश्यक है। कौशल भारत मिशन को उद्योग आवश्यकताओं के अनुसार अपडेट करना समय की मांग है। आज भी स्किल-गैप एक बड़ी चुनौती है।
हरित उद्योग और ईएसजी आधारित व्यापार नीतियों को बढ़ावा देना अगले दशक की अब प्रमुख दिशा है। भारत की दिशा अब ‘मेक इन इंडिया’ से आगे बढ़कर ‘डिजाइन इन इंडिया’ और ‘इन्वेंट इन इंडिया’ की ओर बढ़ रही है। बस इसी दिशा को आगे बढ़ाना है ताकि नवाचार में यूरोप के वर्चस्व से आगे निकला जाए और भारतीय टेक्नोलॉजी और इसके पेटेंट से पैसा बनाने सीखें। एमएसएमई प्रोत्साहन के माध्यम से स्वयं का व्यवसाय और स्वरोजगार को आत्मनिर्भर भारत की आधारशिला बनाना होगा और देश को नौकरी करने की होड़ की मानसिकता से बाहर निकालना होगा। देश में लगभग 65% जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु की है। ऐसे में नौकरी मांगने की प्रवृत्ति को नौकरी देने वाले उद्यमिता मॉडल में बदलना अत्यंत आवश्यक है। स्टार्टअप इंडिया और मुद्रा योजना के माध्यम से लाखों युवाओं ने अपने व्यवसाय की शुरुआत की है, परंतु इन योजनाओं को जमीनी स्तर पर और भी प्रभावी बनाने की आवश्यकता है। बैंक अभी भी उद्यमियों के मित्र की भूमिका में कम और महाजन की भूमिका में ज्यादा हैं, इसमें आमूलचूल बदलाव से ही आत्मनिर्भर भारत का निर्माण हो सकता है।
ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में रैंकिंग के बजाए जमीनी वास्तविकता को जानना आवश्यक है। भारत ने विश्व बैंक की ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग में जबरदस्त सुधार किया है, किंतु कई क्षेत्रों में निवेशक अब भी स्थानीय लालफीताशाही, बैंक और भ्रष्टाचार से परेशान हैं। डिजिटल सिंगल विंडो सिस्टम को केवल कागजों पर नहीं बल्कि जिला स्तर तक प्रभावी बनाना होगा। प्रशासनिक अनुमतियों की प्रक्रिया को स्वचालित और ट्रैकिंग आधारित बनाना अनिवार्य है। उद्योग प्रतिनिधियों के अनुसार आज भारत में व्यापार शुरू करना जितना आसान है, उतना ही कठिन है, उसे टिकाए रखना। अत: नीति स्थिरता और निरीक्षण के नियमों में सुधार आवश्यक है।
भ्रष्टाचार मुक्त और सुरक्षित देश का वातावरण निवेश के लिए प्राथमिक आवश्यकता है। वैश्विक निवेशकों का विश्वास उस देश में होता है जहां कानून का राज हो, प्रक्रियाएं पारदर्शी हों और भ्रष्टाचार ना हो। डिजिटल लेन-देन और रीयल टाइम ऑडिटिंग जैसे उपायों ने सरकारी योजनाओं में पारदर्शिता लाई है, पर निचले स्तर पर भ्रष्टाचार की जड़ें अभी भी उपस्थित हैं। लोकपाल और ई-गवर्नेंस प्लेटफॉर्म को और प्रभावी बनाना आवश्यक है। सुरक्षा की दृष्टि से आंतरिक स्थिरता और बाहरी रणनीतिक संतुलन दोनों ही निवेश का वातावरण बनाते हैं। कर कानूनों के प्रति लोगों में व्याप्त भय, संशय को हटाकर पूरी मशीनरी को पारदर्शी और करदाताओं के प्रति सम्मानजनक बनाना होगा। एआई का प्रयोग कर अनावश्यक जांच और प्रश्न प्रक्रिया को कम करना होगा। पारदर्शी शासन और प्रशासन ही सुशासन का आधार है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस का नारा अब तकनीकी माध्यमों से मूर्त रूप ले रहा है। डिजिटल इंडिया मिशन के अंतर्गत सैकड़ों सेवाएं ऑनलाइन उपलब्ध हैं, जिससे जन भागीदारी और जवाबदेही बढ़ी है।
आरटीआई और सोशल ऑडिट को सशक्त बनाकर प्रशासन को और उत्तरदायी बनाया जा सकता है। एआई एवं डेटा-आधारित नीति निर्माण और नागरिकों के लिए ‘गवर्नेंस डैशबोर्ड’ जैसे नवाचार भविष्य में शासन प्रणाली को नई दिशा दे सकते हैं। विश्व स्तरीय उद्योग नीति भी भारत को वैश्विक निर्माण केंद्र बनाने में सहायक होगी। नीति आयोग को एक ऐसी उद्योग नीति पर कार्य करना चाहिए जो अगले 50 वर्षों तक नीति में स्थिरता प्रदान करे। इसके अंतर्गत सेक्टर-विशेष प्रोत्साहन योजनाएं जैसे सौर ऊर्जा, सेमीकंडक्टर, एयरोस्पेस शोध एवं विकास पर जीडीपी का न्यूनतम 2% खर्च सुनिश्चित करना, राष्ट्रीय विनिर्माण नीति 2.0 जो एमएसएमई और बड़े उद्योगों के बीच सामंजस्य बनाए। इन सबके साथ आयात-निर्यात नीति और ट्रेड वार तथा आत्मनिर्भरता और वैश्विक सहभागिता का संतुलन भी रखना आवश्यक होगा। फ्री ट्रेड एग्रीमेंट को भी भारतीय हित में पुनर्निर्धारित करना होगा। निर्यात को बढ़ावा देने के लिए लॉजिस्टिक सुधार, जैसे मल्टीमॉडल फ्रेट कॉरिडोर, डिजिटल एक्सपोर्ट प्लेटफॉर्म और एसएमई निर्यातकों के लिए बीमा वित्तीय सहायता को मजबूत करना होगा।
विकसित भारत के लिए आज का कदम ही कल की नींव बनेगा। यदि पारदर्शिता, आत्मनिर्भरता, रोजगार निर्माण और वैश्विक नेतृत्व के चार स्तम्भों पर भारत अपना विकास खड़ा करता है, तो 2047 तक भारत न केवल आर्थिक शक्ति बल्कि नैतिक और सांस्कृतिक नेतृत्व भी प्राप्त करेगा। यह आवश्यक है कि सरकार, निजी क्षेत्र, स्टार्टअप्स, प्रशासन और आम जनता सब मिलकर इस मिशन को आगे बढ़ाएं। भारत अब विकास के नए युग की ओर कदम बढ़ा चुका है। लक्ष्य है- समर्थ, समावेशी, आत्मनिर्भर और विकसित भारत।
-पंकज जायसवाल