कर्नाटक में हिंदू संतों पर निशाना जातिगत विवादों से प्रेरित लगता है, लेकिन राजनीतिक हस्तक्षेप की छाया साफ है। यद्गिर प्रदर्शन और महाराज पर प्रतिबंध हिंदू आस्थाओं को कमजोर करने का प्रयास है। सरकार को चाहिए कि वह धार्मिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करे। हिंदू समाज को एकजुट होकर संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करनी होगी अन्यथा यह विवाद राज्य की शांति को भंग कर सकता है।
कर्नाटक, जो कभी वीरशैव लिंगायत परम्परा का गढ़ माना जाता था, आज हिंदू संतों और धार्मिक आस्थाओं के विरुद्ध बढ़ते हमलों का केंद्र बन चुका है। राज्य में कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार के सत्ता में आने के बाद से हिंदू समाज में एक गहरी बेचैनी छाई हुई है। हाल के महीनों में दो प्रमुख घटनाएं, यद्गिर में 12वीं शताब्दी के संत अंबिगारा चौधैया के विरुद्ध अपमानजनक टिप्पणियां और कानेरी मठ के प्रमुख पूज्य श्री अदृश्य काडसिद्धेश्वर महाराज पर लगाई गई यात्रा प्रतिबंध, ने पूरे हिंदू समाज को झकझोर दिया है। विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) जैसे संगठन इसे राज्य सरकार का धार्मिक मामलों में राजनीतिक हस्तक्षेप बता रहे हैं।
कर्नाटक में कांग्रेस सरकार का गठन मई 2023 में हुआ था, जब सिद्धारमैया ने मुख्य मंत्री पद सम्भाला। राज्य की जनसंख्या में लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों का वर्चस्व है, जो हिंदू समाज के प्रमुख स्तम्भ हैं, लेकिन सरकार के कार्यकाल में धार्मिक संस्थानों पर नियंत्रण, जातिगत विवादों का उभरना और संतों पर प्रतिबंध जैसी घटनाएं बढ़ी हैं। यह कांग्रेस की पुरानी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है, जो अल्पसंख्यक तुष्टिकरण पर आधारित है। हालांकि सरकार इसे कानून-व्यवस्था का मामला बताती है।

यद्गिर में संत अंबिगारा चौधैया का अपमान
सितम्बर 2025 की शुरुआत में कर्नाटक के यद्गिर जिले में एक घटना ने पूरे राज्य को हिला दिया। 2 सितम्बर को हजारों कोली, कब्बलीगा और तलवार समुदायों के सदस्यों ने सुबाष सर्कल पर सड़क जाम कर विरोध प्रदर्शन किया। कारण था 12वीं शताब्दी के वीरशैव संत निज शरना अंबिगारा चौधैया के विरुद्ध अपमानजनक टिप्पणियां। चौधैया, मूल रूप से एक नाविक थे, जिन्होंने कल्याण जाकर लिंगायत आंदोलन से जुड़कर सामाजिक सुधारों का प्रचार किया। वे वीरशैव परम्परा के प्रमुख कवि और आलोचक थे, जिनकी गुफा बसवकल्याण के बाहर आज भी तीर्थस्थल है। कर्नाटक सरकार का कन्नड़ और संस्कृति विभाग उनकी जयंती मनाने में सहयोग करता है, जो उनकी हिंदू धरोहर में महत्व को दर्शाता है।
प्रदर्शनकारियों के अनुसार ये टिप्पणियां वाल्मीकि समुदाय के कुछ नेताओं द्वारा की गईं, जो हाल ही में नकली जाति प्रमाण-पत्रों के मुद्दे पर विरोध कर रहे थे। टिप्पणियों में न केवल संत का अपमान किया गया बल्कि कोली, कब्बलीगा और तलवार समुदायों को भी नीचा दिखाया गया। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार प्रदर्शनकारी सड़क पर घंटों ट्रैफिक रोककर बैठे रहे और दोषियों की गिरफ्तारी, बाहरीकरण (समुदाय से निष्कासन) और मुख्य मंत्री सिद्धारमैया को ज्ञापन सौंपा। डेक्कन हेराल्ड ने इसे ‘मासिव प्रोटेस्ट’ करार दिया, जिसमें हजारों लोग शामिल हुए।

