बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के शुरुआती रुझान राज्य की राजनीति में एक ऐतिहासिक मोड़ का संकेत दे रहे हैं। 243 सीटों वाली विधानसभा में एनडीए 206 सीटों पर बढ़त बनाए हुए हैं— एक ऐसा आँकड़ा, जो न केवल सत्ता परिवर्तन या सत्ता वापसी का, बल्कि जनता के गहरे राजनीतिक मूड का परिचायक है। यह बढ़त इस बात का स्पष्ट संकेत है कि बिहार की जनता ने स्थिरता, सुशासन और भरोसेमंद नेतृत्व को एक बार फिर निर्णायक बहुमत के साथ चुना है। इस जनादेश के केंद्र में मुख्य मंत्री नीतीश कुमार का अनुभवी नेतृत्व और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत प्रभाव रहा है।

सुशासन की गारंटी: नीतीश कुमार का पुनः भरोसेमंद उदय
लगभग दो दशकों से बिहार की राजनीति के धुरी बने नीतीश कुमार आज भी जनता के बीच विश्वसनीयता के प्रतीक हैं। उन्होंने जिस ‘सुशासन मॉडल’ से राज्य को बदली हुई पहचान दी— बेहतर कानून-व्यवस्था, सड़क निर्माण, स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार, भ्रष्टाचार पर नकेल— वही मॉडल 2025 में भी जनता के भरोसे का आधार बना।
रुझान स्पष्ट संकेत देते हैं कि बिहार ने विकास की निरंतरता के लिए नीतीश को पुनः मौका दिया है। एक शांत, स्थिर और संतुलित नेतृत्व के रूप में उन्होंने एनडीए को एकजुट रखा, यही वजह है कि 206 सीटों की बढ़त महज चुनावी आँकड़ा नहीं, बल्कि नेतृत्व की स्वीकार्यता का प्रमाण है।
महिला मतदाताओं का अभूतपूर्व समर्थन
बिहार की राजनीति में महिलाओं को केंद्र में रखने की परंपरा नीतीश कुमार ने ही स्थापित की। जीविका समूहों का विस्तार, स्वयं सहायता योजनाओं को गति, पंचायतों में 50 प्रतिशत आरक्षण, सरकारी नौकरियों में 35 प्रतिशत कोटा, साइकिल-कन्या योजना और शराबबंदी— इन पहलों ने महिलाओं के जीवन में वास्तविक बदलाव लाया।
2020 की तरह इस चुनाव में भी महिलाओं ने ‘विकास और सुरक्षा’ के एजेंडे पर भरोसा जताया और भारी संख्या में एनडीए के पक्ष में मतदान किया। यह बढ़त बताती है कि बिहार का महिला वोट-बैंक अब भावनाओं से नहीं, बल्कि नीतीश मॉडल से सीधे जुड़ा सामाजिक-सशक्तिकरण का वर्ग बन चुका है।
लाभार्थी वर्ग: मोदी-नीतीश के विकास मॉडल का मजबूत स्तंभ
केंद्र की कल्याणकारी योजनाओं— मुफ्त राशन, जनधन खाते, उज्ज्वला गैस, प्रधानमंत्री आवास योजना, आयुष्मान भारत— ने गरीबों के जीवन में ठोस प्रभाव छोड़ा है। यह लाभार्थी समूह अब एक ठोस राजनीतिक वर्ग बन चुका है, जिसकी प्राथमिकता स्थिर सरकार और निरंतर लाभ है।
206 सीटों की बढ़त साफ बताती है कि गरीब, निम्न-मध्यवर्ग और ग्रामीण जनसंख्या ने मोदी-नीतीश के संयुक्त शासन मॉडल को सबसे विश्वसनीय विकल्प माना है।
सामाजिक समीकरण एनडीए के पझ में
बिहार में सामाजिक न्याय और सामाजिक इंजीनियरिंग की राजनीति हमेशा निर्णायक रही है। 2025 में जदयू का अति-पिछड़ा, पिछड़ा, दलित और महिला आधार, भाजपा के सवर्ण तथा गैर-यादव ओबीसी वोट-बेस के साथ मिलकर एक मजबूत और व्यापक गठबंधन में बदल गया।
विपक्ष इस सामाजिक समीकरण को चुनौती देने में असफल रहा। भाजपा-जदयू का संयुक्त अभियान एक संगठित मशीनरी की तरह काम करता दिखा, जिसने एनडीए को यह ऐतिहासिक बढ़त दिलाई।
विपक्ष की रणनीतिक चूक और नेतृत्वहीनता
महागठबंधन में नेतृत्व को लेकर स्पष्टता का अभाव, सीट-बंटवारे में मतभेद, उम्मीदवार चयन में देरी और मुख्य मंत्री चेहरे को अंतिम समय में तय कर पाना— ये सभी कारक विपक्ष के लिए नुकसानदेह साबित हुए।
तेजस्वी यादव की लोकप्रियता के बावजूद ‘जंगलराज’ की पुरानी छवि को पूरी तरह मिटाया नहीं जा सका। इसके विपरीत एनडीए एक संयुक्त चेहरे और स्पष्ट एजेंडे के साथ चुनाव में उतरा, जिससे उसे निर्णायक बढ़त मिली।
जनादेश का संदेश: विकास, स्थिरता और सुशासन को प्राथमिकता
2025 के रुझान स्पष्ट रूप से बताते हैं कि बिहार की जनता ने राजनीतिक अस्थिरता से दूर, विकास-केन्द्रित शासन को चुना है। एनडीए की 206 सीटों की बढ़त न केवल नीतीश कुमार की स्वीकार्यता की कहानी है, बल्कि यह संदेश भी है कि बिहार सतत विकास और शांति चाहता है।
यह जनादेश एक बार फिर सिद्ध करता है कि जब नेतृत्व विश्वसनीय हो और नीतियां परिणाम देती हों, तो जनता प्रचंड बहुमत से रास्ता साफ करती है।
डॉ. संतोष झा
