| हमारी आपकी दिक्कत बस यह है कि हम हजार चोट खाने के बाद भी यह मान लेते हैं कि पाकिस्तानी या बांग्लादेशी सुधर जाएंगे। हममें से कुछ को लगता है कि वे हमारे जैसे ही शांति से जीने की इच्छा रखने वाले लोग हैं। पर यह हमारी मूर्खता है, वे हमारी मूर्खता के कारण स्वयं को क्यों बदल लेंगे भला? उनका आनन्द इसी में है, वे यह करते रहेंगे। |
बांग्लादेश में जो हो रहा है, उसे देख कर मैं अचंभित तो नहीं हूँ। बांग्लादेश हो पाकिस्तान, यह बर्बरता उसके मूल स्वभाव में है। वह देश, अपने जन्म के दिन से ही ऐसा है और जबतक उसका अस्तित्व है तबतक ऐसा ही रहेगा। उसे बनाने वालों ने यही बनाने का स्वप्न देखा था। उन्हें यदि सभ्यता के साथ जीने की इच्छा होती तो अलग देश मांगते ही क्यों? वे अलग हुए ही थे ताकि ऐसे बन सके।
ईशनिंदा का आरोप लगा कर किसी को पीट-पीट कर मार देना और फिर हजारों की भीड़ के सामने उसे पेड़ से टांग कर जला देना, भारत के लिए भले अपराध हो, बांग्लादेश के लिए नहीं।

सोचिये न, हजारों की भीड़ में किसी एक को भी यह बात बुरी क्यों नहीं लगी? नहीं लगेगी भाई… वे ऐसे ही हैं।
बांग्लादेश के हिन्दू सन सैंतालीस से ही ऐसे ही दोयम दर्जे का जीवन जीते रहे हैं। अंतर बस इतना है कि पहले सोशल मीडिया नहीं था तो आप तक तस्वीरें नहीं आती थीं, अब आने लगी हैं।
बांग्लादेश लेखिका तस्लीमा नसरीन ने अपनी पुस्तक ‘लज्जा’ में 1992 का जो बांग्लादेश दिखाया है, वह आज से अधिक भयावह है। यह आतंक किसी एक दिन की बात नहीं, वहाँ ऐसा ही होता रहा है, ऐसा ही होता रहेगा।
आप कहते हैं कि फलाँ-फलाँ इस मुद्दे पर बोल क्यों नहीं रहे? धुरन्धर जैसी एक फिल्म से पाकिस्तानियों के लिए दुखी हो जाने वाले किसी को टांग कर जला दिए जाने पर चिंतित क्यों नहीं होते?
यह भी एक तरह का भरम ही है। आप जिनसे उम्मीद पाले बैठे हैं, वे क्यों बोलेंगे? वे भी उसी भीड़ का हिस्सा हैं, उन्हें भी उसी तरीके से प्रेम है। उन्हें बांग्लादेश या पाकिस्तान नाम से प्रेम थोड़े है, वे उसी भीड़ को प्रेम करते हैं जो उस युवक को पेड़ पर टांग कर जला रही थी।

हमारी आपकी दिक्कत बस यह है कि हम हजार चोट खाने के बाद भी यह मान लेते हैं कि पाकिस्तानी या बांग्लादेशी सुधर जाएंगे। हममें से कुछ को लगता है कि वे हमारे जैसे ही शांति से जीने की इच्छा रखने वाले लोग हैं। पर यह हमारी मूर्खता है, वे हमारी मूर्खता के कारण स्वयं को क्यों बदल लेंगे भला? उनका आनन्द इसी में है, वे यह करते रहेंगे।
कई बार मनुष्य के भरम ही उसके सबसे बड़े शत्रु साबित होते हैं। भारत यदि इस बात को स्पष्ट मान लेता कि उसके पड़ोस में बसने वाले सामान्य मनुष्य नहीं बल्कि दैत्य हैं, तो उसकी अधिकांश परेशानियों का हल निकल आता। पर हम बार-बार भरम में आ जाते हैं।
बांग्लादेश में जो हो रहा है वह आगे भी होता रहेगा। आप हर बार आश्चर्यचकित होंगे, हर बार क्रोधित होंगे, अपनी सरकारों को कोसेंगे और फिर तबतक के लिए चुप हो जाएंगे जबतक कोई दूसरी असभ्य तस्वीर नहीं आ जाती।
आप जबतक उनको स्पष्ट रूप से दैत्य नहीं मान लेते, तबतक कुछ नहीं बदलेगा। जबतक बीमारी के बारे में ही आप कन्फ्यूज रहेंगे, इलाज का घुइयां करेंगे?
– सर्वेश तिवारी ‘श्रीमुख’

