भारतवर्ष का मूल विचार महिला और पुरुष की परस्पर पूरकता का हैं। जैसे शिव और शक्ति दोनों मिलकर ही पूर्णत्व है, वैसे ही समाज का विकास भी महिला एवं पुरुषों के सामूहिक प्रयासों से ही संभव होता है। संघ विचार में भी यही भाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
संघ शताब्दी के निमित्त पूरे भारतवर्ष में इन दिनों संघ के विविध आयामों की जानकारी, विजयादशमी कार्यक्रम, संघ का इतिहास, वर्तमान आदि के बारे में व्यापक चर्चा चल रही है। इन सारे विषयों में चर्चा का एक बड़ा मुद्दा होता है “संघ और महिला”। इसी संदर्भ में आज संघ शताब्दी वर्ष पूर्ण होने के पूर्व संध्या पर “संघ का महिला कार्य में योगदान” इस विषय को अभिव्यक्त करे, ऐसा मन में विचार आया। इस लेख को लिखने के लिए एक प्रसंग निमित्त बन गया।
3 दिन पूर्व, पुणे में समिति के 6 सघोष पथ संचलन हुए। संचलन स्थान पर जाने के लिए मैं गाड़ी में बैठी। गाड़ी चलाने वाले एक संघ कार्यकर्ता थे। गाड़ी में और 5 सेविकाएं थी। गाड़ी चलाते समय वे अपने पत्नी को बोले, अगले वर्ष गाड़ी चलाने वाली भी महिला ही हो तो आपके संचलन में एक सेविका की संख्या बढ़ेगी। आगे वे बोले “अगली बार अपनी सोसायटी से कम से कम 15 महिलाएं संचलन में आए, इसके लिए प्रयास और संपर्क करेंगे।” तब मेरे मन में विचार आया.. इनके जैसे, ‘महिलाओं का काम बढ़े’ यह विचार हजारों संघ के कार्यकर्ता करते होंगे, इसलिए आज अपना काम इतना व्यापक है। कई कार्यकर्ता तो इतनी प्रभावी भूमिका निभाते हैं, सहयोग करते हैं कि मजाक से हम कहते हैं ये समिति के स्वयंसेवक है!
आज संघ की प्रेरणा से समाज के विविध क्षेत्रों में 32 संगठन कार्यरत है। इसमें से 31 संगठनों में महिला और पुरुष दोनों काम करते हैं। आज देश के विभिन्न क्षेत्रों में जो बढ़ती महिला सहभागिता एवं सक्रियता दिखाई दे रही है, उसमें महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों की भूमिका भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। भारत के इतिहास में महर्षि कर्वे, दयानंद सरस्वती, महात्मा फुले जैसे कई समाज सुधारकों ने महिला विषयक समस्याएं दूर करने के लिए महती प्रयास किए। परस्पर पूरकता यही हमारे देश की परंपरा बनी है। संघकार्य इसी परंपरा का वहन करता है।
संघ का महिला कार्य में योगदान इस विषय का प्रारंभ होता है संघ संस्थापक पू. डॉक्टर हेडगेवार जी के जीवन से! महर्षि कर्वे के महिला विश्वविद्यालय के लिए धनसंग्रह करना हो या विधवा पुनर्विवाह को अनुमोदन देना हो, दोनों में डॉक्टर हेडगेवार जी की सक्रिय भूमिका रही। डॉक्टर जी ने राष्ट्र सेविका समिति की संस्थापिका वंदनीय लक्ष्मीबाई केलकर को महिलाओं के लिए स्वतंत्र संगठन प्रारंभ करने का सुझाव दिया। इतना ही नहीं तो ‘हम आपको इस काम में पूरा सहयोग देंगे’ ऐसा आश्वस्त भी किया, जो आज तक चलता आ रहा है। समिति के कार्यक्रमों की रचना करते हुए महिलाओं के स्वभाव के अनुसार हो, ऐसा भी उन्होंने कहा था। इससे डॉक्टर जी की महिला विषयक दृष्टि ध्यान में आती है।
संघ के एकात्मता स्तोत्र के दसवें और ग्यारहवें श्लोकों में भारतवर्ष की 15 महिलाओं का वर्णन है, जिनका स्वयंसेवक नित्य स्मरण करते हैं। यह स्मरण स्वयंसेवकों को प्रेरित करता होगा कि वे अपने घर की महिलाओं को भी समाजकार्य में सक्रिय रूप से जोड़ें। समाज परिवर्तन का प्रारंभ अपने परिवार से होता है। ऐसे हजारों स्वयंसेवक हैं, जिन्होंने अपनी मां, पत्नी, बेटी, बहन को समाज कार्य में लाया, प्रोत्साहित किया, सक्रिय बनाया। जब किसी परिवार में या संगठनों के कार्यालय में महिलाओं की बैठक होती है, तो चाय बनाना, जलपान कराना, भोजन परोसना— ये भूमिकाएँ घर के पुरुष तथा विविध संगठन के बंधु कार्यकर्ता करते हैं।
