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हिन्दी के विकास में “मराठी साहित्यकारों” का योगदान

हिन्दी के विकास में “मराठी साहित्यकारों” का योगदान

by हिंदी विवेक
in ट्रेंडींग
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हिन्दी भाषा दिन के अवसर पर आज इस विषय पर वार्तालाप करेंगे | राष्ट्रभाषा हिन्दी का क्षेत्र अत्यंत विस्तृत है, वह अनेक प्रदेशों कि मातृभाषा है | उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, बिहार, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश उत्तरांचल और छत्तीसगढ | अन्य भाषाओं के विस्तृत क्षेत्र में जैसे भाषा का एकरूप मिलना संभव है, कई कोसों पर भाषा बदलती है, हिन्दी भी इसको अपवाद नहीं है | आज सम्पूर्ण हिन्दी भाषा-भाषी क्षेत्र में हिन्दी कि लगभग अठराह बोलियाँ और एक सौ पैंसठ उपबोलियाँ है | बहुमुखी प्रतिभाशक्ती के धनी, खडीबोली के जनक भारतेंदु हरीश्चंद्रजी ने आधुनिक हिन्दी साहित्य का विकास किया इसे राष्ट्र भाषा के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया | हिन्दी को वैश्विक स्तर पर पहुँचाने में मराठी साहित्यकारों ने महती भूमिका निभायी है | हिन्दी भाषा को जन-जन तक पहुँचाने के लिये संगठन और प्रचार, प्रसार का कार्य किया है |

संत शिरोमणी ‘भगत नामदेव’ : इनके कुछ हिन्दी के अभंग शीख धर्म के पवित्र ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में शामिल है | यह उनके हिन्दी साहित्य निर्मिती की विशेष मिसाल है | संत ज्ञानेश्वरजी के परलोकगमन बाद इन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया | मराठी के साथ हिन्दी में भी रचनाएँ लिखी, बीस बरस तक पंजाब में ‘भगवन्नाम’ का प्रचार किया | अमृतसर के निकट ‘घुमान’ गाँव में उनका वास्तव्य था | उनकी कुछ रचनाएँ शीखों कि धार्मिक पुस्तिका ‘मुखबानी में संग्रहीत है | इस प्रकार पंजाब और महाराष्ट्र के बीच नामदेव महाराज ने आम लोगों का रिश्ता मजबूत किया |

हरिभाऊ आपटे ; विभावरी शिरूरकर, कवी अनिल [आत्माराम रावजी देशपांडे], कुसुमाग्रज [विष्णु वामन शिरवाडकर], इन साहित्यकारों का हिन्दी में अलग योगदान है | इन्होंने सामाजिक समरसता और नारी मुक्ती के मुद्दों को अपनी रचनांओं में स्थान दिया | शिवाजी कोटक (१९०८-१९८१) ये उपन्यासकार और कथालेखक थे जिन्होंने हिन्दी में भी लेखन किया है |

विनायक दामोदर सावरकर : इनकी हिन्दी साहित्य निर्मिती इस प्रकार है, ‘मेरा आजीवन कारावास’, ‘कालापानी’, ‘१८५७ का स्वातंत्र्यसमर’, ‘हिंदुत्यत्व’, ‘गोमतेर’ आदि |
रणजित देसाई : इनके दो प्रख्यात ऐतिहासिक उपन्यास ‘स्वामी’, और ‘श्रीमान योगी’ भारतीय साहित्य अकादमीने हिन्दी भाषा में अनुवादित किया है | इस वजह से हिन्दी साहित्य के प्रान्त में रणजितजी का यह कार्य अनोखा माना जाता है |

विष्णु सखाराम खांडेकर : इनकी प्रसिद्ध साहित्य कृतियों में से एक, ‘ययाति’ का अनुवाद हिन्दी में है | हिन्दी कथासंकलन का नाम ‘कलिका’ है | ‘अश्रू’ एक मार्मिक उपन्यास जो हिन्दी पाठकों के बीच लोकप्रिय है |

