अंधेरे पर उजाले की जीत

देश भर मे केरल ही ऐसा प्रदेश था, जहां पहले दिवाली नहीं मनाई जाती थी, क्योंकि मान्यता है कि बलि राजा केरल का था और विष्णु ने वामन अवतार लेकर उसका नाश किया था। लेकिन अब सबकुछ बदल चुका है। वहां भी घर-आंगन दीयों से सजे दिखाई देते हैं।

जहां सारे भारत में दिवाली इतनी धूमधाम से मनाई जाती है, वहीं एक ऐसा भी हिस्सा है जहां इन दिनों अंधेरा रहता है। ये जानकर हैरानी होगी कि सिर्फ देवता का देश केरल ही एक ऐसा राज्य है जहां दिवाली मनाई नहीं जाती है। ऐसा माना जाता है कि पौराणिक काल में सम्राट बली महाशक्तिशाली, धनदौलत से संपन्न और ऐश्वर्यवान था। दानी स्वभाव का भी था। उसकी शक्ति से शायद देवताओं के मन में भय उत्पन्न हो गया कि कहीं वह उन पर आक्रमण न कर दें। इसलिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और उसके राज्य में ब्राह्मण भिक्षुक बनकर गए। सम्राट बली ने उनका स्वागत किया और उनके कथनानुसार एक पग जमीन तो दे दी, दूसरे पग के लिए हाथ पर धरा, तीसरा पग रखने उनका सर आगे किया तो वे सीधे पाताल लोक में चले गए। जिन दिनों ये घटना घटी वे दिन दिवाली के निकट के दिन थे। अपने प्रिय सम्राट को खोने के बाद सारा केरल शोक सागर में डूब गया। उनकी सारी खुशी उनके पालनकर्ता के साथ ही विदा हो गई।

समय परिवर्तनशील है। धीरे-धीरे बदलाव होते रहते हैं। किसी न किसी कारण से जब दूसरे राज्यों के लोगों का केरल में आना – जाना शुरू हुआ, जो वहां की इस पौराणिक कथा को नहीं जानते और वहीं पर स्थायी रुप में बस गए हैं उन पर वहां के लोग कोई रोक न लगा सके। हर किसी को अपना त्यौहार मनाने की आजादी है। तब से वहां दिवाली में दिये जलते नजर आने लगे। अंजाने में ही सही अब केरल में दिवाली पर दिये रोशन होते हैं।

दिवाली पूरे भारत में बहुत खुशी से मनाई जाती है। इसकी तैयारियां बहुत पहले से शुरू हो जाती हैं। चाहे घरों की साफ-सफाई हो, कपडों की खरीदारी हो या सिलाई पहले से ही हो जाती है। बच्चे अपनी स्कूल की छुट्टी का इंतजार करते हैं। साथ में अपनी तरफ से दिवाली की तैयारियां करने लगते हैं जैसे छोटे लडके किला बनाने की सामग्री, पटाखे इकट्ठा कर लेते हैं तो लडकियां घरों में दिवाली सजाने के लिए खिलौने, छोटे बर्तन, फुलझडियां आदि जमा करने में लग जाती हैं। सबको दिवाली का बड़ी बेसब्री से इंतजार रहता है। जैसे-जैसे दिन नजदीक आते हैं। जोश और बढ़ जाता है।

दिवाली के आने से पहले दिन तक सब तैयार हो जाते हैं। आंगन में छोटे लड़कों के किले सज जाते हैं तो घर के एक कोने में छोटी लड़कियों की खूबसूरत सी छोटी सी रसोई सज जाती है। साथ में हॉल और बेडरूम भी सज जाता है। बड़े लडके डेकोरेशन लाइटिंग और आकाशदीप से घर सजाते हैं तो बड़ी लड़कियां अपने खुद के हाथों से बने तोरण से दरवाजे सजाती हैं। आंगन रंग-बिरंगी रंगोलियों से सजने लगते हैं। बड़ी औरतें दिवाली की मिठाइयां और नमकीन बनाने में लग जाती हैं। बड़े तथा बुर्जुग तो उन्हें सहायता करते हैं। सब में एक नया जोश दिखता है।

दिवाली के दिनों में तो उनका उत्साह देखते बनता है। सबके सब जल्दी अंधेरे रहते ही उठ जाते हैं। सब में जैसे होड़ लग जाती है। सबसे पहले नहाने की पर मौका आने पर ही नहाने जाने मिलता है ।

इससे पहले मां को सुगंधित तेल से मसाज कर, सुगंधित उबटन से नहलाकर एक – एक को बाथरुम के बाहर भेजती हैं। इनको नए कपड़े पहनने होते हैं।

सबसे ज्यादा जल्दी होती है पटाखे चलाने की, जिसके लिए वो इतनी सारी तैयारियां कर चुके हैं। पटाखों के सामने उनको न भूख लगती है और न प्यास। ये तो उनकी मां ही है जो सुबह-सुबह खीर का प्याला इस शर्त पर नाश्ते के टेबल पर रखती है कि अगर ये खत्म हो जाए तो पटाखे चलाने जा सकते हैं। पटाखे चलाने की खुशी में गटागट खीर खत्म कर आंगन में भाग जाते हैं।

दिवाली के सब दिन खास होते हैं। धनतेरस से दिवाली शुरू होती है। इसी दिन से आंगन में रंगबिरंगी रंगोलियां सजने लगती हैं, दिये जगमगाने लगते हैं। घर-घर कीबाल्कनी में आकाशदीप सजते हैं। इस दिन नई चीज खरीदना शुभ माना जाता है। सोना चांदी तो और भी लाभदायक माना जाता है। दूसरा दिन नरक चतुर्थी, इस दिन नरकासुर का वध हुआ था। उसके संकेत के रूप में एक फल होता है जो खास इसी दिन नजर आता है। अभ्यंग स्नान के समय इसे पैरों से कुचल कर तोड़ा जाता है। घर के मंदिर के भगवान की पूजा के बाद सब दिवाली की खास मिठाई और नमकीन से बधाई देने आने वाले  मेहमानों का स्वागत किया जाता है। तीसरे दिन शाम को लक्ष्मीपूजन किया जाता है। चौथे दिन नया साल मनाया जाता है। इस दिन सभी व्यापारी अपने सारी पुरानी चोपड़ियों की पूजा करते हैं और नए बहीखाते भी पूजा करके शुरू करते हैं। पांचवां दिन होता है भाईदूज। इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र के लिए दुआएं मांगती हैं और उनकी आरती के बाद और मिष्ठान्न खिलाकर विदा करती हैं। यह दिन यमद्वितिया कहलाता है। आज के दिन ऐसा माना जाता है कि प्रात:काल चंद्रदर्शन शुभ होता है। इस दिन जो व्यक्ति अपने बहन के घर जाकर वस्त्राभूषण से अपनी बहन को सम्मानित करता है और बहन के हाथों से बना भोजन ग्रहण करता है उसके जीवन में प्रगति,और समृद्धि हमेशा बरकरार रहती है और धन, आयुष्य, पैसा सुखों की प्राप्ति होती है। शाम के समय आंगन में दिया जलाकर दीपदान करने की भी प्रथा है।

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