स्वतंत्रता के पश्चात भारत की राष्ट्रीय एकता के प्रतीक एक प्रखर देशभक्त जो ब्रिटिश राज के अंत के बाद 562 रियासतों को जोड़ने के लिए प्रतिबद्ध थे तथा एक महान प्रशासक जिन्होंने विभाजन की विभीषिका से बिलखते और जलते भारत को स्थिर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, ऐसे महान लौहपुरुष सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को ग्राम करमसद में हुआ था। इनके पिता झबेरभाई पटेल थे जिन्होंने 1857 में रानी झांसी के समर्थन में युद्ध किया था। इनकी मां का नाम लाडोबाई था।
वल्लभ भाई की प्रारम्भिक शिक्षा गांव के ही एक ऐसे विद्यालय में हुई जो कक्षा चार तक ही था। आगे की शिक्षा के लिए पटेल जिस विद्यालय में गए, वह उनके मूल गांव से छह से सात किलोमीटर की दूरी पर था। वल्लभ भाई की उच्च विद्यालय की शिक्षा उनके ननिहाल में हुई। उनके जीवन का वास्तविक विकास ननिहाल से ही प्रारम्भ हुआ था। उनमें बचपन से ही कुशल नेतृत्वकर्ता के गुण दिखाई देते थे। वे पढ़ने में तो तेज थे ही, गीत-संगीत व खेलकूद में भी आगे थे। उनमें एक ऐसा सम्मोहन था कि वे अपने साथियों के बीच विद्यालय के दिनों में ही लोकप्रिय हो गये थे तथा उनका नेतृत्व करने लग गये थे। वल्लभभाई की उच्च शिक्षा बहुत ही कष्टों के साथ इंग्लैंड में जाकर पूरी हुई, जहाँ से उन्होंने बैरिस्टरी की परीक्षा उत्तीर्ण की।

पटेल कुशाग्रबुद्धि के थे तथा उनमें सीखने की अद्भुत क्षमता थी। बचपन में एक बार वे विद्यालय से आते समय पीछे छूट गये। कुछ साथियों ने जाकर देखा तो ये धरती पर गड़े एक नुकीले पत्थर को उखाड़ रहे थे। पूछने पर बोले,” इसने मुझे चोट पहुंचायी है अब मैं इसे उखाड़कर ही मानूंगा” और वे उस पत्थर को उखाड़ करके ही घर आये। एक बार उनकी बगल में फोड़ा निकल आया। उन दिनों गांवो में इसके लिए लोहे की सलाख को लालकर उससे फोड़े को दाग दिया जाता था। नाई ने सलाख को भट्ठी में रखकर गरम तो कर लिया, पर वल्लभ भाई जैसे छोटे बालक को दागने की हिम्मत नहीं पड़ी। इस पर वल्लभ भाई ने सलाख अपने हाथ में लेकर उसे फोड़े में घुसा दिया, आसपास बैठे लोग चीख पड़े, लेकिन उनके मुंह से उफ तक नहीं निकला।
1926 में उनकी भेंट गांधी जी से हुई और वे स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े और स्वदेशी जीवन शैली में आ गये। बारडोली में किसान आंदोलन का सफल नेतृत्व करने के कारण उनका नाम सरदार पड़ा। सरदार पटेल स्पष्ट व निर्भीक वक्ता थे। यदि वे कभी गांधी जी से असहमत होते तो वे उन्हें भी साफ कह देते थे। वे कई बार जेल गये। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्हें तीन साल की कैद हुई।

स्वतंत्रता के बाद उन्हें नेहरू मंत्रि परिषद में गृहमंत्री बनाया गया। सरदार पटेल ने चार वर्ष तक गृहमंत्री के पद पर कार्य किया। यह चार वर्ष न केवल उनके वरन स्वाधीन भारत के भी ऐतिहसिक वर्ष हैं। उन्होने 562 रियासतों का विलय करवाया जिसमें सबसे कठिन विलय जूनागढ़ और हैदराबाद का रहा। सरदार की प्रेरणा से ही जूनागढ़ में विद्रोह हुआ और वह भारत में मिल गया। हैदराबाद में बड़ी पुलिस कार्यवाही करनी पड़ी। जम्मू कशमीर का मामला नेहरू जी ने अपने पास रख लिया जिसका आंशिक समाधान नरेन्द्र मोदी जी ने धारा 370 की समाप्ति के रूप में कर दिया है, जबकि पाकिस्तानी कब्जे वाला कश्मीर वापस लेना अभी शेष है। सरदार पटेल ने गृहमंत्री रहते हुए रेडियो एवं सूचना विभाग का कायाकल्प किया।
सरदार पटेल स्वभाव से बहुत कठोर थे, पर साथ ही बहुत ही सहज और उदार भी। समय के अनुसार निर्णय लेने में वे समर्थ तथा सक्षम थे। वे तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को उचित परामर्श देने में भी नहीं हिचकते थे। जब चीन तिब्बत पर अपना अधिकार जता रहा था और नेहरू ने चीन की विस्तारवादी नीति का विरोध नहीं किया था, जिसके चलते ही तिब्बत पर चीन का नियंत्रण हो गया था तब सरदार पटेल ने चीन के प्रति सर्वाधिक संदेह प्रकट करते हुए कहा था कि यदि चीन तिब्बत पर अधिकार कर लेता है तो यह भविष्य में भारत की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा होगा। कालांतर में दूरदर्शी पटेल की चिंता सच सिद्ध हुई। मंत्री के रूप में भी वे हर व्यक्ति से मिलते थे और उनकी समस्या का समाधान खोजते थे।
इस वर्ष सरदार पटेल की जयंती के 150 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। इस अवसर पर कई भव्य ओयाजन किए जा रहे हैं। हम सभी को सरदार पटेल की स्मृति में होने वाले कार्यक्रमों का हिस्सा बनकर उनका पुण्य स्मरण करते हुए उनके बताए गए पथ पर चलने की प्रेरणा लेनी चाहिए।
-मृत्युंजय दीक्षित
 
			