प्रदर्शनकारियों ने संत के विरुद्ध आपत्तिजनक टिप्पणियों का आरोप लगाया, जो हिंदू आस्थाओं को ठेस पहुंचाती हैं। प्रदर्शन के दौरान ज्ञापन में कोली, कब्बलीगा, कब्बेर, बेस्टा और अंबिगा जैसी उप-जातियों को अनुसूचित जनजाति (एसटी) सूची में शामिल करने की मांग भी की गई। जहां हिंदू संतों के विरुद्ध टिप्पणियों को धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला माना गया, लेकिन प्रश्न यह है क्या यह केवल जातिगत विवाद था या हिंदू संतों को निशाना बनाने का षड़यंत्र? तथ्यों की पड़ताल से स्पष्ट है कि यह घटना जातिगत तनाव से उपजी है, लेकिन इसका असर हिंदू समाज की एकजुटता पर पड़ा। वीरशैव लिंगायत समुदाय, जो कर्नाटक की राजनीति में प्रभावशाली है, ने इसे धार्मिक अपमान माना। सरकार ने तत्काल कार्रवाई का आश्वासन दिया, लेकिन गिरफ्तारियां सीमित रहीं। यह 2025 की दूसरी बड़ी घटना थी, जो हिंदू संतों की विरासत को चुनौती देती प्रतीत होती है
अदृश्य काडसिद्धेश्वर महाराज पर यात्रा प्रतिबंध
यद्गिर की घटना से भी अधिक चिंताजनक समाचार महाराष्ट्र के कानेरी स्थित 1300 वर्ष प्राचीन काडसिद्धेश्वर मठ से जुड़ी है। वीरशैव लिंगायत समुदाय के प्रमुख आध्यात्मिक केंद्र इस मठ के मठाधीश पूज्य श्री अदृश्य काडसिद्धेश्वर महाराज को कर्नाटक के कई जिलों में प्रवेश करने से रोक दिया गया है। वीएचपी के केंद्रीय महामंत्री बजरंग बागड़ा ने 20 अक्टूबर 2025 को एक वक्तव्य जारी कर कहा, यह हिंदू समाज के धार्मिक मामलों में राज्य सरकार का राजनीतिक हेतु से प्रेरित सर्वथा अनुचित और अस्वीकार्य हस्तक्षेप है। पूज्य महाराज अपने स्वयं के मठों में जाने से रोके जा रहे हैं, जो पूरे वीरशैव लिंगायत समुदाय का अपमान है।
महाराज, जो सिद्धागिरी मठ के 49वें मठाधीश हैं, स्वास्थ्य, शिक्षा और ग्रामीण विकास जैसे क्षेत्रों में योगदान के लिए जाने जाते हैं। यह प्रतिबंध लिंगायत संतों के विरुद्ध कथित अपमानजनक टिप्पणियों के कारण लगाया गया। वीएचपी ने मांग की है कि जिला बंदी का आदेश तत्काल वापस लिया जाए और हिंदू संतों के प्रवास पर कोई रोक न लगाई जाए। यह घटना सितम्बर 2025 में धर्मस्थला पर हमलों के विरोध में संतों के ‘धर्मस्थला चलो’ मार्च से जुड़ी प्रतीत होती है। जैन संत गुणधर नंदी महाराज ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर धार्मिक स्थलों पर हमलों के विरुद्ध कानून की मांग की। यह प्रतिबंध कानून-व्यवस्था का हवाला देकर लगाया गया, लेकिन वीएचपी इसे हिंदू विरोधी मानता है। महाराज की यात्रा लिंगायत मठों तक सीमित थी, जो कर्नाटक में उनके स्वामित्व वाले हैं। यह हस्तक्षेप संविधान के अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) का उल्लंघन प्रतीत होता है।
कांग्रेस का हिंदू विरोध
ये घटनाएं अलग-थलग नहीं हैं। कांग्रेस की राजनीति पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है। राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया गांधी के नेतृत्व में पार्टी ने ‘भगवा आतंकवाद’ शब्द गढ़ा, जो हिंदू संगठनों को बदनाम करने का हथियार बना। 2004-2014 के यूपीए शासन में कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती की दीपावली की रात में गिरफ्तारी, बाबा रामदेव पर दिल्ली में लाठीचार्ज जैसी घटनाएं हिंदू समाज की स्मृति में ताजा हैं। कर्नाटक में भी 2023 चुनावी घोषणा-पत्र में बजरंग दल पर प्रतिबंध की बात ने विवाद खड़ा किया,
जिसे वीएचपी ने सोनिया गांधी का ‘हिंदू विरोध’ बताया। वीएचपी के सुरेंद्र जैन ने कहा, ‘कांग्रेस हमेशा पीएफआई जैसे संगठनों का समर्थन करती रही है।’\
-आशीष कुमार ‘अंशु’

