भारत का लक्ष्य केवल भौतिक रूप से विकसित राष्ट्र बनना ही नहीं है अपितु विश्वगुरु की भूमिका में विश्व शांति व कल्याण हेतु आध्यात्मिक एवं मानवता का मार्गदर्शन करना भी है। शक्ति के बिना शांति सम्भव नहीं है और सामर्थ्यवान राष्ट्र ही विश्व को सही दिशा दे सकता है। इसलिए भारत सामर्थ्य अर्जित करने पर बल दे रहा है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पंचम पू. सरसंघचालक सुदर्शनजी कहा करते थे कि सन 2012 और उसके बाद का समय भारत के लिए संधिकाल का समय है। 2012 के बाद भारत में राष्ट्र शक्ति का जनजागरण होगा और भारत विश्व के नेतृत्व की स्थिति की ओर आगे बढ़ेगा। यदि हम 2012 से 2025 का कालखंड देखते हैं तो सुदर्शनजी का कहा एकदम सही प्रतीत होता है। सन् 2013 में स्वामी विवेकानंद के जन्म के 150 वर्ष पूर्ण होने पर पूरे देशभर में विवेकानंद सार्धशती के कार्यक्रमों ने हिंदुत्व के जनजागरण की एक लहर ला दी।
नया भारत समर्थ भारत
भारत अपने इतिहास के महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। 21वीं शताब्दी भारत की शताब्दी है। इस समय भारत विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जबकि क्रय-शक्ति क्षमता की दृष्टि से विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। 2047 में भारत 30 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के साथ विकसित भारत ‘नया भारत समर्थ भारत’ बनने की दिशा में अग्रसर है।
इस शताब्दी के एक चौथाई भाग में भारत ने विभिन्न क्षेत्रों में स्वदेशी तकनीक का विकास, आत्म निर्भरता व निरंतर प्रगति की ओर सफलता पाई है – सूचना प्रौद्योगिकी (सॉफ्टवेयर व आउटसोर्सिंग, डिजिटल इंडिया, यूपीआई, स्टार्टअप इकोसिस्टम। उद्योग धंधे (इलेक्ट्रॉनिक्स और सेमीकंडक्टर, ऑटोमोबाइल सेक्टर व रक्षा उत्पादन)। भौतिक अवसंरचना (भारतमाला, सागरमाला, मेट्रो नेटवर्क, वंदेेभारत एक्सप्रेस, स्मार्ट सिटीज, डिजिटल इंफ्रा)। सैन्य शक्ति और रक्षा प्रौद्योगिकी (स्वदेशी हथियार, डीआरडीओ और इसरो द्वारा अग्नि मिसाइल, पृथ्वी, आकाश और रुद्र हेलिकॉप्टर, सैन्य निर्यात-ब्रह्मोस, तेजस और आईएनएस विक्रांत)। आर्थिक क्षेत्र-आधारभूत संरचना के विकास के लिए जीएसटी संग्रह, सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी में बढ़ावा, डिजिटल पेमेंट। आंतरिक सुरक्षा- नक्सलवाद, माओवाद, आतंकवाद व अलगाववाद पर लगाम। विदेश नीति (जी-20, नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी,क्वाड व ब्रिक्स में सक्रिय भूमिका)। स्वास्थ्य (कोविड-19 वैक्सीन निर्माण, 200+देशों को दवाएं निर्यात, आयुष्मान भारत)। शिक्षा (आईआईटी का विस्तार, स्वदेशी एडटेक, इसरो-डीआरडीओ-सीएसआइआर द्वारा शोध व विकास)। यातायात और परिवहन (मेट्रो व हाइवे, हाई स्पीड रेल, ईवी इंफ्रा)। अंतरिक्ष (मंगल मिशन 2014, चंद्रयान-3 2023, नेविगेशन सिस्टम नाविक) आदि।
विश्वगुरु भारत 2047 के लिए चुनौतियां व मार्ग
2047 के विश्वगुरु भारत के लिए सबसे पहली व बड़ी चुनौती गुणवत्तापूर्ण मानव संसाधन विकास है। ईशावास्य उपनिषद में वर्णन है ‘जो विद्या (पारलौकिक शिक्षा) और अविद्या (लौकिक शिक्षा) दोनों को एक साथ जानता है, वह अविद्या से मृत्यु को पार करके विद्या से अमतत्व (अमरता) को प्राप्त करता है। इस सिद्धांत के प्रकाश में भारत में शिक्षा की गुणवत्ता बहुत अधिक बढ़ाने की आवश्यकता है। तकनीकी कौशल के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण, डिजिटल साक्षरता अभियान और स्किल इंडिया मिशन को सुदृढ़ कर रोजगार और शिक्षा में संतुलन बनाना होगा।