शिवाजी सावंत : उनके उपन्यास ‘मृत्युंजय’, ‘छावा’, ‘युगन्धर’, और नाटक ‘संघर्ष’ के अनुवाद भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित है | इनका प्रथम मराठी उपन्यास ‘मृत्युंजय’ उनकी लोकप्रियता का प्रतिमान बना | इस उपन्यास की प्रस्तावना में उन्होंने हिन्दी के केदारनाथ मिश्रजी के ‘कर्ण’ और रामधारीसिंह दिनकरजी के ‘रश्मीरथी’ इन काव्यखंडों का उल्लेख किया है |

जी.ए.कुलकर्णी : इनकी कई रचनाएँ विभिन्न भाषाओं में अनुवादित है | मूलभाषा मराठी होकर हिन्दी में उनकी कुछ प्रमुख किताबें ‘काजलमाया’, ‘कुसुमगुँजा’, ‘गाँव’ [कॉनरॉड रिक्टर की किताब का अनुवाद], एक अनंत यात्रा [इंग्रजी कहानी के संग्रह का अनुवाद] |

विश्वास पाटील : इनकी कुछ प्रमुख हिन्दी किताबों में शामिल है, ‘पानिपत’, ‘संभाजी’, ‘महानायक’ और ‘चंद्रमुखी’ जो ऐतिहासिक और सामाजिक मुद्दों पर आधारित उपन्यास है | यह किताबें सिर्फ हिन्दी में नहीं, अन्य भारतीय भाषाओं में भी अनुवादित होकर लोकप्रिय हुई है |

अण्णाभाऊ साठे : इनकी प्रमुख साहित्य कृती जिसको हिन्दी में ‘कब्र का सोना’ इस नाम से जाना और ‘मरघट का सोना’ इस नाम से जाना जाता है | उनके कार्य की व्याप्ती बढाने के लिये कुछ अनुवाद हिन्दी और अंग्रेजी में उपलब्ध है | भालचंद्र नेमाडे : इनकी साहित्यकृति ‘वह दिन याद है’ इस शीर्षक से हिन्दी में प्रकाशित हुई है |

गजानन माधव मुक्तिबोध : इनको सूर्यकान्त त्रिपाठी निरालाजी कि तरह हिन्दी काव्य का शिल्पकार माना जाता है | ‘अंधेरे में’ यह उनका प्रसिद्ध काव्य है | ‘फिर बहना बहना’, ‘रंगों के उद्भाओंसे ज्यो नभ का कोना कोना’, ‘तुम से चाह रहा था कहना’ आदि रचनाएँ है |

डॉ. चंद्रभानू सोनावणे : द्वारा रचित, ‘भारतेंदु के विचार – एक पुनर्विचार’ यह महान उपलब्धी है | इसमें इन्होंने भारतेंदु के साहित्य का अवलोकन किया है | यह ग्रंथ भले ही आकार में छोटा हो, लेकीन नये दृष्टीकोन को समर्थ रूप में प्रस्तुत करता है | इस ग्रंथ कि विशेषता यह है कि, वैचारिक धरातल पर भारतेंदु हरीश्चंद्र और महर्षि दयानंद सरस्वती के विचारों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है |

महाराष्ट्र का हिन्दी से संबंध पुराने काल से है | अपभ्रंश काल के कवि पुष्पदंत, स्वयंभू, हेमचंद्र तथा मुनी कनकामर महाराष्ट्र से संबंधित रहें है | इस प्रकार मराठी साहित्यकारों ने विविध प्रकार से योगदान दिया है | इसमें अनुवाद, साहित्य कि निर्मिती और हिन्दी का प्रसार जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों का समावेश हुआ है |
-मेघनुश्री 

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Tags: #HindiLanguage #LearnHindi #HindiGrammar #HindiLiterature #HindiPoetry #HindiCulture #HindiSpeaking #HindiVocabulary #HindiLessons #HindiCommunityhindivivek

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