अनेक बार माता-बहनों के लिए वाहन चलाना, आवागमन यह एक चुनौती होती है। समिति की शाखा, संस्कार केंद्र, संगठनों के सेवाकार्य, विभिन्न कार्यक्रम या बैठकें हो, इसमें महिलाओं को ले जाना-लेकर आना यह काम अनेक बंधु करते है। कभी देर रात तक बैठकें चलती है, ऐसे समय में सारी महिलाएं अपने घर सुरक्षित पहुंचे, इसकी पूरी चिंता बंधु कार्यकर्ता करते है। समिति के प्रारंभ काल में शारीरिक पाठ्यक्रम एवं घोष वादन का प्रशिक्षण बंधुओं द्वारा ही दिया गया। शारीरिक शिक्षण का एक उद्देश है “स्व संरक्षण”। एक बार अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की एक बहन ने कहा कि महाविद्यालय में छात्रों का एक आंदोलन चल रहा था। थोड़ी मारपीट चालू हुई, तुरंत विद्यार्थी परिषद के वहां के छात्रों ने अपने साथ आंदोलन में सहभागी छात्राओं को बीच में ले लिया और उनको कुछ क्षति न हो, इसलिए उनको घेरकर खड़े हुए और स्वयं ने उस संकट को झेला। परस्परपूरकता का भाव ऐसे प्रसंगों में दिखाई देता है।
अनेक संगठनों में महिलाओं के अलग से अभ्यासवर्ग, अधिवेशन, सम्मेलन होते है। ऐसे कार्यक्रमों में पूरी व्यवस्था अच्छे से होना, इसमें भी बंधु काम करते है। भारी सामान उठाना, मंच पर चढ़कर बैनर लगाना, टंकी में पानी की व्यवस्था करना, परिसर की सुरक्षा, आवागमन की व्यवस्था करना, पाकशाला की सामग्री लाना या धन संग्रह करना हो, बंधु कार्यकर्ता इस काम में स्वयं से लग जाते है। नागपुर में जब समिति का 10,000 सेविकाओं का सम्मेलन 2005 में हुआ, तब विदर्भ के एक ज्येष्ठ संघ कार्यकर्ता, एक महीने तक रोज दिनभर आकर सहयोग में जुटे। 1986 के समिति के अखिल भारतीय सम्मेलन में भारी वर्षा के कारण आवास स्थान पर काफी नुकसान हुआ। उस परिस्थिति में तब के संघ के पू. सरसंघचालक बालासाहेब देवरस जी ने पूरी चिंता की और तुरंत अनेक संघ कार्यकर्ताओं को मदद के लिए भेजा।
संगठनों के जब 7 दिन के, 15 दिन के प्रशिक्षण वर्ग चलते है, तब अपने घर की बेटी, बहन, पत्नी उस प्रशिक्षण वर्ग में जाए, इसलिए अनेक स्वयंसेवकों का आग्रह का विषय होता है। जाने के लिए बहनों का मन बनाना, पत्रक देना, अभ्यास लेना ऐसी भी भूमिका वे निभाते है। कहीं नई शाखा चालू करनी है, महिला मिलन प्रारंभ करना है, नया सम्पर्क करना है तो संघ स्वयंसेवक संपर्क सूत्र के रूप में काम करते है। नए गीत सिखाना, खेल सिखाना, भाषण की तैयारी करना, कार्यालय व्यवस्था करना ऐसे करनेवाले भी अनेक बंधु है। समन्वय बैठक में आने के बाद महिलाओं के व्यवस्था की चिंता करना, उनको बोलने के लिए, लिखने के लिए प्रोत्साहन देनेवाले अनेक ज्येष्ठ बंधु कार्यकर्ता है।
महिला समन्वय द्वारा सन 2018 में “status of women in India” नामक बड़ा सर्वेक्षण देश के 74000 महिलाओं का हुआ। इसमें 16 संगठनों की महिलाओं ने काम किया। इसको सफल होने में संघ एवं विविध संगठनों के बंधु कार्यकर्ताओं की बहुत बड़ी भूमिका थी। संघ शताब्दी निमित्त गत वर्ष, पूरे देश में 472 महिला सम्मेलन हुए, जिसमें 5,75,740 महिलाएं सम्मिलित हुई। इन सम्मेलनों को सफल बनाने में संघ तथा विविध क्षेत्र के बंधुओं का अच्छा सहभाग रहा। एक सम्मेलन में तो भोजन कम पड़ने पर एक संघचालक आटा गूंदने के लिए बैठ गए। अनेक बड़े उत्सवों में, कार्यक्रमों में रस्सी का ध्वज लगाना, फोटोग्राफी करना, वीडियो बनाने का काम बंधु करते है। आंध्र प्रांत के 13 सम्मेलनों का वीडियो बनाने का काम रातभर जगकर वहां के एक कार्यालय प्रमुख ने किया। कुल मिलाकर महिला समन्वय के माध्यम से देश में महिला कार्य बढ़ाने हेतु संघ का बहुत बड़ा योगदान एवं दिशादर्शन हो रहा है।
