सर्वगुण संपन्न, मिलनसार, स्नेही, मुक्तहृदय और लोगों को अपना बना लेनेवाले असाधारण व्यक्तित्व के धनी थे स्व. श्री रामबिलास जी दामोदर जी मुंदडा।
परिवार में बड़े होने के कारण घर की जिम्मेदारी कम उम्र में ही इनके कंधों पर आ गई। अपनी लगन, ईमानदारी और साहस के बल पर उन्होंने उन जिम्मेदारियों का निष्ठापूर्वक निर्वहन किया। परिवार में सभी को सहारा देना, छोटों से प्यार करना और बड़ों का सम्मान करना उनके व्यवहार में शामिल था।
व्यवसाय में उन्होंने ईमानदारी, अनुशासन और नवीन दृष्टिकोण का अद्भुत मेल साधा। इसीलिए वे एक सफल व्यवसायी के रूप में प्रसिद्ध हुए, परंतु केवल एक व्यवसायी ही नहीं, बल्कि एक निस्वार्थ समाजसेवक, दानी व्यक्ति और लोकहित के लिए सदैव आगे रहने वाले सज्जन के रूप में उनकी वास्तविक पहचान बनी।
समाज की कोई भी समस्या हो शैक्षणिक, धार्मिक या सामाजिक वे तत्परता से पहल करके सहयोग देते थे। जरूरतमंदों की सहायता के लिए आगे रहना, युवाओं को प्रोत्साहित करना और रिश्तों को निभाना उनके स्वभाव का अभिन्न अंग था। उनकी वाणी में मिठास, व्यवहार में सरलता और स्वभाव में उदारता होने के कारण समाज का हर वर्ग उन्हें अपना करीबी मानता था।
श्री रामबिलास जी का सत्संग, ईमानदारी, समाजोन्मुखता, अपनत्व और उदार मनोवृत्ति ही उनकी वास्तविक संपत्ति थी। उनका कार्य, विचार और मूल्य ही आनेवाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणादायी धरोहर बने रहेंगे। उनके पदचिन्हों पर चलकर, उनके द्वारा निभाए गए मानवता, परंपरा और सेवा के मार्ग को आगे बढ़ाना ही उनकी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। ईश्वर से प्रार्थना है कि उनकी आत्मा को शांति व सद्गति प्रदान करें. हिंदी विवेक परिवार उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करता है.