दूसरी बड़ी चुनौती प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता है। दीनदयाल उपाध्याय ने एकात्म मानव दर्शन में कहा है कि पुरानी बातों का युगानुकुल व विदेशी बातों का स्वदेशानुकुल परिवर्तन कर उपयोग करना चाहिए। इस सिद्धांत के आधार पर हम प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भर बन सकते है। सेमीकंडक्टर, एआई, क्वांटम कम्प्यूटिंग में निवेश बढ़ाना होगा, बायोटेक्नोलॉजी में स्वदेशी क्षमता विकसित करनी होगी, स्टार्टअप इकोसिस्टम का लाभ मिल रहा है इसे और बढ़ावा देना होगा। विदेशी तकनीक का युगानुकुल स्वदेशीकरण करना होगा।
तीसरी सबसे बड़ी चुनौती सामाजिक न्याय और समानता की है। आर्थिक असमानता में कहीं न कहीं वृद्धि हो रही है। लैंगिक असमानता एवं शहरी-ग्रामीण का अंतर एक ओर कम हो रहा है, दूसरी ओर जाति-पंथ के आधार पर समाज को विभाजित करने का सिद्धांत व षड्यंत्र विकसित हो रहा है। संविधान की उद्देशिका में न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुता शब्दों का प्रयोग किया गया है। इनमें अंतर्निहित भाव को व्यवहार रूप में लाकर समावेशी विकास मॉडल अपनाना होगा। ‘सबका साथ, सबका विकास’ के साथ महिला सशक्तिकरण कार्यक्रमों को प्रभावी बनाना तथा भारत की अर्थव्यवस्था का आधार ग्रामीण विकास में विशेष निवेश के अवसर प्रदान करने होंगे।
चौथी महत्वपूर्ण चुनौती पर्यावरण संरक्षण की है। विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन कैसे बने? जलवायु परिवर्तन का प्रभावों का सामना कैसे हो? प्रदूषण की समस्या को कम कैसे किया जाए? प्राकृतिक संसाधनों का ह्रास न करते हुए विकास की गति कैसे बढ़ाई जाए? ये बहुत से प्रश्न पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से खड़े हैं। ईशावास्य उपनिषद में प्रथम श्लोक में वर्णन है- ‘तेन त्यक्तेन भुंजीथा’ अर्थात त्याग की दृष्टि से उपभोग करो। यह सूत्र पर्यावरण सम्बंधी सभी प्रश्नों का उत्तर है। इस प्रकाश में हरित प्रौद्योगिकी का विकास को बढ़ावा, नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश, टिकाऊ विकास मॉडल अपनाना, पर्यावरण संरक्षण में जन भागीदारी आदि के द्वारा इस चुनौती का समाधान कर सकते हैं।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020,- 29 जुलाई 2020 को देश को नई दिशा प्रदान करने वाली भारत केंद्रित राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 लागू की गई, जो कि भविष्य में भारत की युवा पीढ़ी को मानसिक गुलामी से छुटकारा दिलाएगी ही, साथ ही साथ 21वीं शताब्दी की युगानुकूल आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी नई पीढ़ी को सुसज्जित करेगी। इस नीति के क्रमांक 12.8 में विश्वगुरु शब्द का प्रयोग किया गया है। भारत के सरकारी कागजातों में कदाचित् पहली बार ऐसा हुआ होगा। अटल इनोवेशन मिशन, शिक्षा प्रौद्योगिकी, भारतीय भाषाओं को बढ़ावा, भारतीय ज्ञान परम्परा, उच्च शिक्षा में परिवर्तन, कौशल विकास, ये सभी राष्ट्रीय शिक्षा नीति के आयाम हैं, जो विश्व गुरु भारत 2047 में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले हैं।
विश्व गुरु की दृष्टि
विश्वगुरु बनने का मार्ग केवल भौतिक-आर्थिक विकास से नहीं बल्कि मानवीय मूल्यों से प्रशस्त होता है। महर्षि अरविंद ने 15 अगस्त 1947 को आकाशवाणी पर कहा कि मनुष्य की तरह हर राष्ट्र की एक नियति होती है। भारत की नियति आध्यात्मिक नियति है और विश्व को आध्यात्मिकता की रोशनी दिखाना भारत का कर्तव्य है। भारत की भौतिक समृद्धि के साथ आध्यात्मिक और नैतिक उन्नति पर भी ध्यान देना होगा। स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है – हर देश के पास देने के लिए एक संदेश है, पूरा करने के लिए एक मिशन है, एक नियति तक पहुंचने के लिए। भारत का मिशन मानवता का मार्गदर्शन करना रहा है। भारत की प्राचीन बुद्धिमत्ता और आधुनिक तकनीक का संयोजन आवश्यक होगा। विश्व गुरु भारत 2047 के लिए राष्ट्रीय संकल्प के अंतर्गत तत्काल कार्य योजना बनाने की आवश्यकता है। भारत की सांस्कृतिक धरोहर, युवा शक्ति और तकनीकी क्षमता से इस लक्ष्य की प्राप्ति सम्भव है।
रवि कुमार