पिछले वर्ष लोकमाता अहिल्या देवी के जन्म त्रिशताब्दी वर्ष के एक लाख से अधिक कार्यक्रम देशभर में संपन्न हुए। इस त्रिशताब्दी कार्यक्रम का बीजारोपण का निमित्त बना ऐसा ही एक प्रसंग! पुणे की एक संघ की शाखा संघ कार्यालय के नूतनीकरण के कारण सामने वाले अहिल्या देवी हाईस्कूल में कुछ दिन लगाई गई। वहां के एक संघ प्रचारक ने सोचा, जहां शाखा चलती है, उन अहिल्या देवी की विस्तृत जीवनी पढ़ेंगे। उनकी इस जीवनी पढ़ने के कारण यह बीज एक बड़ा वटवृक्ष बन गया और पूरे देश में लोकमाता अहिल्या देवी की प्रेरक जीवनी जन- जन तक पहुंची।
आज संघ और विभिन्न संगठनों के एक लाख से अधिक सेवाकार्य देशभर में चलते है। इनमें महिलाओं की सहभागिता, सक्रियता बहुत मात्रा में है। कन्याकुमारी जिले में 1600 से अधिक स्वसहायता समूहों में 5000 महिलाएं कार्यरत है, जिसमें बंधुओं का बहुत सहयोग है। प्राकृतिक आपदा में अपने घर से महिलाओं को मदद कार्य के लिए ले जाना, सहयोग के लिए प्रेरित करने की भूमिका स्वयंसेवक निभाते है। अपनी बेटी संगठन का पूर्णकालिक कार्य करे, प्रचारिका बने, इसके लिए उसका मन बनाना, संबंधित कार्यकर्ताओं से बातचीत करना आदि सारी बात अनेक परिवार के बंधु करते है। पूर्णकालिक महिला कार्यकर्ता की आवास, भोजन, आवागमन की व्यवस्था, प्रवास की चिंता करनेवाले भी बंधु कार्यकर्ता है। एक बार गुजरात प्रांत में ऐसी 1400 महिलाओं ने 7 दिन विस्तारक के रूप में वनवासी क्षेत्र में जाकर कार्य किया। इसकी प्रेरणा थे, वहां के संघ कार्यकर्ता! संघ के अनेक प्रवासी कार्यकर्ता, प्रचारक विभिन्न परिवारों के माता-बहनों के काम में हाथ बंटाते है, सुखदुख में सहभागी होते है और परिवार का आधार भी बनते है।
अंततः यह स्पष्ट है कि संघ और समाज के विविध संगठनों में महिला कार्य का विकास महिलाओं के संकल्प और परिश्रम के साथ ही बंधु कार्यकर्ताओं के सहयोग, प्रेरणा और कर्तव्यनिष्ठा से ही संभव हुआ है। महिला और पुरुष की यही परस्पर पूरकता हमारे राष्ट्रीय जीवन को शक्ति देती है और समाज को संतुलन प्रदान करती है। संघ शताब्दी के इस पावन अवसर पर, यह कृतज्ञ स्मरण उन अनगिनत स्वयंसेवकों का है जिन्होंने अपने परिवार और संगठन की महिलाओं को प्रोत्साहित किया और हर कदम पर सहयोगी बने। महिला सम्मान, महिला सुरक्षा, महिला स्वावलंबन यह संघ के लिए घोषणा का नहीं कृति का विषय है। जब महिला-पुरुष समान गति से, समान श्रद्धा से और समान उद्देश्य से कार्य करेंगे, तभी राष्ट्र का वैभवशाली चित्र सुनिश्चित होगा।
वास्तव में संघ स्वयंसेवकों का महिला कार्य में योगदान यह एक लेख का नहीं अपितु अनेक पुस्तकों का विषय है। यह लेख पढ़ने के बाद अनेक स्वयंसेवक कहेंगे, इसमें क्या बड़ी बात है? ये तो हमने करना ही चाहिए, यह हमारा कर्तव्य है। यह सब जानने के बावजूद भी यह लेख एक कृतज्ञता है। संघ का एक गीत है… मैं जग में संघ बसाऊं, मै जीवन को बिसराऊं।
संघ शताब्दी के उपलक्ष्य में इस प्रकार का काम करने वाले हर एक स्वयंसेवक, बंधु को कृतज्ञता पूर्वक अभिवादन।
– भाग्यश्री (चंदा) साठये